चार बजने को हुए तो सलोनी खिड़की बंद करने लगी…उम्र हो रही थी..अब हल्की ठंड भी उसके लिये जानलेवा हो जाती थी, फिर अभी तो दिसम्बर की कड़कती सर्दी है।तुलिका भी काॅलेज़ से आती ही होगी…।खिड़की बंद करते हुए उसकी नज़र अस्तांचल सूरज पर पड़ी जो दिनभर की थकान के बाद विश्राम करने के लिये तत्पर था।उसने खिड़की बंद नहीं की और उस ढ़लते हुए सूरज के चारों ओर फैले लालिमा को देखते हुए उसे सर्दी की वो शाम याद आ गई जब….
विवाह के दो बरस बाद ही पति की अचानक मृत्यु से वह अंदर तक टूट चुकी थी।शैलेंद्र के बिना तो वह जीना ही नहीं चाहती थी लेकिन गोद में छह महीने के बेटे मनु ने उसका हाथ पकड़ लिया था।मनु के लिये उसने जीना शुरु कर दिया था।पति के ऑफ़िस में ही उसे नौकरी मिल गई थी।कुछ दिनों तक वह मनु को साथ लेकर गई लेकिन फिर उसे डे केयर में छोड़ने लगी थी।
एक दिन अचानक डे केयर से फ़ोन आया कि मनु को तेज बुखार है।वह तुरंत मनु को लेकर अस्पताल दौड़ी।डॉक्टर ने उस दो साल के नन्हे बच्चे के शरीर पर सुइयाँ चुभोई तो उसे लगा जैसे उसके हृदय पर कई तीर एक साथ लगे हों।बेटे का रुदन सुनकर वह भी रोने लगी थी।
दो दिन तक वह मनु के साथ अस्पताल में रही लेकिन हाय री किस्मत!…वह बेटे को अपने साथ लाने में नाकामयाब रही।मनु को सीने-से लगाकर वो फ़फक पड़ी थी।जिसे अपना दूध पिलाया…उसे आज अपने हाथों से…।दिसम्बर की सर्दी की वो शाम थी…
सूरज की लालिमा में गर्मी नाममात्र को रह गई थी।उसने अपने मनु को छोटे-से कंबल में लपेटकर धरती माँ की गोद में सुला दिया था।थोड़ी देर तक वह वहीं बैठी रही, फिर उठने को हुई तो उसे कहीं से रोने की आवाज़ सुनाई दी।चारों तरफ़ उसने अपनी नज़र दौड़ाई
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लेकिन कुछ भी दिखाई नहीं दिया।अंधेरा होने को था, इसलिए उसने रुकना मुनासिब नहीं समझा।आगे बढ़ने को उसने कदम बढ़ाये ही थे कि फिर से उसे रोने की आवाज़ सुनाई दी।वह रुक गई और आवाज़ के पीछे-पीछे चलती गई तो झाड़ियों के बीच उसे एक नन्हीं-सी बच्ची रोती हुई दिखाई दी।फ़टे कपड़े और नंगे पैरों में ठंड से ठिठुरती हुई बच्ची को उसने उठा लिया और अपने गरम शाॅल में लपेटकर उसे अपने सीने से लगा लिया।
ममतामयी स्पर्श और गर्माहट पाकर बच्ची चुप हो गई।उसने आसपास देखा, आवाज़ भी लगाई लेकिन कोई जवाब न पाकर वह बच्ची को अपने साथ ले आई।पुलिस में रिपोर्ट लिखवाने के सात दिन बाद भी कोई उस बच्ची को लेने नहीं आया तो उसने उस बच्ची को तुलिका नाम
देकर कानूनी रूप से उसकी माँ बन गई।जिस शाम को वह मनहूस मान रही थी उसी सर्दी की शाम ने उसकी गोद में एक नई ज़िंदगी दे दी जो उसके जीने का मकसद बन गयी।उसने ईश्वर को लख-लख धन्यवाद दिया।
दरवाज़े की काॅलबेल बजी तो उसकी तंद्रा टूटी।’ आती हूँ ‘ कहकर उसने दरवाज़े खोला।
” अरे माँ…खिड़की तो बंद कीजिये।ठंडी हवा आपके गले को….।” अपनी किताबें मेज़ पर रखकर तूलिका ने खिड़की बंद की और माँ के साथ रज़ाई में बैठकर उन्हें दिनभर की रिपोर्ट देने लगी,” माँ..जानती हैं, आज इंग्लिश का लेक्चर तो बहुत बोरिंग था..आज दिव्या लंच में…।” वह बोलती जा रही थी और वह अपनी तूलिका को एकटक निहारे जा रही थी।
विभा गुप्ता