अपनी आंखों में आंसू भरकर नंदिनी अपने बिस्तर पर बैठी हुई थी…संज्ञा शून्य सी!!
ऐसा लग रहा था कि उसके शरीर के सारे रक्त सूख गए हैं ।उसका दिमाग भन्ना रहा था ।
कई बातें उसके दिमाग और मानस पटल पर दौड़ रही थीं ।
“क्या करूं मैं ?अपने माता-पिता को क्या जवाब दूंगी मैं?”
क्या इसी दिन के लिए उन्होंने मुझे पढ़ाया लिखाया था!मैं उनका सिर नीचा नहीं कर सकती। अभी के अभी मुझे अपना फैसला लेना ही होगा।
उसने अपने कांपते हुए हाथों को देखा, कैसे वह ऐसा काम कर सकती है?
इन्हीं उंगलियों से वह कोई ग़लत सिग्नेचर कैसे कर सकती है!!
नंदिनी ने अपने दोनों हाथों को जोड़कर सटा लिया और अपने बिस्तर में दुबक कर बैठ गई।
वह तनाव से बाहर निकलना चाहती थी। अपनी आंखें बंद कर उसने अपने सिर को पीछे तकिए पर टिका दिया।
कई बातें उसके जेहन में दौड़ने लगी।
जब वह सेवंथ स्टैंडर्ड में थी कितनी खुशी से चहचहाते हुए उसने अपने रिपोर्ट कार्ड अपने पिता के हाथ में थमाया था ।
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उसके पापा ने कितनी खुशी से उसे अपनी गोद में उठा लिया था और उसके रिपोर्ट कार्ड को देखकर कहा था “चाहे कुछ भी हो जाए नंदू बेटा मैं तुम्हें डॉक्टर बनाऊंगा ही!”
और फिर उन्होंने अपने आपको झोंक दिया था ।
यहां तक कि मां को भी आंगनवाड़ी में नौकरी दिलवा दिया था ।
माता-पिता दोनों की अथक परिश्रम की बदौलत नंदिनी ने मेडिकल की परीक्षा पास कर डॉक्टर बन गई ,एक सफल डॉक्टर!
जिस दिन उसे डॉक्टर के सर्टिफिकेट मिले थे, उस दिन उसके माता-पिता कितने खुश हुए थे।
वह चेहरा नंदिनी के जेहन से जा नहीं रहा था।
वह अपने आप को भाग्यवान समझा रही थी।
उसी के साथ उसने एक फैसला लिया था कि अपने माता-पिता का सिर कभी झुकने नहीं देगी।उन्हें हमेशा खुश रखेगी।
फिर एक अच्छे अस्पताल में उसे नौकरी मिल गई थी और वह खुशी से अपनी ड्यूटी निभा भी रही थी।
मगर अचानक ही एक हैरान करने वाला केस आया।
माधवी चौधरी जो शहर के जाने-माने बिजनेसमैन गट्टू सेठ की मां अचानक ही बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हो गई।
कहने को तो गट्टू सेठ एक बिजनेसमैन था मगर पूरे शहर को उसके काले कारनामों के बारे में पता था।
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उसने अपनी मां को यह कहकर अस्पताल में एडमिट कराया था कि वह सीढ़ियों से गिर गई है मगर उसके चोट को देखकर लग रहा था कि उसे धक्का दिया गया है ।
उसपर गट्टू सेठ ने अचानक ही उसके केबिन में आकर एक नोटों के बंडल थमाते हुए कहा
“जय हो डॉक्टर!मुझे अपनी मां से छुटकारा चाहिए। वह बहुत जी ली अब उसे मुक्ति चाहिए।आप उसे स्लो प्वाइजन दे दीजिए ताकि वह धीरे-धीरे मर जाए !”
“कैसी बातें कर रहे हैं आप? मैं एक डॉक्टर हूं।” नंदिनी गुस्से में बोली ।
“मैं पुलिस को फोन कर दूंगी।”
“ पुलिस हा हा हा !कर दो शौक से।, गट्टू सेठ ने अपनी बड़ी-बड़ी आंखें नंदिनी को दिखाते हुए कहा
“देखो डॉक्टर मुझे अपना जवाब हां में चाहिए नहीं तो!!
उसको तो मैं मारूंगा ही और केस तुम्हारे ऊपर डालूंगा ।
सारी जिंदगी सड़ जाएगी जेल के अंदर !यह फैसला आपको करना है !क्या करना है आप खुद सोच लीजिए । तुम्हारे सारे सीनियर मेरे हाथों की कठपुतली हैं।तुम समझ रही हो ना!”
नंदिनी घबरा गई ।उसने डॉक्टर एसोसिएशन में इस बात की कंप्लेंट भी किया ।
मगर सीनियर डॉक्टर ने उससे पल्ला झाड़ते हुए कहा “गट्टू सेठ से पंगा लेना ठीक नहीं। वह जो बोलता है वह कर लो। आखिर हमारे अस्पताल के लिए यह अच्छा ही तो होगा।
कल तुम कुछ और रहोगी। इस 10 से 5 की नौकरी करने की जरूरत ही नहीं रहेगी।”
अपनी आंखों में आंसू भरकर नंदिनी घर चली आई।
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एक बार उसे मन किया कि वह रिजाइन दे दे मगर उसके रिजाइन देने से कुछ भी नहीं होने वाला।
गट्टू सेठ की मां मर जाती।
“ मैं उसे ऐसे मरने नहीं दूंगी! मैं डॉक्टर हूं। डॉक्टर भगवान होता है ।
जिंदगी का देने वाला।अब चाहे मेरा कुछ भी हो, मैं पुलिस को फोन कर बताऊंगी जरूर। यही मेरा आखिरी फैसला है।”
अपने कांपते हाथों से उसने सिटी पुलिस कमिश्नर को फोन कर दिया और सारी बातें बता दिया।
सिटी कमिश्नर पुलिस कमिश्नर भावना दीक्षित एक बुजुर्ग और अनुभवी महिला थी।
उन्होंने नंदिनी की पीठ थपथपाते हुए कहा “यू आर अ ब्रेव गर्ल! मैंने आपके बारे में बहुत कुछ सुना है।
अब जो मैं कहूंगी आप करते जाना।”
पुलिस कमिश्नर के समझाने पर नंदिनी ने वही किया। गट्टू सेठ अपने ही जाल में फंस गया।
पुलिस ने उसे पकड़कर जेल में डाल दिया।
नंदिनी अब खुश थी।
उसका आखिरी फैसला न्याय का फैसला था।
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प्रेषिका -सीमा प्रियदर्शिनी सहाय
#आखिरी फैसला
पूर्णतः मौलिक और अप्रकाशित रचना बेटियां के लिए।