जैसी करनी वैसी भरनी – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

 सेठ गोपालदास जी कपड़े के व्यापारी थे। इलाके में उनकी दुकान की धाक थी। शादी व्याह के सीजन में अच्छी खासी बिक्री हो जाती थी। ग्रामीणों की उधारी भी चलती थी किन्तु उनके व्यवहार से अभी तक उन्हें किसी ने धोखा नहीं दिया था।देर सबेर पैसे चुका ही जाते थे।वे अपने मुनीम को तकाजा करने भेजते किन्तु सख्त ताकीद करके कि अनावश्यक किसी को परेशान न करें।

उनके दो बेटे थे बड़ा विजय एवं छोटा अजय। दोनों भाइयों में करीब बारह साल का अन्तर था।सो अजय अभी स्कूल में ही था तब तक बड़े भाई ने ज्यादा पढ़ाई न कर पिता जी के कारोबार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया तो उन्होंने उसकी शादी भी जल्दी कर दी। विजय अपने छोटे भाई को बहुत प्यार करता था। उसकी पढ़ाई लिखाई का भी बिशैष ध्यान रखता। बड़े ही आराम से सुखपूर्वक परिवार जीवन जी रहा था। किन्तु भविष्य के गर्भ में क्या छुपा है कोई नहीं जानता।

गोपालदास जी अपनी बहन की  बेटी की शादी में गए थे साथ ही उनकी पत्नी माधुरी जी भी थीं। खुशी -खुशी  शादी से लौटते समय सामने से आते ट्रक ने गलत दिशा में आकर टक्कर मार दी। भिडन्त इतनी जबरदस्त थी कि कार के परखच्चे उड़ गए और साथ ही गोपालदास जी, माधुरी जी, एवं ड्राइवर राजू ने घटनास्थल पर ही दम तोड दिया। अस्पताल ले जाने का भी अवसर नहीं मिला।

अजय का तो रो-रोकर बुरा हाल था किन्तु विजय अपने मन पर नियंत्रण रख यंत्रवत सारे क्रिया कलापों को कर रहा था। स्तब्ध तो वह भी था  किन्तु बेटे होने का फर्ज तो उसे निभाना ही था। 

जाने वाले के संग न तो कोई जाता है न ही दुनिया के कोई काम रुकते हैं सो बीतते समय के साथ सब कार्य यथावत होने लगे। अजय को अब भाई भाभी का ही सहारा था।वह उनके प्यार में ही मम्मी-पापा के प्यार को खोजता। विजय एवं उसकी पत्नी जया भी उसे अपने बच्चे जैसा ही प्यार देते।

समय पंख लगा उड़ने को आतुर था और उसकी उड़ान के साथ अजय भी एक पढ़े-लिखे नौजवान के रूप में बदल गया।

पढ़ाई पूरी होते ही उसने अपने बड़े भाई से कहा कि मैं शहर जाकर नौकरी कर लूं।

विजय बोला अजय बेटा तुझे नौकरी करने की कोई जरूरत नहीं है पिताजी का इतना बड़ा बिजनेस है हम दोनों भाई मिल कर इसी को सम्हालेंगे।बड़े भाई की इच्छा का मान रखते हुए उसने उन्हीं के साथ कारोबार में हाथ बंटाना शुरू कर दिया। मिल कर काम करने से कारोबार में दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की होने लगी। अभी तक दोनों भाइयों के बीच निश्च्छल प्यार था।

अब विजय एवं उसकी पत्नी ने अजय के लिए एक अच्छी संस्कारी, सुयोग्य लड़की देख उसकी शादी कर दी।अब  तक विजय दो बेटों का पिता बन चुका था।

पत्नी के आने के बाद उसे कभी कभी ज्यादा पैसों की जरूरत महसूस होती किन्तु  संकोचवश वह भाई को कुछ नहीं कह पाता। वैसे  रमा संस्कारी एवं मितव्यई लड़की थी, वह भी परिवार में घुल-मिल  गई थी फिर भी पैसों की कभी तो जरुरत होती है। कभी कोई चीज खरीदने की इच्छा होती वह अजय से कहती ये क्या तुम्हारे हाथ में कभी पैसा ही नहीं रहता माना कि घर में सब कुछ रहता है फिर भी बच्चों तक को पॉकेट मनी दी जाती है, फिर हम तो बडे हैं शादी शुदा हैं हमारी भावनाओं को भैया भाभी क्यों नहीं समझ रहे। कुछ तो पैसा हाथ में होना चाहिए।

मैं भी समझता हूं रमा पर क्या करूं भाई के एहसान तले दबा हूं और फिर वे मुझसे बहुत बड़े हैं उनका स्थान माता-पिता सा है कैसे मांगूं वे स्वयं तो सोच ही नहीं रहे।

शादी की सालगिरह पर अजय रमा को उपहार देना चाहता था सो उसने भाभी से कहा भाभी मुझे कुछ रूपयों की जरूरत है आप बोलो  न भैया से। 

अजय बेटा क्या जरूरत आ पड़ी।

भाभी वो मैं रमा को कुछ उपहार देना चाहता हूं शादी की सालगिरह पर।

ये सब चोंचले अपने परिवार में नहीं चलते कभी तुमने देखा है अपने भैया को मुझे उपहार देते। भाभी ने बात यहीं खत्म कर दी भैया तक पहुंचने ही नहीं दी। दोनों मन मार कर रह गए।

समय के साथ -साथ उनके तीन बेटियां हो  गईं।अब रमा कहती हमने तो मन मार लिया अब बच्चों का क्या करूं कभी कुछ मांगती हैं तो मेरे हाथ में तो इतना पैसा नहीं होता ऐसे कब तक चलेगा। खर्च के लिए कुछ तो बंधी रकम हर माह लिया करो।

अजय जानता था कि रमा सही कह रही है 

किन्तु भाई से कुछ भी मांगने से कतराता था,यह उसकी विनम्रता थी किन्तु अब भाई सोचने लगा था कि वह निरा बेवकूफ है। उनके सीधेपन, एवं उनके प्रति आदरभाव को वेवकूफी समझा गया। अपने बढ़ते बेटों को देख विजय के मन में बेइमानी आने लगी थी।वे अपने बेटों का भविष्य सुनिश्चित करने के चक्कर में अपने छोटे भाई से विमुख होने लगे और सोचने लगे कैसे इसे कारोबार से बेदखल करें। उनके दोनों बेटे अच्छे स्कूल में पढ़ रहे थे।

जब अजय ने एक दिन कहा भैया रिया का एडमिशन कराना है किसी अच्छे स्कूल में।

अच्छे स्कूल में कराके क्या करेगा सरकारी में डाल दे, है तो लड़की क्या करेंगे ज्यादा पढ़ा लिखा कर आखिर दूसरे घर जाना है और घर गृहस्थी सम्हालनी है ।

नहीं भैया आजकल लड़के-लड़कियों में कोई अन्तर नहीं है मैं उसे अच्छा पढ़ाना चाहता हूं पहली बार अजय ने बेटी की खातिर अपने बड़े भाई के सामने मुंह खोला था।

विजय ने उसका एडमिशन अच्छे स्कूल में करवा दिया ।

अब अजय ने भाई के सामने पैसों की मांग रखी। भैया अब नियमित मुझे अलग खर्च अपने बच्चों के लिए चाहिए सो आप हर माह दे दिया करें।

विजय जानता था उसकी मांग अनुचित नहीं है सो बीस हजार रुपए उसे देना तय कर दिया।

इतनै पैसों में रमा अपनी व बच्चों की ऊपरी जरूरतें पूरी कर कुछ पैसे भविष्य के लिए बचा लेती। फिर दूसरी बेटी भी उसी स्कूल में जाने लगी।

विजय और जया दोनों मिलकर जो कूटचक्र अजय एवं उसके परिवार के लिए रच रहे थे उससे अनभिज्ञ वे बड़े भाई भाभी को माता-पिता समान मान उनका मान रखते रहे।

विजय के बेटे अधिक सुख सुविधाएं एवं पैसा मिलने के कारण उनका दुरुपयोग करने लगे।वे पढ़ाई -लिखाई पर कम ध्यान देते, दोस्तों, पार्टीज, घूमना फिरना इन्हीं में मस्त रहते। माता-पिता कोई ध्यान न देकर उनकी मांग पूरी करते रहते।

अब दोनों ने फैसला किया कि अजय को अलग कर पूरे कारोबार एवं संपत्ति पर कब्जा कर लिया जाए।सो उन्होंने एक दिन धमाका करते हुए अजय से कहा अजय अब तुम्हारा परिवार भी बढ़ गया है साथ रहना नहीं निभेगा सो तुम अपनी अलग व्यवस्था कर लो।

यह सुन अजय अपने भाई का मुंह देखता रह गया। भैया बताएं क्या करूं।

में क्या बताऊं अलग रहने और काम की व्यवस्था कर लो।

यह सुन अजय के पैरों तले से जमीन खिसक गई। न पैरों तले जमीन थी न सिर पर आसमान। कहां जाए।आज उसे रमा की बात  याद आ रही थी कि भविष्य का भी कुछ सोचो। भैया से कह कुछ अपने नाम भी करवाओ। किन्तु वह भातृभक्ती  में इतना लीन  था कि वह उनसे ऐसी बात की कल्पना भी नहीं कर सकता था कि भैया उसे ऐसे अलग रहने को कह देंगे बिना कुछ दिए।

कुछ देर चुप रहने के बाद बोला भैया अब मैं क्या काम करूंगा। नौकरी कर नहीं सकता उम्र निकल गई अब आप ही मेरा हिस्सा दे  दें तो मैं कुछ व्यापार कर लूंगा।

अब इतने भी भोले मत बनो तुमने समय पर ये सब क्यों नहीं सोचा। तीन -तीन बेटीयां पैदा कर लीं भविष्य का कुछ नहीं सोचना। और कौन सा हिस्सा दे दूं। तुम्हारे परिवार का, तुम्हारा बचपन से लेकर अभी तक इतना खर्च उठाया है क्या वह सब मुफ्त में हो गया।

अजय की आंखों में आंसू आ गए। भैया आज आप ये कैसी बातें कर रहे हैं। मैं तो आपके आदेश का पालन करता आया। आपको मां बाबूजी के स्थान पर ही रखा। क्या माता-पिता अपने बच्चे से ऐसा कह सकते हैं।आप जो भी  देंगे मैं ले लूंगा पर ऐसे खाली हाथ कैसे जा सकता हूँ। आपने ही तो कहा था दोनों मिलकर साथ ही काम करेंगे तो मैंने भी जीवन भर आपका साथ दिया। क्या मेरा संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं।

संपत्ति कैसी संपत्ति जितना कमाते थे उतना तुम लोगों पर खर्च भी तो होता था।

वह निरूत्तर  हो बोला भैया आप जो करें मुझे मंज़ूर है।

विजय ने केवल कुछ रुपए देकर उसे घर से अलग कर दिया। घर और कारोबार पर कब्जा कर लिया।

अजय अपने परिवार को लेकर एक किराये के मकान में शिफ्ट हो गया और पैसों से एक छोटी सी परचूनी की दुकान खोल ली।रमा भी पढ़ी लिखी थी सो उसने एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी कर ली और कुछ बच्चों को ट्यूशन पर घर बुलाने लगी।कुल मिलाकर उनका खर्च चलने लगा। किन्तु दोनों पति-पत्नी के दिल पर जो आघात लगा था उससे दोनों के बीच मौन पसर गया।

अजय ने कहा रमा तुम सही थीं किन्तु भैया पर अपने अतिविश्वासके कारण मैंने तुम्हारी बात नहीं मानी। यदि समय रहते चेत गया होता तो आज मैं अपने आपको तुम्हारा और बच्चों का गुनहगार न मानता। समय ने कब किसको बख्शा है वह तो समय-समय पर अपना रुख बदलता रहता है।

विजय के बड़े बेटे ने गलत संगति में पड़कर पढ़ाई लिखाई छोड़ दी और नशे की गिरफ्त में आ अपराधी प्रवृत्ति का हो गया।

छोटा बेटा पढ़ने में कुशाग्र था सो वह पढ़-लिखकर इंजीनियर बन गया। आगे की पढ़ाई के लिए विदेश चला गया तो वह वहीं का होकर रह गया। वहीं साथ काम करने वाली अमेरिकन  लडकी से शादी कर ली और भूल गया कि उसके माता-पिता भी हैं जो उसके लौटने का इंतजार कर रहे हैं । उम्र अधिक हो चली थी और बेटों ने जो घाव दिए थे उससे दोनों पति-पत्नी मानसिक और शारीरिक रूप से टूट गये सो बीमार रहने लगे। अब उन्हें रह-रहकर अजय के साथ किए धोखे की याद आती। सोचते ये हमारे कर्मो का ही फल है।

इधर अजय ने जैसे तैसे बेटीयों को खूब शिक्षा दिलाई। बड़ी बेटी कॉलेज में व्याख्याता हो  गई। अब वह अपनी बहनों की  पढाई में मदद कर रही थी बीच वाली बेटी ने नीट पास कर मेडिकल में प्रवेश ले डाक्टर बन गई। छोटी बेटी ने सी ए बनना चाह  तो उसकी कोचिंग ले वह उसकी तैयारी में जुट गई और सफलता प्राप्त की।

फिर एक-एक कर तीनों बेटीयों की शादी उपयुक्त घर वर देख कर कर दी।सब तरह से सुखी हो गये।अब वे शहर में ही रहने लगे। बेटीयों ने कपड़े की दुकान यहीं खुलवा दी। डाक्टर बेटी ने उसी शहर में एवं सम्मानित प्राइवेट अस्पताल में ज्वाइन कर लिया।मजे से खुशी -खुशी दिन गुजरने लगे।

तभी एक दिन वार्ड में राउंड लेते उसकी नजर एक पेशेंट पर पड़ी,वह शीघ्र ही उधर  गई बड़े पापा मम्मी आप। क्या हुआ है बडे पापा आपको।

वे उसे पहचान नहीं पा रहे थे बेटी तुम कौन हो।

 

बड़े पापा मैं आपकी पीहू नहीं पहचाना।

अरे बेटा इतनी बड़ी हो गई और यहां डाक्टर है।

हां बड़ी मम्मी पापा मैं यहां कार्डियोलॉजिस्ट हूं। भैया नहीं आये।

बेटा उसे खबर करी थी उसने कहा कि अभी वह नहीं आ सकता।

और बड़े भैया।

नीचें नजर कर बोलीं वह तो जेल में बंद है।

फिर आपके साथ कौन आया है।

केशव है वही लेकर आया था। कुछ समझ नहीं आया कि क्या करें सो यही अस्पताल पहले मिला तो यहीं भर्ती कर दिया।

अब आप चिंता ना करें बड़ी मम्मी मैं यहीं 

हूं अभी सब देखती हूं। उसने सब रिपोर्ट्स बगैरा देखीं, सीनियर डाक्टर से सलाह मशविरा किया। उन्हें प्राइवेट रूम‌ में शिफ्ट करवाया। उनकी सम्हालने की व्यवस्था अस्पताल से ही करा वह  उन्हें और केशव को ले अपने घर आ गई और आवाज दी देखो मम्मी-पापा मैं किसे लाई हूं। अजय और रमा सामने भाभी को देख कर अचम्भीत रह  गए और पैर छू हाल-चाल पूछने लगे।

तब पीहू बोली बड़े पापा को दिल का दौरा पड़ा था सो ये लोग रात को यहां आये थे। मेरे ही हास्पिटल में भर्ती थे।आज मेरी नज़र पड़ी तो मैं ले आई। मम्मी बड़ी मम्मी थकी हैं इनके खाने-पीने का कुछ इंतजाम करो। केशव काका भी भूखे हैं।

भाई की बीमारी की खबर सुन अजय एक दम रो पड़ा  बोला भाभी आपने मुझे खबर क्यों नहीं करी।

किस मुंह से करती अजय।

नहीं भाभी मुसीबत में अपने ही काम आते हैं।वह हास्पिटल जाने को तैयार हो गया। भैया अकेले हैं मैं जाता हूं उनके पास।

पीहू बोली पापा मैं सारी व्यवस्था करके आई हूं । आराम से चलते हैं।

चार दिन बाद जब वे डिस्चार्ज हो कर घर आ गए तब वे अजय और रमा से बोले मैं तुम्हारा गुनाहगार हूं। तुम दोनों ने हमें माता-पिता का दर्जा दिया हमारा सम्मान किया किन्तु हमनें उसे तुम्हारी बेवकूफी समझा।जैसा हमने तुम्हारे साथ जिन बेटों के लिए किया, जिन बेटों के लिए संपत्ति हडपी वे ही हमरा साथ छोड़ गए और हमारी दुर्दशा  का कारण बने और जिस हीरा जैसे भाई की हमनें कद्र नहीं की वही भाई और जिन्हें लड़कियां समझ हीन समझा वे ही आज हमारे मददगार बने।

तुम्हारी सुखी गृहस्थी देख हम शर्मसार हैं।कितने कष्ट झेले तुमने तब यह मुकाम पाया।

छोड़ो भैया पुरानी बातें याद करने से तकलीफ़ ही होगी।आप हमें यह बताओ कि आपने हमें खबर क्यों नहीं  दी आप अकेले इतना परेशान होते रहे।

किस मुंह से खबर देता छोटे मैंने जो तेरे साथ किया यह उसी का परिणाम भुगत रहा हूं। कहते हैं न कि भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती उसी बेआवाज लाठी की मार हम खा रहे हैं।

नहीं भैया ऐसा न कहें ये आपका भाई, बेटा अभी जीवित है आप अपने को असहाय न समझें।मैं आपका साथ दूंगा।

शिव कुमारी शुक्ला 

19-11-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

वाक्य प्रतियोगिता ****

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भगवान की लाठी में आवाज नहीं होती

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