संस्कार विहीन – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

दीप्ति को देखने आज फिर एक परिवार आया था। माता-पिता एवं बेटा। बेटा जतिन एक सरकारी नौकरी में कनिष्ठ अभियंता के पद पर बिजली विभाग में अभी -अभी चयनित हुआ था।उसका एवं उसके माता-पिता का दिमाग अभी सातवें आसमान पर था क्योंकि सरकारी नौकरी में बेटे का चयन जो हो चुका था।

दीप्ति अभी इंजीनियरिंग की अन्तिम बर्ष की छात्रा थी।वह तीखे नैन-नक्श, सांवला रंग एवं बड़ी बड़ी बोलती आंखों वाली संतोषी स्वभाव की भाग्यहीन लड़की थी,कारण उसके माता-पिता नहीं थे और वह चाचा चाची के रहमो करम पर जी रही थी। उन्होंने ही जतिन का रिश्ता उसकी इच्छा के विरुद्ध ढूंढा था,वह अभी शादी नहीं करना चाहती थी।

सब सोफे पर बैठे बातचीत में मश्गूल थे। जैसे ही चाय की ट्रै  ले दीप्ति ने कमरे में प्रवेश किया सब उसे देखकर भौंचक रह गए। जतिन का पारा एकदम चढ़ गया।वह चिल्ला कर अपनी मां से बोला मम्मी इस काली कलूटी, मरियल सी लड़की को आपने मेरे लिए पंसद किया है। कहां मेरी पर्सनलटी और कहां यह।

मैं इस भाग्यहीन लड़की से शादी नहीं कर सकता। मैं इतना सुन्दर स्मार्ट और किस्मत का धनी कि सरकारी नौकरी कर रहा हूं। मेरे लिए रिश्तों की कमी है क्या जो आप मुझे यहां इस काली कलूटी के पास ले आईं।देखो तो नाम दीप्ति जैसे प्रकाश भर देगी और शक्ल एकदम विपरीत घोर अन्धकारमयी।

उठो चलो मम्मी मैं यहां एक मिनट नहीं रूकना चाहता कहकर वह माता-पिता को ले निकल गया।

दीप्ति इतना अपमान न सह सकीं उसने बीच में बोलना चाह किन्तु चाची ने आंख से इशारा कर उसे बोलने से मना कर दिया। इससे पहले भी तीन-चार लडके आयें थे अपने परिवार के साथ किन्तु वे सभ्य भाषा में गोल-मोल जवाब देकर चले गए। इतनी बदतमीजी तो किसी ने नहीं दिखाई थी।वह अपने कमरे में जाकर बिस्तर पर लेट रोने लगी। भगवान यह सब मेरे साथ ही क्यों हो रहा है।बचपन से मम्मी-पापा के जाने बाद से भाग्यहीन, कुलक्षिणी, करमजली मैं कैसे हो  गई। मम्मी-पापा की मृत्यु का कारण मैं कैसे हो गई। क्या मैं चाहती थी कि मम्मी-पापा मुझे छोड़कर जायें।उनका एक्सिडेंट हो जाये।

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मेरा रंग सांवला है तो इसमें मेरा क्या दोष ये तो भगवान की देन है।जैसा रंग रूप देकर इस संसार में भेजा वह मेरी चाहत तो नहीं थी। क्या करूं आज मम्मी-पापा होते तो मेरी यह दुर्गति नहीं होती। अपने मन को शांत कर उसने एक कठोर निर्णय लिया कि मैं अब शादी नहीं करूंगी। अपनी पढ़ाई पूरी कर अपने पैरों पर खड़ी होऊंगी।बस अब और नहीं होगा यह देखना दिखाना।

तभी चाची उसके पास आईं उन्हें देखकर एक बार फिर उसकी रुलाई फूट पड़ी।वह चाची से लिपट गई। चाची उसकी पीठ सहलाने लगीं ।

वह बोली चाची क्या मैं आप पर इतना बडा  बोझ हूं कि आप मेरी पढ़ाई पूरी होने के पहले ही मेरी शादी कर मुझे इस घर से विदा कर देना चाहती हैं।बस  अब बंद करो यह सब चाची और मुझे शान्ति से पढ़ने दो।दो माह बाद मेरी परीक्षा है मुझे तैयारी करने दो।यह मेरा अन्तिम बर्ष है परिणाम आते ही मैं नौकरी कर अपने पैरों पर खड़ी हो जाऊंगी और आप पर बोझ नहीं रहूंगी। और हां चाची मैं शादी कभी नहीं करुंगी।

ठीक है दीप्ति बेटा जैसी तुम्हारी इच्छा।

दीप्ति ने मन शांत कर पूरी ताकत पढ़ाई में झोंक दी और परिणाम आने पर अपने कॉलेज में टॉपर रही।अब उसने जगह-जगह नौकरी के लिए आवेदन करना शुरू कर दिया कुछ माह बाद उसकी नौकरी बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर के बतौर लग गई। फिर कुछ माह बाद राजस्थान पब्लिक  सर्विस कमीशन ने सहायक अभियंता की रिक्तियां निकाली तो उसने वहां आवेदन कर दिया। किस्मत से उसमें भी उसका चयन हो गया और वह भाग्यहीन अब भाग्यशाली बनने की ओर अग्रसर थी।

बतौर असिस्टेंट इंजीनियर उसकी नियुक्ति उसी शहर उसी ऑफिस में हुई जहां जतिन नियुक्त था।यह समय का फेर था या भाग्य का किन्तु वह उसी ऑफिस में ज्वाइन करने पहुंच गई।

ऑफिस में पुरुष कर्मचारियों में खुसर-पुसर हो रही थी कि एक दीप्ति नामक महिला अपने यहां ज्वाइन करेगी।यार महिला अधिकारी के अधीन कार्य करने का पहला मौका है न जाने कैसा व्यवहार करेगी।

दूसरा बोला छोड़ यार व्यवहार की बात यह सोच दिखने में कैसी होगी।इस तरह की अनावश्यक चर्चा को चौथे दिन विराम मिल गया जब ऑफिस में दीप्ति ने प्रवेश किया।उसे देखते ही कर्मचारी अचम्भीत हो गये। एक दुबली पतली, सांवली सलोनी लड़की जिसकी आंखें ही बहुत कुछ बोल देती थीं ,मुख पर आत्म विश्वास की आभा।

सबसे ज्यादा परेशान जतिन हो गया।उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था जिसे इतनी बुरी तरह से तिरस्कृत करा था वह एक दिन बॉस के रूप में उसके सामने उपस्थित होगी।जिसे उसने अपनी सरकारी नौकरी का रुतबा दिखाया था वह उससे भी बड़े पद पर आज सरकारी कुर्सी पर बिराजमान है।उसका दिमाग बिजली की गति से भी तीव्र दौड़ रहा था।

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अब यह मुझे सबके सामने  अपमानित कर अपने अपमान का बदला जरूर लेगी।अब मैं क्या करूं। काम के सिलसिले में अब रोज इसका सामना करना पड़ेगा और वह भी पूरे सम्मान के साथ। मैंने इसे भाग्यहीन कहा था किन्तु आज भाग्यहीन तो मैं हो गया इसके समक्ष।  उसके चेहरे पर एक भाव आ रहा था तो दूसरा जा रहा था।

अब तक दीप्ति भी उसे पहचान  गई थी और उसके चेहरे पर आते -जाते भावों को देख उसकी दुविधा भी समझ रही थी।पूरे स्टाफ से परिचय लेने के बाद उसने कार्य की स्थिति जाननी चाही तो सबको कहा कल तक आप लोग अपने से सम्बंधित कार्यों की फाइल मेरे समक्ष रखें । एक बात और हम एक परिवार की भांति हैं

एक दूसरे के दुख सुख में सहयोग करेंगे किन्तु काम में ढिलाई मुझे पंसद नहीं सो उस सम्बंधित कोई शिकायत मेरे सामने नहीं आनी चाहिए।दूसरी बात हमारा काम जनता से जुड़ा हुआ है हम वेतन कार्य करने के एवज में पाते हैं सो हमारी कार्यशैली से जनता को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। आगे आप सब स्वयं समझदार हैं , अब आप लोग जा सकते हैं।

जतिन उसके सामने जाने से कतराता।जाना भी पड़ता तो आत्मग्लानि की वजह से वह नजर नहीं उठा पाता। ऐसे ही दिन व्यतीत हो रहे थे।वह मन ही मन उसे सॉरी बोलना चाहता किन्तु मौका ही नहीं मिल पा रहा था।

इधर एक दिन उसने अपने मम्मी-पापा को जब दीप्ति के बारे में बताया तो सब सुन वे अवाक रह गए।

मम्मी बोलीं ऐसे कैसे हो गया बेटा तू भी तो इंजीनियर हैं फिर वह बड़ी कैसे बन  गई ।

मम्मी मैंने तो डिप्लोमा किया था उसने तो डिग्री ली है। वह तो तभी मेरे से ज्यादा पढ रही थी। शादी के लिए तो उसके चाचा चाची ने दबाव बना कर उसे राजी किया था।अब माता-पिता को भी अपनी ग़लती का एहसास हुआ।

एक दिन उसे अवसर मिल गया। दीप्ति उसके साथ उसकी साइट के काम देखने   गई। एकान्त पाकर आज वह अपने को रोक न सका और बोला मैडम मैं आपको सॉरी बोलना चाहता हूं।

किस बात के लिए।

अपने उस दिन के व्यबहार के लिए जो मैंने आपके साथ आपके घर में किया था।

एक विद्रुप सी हंसी दीप्ति के चेहरे पर आई बोली क्यों अब इतने दिनों बाद सॉरी बोलने की कैसे याद आई। इसलिए कि मैं अब आपकी अधिकारी हूं।

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नहीं मैडम मेरे को आत्मग्लानि हो रही है अपने व्यवहार के बारे में सोच कर।

तो अभी इतने सालों तक क्यों नहीं हुई।अब अचानक क्या हो गया। और यदि मैं यहां नहीं आती तो क्या आप मेरे पास आते माफी मांगने। चिन्ता मत करो उन बातों का प्रभाव यहां ऑफिस के काम  पर नहीं पड़ेगा।इस भाग्यहीन पर विश्वास रखें।

नहीं मैडम भाग्यहीन तो मैं हूं जो अच्छे बुरे की  पहचान न कर सका।

नहीं जतिन वह एक मदहोश, अंहकार में चूर अपने सौष्ठव  एवं रंग रूपके प्रति सचेत, सरकारी नौकरी प्राप्त एक अंहकारी इंसान के शब्द थे। जिसने यह भी नहीं सोचा कि लड़कियां भी हाड़-मांस की बनी इंसान होती हैं । उनके भी दिल होता है जिस पर पर अच्छी बुरी बातों का असर होता है। उन्हें भी बुरा लगता है जब उन्हें उन चीजों के लिए दोषी ठहराया जाता है जिनमें उनका कोई हाथ ही नहीं। क्या मैं अपने मम्मी-पापा की मृत्यु चाहूंगी।

कौन सी लड़की सुंदर दिखना नहीं चाहती पर कुदरत ने जो रंग रूप दिया उसे मैं कैसे बदल सकती हूं यदि तुम्हें रिश्ता मंजूर नहीं था तो चुपचाप यह कह रिश्ता पंसद नहीं आया या बाद में जबाब देंगे जा सकते थे।पर नहीं तुमने अपने अंहकार की संतुष्टि के लिए मुझसे वह सब कहा जो नहीं कहना चाहिए था।पर मैं इतनी संस्कार विहीन नहीं हूं

कि उन बातों का बदला यहां ऑफिस में तुमसे निकालूंगी। फिर तुममें और मेरे में फर्क क्या रह जाएगा।मेरी तरफ से बेफ्रिक रहो तुम्हें कोई नुक्सान नहीं पहुंचाऊंगी।

यह सुन जतिन अपने आपको उसके आगे कितना बौना पा रहा था वही जानता है कुछ भी बोलने के लिए उसके मुंह से शब्द नहीं निकल रहे थे।आज उसे समझ आ रहा था जिसे वह भाग्यहीन समझ गुरूर में ठुकरा आया था वह तो कितनी संस्कारी भाग्यशाली है भाग्यहीन तो वह स्वयं है।

शिव कुमारी शुक्ला 

22-11-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

शब्द प्रतियोगिता****भाग्यहीन

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