क्या खूब किस्मत पाई है पड़ोस वाले शर्मा जी की बिटिया राधिका ने! दयमंती ने अपने पति राजेश से कहा।
क्यों अब क्या हो गया?टॉपर तो है ही वो,अब कोई नई उपलब्धि मिली उसे?
अरे!अपने शहर के नामी उद्योगपति सबरवाल जी के घर की बहू बन रही है वो..
क्या??राजेश के हाथ से गिलास छूटने को हुआ।ये तो सच में चमत्कार ही है।
देख लो जी!हमारे पास इतना धन,शानो शौकत,नाम है पर हम एड़ियां रगड़ रहे हैं अपनी बेटियों के घर वर के
लिए और शर्मा जी ने कैसे बढ़िया दामाद को ढूंढ लिया।
सब किस्मत की बात है,उनका लड़का वैभव तो सबसे बड़ा वकील है शहर का…उसकी तो फीस भी चुकाना
सबके बस की बात नहीं…
वही तो…बड़ी किस्मतवाली है लड़की,राज करेगी ससुराल में…राजेश ने आह भरी।
अब वक्त बताएगा कि कितना राज करेगी?दमयंती ठंडी सांस भरते बोली,उनसे शायद सहन नहीं हो रही थी
पड़ोसी की खुशी।
शादी के बाद,जब भी राधिका अपने मायके आती,आसपास के घर की औरते उसे घेर लेती,उसके कपड़े,जेवर
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देखकर चौंधियाती और मन ही मन जलती भी थीं लेकिन प्रत्यक्ष में मुंह भर कर तारीफ भी करती।
कुछ ही दिनों बाद,राधिका के विवाह बाद की रिपोर्ट आने लगीं।अक्सर राधिका मायके आ जाती और
उदास रहती।
औरतों ने जब उसकी मां से उदासी का कारण पूछा,वो कहती
दामाद जी पर बिटिया के लिए बिल्कुल समय ही नहीं…सुबह सवेरे जाते हैं और रात गए आते हैं घर…सो जाते
हैं, बेचारी राधिका दिल में सैकड़ों सवाल लिए बैठी रह जाती है।ऐसी शादी का क्या फायदा?
लोगों के जलते दिल पर जैसे मरहम लग जाता ये सुनकर…सामने अफसोस जताते,मुंह पीछे कहते सुने
जाते..और करो हैसियत से ऊंची जगह शादी…अरे ! शादी ब्याह समान हैसियत में की जाए तभी ठीक होता है।
राधिका की मां सब कुछ सुनती,समझती और खून का घूंट पीकर रह जाती।
समय बदला,राधिका को अपनी ससुराल में अब अकेले रहने की आदत पड़ने लगी थी।ऐसा नहीं है उसकी
सास ससुर उसे बुरा व्यवहार करते हों,पति भी ठीक ही था बस व्यस्त रहता साथ ही उसे अपने दोस्तों, अंजान
लोगों की हेल्प करने का भी जुनून था जो राधिका को जरा न सुहाता।
एक दफा,उसकी सास ने अपने बेटे वैभव को घेर लिया..”बेटा वैभव!तुम्हारी शादी को चार महीने हो गए ,तू बहू
को अभी तक कहीं घुमाने क्यों नहीं ले गया?”
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कितनी व्यस्तता है मां!आप देख रही हैं न…समय मिलते ही हम चले जाएंगे…क्यों तुमने कुछ कहा मां से?उसने
गुस्से से राधिका से पूछा।
नहीं तो…राधिका डर गई और चुपचाप वहां से चली गई।
वो जानती थी कि वैभव का गुस्सा बहुत तेज है और एक बार इसका दिमाग गर्म हो जाता है तो ये किसी की
नहीं सुनता,वो नहीं चाहती थी कि उसके बूढ़े मां बाप,उसकी वजह से परेशान हों।
करवाचौथ पास आ रहा था,राधिका का पहला करवाचौथ था तो उसकी सास बहुत उत्साहित थीं,उसके लिए
ढेरों कपड़े,जेवर बनवाए गए,खूब सजधज कर उसने व्रत किया,वैभव ने पहली बार उसे नज़दीक से परखा और
उसे राधिका पर बड़ा प्यार उमड़ा,उसे अपनी गलती महसूस हुई कि उसने अपनी नई नवेली दुल्हन के साथ
बहुत ज्यादती की है अभी तक।
झट नेक्स्ट वीक के गोवा के टिकट बुक कराए अपने दोनों के…राधिका को तो सहज विश्वास ही नहीं हुआ
पर वैभव ने उसे बाहों में भरते कहा कि हम घूमने जा रहे हैं तो उसका मन मयूर नृत्य कर उठा।।
अपनी सब सहेलियों को बता दिया उसने,सोशल मीडिया पर न्यूज अपडेट कर दी और सैकड़ों बधाई स्वीकार
की। एक बार फिर सबकी जुबान पर एक ही बात थी..राधिका कितनी किस्मतवाली है,किस्मत हो तो राधिका
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जैसे।
जाने के एक दिन पहले,वैभव बहुत अटपटा व्यवहार कर ने लगा राधिका के साथ।
ये सब तैयारियां रोक दो…उसने राधिका से कहा।
लेकिन क्यों?कुछ हुआ क्या?वो परेशान होती बोली।
कोई जरूरी बात है तभी तो कह रहा हूं मैं!! वैभव तैश में बोला।
तो क्या अब हम गोवा नहीं जा रहे?आश्चर्य से राधिका बोली।
जायेंगे,कुछ महीनो बाद जायेंगे!वो उसे शांत करते बोला।
लेकिन क्यों?राधिका को बहुत गुस्सा आ रहा था,मैंने सब फ्रेंड्स को कह रखा है,मेरी मजाक बनेगी सब जगह।
हम घूमने अपने लिए जा रहे थे न कि दूसरे क्या कहेंगे,इसलिए,समझी!!कहता वैभव वहां से निकल गया।
इस झटके को राधिका सहन न कर पाई,उसे बहुत अपमानित महसूस हो रहा था,वो वैभव से भी कम बोलती
और चिड़चिड़ी रहने लगी।वैभव ने उसे बताया कि उसने अपने दोस्त की मदद करने के लिए अपने लिवर का
कुछ भाग उसे डोनेट किया है,फिलहाल कुछ समय कमजोरी रहेगी और वो बाहर का खा पी नहीं सकेगा,थोड़े
समय बाद,सब सामान्य हो जायेगा और वो दोनो पहले की तरह घूमेंगे फिरेंगे।
राधिका बुरी तरह अपसेट थी,पहली बात तो उनका हनीमून कैंसिल हुआ,दूसरे उसका पति लिवर देने की
बात ऐसे कर रहा है जैसे कोई कमीज पैंट उतार कर दी हो किसी को।
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जबकि वैभव को ये आदत रही थी कि वो इस तरह कुछ भी दान में देते रहता,अपना खून तो वो कई दफा दान
कर चुका था,उसने वो फार्म भी भरा था जहां मृत्यु बाद अपने अंग डोनेट कर दिए जाते हैं। राधिका उससे
कहती कि अगर हम मृत्यु उपरांत आंखे डोनेट कर देंगे तो अगले जन्म में अंधे पैदा होंगे और वो उसकी
खिल्ली उड़ाता…तुम तो बस न देने के बहाने खोजने में एक्सपर्ट हो और राधिका चिढ़ जाती इस पर।
कुछ दिन बाद,राधिका गुस्से में भरी बैठी थी कि किसी का फोन आया..आपके पति वैभव सबरवाल ही
हैं,उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो गया है हाइवे पर।प्लीज जल्दी सिटी हॉस्पिटल पहुंचे।
राधिका बदहवास हॉस्पिटल दौड़ी और रिसेप्शनिस्ट ने उसे इमरजेंसी की तरफ भेज दिया।वहां किसी की डैड
बॉडी आती देखकर वो चकरा के गिर पड़ी।
थोड़ी देर में किसी ने उसके चेहरे पर ठंडे पानी के छींटे डाले और उसने देखा कि वो वैभव की गोद में सिर रखे
है।
वो लिपट गई अपने पति से…आप ठीक हैं पर वो एक्सीडेंट की खबर??
मेरी गाड़ी का एक्सीडेंट हुआ है,ड्राइवर बेहोश है पर देखो,मुझे खरोंच भी नहीं आई…उसने खुद को राधिका को
दिखाया…तुम बहुत किस्मतवाली हो न इसलिए मैं बच गया।
नहीं… आप,अपने पुण्य कर्मों से बचे हैं,और हां!सच में मैं किस्मतवाली हूं कि मुझे आप जैसे गुणी पति मिले
जिनके सद्कर्मों की वजह से आज मैं सौभाग्यवती हूं।
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राधिका को अपनी गलती नजर आ गई थी,वो माफी मांग रही थी वैभव से अपने बुरे व्यवहार के लिए…वैभव
ने उसे पुचकारते हुए कहा..देखो!हमारी किस्मत हमारे कर्मों से बनती है,तुमने शुरू में मेरे गुस्से को सहा,चुपचाप
कर्तव्य करती रही अपना ,फिर मेरी जायज नाजायज जिद को भी सहती रही
और इसीलिए तुम किस्मतवाली हो तभी तो मेरी जान बची और मैं भी कम किस्मतवाला नहीं हूं जो मुझे तुम
जैसी धर्मपत्नी मिली।
डॉक्टर संगीता अग्रवाल
वैशाली,गाजियाबाद