सर्वगुण संपन्न – पुष्पा कुमारी “पुष्प” : Moral Stories in Hindi

“बहू!..कितनी बार कहा है सर पर पल्लू रखा करो।”

रसोई में प्रवेश करते ही जगदंबा जी ने अपनी नई नवेली बहू रूपम को टोका।

जगदंबा जी के टोकते ही रूपम ने झट से पल्लू अपने सर पर खींच लिया लेकिन फिर भी जगदंबा जी भुनभुनाई..

“अच्छे घर की बहू का पल्लू हमेशा उसके सर पर रहना चाहिए!.ये नहीं कि सास ने टोका तो पल्लू खींच लिया,. खुद भी इस बात का ध्यान रखा करो बहू।”

जगदंबा जी अपनी बहू को अभी समझा ही रही थी कि अर्थराइटिस के मरीज उसके पति ने अपने बेडरूम से ही आवाज लगाई..

“अरे सुनती हो!..रिमझिम के स्कूल से कॉल आया है।” रिमझिम के स्कूल से आया कॉल रिसिव करने के लिए जगदंबा जी अपने पति के कमरे की ओर लपकी।

अपनी खुद की इकलौती बिटिया से विशेष स्नेह रखने वाली जगदंबा जी ने अपने प्राणों से प्रिय नातिन रिमझिम को हमेशा से अपने साथ ही रखा था।

“रिमझिम की तबीयत अचानक स्कूल में खराब हो गई है!.उसके पेट में दर्द हुआ है।”

स्कूल का कॉल रिसीव कर बात करने के बाद जगदंबा जी घबराई हुई सी दोबारा रसोई में अवतरित हुई।

“रिमझिम के मामा तो दफ्तर के काम से शहर से बाहर गए हैं!.अब क्या करें मम्मी जी?”

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अपने ससुर जी के नाश्ते के लिए फुल्के बनाती उस घर की बहू रूपम भी घबरा गई।

“वही तो मैं सोच रही हूंँ बहू!.क्या करूं?”

हर एक बीतते पल के साथ जगदंबा जी की घबराहट बढ़ती जा रही थी। अपनी सास की घबराहट देख रूपम से रहा नहीं गया..

“मम्मी जी!.आप ऑटो से स्कूल चले जाइए,.पापा जी को नाश्ता आज मैं करा दूंगी।”

हमेशा से सास की सलाह मानने वाली बहू ने परिस्थिति को देखते हुए आज पहली बार अपनी सास को सलाह दी।

“उतनी दूर मोड़ तक जाकर ऑटो पकड़ना मेरे बस की बात नहीं बहू!. तुम तो जानती ही हो पैदल चलने से मेरी सांस फूलने लगती है और मुझे चक्कर भी आने लगता है।”

घर में सारी सुविधाएं होते हुए भी जगदंबा जी आज खुद को असहाय महसूस कर रूआंसी हुई जा रही थी।

“बहू जी!.आपको स्कूटी चलाना आता है ना?”

उस घर की नई-नवेली बहू के मुंँह से अपने मायके में स्कूटी चलाने की चर्चा कई बार सुन चुकी घरेलू सहायिका माला अपनी मलकिन को दुखी देख खुद को रोक ना सकी।

“हाँ बहू!.तुझे स्कूटी चलाना आता है ना!”

लगभग तीन-चार महीने पहले ही ब्याह कर आई अपनी बहू रूपम को “सर्वगुण संपन्न” बनाने का प्रण ले चुकी सास ने आज पहली बार अपनी बहू में पहले से मौजूद किसी गुण कि उससे चर्चा की।

“जी मम्मी जी।”

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रूपम ने थोड़े संकोच के साथ स्वीकृति भाव से सर झुकाए सहमति जताई लेकिन जगदंबा जी की आंखों में अचानक चमक आ गई..

“रिमझिम का स्कूल भी तुमने देखा ही है न बहू?”

“जी मम्मी जी।”

“बहू!.तुम ही उसे उसकी स्कूल से ले आओ।”

शुरुआत से ही एक सख्त सास रही जगदंबा जी आज अचानक अपनी नई नवेली बहू से मनुहार कर बैठी।

हर बात पर उसे सौ बार टोकने वाली अपनी सास की यह बात सुनकर रूपम के आश्चर्य का ठिकाना ना रहा..

“लेकिन मम्मी जी!”..

अपनी बहू की झिझक देख जगदंबा जी बीच में ही बोल पड़ी..

“लेकिन-वेकिन कुछ नहीं बहू!.जाओ सूटकेस से निकालकर अपनी मम्मी का दिया एक सलवार सूट पहन लो!”

हर वक्त सर पर पल्लू रखे रहने की नसीहत देने वाले अपनी सास की यह सलाह सुनकर रूपम के पांव मानो जड़ हो गए लेकिन जगदंबा जी ने मुस्कुराते हुए अपनी बात पूरी की..

“वहीं हॉल के खूंटी पर स्कूटी की चाबी टंगी है।”

यह कहते हुए जगदंबा जी ने आगे बढ़कर रूपम के हाथ से गूंथे हुए आटे की लोई ले खुद बेलन संभाल लिया और अचानक कुछ ही पलो में जगदंबा जी को अपनी बहू सर्वगुण संपन्न नजर आने लगी।

__पुष्पा कुमारी “पुष्प”

 पुणे (महाराष्ट्र)

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