क्यों लोग बार-बार मेरे जख्मों पर नमक छिड़कते हैं? – ऋतु रानी : Moral Stories in Hindi

यह कहानी मोहिनी की है, एक साहसी और दृढ़ निश्चयी महिला की जो अपने पति के निधन के बाद अकेले अपनी बेटी को पालती है और तमाम मुश्किलों के बावजूद उसकी परवरिश को एक नेक और शिक्षित इंसान बनाने में सफल होती है। मोहिनी का दृढ़ संकल्प और समाज के ताने-सुनने के बावजूद भी अपनी बेटी के भविष्य के प्रति उसकी सकारात्मक सोच इस कहानी की प्रेरणा है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं।

मोहिनी की जिंदगी कभी ऐसी नहीं थी। उसके और उसके पति की शादी के बाद दोनों का सपना था कि उनकी बेटी एक बड़े और महंगे स्कूल में पढ़ेगी, जहां से उसे सबसे अच्छी शिक्षा और अवसर मिलेंगे। शादी के कुछ वर्षों तक मोहिनी का परिवार बेहद खुशहाल था। मोहिनी के पति एक अच्छी नौकरी में थे, और मोहिनी खुद गृहिणी थी, जो अपनी बेटी की देखभाल और उसकी शिक्षा पर पूरा ध्यान देती थी। पति की कमाई से उन्हें आर्थिक समस्या नहीं थी और वे अपनी बेटी के उज्जवल भविष्य के सपने संजोए हुए थे।

लेकिन फिर एक ऐसा दिन आया जिसने मोहिनी की जिंदगी को पूरी तरह बदल कर रख दिया। उसके पति का अचानक एक दुर्घटना में निधन हो गया। यह एक ऐसा आघात था जिसने मोहिनी को भीतर तक हिला कर रख दिया। पति का साया सिर से उठते ही मानो पूरी दुनिया ही बदल गई। अब उसे अकेले ही अपनी बेटी को संभालना था, उसकी परवरिश करनी थी, और उसे एक अच्छा जीवन देने का सपना पूरा करना था।

मोहिनी को समझ नहीं आ रहा था कि वह कहाँ से शुरू करे और किस तरह अपनी बेटी को संभाले। शुरुआत में तो मोहिनी टूट सी गई थी, लेकिन अपनी बेटी की मासूम आँखों में भविष्य की उम्मीद देखकर उसने खुद को संभाला और हिम्मत नहीं हारी। उसने सोच लिया कि अब चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, वह अपनी बेटी की परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ेगी।

मोहिनी की आय सीमित थी। उसके पास इतना पैसा नहीं था कि वह अपनी बेटी को उसी महंगे स्कूल में पढ़ा सके जहाँ वह पहले पढ़ रही थी। वह जानती थी कि उसे अब अपनी जीवनशैली में बड़े बदलाव करने होंगे। अपनी बेटी को हर तरह की खुशी देने के सपने के साथ अब वह वास्तविकता से जूझ रही थी। कुछ समय बाद, मोहिनी ने अपनी बेटी का स्कूल बदलकर एक अच्छे लेकिन सस्ते स्कूल में करवा दिया। यह उसके लिए कठिन निर्णय था, लेकिन उसकी सीमित आय के कारण यह अनिवार्य था।

बेटी की नई स्कूल की वर्दी, किताबें और अन्य जरूरतें पूरी करते वक्त मोहिनी को हमेशा अपने पति की याद आती, और यह भी ख्याल आता कि अगर वह होते, तो आज उनकी बेटी को इस बदलाव से नहीं गुजरना पड़ता। लेकिन फिर भी मोहिनी ने हार नहीं मानी। वह अपने सीमित साधनों में ही अपनी बेटी की पढ़ाई और उसकी परवरिश को सर्वोत्तम बनाने का प्रयास करती रही।

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एक दिन मोहिनी की बेटी खेलते-खेलते पड़ोस की एक आंटी के घर चली गई। वहीं उस महिला ने मोहिनी की बेटी से पूछा, “बेटी, अब तुम उस बड़े स्कूल में नहीं जाती हो क्या?” यह सवाल सुनकर मोहिनी का दिल एक बार फिर दुख से भर उठा। मोहिनी को अच्छी तरह पता था कि लोग उसकी परिस्थितियों का मजाक बना रहे हैं, और उस पर बार-बार कटाक्ष कर रहे हैं। मोहिनी ने अपने मन में सोचा, “क्यों लोग बार-बार मेरे जख्मों पर नमक छिड़कते हैं?” उसने ठान लिया कि अब और चुप नहीं रहेगी।

मोहिनी ने तुरंत उस महिला को जवाब दिया, “आंटी, कृपया बस करिए। आप जानती हैं कि मेरे पति अब इस दुनिया में नहीं हैं, और मेरी आय सीमित है। ऐसे में अब मैं अपनी बेटी को बड़े स्कूल में नहीं पढ़ा सकती। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उसका भविष्य अंधकारमय है। अच्छे स्कूल का नाम ही सब कुछ नहीं होता, बल्कि उस शिक्षा का महत्व होता है जो वहां दी जा रही है। मैं अपनी बेटी को अच्छी परवरिश दूंगी और उसे एक नेक और शिक्षित इंसान बनाऊंगी।”

मोहिनी का यह जवाब सुनकर पड़ोस की महिला थोड़ी चुप हो गई और वहां से चली गई। लेकिन मोहिनी को इस बात का संतोष हुआ कि उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त कर दिया और खुद को कमजोर नहीं दिखने दिया। मोहिनी जानती थी कि उसके पास अमीरी नहीं है, लेकिन उसकी आत्मनिर्भरता और साहस उसे अपनी बेटी के लिए एक मजबूत मां बनाते थे। उसने हर दिन अपनी बेटी के साथ समय बिताना शुरू किया, उसे हर संभव सिखाने का प्रयास किया और उसकी पढ़ाई में मदद की।

समय के साथ मोहिनी की मेहनत का असर उसकी बेटी पर साफ दिखाई देने लगा। बेटी पढ़ाई में होशियार हो गई और अपनी मां की तरह मेहनती बन गई। वह जानती थी कि उसकी मां ने उसके लिए कितनी कुर्बानियाँ दी हैं। मोहिनी की परवरिश ने उसकी बेटी को आत्मविश्वासी और मजबूत बना दिया था। मोहिनी अपनी सीमित आय के बावजूद अपनी बेटी के हर सपने को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध रही।

कुछ साल बाद, जब मोहिनी की बेटी का मेडिकल कॉलेज में प्रवेश हुआ, तो मोहिनी की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। उसकी बेटी का डॉक्टर बनने का सपना सच होने जा रहा था। मोहिनी की आँखों में गर्व और संतोष का भाव झलकने लगा। वर्षों की मेहनत, संघर्ष और तानों का सामना करने के बाद अब उसकी बेटी सफलता की राह पर थी। मोहिनी की आँखों में खुशी के आँसू थे। उसे याद आया कि किस तरह लोगों ने उसे कमजोर मान लिया था, उसकी परिस्थितियों का मजाक उड़ाया था। लेकिन आज उसकी बेटी ने उन सभी को गलत साबित कर दिया था।

अब मोहिनी की बेटी एक सफल डॉक्टर बन चुकी थी और अपनी मां के संघर्षों और बलिदानों का पूरा सम्मान करती थी। मोहिनी की परवरिश ने उसकी बेटी को एक आत्मनिर्भर और संवेदनशील इंसान बनाया था, जो अपनी मां की तरह ही मजबूत और दृढ़ निश्चयी थी।

मोहिनी की कहानी ने यह सिद्ध कर दिया कि केवल संपन्नता या बड़े स्कूल ही बच्चों का भविष्य नहीं बनाते, बल्कि माता-पिता का साथ, उनके संघर्ष, और उनकी सच्ची परवरिश ही बच्चों को आत्मनिर्भर और सफल बनाती है। मोहिनी ने एक उदाहरण पेश किया कि परिस्थिति चाहे जैसी भी हो, इंसान की दृढ़ इच्छाशक्ति और उसकी मेहनत उसे सफलता की राह पर अवश्य ले जाती है।

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अब मोहिनी को किसी के तानों की परवाह नहीं थी। उसने अपनी बेटी को उस मुकाम तक पहुंचाया, जहाँ से वह दुनिया के सामने गर्व से सिर ऊँचा करके खड़ी हो सके। मोहिनी जानती थी कि उसने अपने जीवन के हर संघर्ष का सामना किया है, और उसकी बेटी को भी यह बात सिखाई है कि मुश्किलों का सामना करते हुए कैसे आगे बढ़ना चाहिए।

मोहिनी ने यह सिद्ध कर दिया कि शिक्षा, मेहनत, और आत्मसम्मान से जीवन में सफलता पाई जा सकती है। आखिरकार, उसकी बेटी ने अपनी मां की उस परवरिश को सार्थक कर दिखाया जो उसने सालों पहले एक माँ के तौर पर ठानी थी। अब मोहिनी को किसी के सवालों और तानों से फर्क नहीं पड़ता था, क्योंकि उसकी बेटी की सफलता ही उसका सबसे बड़ा जवाब थी।

मौलिक रचना 

ऋतु रानी

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