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चन्दना जब भी अपने माँ -पापा के साथ दूसरे शहर जाती ,सहम जाती ।वहां के लोग ,दुकानें ,बस स्टैंड सब उसे एक दम अजीब और अजनबी नजर आते ।
धीरे -धीरे यही डर एक उसके मन में एक ग्रंथि बन गया ।पढ़ते हुए कॉलेज में पहुंच गई ।पढ़ाई पूरी कर एक स्कूल में अध्यापिका बन गई ।पर अपने गांव को छोड़ने का डर अभी भी बना हुआ था क्योंकि ब्याह होना था और गांव छूटना था ।
अब चन्दना ब्याह लायक हो गई और रिश्तों की बात होने लगी थी साथ ही साथ चन्दना का डर सर उठाने लगा
और एकदिन उसने माँ -पिता के सामने घोषणा कर दी ,मैं अपने गांव से बाहर ब्याह नहीं करूंगी। सुनकर माता पिता हैरान रह गए ।
वैसे माता पिता भी कम परेशान न थे ।चार बेटियाँ और दहेज का हव्वा !
असल में यही कारण था ।सोचती थी” अपने ही गांव में पढ़ लिख कर नौकरी कर पिता की मदद करूँगी ।”उसे नही पता था उसकी यही सोच उसे नरक में धकेल देगी। गांव में लड़का मिल गया ,ब्याह हो गया और हो गई बर्बादी की शुरुआत!!!
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घर का सारा काम ,बड़े -बूढों की देखभाल और लांछन ! हाँ चरित्र हीनता का लांछन ।हर दिन एक नए आदमी से नाम जुड़ जाता ! वो पड़ोसी ,टैक्सी ड्राइवर ,दुकानदार कोई भी हो सकता था ।
शुरू में चन्दना अपने पति की बात सुनकर मुस्कुरा देती यह सोचकर ,अभी ये मेरे बारे में कितना जानते हैं ?? धीरे -धीरे समझ जाएंगे ।
लेकिन गलत सोच रही थी ।अंदर ही अंदर तबाही की इबारत लिखी जा रही थी
हर तरफ से धोखा हुआ था चन्दना के साथ ! न कोई ढंग की नौकरी न कोई बात व्यवहार ।
चन्दना खानदानी लड़की थी ।सब कुछ सहते हुए दिन निकलने लगे।एक बेटी की माँ बनी किन्तु सुधार नहीं बल्कि स्थितियां बदतर होती जा रही थी ।
परेशानियों का ज्वालामुखी उस दिन फूट पड़ा जब पता चला पति पर लाखों का कर्ज है ।
अब चन्दना के भाग्य में नौकरी ,जी तोड़ मेहनत , आरोप झेलना और कर्ज चुकाना ,बस यही बचा था । गांव में ब्याह की सोच अब फीकी पड़ चुकी थी
कोई सुधार चन्दना के जीवन मे नहीं दिखाई देता था ।पूजा -पाठ ,यज्ञ- हवन ,ज्योतिष कुछ भी फलीभूत नहीं हो रहा था ।
इस बीच चन्दना ने अपनी बचत से एक छोटा सा फ्लैट खरीद लिया ।सोचा नहीं था ,यह निर्णय ताबूत में आखिरी कील साबित होगा ।
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आरोपों का मर्ज़ और रूपयों का कर्ज
बढ़ता गया ।हरदिन कर्ज़दार आकर इज्ज़त उतार कर जाते और पड़ोसी सारी कहानी सुनते ।
आखिर मकान बेचकर दूसरे शहर जाना पड़ा ।गांव की गलियों से प्यार का मोल चुकाना पड़ा ।
शायद भगवान को थोड़ी दया आ गई और बेटी का ब्याह अच्छे घर में हो गया और बेटी अपने घरबार की हो गई ।चन्दना इस ओर से सुखी थी ।
चन्दना ने दूसरी नौकरी कर ली और जीवन ने एक बार फिर रफ्तार पकड़ ली।
कहते हैं पिछले जन्म के बुरे कर्मों का फल अगले जन्म में भोगना पड़ता है ।शायद चन्दना के लिये यह शब्दशः सत्य था ।
अब तक जीवन को घसीटते हुए जीवन के पाँच दशक पूरे कर चुकी थी ।
और एक दिन शेष भी खत्म हो गया ।
एकदिन उसके पति को हार्ट अटैक हुआ ।इलाज़ हुआ पर बचाया न जा सका ।वो उसे अकेली छोड़ कर चला गया ।
चन्दना एकाकी जीवन जीते हुए सोचती रहती है
“मेरा क्या कसूर था ?”
गांव की गलियों से प्यार का मोल बहुत महंगा पड़ा चन्दना को।
ज्योति अप्रतिम