हम साथ-साथ हैं – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

मयंक और निकिता की शादी को पाँच साल हो चुके थे। दोनों एक-दूसरे के सुख-दुख को समझते थे, लेकिन मयंक के स्वभाव की एक बात थी जो निकिता को हमेशा से परेशान करती थी। मयंक का शांत स्वभाव और बिना किसी शिकायत के सब कुछ सहन कर लेना, निकिता के लिए हमेशा एक पहेली था। वह अक्सर देखती कि परिवार में किसी भी विवाद के दौरान, चाहे गलती मयंक की हो या नहीं, वह चुप रहकर सब कुछ सह लेता और अपनी नाराजगी तक जाहिर नहीं करता। ऐसा कई बार होता कि उसके बड़े भाई मनोज और भाभी उसे ताने मारते या उसकी कमाई पर सवाल उठाते, लेकिन मयंक कभी पलटकर जवाब नहीं देता था।

एक शाम को जब मयंक घर लौटा तो निकिता ने उसे देखा कि उसका चेहरा थका-थका सा है। वह जानती थी कि आज भी उसे किसी बात का बुरा लगा है, लेकिन वह चुप है। उसने मयंक को बैठाया और कहा, “कब तक यूँ ही चुपचाप ग़ुस्सा पीते रहोगे, मयंक? माना कि रिश्ते निभाने चाहिए, लेकिन इसका यह मतलब तो नहीं कि बिना गलती के तुम सब बर्दाश्त करते रहो। मनोज भैया और भाभी के ताने और आरोपों का तुम कब तक बिना किसी प्रतिक्रिया के जवाब दोगे? कम से कम अपनी बात तो रखो!”

मयंक ने थोड़ी देर तक निकिता की बातें सुनीं, फिर धीमे से मुस्कुराया और बोला, “निकिता, तुम पाँच साल से मेरे साथ हो, लेकिन फिर भी तुम्हें समझ नहीं आया कि मैं सब कुछ बर्दाश्त क्यों करता हूँ। यह सब इसलिए नहीं है कि मुझे ग़ुस्सा नहीं आता या मेरा आत्मसम्मान नहीं है। बात इतनी सी है कि जब भी अपनी माँ की ओर देखता हूँ तो लगता है कि उनका एक ही तो सपना है, जो वो जीते जी देखना चाहती हैं। वह चाहती हैं कि उनके दोनों बेटे हमेशा साथ रहें, एक परिवार बने रहें। इसलिए, मैं अपनी नाराजगी को पी जाता हूँ और चुप रह जाता हूँ।”

यह कहकर मयंक ने निकिता को चुप करा दिया। निकिता समझ गई कि मयंक का इस तरह सब कुछ सहन करना उसकी माँ की खुशी और एकता के लिए है। मयंक अपने पिता के गुजरने के बाद अपने परिवार को साथ रखने की जिम्मेदारी को सबसे ऊपर रखता था। उसने अपनी माँ से वादा किया था कि वह अपने भाई के साथ एक ही छत के नीचे रहेगा, ताकि माँ को कभी यह महसूस न हो कि उनके बेटे बिखर गए हैं।

रात को सोने से पहले, मयंक हमेशा की तरह अपनी माँ के कमरे में गया। लेकिन आज उसका स्वागत उसकी माँ की मुस्कुराहट से नहीं, बल्कि उनकी आँखों में आंसुओं से हुआ। उसकी माँ, जिनका चेहरा हमेशा शांति और प्यार से भरा रहता था, आज कहीं उदास और दुखी सी लग रही थीं।

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माँ ने उसे देखते ही कहा, “बिटवा, चले जाओ यहाँ से। मनोज और उसकी पत्नी की बातें तुम दोनों क्यों सहते हो? क्यों नहीं कहीं और जाकर रह लेते?” उनकी आवाज़ में एक गहरी व्यथा और असहायता थी, जो मयंक के दिल को छू गई।

मयंक माँ के पास बैठ गया और उनका हाथ थामते हुए बोला, “माँ, मुझे पता है कि भैया और भाभी को मेरा यहाँ रहना पसंद नहीं है। वे चाहते हैं कि या तो मैं अपनी कमाई उनके हाथ में दे दूँ या फिर घर छोड़ कर चला जाऊँ। लेकिन माँ, अगर तुम मेरे साथ चलो, तो मैं आज ही यह घर छोड़ दूँगा।”

माँ यह सुनकर कुछ पल के लिए खामोश हो गईं। उनकी आँखों में एक कशमकश थी। वे जानती थीं कि मयंक का उनके प्रति कितना प्रेम और समर्पण है, लेकिन उनकी इच्छा थी कि दोनों भाई एक साथ रहें और एक परिवार के रूप में उनके साथ ही रहें। माँ ने धीरे से कहा, “बेटा, मुझे समझ नहीं आ रहा कि मैं क्या कहूँ। मनोज और उसकी पत्नी कभी-कभी मुझसे भी नाराज रहते हैं, लेकिन तुम्हारा साथ मुझे एक अजीब सा सुकून देता है।”

मयंक ने माँ का हाथ थामे रखा और प्यार से कहा, “माँ, तुम्हारी यही तो इच्छा है ना कि हम दोनों भाई साथ में रहें? बाबूजी के जाने के बाद, आपने बस यही तो हमसे माँगा था कि हम दोनों भाई कभी अलग न हों, और मैं उसी वचन का पालन कर रहा हूँ। इसलिए मैं बिना कुछ कहे उनके तानों को सह लेता हूँ। चाहे भैया मुझे कितना भी कुछ कहें, मैं उनकी बातों को एक कान से सुनता हूँ और दूसरे कान से निकाल देता हूँ। बस, आपके चेहरे की खुशी के लिए मैं यह सब सहन कर लेता हूँ।”

माँ मयंक की बातों को सुनकर और भी भावुक हो गईं। उन्होंने उसे गले से लगा लिया और मयंक के त्याग और संयम पर गर्व महसूस किया। माँ ने मयंक को आश्वासन देने की कोशिश की कि वे समझती हैं उसकी स्थिति को, लेकिन फिर भी उनका दिल दुखी था कि उनका बेटा अपने ही घर में बिना किसी गलती के इतनी तकलीफें सहन कर रहा है।

जैसे ही मयंक माँ के कमरे से बाहर निकला, उसने देखा कि उसके बड़े भाई मनोज वहाँ खड़े हैं। उनके चेहरे पर पछतावे का भाव था, और उनकी आँखों में एक गहरी उदासी झलक रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे मनोज ने मयंक और माँ की सारी बातें सुन ली हों और उसके मन में आत्मग्लानि की लहर दौड़ रही हो।

मयंक ने मनोज को देखते हुए पूछा, “क्या हुआ भैया, आप यहाँ कैसे?”

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मनोज ने सिर झुकाकर मयंक की ओर देखा और धीमे स्वर में बोला, “छोटे, मुझे माफ कर दो। मैंने तुमसे इतने सालों से बेवजह इतनी कड़वी बातें कीं, तुम्हें ताने मारे, और तुमने बिना किसी शिकायत के सब सहन कर लिया। मुझे नहीं पता कि मैं कैसे भूल गया कि बाबूजी के जाने के बाद हमने माँ से वचन दिया था कि हम दोनों कभी अलग नहीं होंगे। फिर भी, मैं तुम्हारे साथ इतनी बदसलूकी करता रहा। पर अब से ऐसा नहीं होगा। अब मैं समझ गया हूँ कि भाईचारे और माँ के सपने से बड़ी कोई चीज़ नहीं होती।”

यह कहते हुए मनोज ने मयंक को गले से लगा लिया। मयंक ने भी अपने बड़े भाई को गले लगाते हुए महसूस किया कि सालों से उनके बीच जो कड़वाहट थी, वह इस एक पल में मिट गई थी। दोनों भाई एक-दूसरे के प्रति जो गहराई में एक अपनापन और स्नेह था, वह आज फिर से उभर आया था।

इसके बाद परिवार में एक सकारात्मक बदलाव आया। मनोज और उनकी पत्नी ने मयंक और निकिता के प्रति अपने व्यवहार में बदलाव लाया। वे अब उन्हें परिवार का अभिन्न हिस्सा मानने लगे और उनकी मदद करने के लिए तत्पर रहने लगे। मयंक और निकिता को भी एक नई खुशी और संतोष का अनुभव होने लगा। माँ का सपना, जिसे उन्होंने बरसों से संजोया था, अब सच हो गया था। उनके दोनों बेटे एक साथ एक ही घर में प्रेम और सौहार्द्र के साथ रहने लगे थे।

मयंक ने महसूस किया कि उसकी सहनशीलता और माँ के प्रति उसकी श्रद्धा ने आखिरकार उसके परिवार को एकजुट कर दिया है। उसने जीवन में यह सीखा कि कभी-कभी चुप रहकर, अपनों की खुशी के लिए अपने ग़ुस्से को त्याग देना भी एक बड़ी ताकत होती है, और यह ताकत रिश्तों को संजोकर रखने की सबसे बड़ी कुंजी होती है।

मौलिक रचना 

रश्मि प्रकाश

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