एक दिन ऐसा ही हुआ। रात में मनोहर जी को फिर से पेशाब निकल गया, और वह जल्दी से उठकर बिस्तर को साफ करने लगे, यह सोचकर कि सुबह होने से पहले ही बहू-बेटा देख लें तो नाराज़ हो जाएंगे। काजल ने बीते दिन ही नई चादर बिछाई थी, और पहले ही चेतावनी दे रखी थी कि अगर फिर से बिस्तर गंदा हुआ तो वह इसकी सफाई खुद नहीं करेगी। मनोहर जी को इस बात का दुख भी था और डर भी। उस डर के मारे ही वे चादर को समेटकर बाथरूम की ओर बढ़ गए।.
85 वर्षीय मनोहर जी का परिवार उनका ही बनाया हुआ था, जिसमें उनका बेटा रवि, बहू काजल और उनके पोते-पोतियां शामिल थे। पत्नी विमला का देहांत कुछ साल पहले ही हुआ था, और तब से मनोहर जी अधिकतर अकेले रहते थे। रवि और काजल दोनों ही व्यस्त रहते थे; रवि ऑफिस के काम में और काजल अपने घरेलू जिम्मेदारियों में उलझी रहती थी। घर में किसी को वक्त नहीं था कि वे मनोहर जी की समस्याओं को ठीक से समझ पाएं, और उनकी शारीरिक स्थिति से प्रभावित होकर उनके प्रति सहानुभूति रखें।
काजल अपने पति रवि को कई बार इस बात के लिए टोका करती कि “अब आपके पापा का दिन-रात का ख्याल कौन रखे! आप तो ऑफिस में होते हो। घर पर सबकुछ मेरे ऊपर है, और मैं इस गंदगी को बार-बार साफ नहीं कर सकती।” रवि इस बात को समझता था कि पत्नी की भी एक हद होती है, पर मनोहर जी की हालत देख वह भी कभी-कभी खुद को असहाय महसूस करता था।
एक दिन ऐसा ही हुआ। रात में मनोहर जी को फिर से पेशाब निकल गया, और वह जल्दी से उठकर बिस्तर को साफ करने लगे, यह सोचकर कि सुबह होने से पहले ही बहू-बेटा देख लें तो नाराज़ हो जाएंगे। काजल ने बीते दिन ही नई चादर बिछाई थी, और पहले ही चेतावनी दे रखी थी कि अगर फिर से बिस्तर गंदा हुआ तो वह इसकी सफाई खुद नहीं करेगी। मनोहर जी को इस बात का दुख भी था और डर भी। उस डर के मारे ही वे चादर को समेटकर बाथरूम की ओर बढ़ गए।
बाथरूम में जाते समय मनोहर जी को महसूस हो रहा था कि उनकी सांस फूल रही है। उम्र के साथ उनके हाथ भी कांपने लगे थे, जिससे भारी गीली चादर को उठाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था। मन ही मन वे खुद को ही कोसने लगे। उसी क्षण उन्हें भूख भी महसूस हुई, लेकिन अपनी हालत देखकर उनके मन में एक डर और था कि कहीं बहू-बेटे ने देख लिया तो फिर से उन्हें सुनना पड़ेगा।
बाथरूम में वे अपनी पूरी ताकत से चादर को धोने लगे। तभी, अचानक उनकी नज़र अपने बेटे और बहू पर पड़ी। रवि और काजल दोनों उनके सामने खड़े थे। उनकी नज़रों में अनगिनत सवाल और एक अजीब सा अविश्वास दिख रहा था। बहू के चेहरे पर चिढ़ और गुस्से की झलक थी। उसने झट से रवि से कहा, “देखा आपने, आपके पापा ने फिर बिस्तर गंदा कर दिया। कितनी बदबू आ रही है। ये हालत देखकर आपको क्या लगता है कि इन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं करवाना चाहिए?”
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मनोहर जी ने झुकी हुई आवाज़ में कहा, “बहू, अब नहीं होगा। देखो, मैंने साफ कर दी है।” लेकिन उनकी बात को बहू ने अनसुना कर दिया, और रवि की ओर मुंह फेरते हुए शिकायत करने लगी।
तभी रवि ने अपने पिता का सहारा दिया और उन्हें धीरे से बाथरूम से बाहर ले आया। उन्होंने पिता की ओर प्यार से देखा और कहा, “आप क्यों खुद को तकलीफ दे रहे हो, पापा? चादर तो हम बदल सकते हैं। ठंड लग जाएगी आपको, चलिए, बैठ जाइए। मैं सब ठीक कर दूंगा।”
काजल अभी भी खड़ी थी और शिकायतें किए जा रही थी, लेकिन रवि ने शांत और सख्त स्वर में कहा, “अगर ये तुम्हें इतना मुश्किल लग रहा है, तो तुम अपने मायके जा सकती हो। लेकिन मैं अपने पिता का साथ कभी नहीं छोड़ सकता। याद करो, पापा ने कितनी बार हमारी परवरिश में कोई कमी नहीं छोड़ी। यही वो पिता हैं, जिन्होंने मेरी पैंट साफ की थी, जब मैं बच्चा था और मुझसे बिस्तर पर पेशाब हो जाता था। कितनी बार उन्होंने मेरी जरूरतों को खुद से ऊपर रखा।”
रवि के इस जवाब से काजल के चेहरे पर एक अजीब सी शांति और चुप्पी छा गई। मनोहर जी यह सब सुन रहे थे और उनकी आंखों में आंसू आ गए। रवि ने तुरंत उन्हें कुर्सी पर बिठाया और उनकी गीली चादर हटाकर दीवान से नई चादर निकाल कर बिछा दी। फिर उन्होंने अपने पिता को बिस्तर पर आराम से बैठाया और उनके कपड़े भी बदल दिए।
रवि ने उनके लिए चाय बनाई और मनोहर जी को अपने हाथों से चाय पिलाने लगा। उस वक्त मनोहर जी का कांपता हुआ हाथ अपने बेटे के सिर पर आशीर्वाद देने के लिए चला गया। उनकी आंखों से अश्रुओं की धाराएं बह निकलीं, जिन्हें वे धोती के कोने से पोंछते जा रहे थे। बेटे का यह अपनापन और समर्पण देख उनके दिल में भावनाओं का एक तूफान उमड़ पड़ा।
मनोहर जी की आंखें सामने रखी पत्नी विमला की तस्वीर पर ठहर गईं। वे मन ही मन उससे बातें करने लगे, “देख रही हो विमला, तुम कहती थी कि मैं चला जाऊंगी तो कौन तुम्हारा ख्याल रखेगा? लेकिन देखो, हमारा रवि आज हमारे लिए कितना कुछ कर रहा है।”
दरवाजे पर खड़ी काजल, जो अब तक नाराजगी से भरी थी, ने यह सब देखा और उसकी आंखों में भी पश्चाताप के आंसू आ गए। उसे अपनी गलतियों का अहसास होने लगा। उसके दिल में भी एक भावना जागी कि उसने अपने ससुर का इस तरह से सम्मान नहीं किया जैसा एक बहू को करना चाहिए था।
कुछ देर बाद काजल चुपचाप भीतर आई और उसने मनोहर जी के पास आकर कहा, “पिताजी, मुझे माफ कर दीजिए। मुझे नहीं पता था कि आप इतना कष्ट उठा रहे हैं। आज से आपकी देखभाल मेरी जिम्मेदारी है।”
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रवि ने उसकी ओर देखा और उसकी आंखों में भी भावनाओं का एक अंश दिखा। उसने समझ लिया था कि काजल को अपनी गलती का एहसास हो गया है। मनोहर जी ने काजल को आशीर्वाद दिया और उसकी आंखों में नमी थी, लेकिन उस नमी में आज एक संतोष भी था।
उस दिन के बाद, घर में एक अलग ही माहौल बन गया था। अब काजल और रवि, दोनों ही मिलकर मनोहर जी की देखभाल करते थे। रवि ने एक चिकित्सक से भी संपर्क किया, ताकि उनके पिता की स्थिति में सुधार हो सके। काजल ने उनकी जरूरतों का खास ख्याल रखना शुरू कर दिया, और वह हर रोज उनके लिए समय पर भोजन और दवाई का प्रबंध करती।
मनोहर जी अब अपने आपको एक नई ऊर्जा से भरा हुआ महसूस करते थे। उनका जीवन फिर से एक नए मोड़ पर था, जहां उन्हें परिवार के प्यार और अपनापन का सहारा मिला। अब वे निश्चिंत होकर, अपनी जिंदगी के बाकी दिन खुशी और संतोष के साथ बिता सकते थे, यह जानते हुए कि उनका बेटा और बहू हमेशा उनके साथ हैं।
यह कहानी हमें यह सीख देती है कि परिवार में बुजुर्गों की देखभाल, उनका सम्मान और उनके प्रति हमारी सहानुभूति कितनी आवश्यक है। जब तक वे हमारे साथ हैं, हमें उनके योगदान और त्याग को नहीं भूलना चाहिए और हर संभव कोशिश करनी चाहिए कि उन्हें हमारी जरूरत महसूस न हो।
मौलिक रचना
मीनाक्षी सिंह