दिन भर घूम घूम कर दीवाली की सारी खरीददारी करने के बाद अरूणा थक गई थी।खरीददारी करना भी कितना कठिन काम होता है सबकी पसंद की चीजे सबकी फरमाइश की गिफ्ट्स दुकान दुकान जाकर खरीदने में पसीने छूट जाते हैं ।ऊपर से दुकानदार भी हर सामान की ऊंची ऊंची कीमत वसूलना चाहते हैं त्यौहार आए नहीं कि इन सबको हम लोगो के पैसे लूटने का सुनहरा अवसर मिल जाता है हर दुकानदार से मोलभाव करने में ही सारी ऊर्जा खर्च हो जाती है।
हर साल यही सब खरीदो मिठाई खाओ खिलाओ बस हो गई दिवाली। पता नहीं सब कुछ करने के बाद भी इस बार उत्साह ही नहीं आ रहा था उसे सबकी फरमाइश की पसंद की गिफ्ट्स उसने दस दुकानें देखने के बाद लीं फिर भी घर में सबके मुंह ही बन जाएंगे….घर सजावट की भी ढेरों नई चीजें खरीद लीं.. फिर भी जाने क्यों कुछ कमी सी महसूस हो रही थी..!!
उसकी कॉलोनी में हर साल बेस्ट डेकोरेटिव होम प्रतियोगिता होती थी जिसमें आज तक अरुणा के घर को कभी पुरस्कार नहीं मिला था।पता नहीं क्या करूं कि इस बार मेरा नंबर भी लग जाए क्या खरीदूं!!
अपने विचारों में डूबी अरुणा दोनों हाथों में ढेर सारे पैकेट पकड़े सड़क के दूसरी ओर खड़ी अपनी कार की तरफ तेजी से बढ़ रही थी.. स्ट्रीट लाइट जल चुकी थी ..घर पहुंचने की शीघ्रता में उठते उसके कदम यकायक एक महिला से टकरा गए ।महिला जो मिट्टी के दीये बेच रही थी सड़क पर गिर गई उसके सारे दीये गिर कर टूट गये और अरुणा के हाथ के पैकेट भी चारों तरफ बिखर गए।
इतना उजाला है लाइट का फिर भी दिखाई नहीं पड़ रहा तुम्हें बीच सड़क में ये दिये बेचने निकल पड़ी …गुस्से से उफनती अरुणा नीचे बिखरे पड़े अपने सामान को देख महिला पर झपट ही पड़ी।
माफ कर दीजिए बहन आपका बहुत नुकसान कर दिया मैंने कहती उस महिला को जमीन टटोल अपनी स्टिक ढूंढते देख अरुणा चौंक गई अरे इन्हें तो सच में दिखाई नहीं देता इनके लिए कैसा उजाला.. .!!
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…गलती मेरी है बेटे ने कितना मना किया था साथ में बैठकर ही दीये बेचने को कहा था लेकिन आज मैं उसे छोड़ इस पार आ गई कि त्योहार का दिन है ज्यादा दीये बिक जाएंगे जल्दी घर चली जाऊंगी मैं भी ..मैने उसकी बात नहीं मानी बहुत दुखी हो गई वह महिला।
कहां है आपका बेटा अरुणा ने जल्दी से पूछा उसका दिल ग्लानि से भर गया था।
वो सड़क के उस पार कोने में दुकान लगाया है वहां बहुत सारे दीये हैं तीन दिनों से बेच रहे हैं वहां कोई खरीदने ही नहीं आता ….मेरे दिए टूटने का आप दुख मत कीजिए आपका इतना कीमती सामान जो आपने इतनी मेहनत और उत्साह से त्योहार के लिए खरीदा था मेरे कारण बर्बाद हो गया मुझे माफ कर दीजिए क्या करूं मैं अंधे होने की विवशता उसके चेहरे पर ज्यादा ही दिखाई दे रही थी अरुणा को।
आइए मेरा हाथ पकड़िए उठिए आप चलिए आपको सड़क पार करवा देती हूं अरुणा ने अपना हाथ बढ़ाते हुए पश्चाताप के स्वर में कहा।
अपने सामान का दुख भुला कर अरुणा ने भारी भीड़ के बीच उन्हें संभाल कर सड़क पार करवाया और उनके बेटे की दुकान तक ले गई।
मां तुम ठीक तो हो व्याकुल स्वर में पूछता बेटा शायद मां के साथ घटी किसी अनहोनी का अनुमान लगा चुका था।
अरुणा देख कर हैरान रह गई कि उस महिला का बेटा भी अंधा था दोनों मां बेटे मिल कर दीये बेचते थे । वे बने बनाए दिये उधार में लेते थे और बेच कर उधार चुकाते थे। उन लोगों ने अरुणा को बताया कि कई भलेमानुष तो सही सही दाम देकर जाते है पर कई दुष्प्रवृत्त लोग उनके अंधे पन का लाभ उठा पैसे कम और ज्यादा दीये ले जाते हैं और कई तो बिना दाम दिए भी भाग जाते है..!
दोनों अंधे होकर भी जीने का हौसला बनाए हुए हैं।भीख मांगने के बजाय अपनी मेहनत की सूखी रोटी ही खा रहे हैं यह सोच कर ही अरुणा का दिल उनके प्रति एक गहरे सम्मान से भर गया।
मुझे भी दिये चाहिए अरुणा ने कहा
हां हां कितने लेंगी मेमसाब बेटा खुश हो कर पूछने लगा।
क्या ये सारे मैं ले सकती हूं अरुणा की बात सुन बेटा उछल ही पड़ा।
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सारे आप लेंगी तब तो हमारा सारा उधार आज ही चूकता हो जायेगा और हम भी जल्दी अपने घर जा सकते हैं है ना मां बेटा प्रफुल्लित हो उठा।
देखिए कहीं आप हम पर दया तो नहीं दिखा रही हैं वैसे ही मेरे कारण आपका इतना नुकसान हो गया है महिला ने संजीदगी से पूछ लिया।
अरे नहीं समान तो दुबारा भी मिल सकता है लेकिन मेरे कारण आपके मिट्टी के जो दीये टूट गए उनकी भरपाई भी मुझे ही करने दीजिए आग्रह से कहती अरुणा ने दुकान के सारे दीये बिना मोलभाव किए अपनी कार में रखवा लिए और जब तक वे दोनो उसके द्वारा दिए गए ज्यादा रुपयों को गिन पाते वह चली गई।
मां इस बार तो हमारी दिवाली मन ही गई …ये कौन थीं जो ज्यादा ही दाम देकर चली गईं और हमारे सारे दीये भी जो कल तक भी नहीं बिक पाते खरीद कर ले गईं बेटा हाथ में पकड़े नोट गिनता हुआ चहक रहा था।
बेटा ये लक्ष्मी माता ही थीं जो आज इस रूप में आकर हमें दिवाली की खुशियां बांट गईं अभिभूत भाव से मां कह उठी।
चलो ना मां अब हम भी कल दिवाली मनाने के लिए कुछ खरीददारी कर लें अब तो हमारे पास रुपए भी है और समय भी बेटा उत्साहित था।
हां बेटा चल … ईश्वर उनकी जिंदगी में हमेशा खुशियों के दीप जलाए रखे जिनके कारण आज हमारी जिंदगी में खुशियों के दीप जल गए हैं दोनों हाथ ऊपर उठकर दुआ मांग रही थी वह महिला।
दिवाली के दिन अरुणा ने अपने दो मंजिली फ्लैट को मिट्टी के दियो से सजाया और घर के अंदर बाहर हर तरफ सुंदर रंगोलियों में भी मिट्टी के दियो से कई सुंदर सुंदर आकृतियां बनाईं …. ।
अरुणा जी इस बार तो पूरी कॉलोनी में सिर्फ आपका ही फ्लैट एकदम अलग अनोखी चमक लिए जगमगा रहा है ये मिट्टी के दियों ने तो झालर और कैंडल्स को पीछे छोड़ दिया एकदम देसी लुक है … निर्णायक समिति से प्रथम पुरस्कार ग्रहण करती अरुणा का दिल उस महिला के प्रति कृतज्ञ हो रहा था जो खुद उजाले से दूर होकर भी उजाले बेचने का काम करती है..!!
लतिका श्रीवास्तव
खुशियों के दीप##