दीदी! आज शाम को आप और भइया इधर आ जाना चाय पर, उज्ज्वल को देखने लड़की वाले आ रहे हैं ।
अच्छा….. वे ही देहरादून वाले ? जो रिश्ता रागिनी ने बताया था? या कोई और?
हाँ दीदी, वहीं लोग हैं । अच्छा… एक बार इधर आकर नज़र तो डाल जाइए , नाश्ते में रखने वाली चीजों पर । कोई कमीपेशी लगे तो बता दीजिएगा , आपको तो पता ही है कि बाद में मेरे हाथ- पैर फूल जाते हैं ।
ये तो ठीक कहा तुमने अलका ! भई मेरी च्वाइस का तो ये पूरा कुनबा क़ायल है । दरअसल मेरे आने से पहले यहाँ एक टी सेट तक ढंग का नहीं था , गिलास में चाय पीते थे । चलो , तुम्हारे भइया को नाश्ता देकर आती हूँ ।
जेठानी से बात करके फ़ोन रखते ही अलका सीधी सास के पास गई और बोली—-
माँ जी, दीदी को कह दिया कि शाम को भइया के साथ पहुँच जाएँ ।
ठीक किया, कुछ कह रही थी क्या ?
नहीं…. असल में मेरे मुँह से निकल गया कि दीदी मेहमानों के आने से पहले ज़रा इंतज़ाम पर नज़र डाल जाना और उन्होंने तो वहीं अपनी बड़ाइयाँ मारनी शुरू कर दी ।
हाँ तो , वो तो मारेगी ही बड़ाइयाँ । कितनी बार कहा तुझे कि ज़्यादा मत बोला कर पर तुझे भी चैन कहाँ ? अब आएगी और सत्तर कमियाँ निकालकर, सब उलट- पुलट कर देंगी ।
माँ जी, मैंने तो वैसे ही आदर देने के लिए कह दिया था….
उसे आता है क्या आदर लेना ? वो तो ये दिखाएगी कि उसके बिना तो मेहमानों को चाय पिलाने का भी शऊर नहीं किसी को। पूरे अठाइस साल हो गए मुझे तो देखते-देखते । और छब्बीस/ सत्ताइस तो तुझे भी हो गए पर तेरी समझ में पता नहीं, कभी ये बात आएगी या नहीं?
अलका ने टी सेट वाली बात सास को नहीं बताई वरना उन्हें और भी ग़ुस्सा आ जाता । ख़ैर वह चुपचाप रसोई में पहुँच कर काम में लग गई और मन ही मन सोचने लगी कि काश ! जब दीदी यहाँ आएँ तो सास अपने कमरे में आराम करने चली जाएँ। जेठानी को यहाँ आने का न्यौता देकर आफ़त कर ली।
अलका ये बातें सोच ही रही थी कि इतने में गेट खुलने की आवाज़ आई । वह समझ गई कि वंदना दीदी आ गई हैं। रसोई से तुरंत निकली तो सास वहीं बैठी थी ।
देखिए अलका , गेट पे वंदना है या कोई और?
मैं ही हूँ माँ जी , वो अलका ने कहा था कि चाय पानी का इंतज़ाम देख जाना तो इसलिए दौड़ी-भागी आई वरना कहाँ टाइम होता । ख़ैर…. चरण स्पर्श माँ जी!
जीती रह । इंतज़ाम तो सारा बढ़िया है । ये अलका भी जाने क्यूँ डरी रहती है ?
माँजी, मायके में देखा नहीं ना इसने ये सब कुछ । अब तो चाहे ,वे कितने भी पैसे वाले हो गए हो पर शादी के टाइम तो इसके मायके वालों का स्टैंडर्ड दिख रहा था ।
दीदी! मेरे घरवालों के स्टैंडर्ड में कौन सी कमी दिखी थी आपको ?
ना ना अलका , मैं ये कह रही थी कि अलका में कॉन्फ़िडेंस की कमी इसलिए है क्योंकि छोटे क़स्बे की रहने वाली है ना , ऊपर से वहीं पढ़ाई- लिखाई की …… अब देखो , फ़र्क़ तो रहता ही है ना । मेरा मायका भी बड़े शहर में, होस्टल में रहकर पढ़ाई की और फिर पापा आर्मी में , और शादी हुई तो बड़े ऑफिसर के साथ तो इसलिए……
तुम्हारे ‘ मैं ‘होने का गुमान देखकर ही तो दूसरी बहू छोटे क़स्बे की ली ताकि आदमी को आदमी तो समझे । आज तक तेरी मैं- मैं ख़त्म ना हुई वंदना । देख ….’ मैं ‘ तो रावण और कंस की भी ना रही थी ।
माँ जी! आपने क्या मुझे लड़ने या उलाहनों- तानों के लिए बुलाया है । अब मेरी चवाइस , मेरा मायका , मेरे बच्चे और मेरी हर एक चीज़ सबसे अलग है तो आपको स्वीकार करने में क्या हर्ज है ?
देखना दीदी, ये चार/ पाँच क़िस्म के बिस्कुट- नमकीन हैं , ये ड्राई फ़्रूटस ट्रे ……बहुत रहेगा या कुछ और मँगवाऊँ ?
सास और जेठानी के बीच बात बढ़ती देखकर अलका ने बात का रुख़ मोड़ते हुए कहा ।
अलका , इन बिस्कुटों की जगह कनफैकशनरी से कुकीज़ मँगवा ले , कौन खाता है इन घटिया बिस्कुट को आजकल? और ये टी सेट , कौन से जमाने में ख़रीदा था? हमें अलग हुए भी दस साल हो चुके और उससे पहले का है । मैं तो छह महीने से ज़्यादा एक टी सेट इस्तेमाल ही नहीं करती ।
वंदना , मेरा ही बेटा है वो जिसकी कमाई पर तू इतना गुमान करती है ।अलका , लड़की वालों के सामने ज़्यादा बढ़चढ़कर दिखावा करने की ज़रूरत नहीं, जो है जैसा है, हक़ीक़त दिखाओ ताकि उन्हें कोई ग़लतफ़हमी ना रहे ।
ठीक है अलका , चलती हूँ । शाम को किसी को भेजकर टी सेट मँगवा लेना ।
माँ जी काफ़ी देर तक बड़ी बहू वंदना के घमंडी स्वभाव को लेकर बड़बड़ाती रही पर अलका चुपचाप अपने काम में लगी रही । निश्चित समय पर अलका की फुफेरी ननद रागिनी अपने पति और लड़की के माता-पिता के साथ पहुँच गई ।
आइए-आइए , मैं हूँ लड़के की ताई वंदना और ये मेरे पति गिरीश, मैनेजिंग डायरेक्टर की पोस्ट पर है । मेरे दोनों बच्चे तो आस्ट्रेलिया में हैं । हाँ- हाँ, उज्ज्वल से एक साल बड़ा है मेरा बेटा…..
रागिनी ! अपने पारस के लिए भी कोई वैल रेपुटिड फ़ैमिली की लड़की बताओ । अब अलका का बेटा तो बहुत साधारण सा है । पूरा मम्मी का बेटा है, भई मैंने तो बच्चों के ऊपर कभी टोका- टाकी नहीं की । मुझे क़तई पसंद नहीं कि बहू- बेटे को मुट्ठी में बंद करके रखो ।
उस शाम की मुलाक़ात के बाद ऐसा लग ही नहीं रहा था कि मेहमान अलका के बेटे को देखने आए हैं । जब तक वे लोग रहे वंदना ही बोलती रही । जाते- जाते लड़की की माँ ने शायद ही अलका से बात की हो पर वंदना का फ़ोन नंबर लेना नहीं भूली।
चलो भई अलका , तुम्हारे बेटे का तो रिश्ता हो गया । अब हमारे पारस के लिए भी कोई मैच मिल जाए बस ।
पर दीदी, वे लोग तो यह कहकर गए हैं कि आपस में बात करके बता देंगे । वैसे आपकी तो काफ़ी बातचीत हुई, कैसे लगे आपको ?
अब तुम तो किचन में घुसी रही , मुझे तो बात करनी ही पड़ी । लड़की के बाबा दो बार अपने क्षेत्र के विधायक रह चुके हैं । अच्छा- ख़ासा बिज़नेस है , देखो मुझे तो काफ़ी हाई- फ़ाई लगे , पता नहीं तुम जैसे साधारण परिवार के साथ बेचारी लड़की कैसे निर्वाह करेगी ? मुझसे तो काफ़ी इंप्रेस थे वे लोग । अरे , तुम्हें कहा था कि टी सेट मँगवा लेना उधर से पर नहीं….. ऊपर से नाश्ता भी कहाँ चखा उन्होंने? पकौड़े तलने की क्या ज़रूरत थी भला कौन खाता है आजकल तलाभुना? ख़ैर…. तुम्हारी मर्ज़ी ।
माँ जी, नया ही तो है हमारा टी सेट, मुश्किल से पाँच/ सात बार निकाला होगा । भले ही कई साल पहले ख़रीदा था । सफ़ेद बोन चाइना का टी सेट आज भी चमचमाता है ।
छोड़ बहू , वंदना की बात तो वही जाने । ऐसे दिखाती है जैसे मैं नहीं यही गिरीश की माँ है ।
आप भी ना माँ जी , ग़ुस्से में कुछ भी कह देती हैं । जहाँ संजोग होगा , रिश्ता वहीं होगा ।
अगले दिन रागिनी ने फ़ोन पर माँ जी कहा —-
मामीजी! लड़की वालों को उज्ज्वल और उसके माता-पिता बहुत ही साधारण लगे । कह रहे हैं कि रिश्तेदारी ऐसी तो होनी चाहिए कि किसी से परिचय करवाते समय शर्म ना आए । एक बात और ….. उन्हें वंदना भाभी और गिरीश भाई बहुत ही पसंद आए , वे पारस को देखने की इच्छा जता रहे हैं ।
क्या…. रागिनी इस बात को ख़त्म कर और पारस के लिए मना कर दें । ऐसा भी कहीं होता है कि एक भाई का रिश्ता मना करके दूसरे के लिए इच्छा जताए।
पर मामी , वंदना भाभी ने तो लड़की की माँ से कल रात को ही बात कर ली थी उनकी इच्छा जानने के लिए । मुझे तो नहीं बताया पर शायद उन दोनों की आपस में बातचीत हो चुकी है ।
माँ जी ने बहुत हाथ- पैर मारे पर वंदना ने पारस और आहना का रिश्ता करवा दिया ।
माँ जी रिश्ते की बात तो हज़ारों जगह चलती है । घर की बात है । मैं आपके हाथ जोड़ता हूँ, भाई- भाभी से कुछ मत कहना । पोते तो दोनों आपके ही है ।
बेटा , दुख मुझे इस बात का है कि वंदना हर बात में तुझे और अलका को नीचा दिखाती रही और अब बच्चों के साथ भी वही बर्ताव शुरू कर दिया । किस बात में उज्ज्वल पारस से कम है ?
ख़ैर तीन महीने के भीतर शादी हो गई। कुछ काग़ज़ात की औपचारिकता के लिए आहना को भारत में ही रुकना पड़ा ।एक दिन रागिनी का फ़ोन आया—-
मामीजी, मैं तो यह रिश्ता बताकर बुरी फँसी । लड़की वालों को यह शिकायत है कि वंदना भाभी एक नंबर की घटिया और लालची औरत है । हमारी लड़की को एक भी साड़ी पहनने लायक़ नहीं दी । दूसरी ओर वंदना भाभी का कहना है कि बहू और उसके मायके वाले एक नंबर के घमंडी और नकचढ़े हैं । लड़की तो नाक पर मक्खी तक नहीं बैँठने देती । पचास लाख का लहंगा पसंद किया और फेरों पर मायके का लहंगा पहना क्योंकि बाद में उसे खुद ही पसंद किया लहंगा जँचा नहीं । अब तो वंदना भाभी इंतज़ार कर रही हैं कि किसी तरह काग़ज़ पूरे हो और आहना मायके से सीधे आस्ट्रेलिया चली जाए ।
बड़ा गुमान था ना वंदना को कि मेरा जैसा तो कोई है ही नहीं, समय ने आख़िर बता ही दिया कि परिस्थितियाँ मौसम की तरह होती हैं, न जाने कब रंग बदल ले । इसलिए मनुष्य को आपे में रहना चाहिए ।
करुणा मालिक