बिखराव – पूनम शर्मा : Moral Stories in Hindi

विथीका के रिटायरमेंट का जश्न मनाने पूरा परिवार एक साथ एकत्र हुआ था। दोनों बेटे, बहुएँ, बेटी और दामाद । रात्रि भोज का आयोजन बच्चों द्वारा एक सर्प्राइज के तौर पर किया गया था। विथीका यह सब देख बहुत  खुश थी। उसे भी तो इस रिटायरमेंट इंतजार था। वक्त धीरे-धीरे रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता जा रहा था।

वह अपने बच्चों के साथ दुनियादारी से मुक्त हो समय गुजारना चाहती थी। वह अपने तीनों बच्चों के परिवार को एक साथ अपने आँखों के सामने हँसता-खेलता देखना चाहती थीं। वह  मन ही मन ईश्वर को धन्यवाद दे रही थीं।

जश्न के दूसरे सुबह सब इकट्ठा डाइनिंग टेबल पर बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहें थें। साथ में मठरी, टोस्ट और नमकीन भी था। उसी दौरान वर्षा ने माँ से पूछा -माँ! रिटायरमेंट के बाद मिले पैसों का बँटवारा हम सब के बीच कैसे करोगी? माँ मुझे भाइयों के बराबर ही हिस्सा चाहिए। यह सुनकर दामाद जी ठिठक गए।

पत्नी को टोकते हुए बोले- तुम कैसी बात कर रही हो? तुम्हें पैसे की कमी है क्या ? अपना ही संभालना सीख लो। ”  बेटी की बात सुन विथीका के पैर तले की जमीन खिसक गई। वह बुत बनी किंर्तव्यविमूढ़ थीं। वह सोच रही थीं   कि जिन पैसों का उन्होंने अभी ठीक से आंकलन भी नहीं किया, उनके बंँटवारे की बात बेटी कर रही है।

उनके मन में तरह-तरह विचार ज्वार-भाँटा की तरह उठने लगे। वह सोचने लगी घर-बाहर संभालते संभालते संस्कारों का कौन सा छोर उनके हाथ से छूट गया? क्या ये जश्न बच्चों का प्यार नहीं, पैसे लेने का जरिया है।

पत्नी को असहज देख विधान गंम्भीर स्वर में बोले- ‘ ये जो भी पैसे हैं, तुम्हारी माँ के है। इस पर हम सब में से किसी का कोई हक नहीं बनता, कि हम उसके बारे में उनसे सवाल करें।वैसे भी वर्षा! हमने तुम्हारी शादी में अपने औकात से ज्यादा पैतृक संपत्ति बेच कर खर्च किया था । दामाद जी इक्साइज आॅफिसर हैं, घर की तुम इकलौती बहू हो, तुम्हें उनके पैसों के बारे में तो बिल्कुल बात नहीं करना चाहिए।’ वर्षा कुछ बोली तो नहीं

इस कहानी को भी पढ़ें: 

सिंदूर… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

लेकिन बीच में ही पिता की बात सुनकर टेबल छोड़ कर कमरे में चली गई। दामाद जी ने कहा-‘पापा! मैं वर्षा की तरफ से माफी माँगता हूँ। उसे नादान समझ कर माफ कर दीजिए। दामाद को हाथ जोड़ते देख विधान उनके हाथों को अपने हाथ में लेकर बोला -‘नहीं नहीं बेटा, तुम माफी क्यों माँगते हो। मैं तो अपने ही औलाद के व्यहार से दुःखी हूँ।’

इस घटना से  विथीका समझ नहीं पा रही थी कि क्या करे और क्या ना करे। वह अपनी बेटी से बात करने के लिए सोचते- सोचते चाय खत्म करके सीधे उसके कमरे की ओर चली गई। कमरे के बाहर बडी़ बहू बृष्टी की आवाज साफ सुनाई दे रही थी। ‘जीजी! आप बडी़ हो तो पूछने का हक आपका ही था। आपने कुछ भी गलत नहीं किया है। आखिर माँ जी इतने पैसों का क्या करेंगी ? उन्हें देना तो हम सब को ही है,

लेकिन बिट्टू के प्रति उनका झुकाव कहीं बेईमानी का कारण न हो जाए।’  विथिका  कमरे का दरवाजा खोलते हुए बोली -‘इसमें क्या है? मैंने भी यही सोचा है कि अपनी कमाई पोते- पोतियों और नाती- नतिनों को दूँगी। बेटी ने अपनी नाराजगी व्यक्त की जिसमें विरोध की बू ज्यादा थी। बेटी ने दो दिन बडे़  अनमने भाव से गुजारा। माँ से ठीक ढंग से बात नहीं की और दो दिन बाद ही अपने ससुराल प्रयागराज के लिए रवाना हो गई। 

जाते वक्त उसने माँ- पिताजी के पैर भी ठीक से नहीं छुए, अब की बार वह माँ से गले भी नहीं मिली। बडे़ बेटे और बहू भी कहीं न कहीं बहन के विचार से सहमति जताते हुए, कोर्ट खुलने का हवाला देकर सप्ताह भर में दिल्ली के लिए रवाना हो गए।

सभी के जाने के बाद सप्ताह से वक्त, महीना में बदल गया, लेकिन बेटी और बडे़ बेटे के यहाँ से कोई फोन नहीं आया।

विथिका को चिंता हुई । पति से कहा कि ‘महीना भर हो गया न प्रयाग से और न ही दिल्ली से कोई काॅल आया, मुझे चिंता हो रही है। वर्षा तो हर दूसरे दिन फोन किया करती थी।’ विधान ने कहा इसमें कौन सी बडी़ बात है। लो, मैं खुद फोन कर देता हूँ।’ रिंग जाने लगा और कट भी गया, लेकिन किसी ने फोन नहीं उठाया तभी विधान के फोन पर वर्षा काॅलिंग आने लगा । विथिका को फोन पकडा़ते हुए विधान ने कहा- ‘लो आ गया तुम्हारी लाडली का फोन बात करो।’ विथिका काॅल उठाती है तो दूसरी तरफ से दामाद जी की आवाज़ सुनाई देती है-‘प्रणाम अम्मा! एक्चुली वर्षा बाहर पडो़स में पूजा है वहीं गई है और फोन घर पर छोड़ गई है। आप कैसी है?

कोई मैसेज हो तो बता दीजिए मैं उससे बता दूँगा।’ ‘ खुश रहो बेटा। बहुत दिन हो गया था, बस हाल चाल जानने के लिए पापा ने फोन किया था। सब ठीक है। मिस्टी कैसी है?’ विथिका ने पूछा। दामाद जी ने प्रति उत्तर में सबके कुशल मंगल की बात कही और मिस्टी के सोने का बहाना बना दिया जबकि सुबह के नौ बज रहे थें। दामाद जी के बातों से साफ पता चल रहा था कि वह स्थिति को सम्हालने की कोशीश कर रहे थें। विथिका बेटी के व्यवहार से टूट गई । अपनी झुझलाहट निकालते हुए उन्होंने छोटे बेटे विदर्भ को आवाज़ देते हुए कहा-‘बेटा तुझे भी अपने काम से कहीं जाना है, तो चले जाना। तुम और बहू हमारी चिंता मत करना।

इस कहानी को भी पढ़ें: 

आई. सी. यू.   l ICU – श्वेत कुमार सिन्हा

मैं और तुम्हारे पापा यहाँ है।’ माँ की बात सुन विधि रसोईघर से मुस्कुराते हुए, हाॅल में माँ के पास आँचल में हाथ पोछते हुए आई । ‘माँ हम कहाँ जाएँगे? आप को और पापा को छोड़कर। बिट्टू के बिना आप रह पाएँगी क्या?’ विदर्भ भी तब तक आ गया था। उसने माँ का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा-‘ मेरा जाॅब तो वर्क फ्राॅम होम है माँ! और मेरी कम्पनी का नया ब्रांच बक्सर में ही खुलने वाला है।

मैं प्रमोशन के साथ यहीं का कार्य, एरिया मैनेजर के पोस्ट पर संभालने वाला हूँ, इसलिए मैं तो पीछा नहीं छोड़ने वाला।’ यह सुनकर सभी एक साथ हँस पडे़। झुंझलाहट भरे विथिका के मन में एक सुकून भरा एहसास जागा । लेकिन दोनों बडे़ बच्चों के व्यवहारिक बदलाव से आहत उनका मन मातृत्व स्नेह से मुक्त नहीं हो पा रहा था।

 विधि थोडी़ देर में रसोई का बाकी काम निपटाने के लिए रसोई में चली जाती है। बिट्टू अपने खिलौने से वहीं खेलने लगता है। विदर्भ लैपी पर कुछ काम करने लगा।  विधान पेपर के पीछे से पत्नी की अन्मनस्यता को भाँप रहे थें। वे पत्नी से बोले – ‘बडे़ को फोन लगाता हूँ। देखूँ तो सही वकील साहब कहाँ व्यस्त है?’ ‘नहीं रहने दो। वह अपनी दुनिया में मस्त है, तो तुम क्यों कबाब में हड्डी बन रहे हो। अब तक तो वे दोनों ही न फोन करते थें।

अब नहीं कर रहे तो ना करें, आप बाजार चले जाते रसोई में फल और सब्जियाँ लगभग खत्म है।’ पत्नी के कहने पर विधान बहू विधि के पास रसोई के सामान का जायजा लेकर  बाजार के लिए निकल गएँ। विथिका वही साइड के सोफे पर बैठी-बैठी अतीत के पन्नों में भटने लगी। जब वह व्याह कर आई थी तो एम.एससी.एम.एड.थी जबकि विधान बी. एसी.थें और एल.आई. सी. में एरिया मैनेजर के पद पर कार्यरत थें।

पिता ने नौकरी देखकर उन्हें दामाद के लिए चुना था क्योंकि योग्यता के लिए लड़के के डिग्री से ज्यादा उसका कमाऊ होना आवश्यक था। ससुराल में व्याह कर पहुँची तो वह पाँच ननदों की इकलौती भाभी बनकर उतरी थी । ननदों के साथ सास ससुर का भी प्यार भरपूर नसीब हुआ। आस-पडो़स के लोगों का भी घर में आना-जाना लगा रहता था। दो बडी़ ननदों के अपने ससुराल लौट जाने के बाद भी घर की रौनक बनी हुई थी।

यद्यपि शादी के कुछ दिन बाद ही सब लोग अपने-अपने काम में व्यस्त हो गए। पति और छोटी ननदे अपने आॅफिस और काॅलेज निकल जाते तो, कहने को घर में विथीका और उसके सास, ससुर मात्र तीन लोग ही रहते थें।  ससुर का सामाजिक दायरा बडा़ होने के कारण आने जाने वाले लोग अक्सर ही घर आया करते थें। यह घटना वक्त के तीस दसक बाद भी आज भी उसके दिलोदिमाग पर कल की घटित घटना की तरह छाया है। उसे याद है, कि बैठक में बैठे मेहमानों के लिए चाय नाश्ता का ट्रे पकडे़ कमरे की ओर जा रही थी,

तो बैठक की आवाज़ उसके कानों में पडी़ -‘अरे पाण्डेय जी! जरा संभल कर रहिएगा । पढी़-लिखी बहू लाएँ है, तो कल के दिन अपने पढा़ई का रौब दिखाते हुए आपलोगों पर हुकूमत न चलाने लगे। सावधान रहिएगा।’ ‘कैसी बात करते है महाराज। पढी़-लिखी लड़कियाँ ज्यादा समझदार होती हैं। प्यार से अगर हम उसे बेटा बुलाएँगे तो, वो बाबुजी ही कहेगी । वो कभी मेरा नाम नहीं लेगी, इसलिए प्यार के बदले प्यार ही मिलेगा और मैं इस विचार पर विश्वास करता हूँ।’ माहौल कुछ अलग देख वह माँ जी के पूजाघर में ट्रे लेकर बैठक में पहुँचाने का आग्रह कर,

इस कहानी को भी पढ़ें: 

प्रेम – शालिनी दीक्षित

वह वापस रसोई में बचे काम समेटने लगी। ये छोटी सी घटना में झलकते ससुर के विश्वास को उसने दृढ़ता के साथ अपने जीवन में उतारा था। उसे ससुराल से स्वेच्छा से नौकरी करने की स्वतंत्रता थी। सरकारी प्रतियोगी परीक्षा पास कर वह इंटर काॅलेज के प्रवक्ता-पद  नियुक्त हुई। तीन साल उसे घर से दूर रहना पडा़, लेकिन सास-ससुर के बिना उसका वह समय सबसे कठिन गुजरा था। पति के नौकरी के आधार पर उसने अपना तबादला गृह शहर में करा ली, तब से आज तक वह परिवार के सभी जिम्मेदारियों को पति के साथ दृढ़तापूर्वक निभाई थी।

लेकिन पति के साथ जिस परिवार को दृढ़ता से सम्हालने के साथ  प्रधानाचार्या का काल सफलतापूर्वक पूरा करने के बाद, आज वह जीवन के अनुभव के उस कमी को टटोल रही हैं।जहाँ से उनके बच्चों में संबंध का आधार भावना की जगह पैसे  बन गया। आज बच्चों के बदलाव भरे व्यवहार में  वे स्वयं की कमी को तलाश रहीं है।

                                – पूनम शर्मा, वाराणसी।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!