नज़रिया अपना अपना – ऋतु दादू : Moral Stories in Hindi

निशि के सामने वाले घर मेें शर्मा परिवार रहता है ,परिवार मेें रीमा भाभी,भइया और उनका बेटा नीरज, बहू विधि है। बेटा और बहु दोनो अच्छी नौकरी में हैं। घर में हर तरह की सुख सुविधा है, प्रत्येक कार्य के लिए बाई लगी हुई है, कुल मिलाकर बहुत ही सुखी परिवार है।निशि अक्सर रीमा भाभी के साथ कॉलोनी के पार्क में घूमने चली जाती है , वहां इधर उधर की बातें भी हो जाती हैं और घूमना भी हो जाता है।

एक दिन पार्क में बहुत सारे छोटे छोटे बच्चे अपने दादा दादी के साथ खेलने आए हुए थे, रीमा भाभी बहुत हसरत भरी नज़रों से उन्हें देख रही थी कि अचानक निशि ने पूछ लिया भाभी विधि और नीरज के विवाह को भी तो बहुत समय होे गया है,वह  कब खुश खबरी सुना रहें हैं। यह सुनते ही रीमा भाभी का मुंह उतर गया और वो उदास होकर बोली, पता नहीं हमारे घर मेें कभी किलकारी गूंजेगी भी या नहीं।

शायद आज भाभी अंदर से बहुत परेशान थी, इसलिए  आज उनका सारा गुस्सा बाहर आने को आतुर था। वे बोली,जब मै विधि की उम्र की थी तो मैं दो बच्चों की मां बन चुकी थी पर येे आजकल की लड़कियां तो मां बनना ही नहीं चाहती, इन्हें तो अपनी नौकरी प्यारी है,  अभी उन्हें ,येे नहीं पता कि वो कितनी बड़ी गलती कर रहे हैं,

जब उम्र ज्यादा हो जाती है तो गर्भ धारण करने मेें भी दिक्कत आती है, फिर डाॅक्टर के चक्कर  लगाओ वो अलग।कई बार तो ज्यादा उम्र होे जाने पर बच्चा भी सामान्य नहीं होता पर मेरी तो कोई सुनता ही नहीं।

निशी ने कहा,भाभी आपने नीरज से बात करी ,तो वे बोली ,अरे अब तो नीरज भी परेशान हो गया है, विधि कुछ समझना ही नहीं चाहती। रीमा भाभी के नज़रिए से देखें तो वे बिल्कुल सही थी।

 निशी, रीमा भाभी के जितनी नजदीक है उतनी ही विधि के भी है, अत: निशी ने दृढ़ निश्चय कर लिया था कि वो विधि से बात करके उसे जरूर समझाएगी।

निशी बहुत दिन से विधि से मिलकर बात करना चाह रहीं थी कि एक दिन विधि घर के बाहर ही मिल गई,निशी बोली, चलो विधि बहुत दिन हो गए साथ बैठकर चाय नहीं पी और उसे अपने घर ले आई। चाय पीते हुए निशी ने विधि से कहा कि अब तो तुम्हारे विवाह को काफी समय हो गया है,अपने परिवार को बढ़ाने के विषय में  सोचो,यह सुनकर विधि चुप सी होे गई,निशी ने प्यार से पूछा क्या हुआ विधि कोई तकलीफ है क्या?

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विधि बोली, नहीं दीदी तकलीफ कुछ नहीं है बस मै मां बनना ही नहीं चाहती।

निशी को बहुत आश्चर्य हुआ कि पहली बार कोई लड़की इस तरह मां बनने से मना कर रही है,उसने प्यार से विधि से कहा,मै तुम्हारी बड़ी बहन जैसी हूं,अपनी दिल की  बात मुझे नहीं बताओगी,विधि ने एक गहरी साँस ली और बोली,

दीदी आप तो जानती ही होे विवाह से पहले मै अपने मायके के शहर मेें बहुत बढ़िया नौकरी में थी।बचपन से ही दिन रात पढ़ाई में लगी रही,और उसके बाद नौकरी में,कभी अपने लिए फुर्सत ही नहीं मिली कि मै अपने लिए कुछ  सोचूं। विवाह के बाद मुझे इंदौर आना था इसलिए मैंने अपनी  नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। विवाह के बाद मेरी इच्छा थी

कि मै कुछ दिन नौकरी न करके अपने नए घर की तरफ ध्यान दूं,घर मेें रहकर नए नए व्यंजन बनाना,जो विवाह से पहले नहीं कर पाई,वो सब काम अब करू। एक दो साल में बच्चा प्लान कर लूंगी और उसकी परवरिश अच्छे से करके कुछ सालो बाद अपने लायक नौकरी ढूंढ लूंगी।

जब मैंने अपने विचार घर मेें सब के सामने रक्खे तो सब मुझ पर नाराज़ हो गए,बोले अरे हमें तो नौकरी वाली बहु चाहिए थी, तुम्हारी पढ़ाई लिखाई और इतनी अच्छी नौकरी देखकर ही तो हमने तुम्हे पसंद किया था और अब विवाह के बाद तुम घर बैठना चाहती हो,जब बच्चा होगा,तब की तब देखी जायेगी अभी तो तुम नौकरी ढूंढ लो।

विधि बोली, मेरे पास अनुभव और योग्यता दोनो ही थे,इसलिए मुझे बहुत अच्छी नौकरी मिल गई।मै दिन पर दिन उन्नति के शिखर पर पहुंच रही हूं ,कुछ ही दिनो मेें मै अपने एरिया की हेड बन जाउंगी ।अब मेरा परिवार चाहता हैं कि मै नौकरी छोड़कर बच्चा पैदा करने की सोचने लगु, क्यों दीदी ,मै कठपुतली हूं क्या,मेरी अपनी कोई मर्जी नहीं है क्या।

आप ही बताओ बच्चा पैदा करने के बाद तो मै पूरी तरह से घर मेें बंध जाउंगी ,फिर मैंने जो नौकरी में इतनी मेहनत की है उसका क्या होगा?? 

मैंने नीरज से कहा कि ठीक है,हम लोग बेबी प्लान कर लेते हैं पर मेरी छुट्टी समाप्त होने के बाद आपको छुट्टी लेकर उसे संभालना होगा,इस पर नीरज चिड़ गए,बोले मै क्योें लूंगा छुट्टी, मां तुम हो तुम ही संभालना येे जिम्मेदारी।

मैंने मम्मीजी  से बात की तो उनका भी यही कहना था कि बहुत होे गई नौकरी अब बच्चा प्लान करो और उसका पालन पोषण करो।

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अब बताइए दीदी अगर मै मां नहीं बन रही हूं तो क्या मै गलत हूं, मैं नहीं चाहती ये छोटी सी बात कोई बड़ा रूप लेले और सब रिश्ते बिखर जाएं।

निशी गहरी सोच में डूब गई अगर वह विधि के नज़रिए से देखती है तो विधि बिल्कुल सही लग रही है। 

अब उसे समझ आ रहा था किसी भी बात को देखने के सबके अपने अपने नज़रिए होते हैं।समान परिस्थिति में किसी को फायदा नज़र आता है,तो किसी को नुक़सान।

अगर सब अपने अपने मन की न करके साथ बैठकर समस्या सुलझाएंगे तो समाधान अवश्य निकलेगा।

ऋतु दादू (स्वरचित)

इंदौर मध्यप्रदेश

#वाक्य प्रतियोगिता- ” मैं नहीं चाहती ये छोटी सी बात कोई बड़ा रूप लेले और सब रिश्ते बिखर जाएं।”

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