सिंदूर – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

नव्या और नितिन के कॉलेज का यह पहला दिन था। सभी बच्चे एक दूसरे से मिलजुल कर दोस्ती करना चाहते थे। नव्या जो  कि एक छोटे से कस्बे से पहली बार शहर में आई थी, इतने बड़े कॉलेज और फैशनेबल बच्चों को देखकर थोड़ा  असहज महसूस कर रही थी। 

तभी उसे अपने पीछे से आवाज आई ” हैलो ” उसने पीछे मुड़कर देखा तो एक बड़ा मासूम सा दिखने वाला हैंडसम लड़का खड़ा था।हैलो मैं नितिन, हाय मैं नव्या। मैं तुम्हें बहुत देर से यहां अकेले खड़े हुए देख रहा हूं। हां वह मैंने बीएससी फर्स्ट ईयर में एडमिशन लिया है। और मेरा कॉलेज का आज पहला दिन है। ओ. …अच्छा… मैं बीएससी फाइनल ईयर में हूं। 

दोनों में पहले दिन ही दोस्ती हो गई। वे एक दूसरे को काफी समझने भी लगे थे। पढ़ाई पूरी करने के बाद नितिन ने अपने पापा का व्यवसाय संभाल लिया। उसके पापा का एक बड़ा कपड़े का शोरूम था, जो काफी अच्छा चलता था । जब उसके लिए शादी की बात चली तो उसने नव्या के बारे में बताया।

लेकिन इसके लिए वह पहले अपने आप बात करके नव्या की इच्छा जानना चाहता था। उसने नव्या से बात करने के लिए उसे एक  कैफ़े में बुलाया। जब उसने नव्या के आगे शादी का प्रस्ताव रखा तो नव्या ने भी  हामी भर दी।क्योंकि नितिन एक अच्छा जीवनसाथी बनने योग्य था। फिर दोनों परिवार वालों ने आपस में बात की, दोनों के परिवार वाले संतुष्ट थे।

जल्दी ही शादी की तारीख पक्की कर दी गई। शादी के बाद दोनों ही बहुत खुश थे ।सब कुछ अच्छा चल रहा था। पता नहीं उनकी खुशियों को किसकी नजर लगी , कि शादी के छः महीने बाद ही नितिन के पापा का हृदयगति रुकने से निधन हो गया। अचानक से सब कुछ बिखर सा गया घर भी, व्यवसाय भी।

नव्या कभी अपनी सास को संभालती, कभी नितिन को। नितिन को कारोबार संभाले हुए अभी ज्यादा समय नहीं हुआ था। इसलिए वह ज्यादा कुछ जानता भी नहीं था। कुछ तो पापा के जाने का दुख ,कुछ व्यवसाय में   नौसीखिया होने के कारण रोज नुकसान होता जा रहा था। धीरे-धीरे व्यवसाय पूरी तरह  ठप हो गया। नितिन अपने को नाकाबिल समझ कर परेशान रहने लगा, ऊपर से घर की जिम्मेदारी। 

 एक दिन वह शोरूम पर जा रहा था, लेकिन दिमाग में चिंता और उथल-पुथल थी । तभी सामने से  आती एक बाइक से उसकी बाइक टकरा गई। उसके दोनों पैरों में फ्रैक्चर हो गया। वह बिल्कुल बिस्तर पर आ गया। हर काम के लिए वह नव्या पर निर्भर हो गया। एक दिन नव्या अपनी मम्मी से फोन पर बात करते हुए रोने लगी। मम्मी मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा है ।जमा पूंजी भी कब तक रहेगी? नितिन को पूरी तरह सही होने में तो अभी  पांच- छह महीने लग जाएंगे। 

वह तो ठीक है बेटा परेशानी का समय है ।दुख है तो सुख भी आएगा। हिम्मत हारने से काम नहीं चलेगा। तुम एक काम क्यों नहीं करती तुमने ब्यूटी पार्लर का कोर्स किया हुआ है ,तो बाहर वाले कमरे में अपना ब्यूटी पार्लर का काम क्यों नहीं कर लेती। उससे तुम साथ-साथ घर और नितिन की भी देखभाल कर पाओगी। 

नव्या को रास्ता मिल चुका था। उसने नितिन से बात की ,तो वह दुखी होकर बोला नव्या तुम जब से शादी होकर आई हो मैं तुम्हें कोई खुशी नहीं दे सका। मेरे द्वारा भरे गए सिंदूर ने तुम्हें दुख के अलावा कुछ नहीं दिया। नव्या ने नितिन के होठों पर हाथ रखकर उसे चुप कर दिया ,और बोली आप गलत कह रहे हैं । यह सिंदूर ही मेरी हिम्मत है । तुम्हारा साथ है तो मैं हर मुसीबत का सामना कर लूंगी। 

ईश्वर की कृपा से नव्या का ब्यूटी पार्लर चल निकला। नव्या का प्रेम पूर्ण व्यवहार और अच्छा काम ।औरतें आसपास से भी उसके पार्लर में आने लगी। धीरे-धीरे नितिन भी सही हो रहा था। नव्या रिक्शा में बैठा कर उसे शोरूम पर छोड़ आती और शाम को वापस ले आती। शोरूम पर काम करने वाले लड़के उसकी पूरी सहायता करते और वह केवल हिसाब- किताब  देखता। धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो रहा था। 

आज नव्या और नितिन की शादी की दसवीं वर्षगांठ थी। वे दोनों दो प्यारे प्यारे बच्चों के माता-पिता बन चुके थे। शाम के समय नितिन ने छोटी सी पार्टी रखी। केक काटने के बाद उसने नव्या से कहा मैं आज फिर तुम्हारी मांग में अपने हाथ से सिंदूर भरना चाहता हूं। मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं,तुमने कितनी हिम्मत से इस सिंदूर का फर्ज अदा किया। उसकी बातें सुनकर पूरा हॉल  तालियों से  गूँज उठा।

लेखिका : नीलम शर्मा

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