जितने मुँह उतनी बातें – राजश्री जैन . : Moral Stories in Hindi

    गरिमा बहुत सीधी थी , वह सब पर बहुत जल्दी विश्वास कर लेती थी . कुछ दिनों पहले  वह घर की समस्याओं के कारण  कुछ परेशान सी थी . उसने अपनी पड़ोसन  मधु से मन की सारी बातें बता दी जैसे की अपने बेटे बहू और पति की बातें .

शाम को जब गरिमा गार्डन में गयी तो उसे देख कर कुछ महिलाएं खुसुर -पुसुर कर रही थी . वह जब

उनके पास से गुजरी तो उसे कुछ शंका हुई की कोई तो बात है जो मुझे देखकर ये महिलाएं उसे अजीब सी दृष्टि से देख रही हैं …फिर आगे बढ़ गयी –थोड़ा आगे जा कर पीछे मुड़ कर देखा तो भी वे महिलाएं उसकी ओर देख कर बातें कर रही थी —-उसे थोड़ा शक इसलिए हुआ कि उसकी पड़ोसन मधु भी उनके साथ बैठी थी और उसकी आँखें बता रही थी कि वह ही कुछ बोल रही है उसके बारे में.

गरिमा का मन बेचैन हो उठा  , उसे बहुत बुरा लग रहा था कि कहीं मधु ने मेरी बातें– जो मैंने उसे कल बताई थी वो  सब सभी महिलाओं को बता तो नहीं दी …खैर भारी मन से वो घर चली गयी.

खाना बनाने में भी उसका मन नहीं लग रहा था —खिड़की से बार -बार बाहर झांक रही थी कि मधु को अकेले आते देख कर या उसके घर जा कर उससे साफ़ – साफ़ बात पूछेगी . वह चाहती थी कि उसके बहू , बेटे और पति के आने से पहले ही बात कर ले . आखिर गरिमा को मौका मिल गया , तुरंत ही वह मधु के घर गयी और उससे कहा कि आज गार्डन में बहुत सी महिलाएं थी और मुझे ऐसा लगा कि वे सब मेरे बारे में बातें कर रही हैं .

मैं जानना चाहती हूँ कि भावुक हो कर कल मैंने तुम्हे अपने परिवार के सदस्यों के बारे में बहुत कुछ बता दिया था ….कहीं तुमने उन्हें कुछ बता तो नहीं दिया ? मधु ने अनमनी सी होकर झूठ बोलना ही उचित समझा —नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है , लेकिन गरिमा को उसकी बात पर विश्वास नहीं हुआ उसने फिर पूछा कि मुझे सच बताओ ,

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अगर तुमने उस सबसे कुछ भी कह दिया है तो कल जाकर बात बदल देना  वार्ना मेरे और मेरे घर वालों कि इमेज ख़राब हो जाएगी मैंने तो ऐसे ही भावुक होकर तुम्हे कह दिया था.

मधु ने अपनी गलती स्वीकार कर ली और कहा कि तुम ठीक कह रही हो मेरे ही मुँह से थोड़ा कुछ निकल गया था कि क्योंकि मुझे तुमसे सहानुभूति हो रही थी , लेकिन अब अहसास हो रहा है कि उन्हें नहीं बताना चाहिए था , तुमने मुझे अपनी भावनाएं बताई लेकिन वो सब अलग तरह से सोच सकती है –तुमने सही  कहा –कल मैं बात बदल दूंगी कि मैं ठीक से सारी बात समझी नहीं थी …और छोटी -मोटी बातें तो सबके यहाँ होती रहती हैं.

गरिमा ने चैन कि सांस ली और कान पकड़े कि अब जल्दी से किसी से अपने मन की सारी बातें नहीं बताएगी, मैंने क्या सोच कर कहा था और क्या हो गया —मैंने सोचा था कोई  अच्छा हल बताएगी , हल तो नहीं निकला चर्चा का विषय बन बैठी और बेकार में अपने घर के सुराग भी मधु को दे दिए , वह समझेगी मैं ही किसी से  मिल- जुल  नहीं कर सकती , बहू की बुराई करती हूँ या पति के नुक्स बता रही हूँ 

दूसरो को घर कि बातें बताने से सबकी नज़र में गिरने के अलावा कुछ नहीं मिलता है ….चलो कोई बात नहीं , आज तो समझ गयी—अब भी ज्यादा कुछ नहीं बिगड़ा है–देर आये दुरुस्त आये.

स्वरचित—राजश्री जैन .

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