“आजकल आप लंच में मेरी दी हुई सब्जी नहीं खाते हैं ना?” अनिता ने आखिर आज अपने पति सुनील से पूछ ही लिया
“नहीं ऐसी तो कोई बात नहीं है!”.
कुछ जरूरी फाइलें निपटाने में व्यस्त सुनील ने अनीता की बात को टालना चाहा
“आज सब्जी में गलती से नमक थोड़ा ज्यादा पड़ गया था लेकिन अभी तक आपने कुछ कहा नहीं! वरना पहले तो दफ्तर से ही फोन कर दिया करते थे कि,.आज सब्जी अच्छी नहीं बनी।”
“अरे भई!.फोन करके कह देने से सब्जी में नमक कम थोड़ी हो जाता है इसलिए कुछ नहीं कहा और क्या!” सुनील ने फाइल से नजरें हटाकर मुस्कुराकर अनीता की ओर देखा।
सुनील आज कुछ जरूरी फाइल अपने साथ घर ले आया था और उन्हें ही निपटाने में व्यस्त था। लेकिन अनीता को अपने पति सुनील की यह बात गले नहीं उतरी।
अनीता महसूस कर रही थी कि जब से एक लंबे अंतराल के बाद दफ्तर खुला था और सुनील ने दफ्तर जाना आरंभ किया था उसके व्यवहार में एक अलग तरह का बदलाव आ गया था।
अक्सर छोटी-छोटी बातों पर मीन-मेख निकालकर अनीता से नाराज हो जाने वाला सुनील आजकल बहुत शांत और गंभीर सा हो गया था।आजकल नाराजगी तो मानो उसे छू भी नहीं पा रही थी।
आज सुनील की मनपसंद गोभी की सब्जी में अनीता की गलती से नमक ज्यादा पड़ गया था लेकिन पूछने पर भी उसने अनीता को कुछ नहीं कहा।
सुनील का यह बदला हुआ व्यवहार अनीता को अच्छा लगा किंतु मन ही मन उसे थोड़ी जिज्ञासा और घबराहट भी हो रही थी। असल में आज कपड़े धोते वक्त सुनील की जेब से दवाइयों की एक पर्ची मिली थी।
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सुनील की तबीयत भी ठीक थी और ईश्वर की कृपा से अनीता के घर का कोई सदस्य बीमार भी नहीं था फिर उस दवाई की पर्ची का क्या मतलब है?.यह अनीता को समझ नहीं आ रहा था।
इधर सुनील का बदला हुआ व्यवहार और शांत मिजाज भी अनीता की उत्सुकता बढ़ाने के लिए काफी था। लेकिन इस विषय में अपने पति से पूछताछ करना अनीता को सही नहीं लगा।
“दफ्तर में काम का बोझ अधिक होने की वजह से सुनील के व्यवहार में कहीं ऐसा बदलाव तो नहीं आ गया है!.या फिर सुनील किसी बीमारी से तो नहीं जूझ रहे हैं जो वह मुझे बताना नहीं चाहते!”
यह सोच कर अनीता ने सुनील के दफ्तर के एक जान-पहचान के सहकर्मी भास्कर को फोन लगा दिया।भास्कर अनीता का मुंह बोला भाई जैसा था क्योंकि भास्कर अनीता के ही गांँव का रहने वाला था और वहां उस शहर में अकेले रह कर सुनील के साथ ही उसके दफ्तर में काम करता था।
“भैया मैं अनीता बोल रही हूंँ!.कैसे हैं आप?”
“अब पहले से बेहतर हूंँ बहन!”
अनीता को भास्कर की आवाज तनिक लड़खड़ाई सी लगी..
“आपकी तबीयत तो ठीक है ना भैया?”
“हाँ!.अब धीरे-धीरे ठीक हो रहा हूंँ बहन।”
“हुआ क्या है आपको?” अनीता हैरान हुई।
“सुनील जी ने तो आपको बताया ही होगा!.मैं बहुत बीमार हो गया था और अभी भी अस्पताल में भर्ती हूंँ; लेकिन सुनील जी हर रोज दफ्तर से वक्त निकाल कर मुझसे मेरा हाल-चाल लेने अस्पताल आ जाते हैं!.बहुत भले इंसान है सुनील जी।”
फोन पर भास्कर के बातें सुनकर अनीता हैरान थी। लेकिन अपनी थकी आवाज में ही सही लेकिन भास्कर उसे आगे बताने लगा..
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“मैं हफ्ते भर से दफ्तर नहीं गया हूँ,.मेरे लिए हर रोज भोजन और कभी-कभार दवाइयां भी लाकर दे देते हैं सुनील जी!.उनपर दफ्तर के काम का बोझ अधिक बढ़ गया होगा।”
अपनी खुद की तबीयत ठीक नहीं होने के बावजूद भास्कर सुनील के ऊपर बढ़े हुए काम का दबाव महसूस कर अफसोस जता रहा था।
“दफ्तर के काम की चिंता छोड़िए!.आप बस जल्दी से ठीक हो जाइए।”
अनीता ने भास्कर को निश्चित रहने की सलाह दी लेकिन भास्कर ने कृतज्ञता जताई..
“मैं आपका भी बहुत शुक्रगुजार हूँ बहन।”
“मैंने क्या किया है भैया?”
अनीता भास्कर के हालात से अब तक अनभिज्ञ थी लेकिन भास्कर के मुंह से अपनी तारीफ सुन उसकी हैरानी दुगनी हो गई।
“बहन!.आप हफ्ते भर से हर रोज सुनील जी के हाथों मेरे लिए घर का बना भोजन भेज देती हैं यह कम थोड़े ही है!”
भास्कर अपने गांँव की बहन समान अनीता के प्रति श्रद्धा भाव से ऋणी हुआ जा रहा था।
इधर हफ्ते भर से दोपहर का भोजन खुद ना खाकर एक बीमार सहकर्मी को खिलाकर संतुष्ट हो जाने वाले अपने पति सुनील के प्रति अनीता के दिल में इज्जत अचानक कई गुना बढ़ गई थी।
पुष्पा कुमारी ‘पुष्प’
पुणे (महाराष्ट्र)
VM