जिम्मेदारीयां कभी ख़त्म नहीं होंगी – कृति गुप्ता : Moral Stories in Hindi

आज नेहा का पहला दिन था ऑफिस में, कदम रखते ही मैनेजर नें कहा- त्यौहार का दिन हैं कम से कम थोड़ा जल्दी आ सकती थी। 

नेहा बोलना चाह रही थी कि सर आज मेरा पहला दिन हैं तो सादी पहनने में लेट हो गया, मगर कह ना सकी, मैनेजर ने उसे सीधा मंगलसूत्र के सेक्शन में भेज दिया।

वहां उसने एक साथ इतने सारे मंगलसूत्र वो भी गोल्ड और डायमंड के नहीं देखे थे, वह वहीँ पर ठिठक गई, उसे घबराहट होने लगी, मगर तब तक पूनम ने उसका हाथ धीरे से पकड़ा तो उसे राहत महसूस हुई।

फिर उसने सारा दिन गहनों को पहन कर और पहना कर कस्टमर्स को दिखाया, सांस लेने कि भी फुर्सत नहीं थी, पहले ही दिन वो काफ़ी कुछ सिख गई थी। चार बज गये थे उसे तेज भूख लगने लगी तब पूनम दी ने कहा जाओ नेहा जाकर खा लो, यहाँ ये सब चलता रहेगा।

उसने सर हिलाकर हामी भरी और चली गई कैंटीन कि ओर।

उसने अपना लंच निकाला और खाने लगी, अचानक उसने देखा सब इसे ही देख रहे थे और खुसर फुसर कर रहे थे, उसने अपनी साड़ी देखी, सैंडल, हेयर सब देख डाले पर सब ठीक था, तो फिर सब उसे ऐसे क्यों देख रहे थे।

उसने फिर अपने खाने पर ध्यान दिया ओर खाने लगी फिर सोचने लगी आज कढ़ी तो बड़ी अच्छी बनी है ये माँ भी ना क्या खाना बनाती है।

खाते खाते वह सोचने लगी कि वो आज साड़ी पहन कर ऑफिस आई है साड़ी, जिसके नाम से वो कितना दूर भागती थी, कि कैसे कोई 5 मीटर का कपड़ा पहन सकता है!

मगर आज देखो वो खुद ने पहना हुआ है, जीवन का खेल भी निराला है।

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वो खुश थी कि  उसकी जो सैलरी है उससे लोन कि किश्त और घर का थोड़ा बहुत ख़र्च तो मैनेज हो ही जाएगा पर बाकि सब, घर में छोटा भाई जो पढ़ रहा था, छोटी बहन जो कॉलेज जाती है कॉलेज तो नेहा को भी जाना था मगर घर का खर्च इसलिए नौकरी कर ली, उसकी अटेंडेंस उसकी छुटकी मैनेज कर देती है आखिर वो इतनी स्मार्ट जो है।

माँ है जो अस्थमा कि परेशानी से जूझ रही है मगर हिम्मत नहीं हारी है और पापा घर पर दुकान चलाते हैं पर ज्यादातर वो घाटे में ही जाती है। इसलिए नेहा को नौकरी करनी पड़ी आखिर बड़े बच्चे का कर्तव्य होता है सबका ध्यान रखना फिर चाहे वो लड़की हो या लड़का क्या फर्क पड़ता है। इसलिए उसने एक ज्वेलरी शॉप गीतांजलि में जॉब ज्वाइन कर ली। उसे बड़ी मुश्किल से ये जॉब मिली थी।

इसलिए उसे साड़ी पहन कर ऑफिस जाना होता था।

उसे जॉब करते हुए 3 महीने हो चुके थे अब उसे 3 मिनट में साड़ी पहनना आता था, सबसे पहले और सलीके से भी, कही से कुछ भी नहीं दिखता था वो ऐसे साड़ी लपेटती थी। पर फिर भी रूप कि बला थी वो एक एक अंग तराशा हुआ ऑंखें बिलकुल मृग कि तरह जैसे कुछ कह रही हों, लम्बाई 5’4, बाल एकदम गहरे काले घूँघराले, होंठ जिस पर गहरे रंग ज्यादा जचते थे, उसे सब माधुरी बुलाते थे। उसकी छुटकी उसे कहती थी कि दीदी जिससे तेरी शादी होगी ना वो बहुत खुशनसीब होगा।

ऐसे ही एक दिन उसके मैनेजर नीरज ने कहा नेहा क्या तुम किसी को पसंद करती हो उसने कहा नहीं सर 

नीरज ने 1 वीक के बाद फिर उससे पूछा कि तुम किसी को पसंद करती हो? नेहा ने कहा- नहीं सर 

तो नीरज नें कहा- क्या तुम शादी करोगी मुझसे, नेहा अवाक रह गई और कुछ उत्तर नहीं दिया और घर के लिए ऑटो में बैठ गई।

उसने नीरज के प्रश्न के बारे में सोचना शुरू किया। नीरज रंग में पूरा काला,बाल उड़े हुए, पर्सनिलिटी ऐसी कि मैनेजर नहीं बिकुल peon लगता था, बस आंखे अजय देवगन कि तरह थी। मेरी बहन तो उसे पसंद नहीं करती, कास्ट भी अलग है, क्या माँ तैयार होंगी?

उसने घर आकर माँ को यह बात बताई, माँ नें कहा हम गरीब हैं कहाँ ऐसा लड़का ढूंढ़ पाएंगे सामने से रिस्ता आया है कर लो शादी।

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नीरज उसे जरा भी पसंद नहीं था मगर क्यूंकि उसने दहेज़ ना लेने कि बात कि थी तो अपनी जिम्मेदारी समझते हुए उसने हाँ कर दी। रिश्ता तय हो गया सगाई हो गई, पर लड़के के पापा नें कहा बाराती का स्वागत कैसे करेंगे आपलोग मेरा बहुत बड़ा परिवार है और उनको देंगे क्या वो बताइए?

माँ नें हाथ जोड़ कर कहा कि आप तो हमारी स्थिति जानते है जमाई जी नें सब जानते हुए शादी के लिए कहा था, तो उनके पापा बोले वो सब मैं कुछ नहीं जनता बाराती का स्वागत तो अच्छे से होना चाहिए और एक लिस्ट पकड़ा दी। माँ नें कहिब मिन्नतें कि हाथ जोड़ा पर वो अपनी बात से ना डिगे, और नीरज नें भी अपने पिता के सामने एक शब्द कुछ ना कहा।

रिश्ता टूट गया मगर नेहा को एक दिन भी रोने का टाइम नहीं मिला क्यूंकि उसने उसी दिन से काम कंटिन्यू किया। उसने सोचा बिजी रहूंगी और इतनी जिम्मेदारी भी तो है।

बस बदलाव ये हुआ कि उसने ज्वेलरी शॉप छोड़ कर एक इंस्टिट्यूट ज्वाइन कर लिया था।

वहां उसे करीब करीब 13887 मिल रहा था।

उसे हमेशा लगता था कि एक जिम्मेदारी ख़त्म होती दूसरी सर पर आ जाती है आखिर ये ख़त्म क्यों नहीं होती है।

25 कि उम्र हो चली थी इस बीच कई रिश्ते आये मगर सबका कुछ ना कुछ डिमांड होता था, अंत में एक लड़का जिसे उसके एक भैया ने मिलवाया था मतलब अपने भैया तो नहीं थे मगर नेहा को वो अपने भैया जैसे ही लगते थे, उनके पास होकर वो बिलकुल बच्ची जैसी महसूस करती थी। 

उनके कहने पर सुरेश से शादी के लिए हाँ कह दी। सुरेश नेहा को बाबत प्यार करते था पर काव अहसास होने नहीं दिया क्यूंकि मेहा कि एक बीमारी थी कि जब भी इसे लगता कोई लड़का ज्यादा क्लोज होना चाह रहा है वो इससे दूर हो जाती थी पर सुरेश एक दोस्त कि तरह उसे सपोर्ट करता था।

बहुत सोचने के बाद नेहा हाँ कही थी, सुरेश कि माँ नहीं थी पापा थे जो गांव में रहते थे। एक भाई था वो भी पापा के साथ ही रहता था.।

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किसी तरह दोनों कि शादी हो गई, वैसे तो नेहा के बड़े अरमान थे ये पहनूंगी शादी में ऐसी ज्वेलरी मेकअप वगेरह वगेरह मगर उतने पैसे नहीं थे तो मंदिर में शादी कर ली सिंपल तरीके से।

शादी के एक महीने बाद ही वो दोनों पटना शिफ्ट हो गये जॉब के साथ। मगर यहाँ भी वो कभी दुकान के लिए कभी माँ के इलाज के लिए कभी भाई बहन के लिए कुछ ना कुछ करती रहती भेजती रहती थी।

एक दिन अचानक छुटकी का कॉल आया कि माँ को अस्थमा अटैक आया है भर्ती कराए हैं।

वो और सुरेश जल्दी ही घर के लिए रवाना हुए।

घर आते आते माँ कि मृत्यु हो गई। अब फिर नेहा कि परीक्षा शुरू हो गई, अभी अभी उसका जीवन थोड़ा खुश हुआ था मगर फिर वही सब 

शादी का सिर्फ 6 महीने ही तो हुए थे वो समझ भी ना पाई थी सुरेश को ठीक से 

13विं के बाद सुरेश नें कहा नेहा तुम यहीं रुको बहन भाई का ध्यान रखो मैं जाता हूं तुम्हारी यहाँ जरुरत है, आखिर छुटकी कि भी शादी करनी है कहीं उसका कुछ इधर दिक्कत हुआ तो माँ भी नहीं है सँभालने को 

वो मन से तैयार ना थी थक गई थी जिम्मेदारियां निभाते निभाते पर क्या करती बहन से प्यार जो इतना करती थी, वो भी खूब प्यार लुटाती थी। शादी का एक वर्ष भी ना बीता और पति से दूर, माँ कहा करती थी पति जहाँ जैसे रखे वैसे ही रहना पर साथ रहना पर अब तो माँ ही नहीं थी

नेहा ने इधर ही एक नौकरी कर ली और जीवन को मुठ्ठी में करने कि भरपूर कोशिश में जुट गई। उधर सुरेश काम में इतना उलझ गया कि नेहा से बात करने का भी टाइम नहीं होता उसके पास 

ऐसा नहीं है कि वो किसी के चक्कर में था मगर शादी के बाद भी वो बैचलर जीवन जी रहा था जिसके कारण उसे कुछ याद ही नहीं रहता था।

एक दिन अच्छे लड़के परिवाए देख कर छुटकी कि शादी करा दी गई वो विदा हो गई ऐसे दो साल निकल गये थे, बीच बीच में सुरेश आता था पर एक या दो दिन के लिए। 

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उसने सुरेश से बात कि अब तो छुटकी चली गई अब साथ रहते हैं पर सुरेश ट्रांसफर नहीं मिल रहा था और नेहा का जॉब पटना में था नहीं। फिर एक वर्ष और निकल गये पर जिम्मेदारी ख़त्म नहीं होती ऐसा सोचते वो खूब रोती मगर क्या कर सकती थी।

एक बार उसने बिना कुछ सोचे समझे पटना चली गई सुरेश के पास क्यूंकि भाई भी अब टूशन पढ़ा कमाने लगा था और अपनी पढ़ाई मैनेज कर रहा था बहन भी खुश थी तो उसे भी खुश होने का हक़ था 

पर सुरेश नें बहुत गुस्सा किया क्यूंकि ऐसे अचानक वो तीन लोग के साथ रहता था अब पत्नी को कहाँ रखे 

आपा धापी में शाम तक रूम देखा शिफ्ट हुआ गुस्सा तो आ रहा था पर क्या करता पत्नी है छोड़ भी तो नहीं सकता था अब नेहा खुश थी सब अच्छा ही चल रहा था 3 महीने निकल गये कि अचानक पता चला कि उसके पापा का एक्सीडेंट हुआ है और उनका दाहिना पैर टूट गया है भाई तो पढता और पढ़ाता भी उस अकेले से तो ना संभालता कुछ वैसे भी लड़का में वो ममता कहाँ 

फिर उसे पापा के पास आना पड़ा सेवा के लिए सुरेश वहा से कुछ खर्चे भेजता और नेहा यही रहती 10 बाद उसे पता चला वो प्रेगनेंट है।

सुरेश को पता चली वो बहुत खुश हुआ मगर अब ना वो उसके पास जा सकती थी ना सुरेश ट्रांसफर लेके आ सकता था।

इसी तरह समय गुजरता गया अखिर वो दिन आ गया जब उसे भर्ती होना था, उसे एक प्यारी सी बिटिया हुई सुरेश बहुत खुश था क्यूंकि जसे बेटी ही चाहिए थी, उसकी छुटकी 2 महीने उसके पास रहकर फिर चली गई। उसके पापा अब कमजोर हो चले थे उन्हें हर्निया भी हो गया था और c सेक्शन होने के कारण नेहा का शरीर पूरा बदल गया था।

मगर उसने हिम्मत नहीं हारी और अपनी सारी जिम्मेदारी बखूबी निभाई।

सुरेश को उसने कहा तुम ट्रांसफर लेकर यहीं आ जाओ हम साथ ही रहेंगे, जिम्मेदारियां कभी ख़त्म नहीं होती हम भले ख़त्म हो जाते है तो जितने दिन जीना है साथ रहते है।

@कृति

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