” हाय राम….. ये पैरों में ना जाने इतना दर्द क्यों हो रहा है?? अब तो दवा भी असर नहीं करती…. ।,, अपने पैरों को मसलते हुए दमयन्ती जी दर्द से कराह रही थी… । छोटी बहू बबिता को वैसे तो अपनी सास की कराह सुन रही थी लेकिन वो रसोई में बर्तनों को थोड़ा तेज तेज बजाकर उस आवाज को अनसुना कर रही थी….. कि कहीं खुद सास के कमरे में चली गई तो पैर दबाने के लिए पूछना ना पड़ जाए…..
रसोई का काम निपटाकर अपने कमरे में जा रही थी तो सास से कमरे पर थोड़े कान लगा लिए…… दमयन्ती जी शायद फोन पर बात कर रही थी… ” बड़ी बहू, अब तेरी माँ की तबियत कैसी है???? कब आ रही है तूं वापस? तेरी आदत हो गई है मुझे….. तेरे बिना यहाँ अच्छा नहीं लगता…. ।,,
सास की बातें सुनकर बाहर खड़ी बबिता के तन बदन में आग लग गई … ” हूंह… इस परिवार का कितना भी कर लो गुण तो सब जेठानी जी के ही गाएंगे….. पता नहीं क्या काला जादू कर रखा है जेठानी जी ने सबपर। ,,
कमरे में जाकर भी गुस्से से मुंह फूला हुआ था उसका… मोबाइल चलाते हुए उसके पति आलोक ने तिरछी निगाह डालते हुए पूछा, ” क्या हुआ?? इतने गुस्से में क्यों हो.?? ,,
” मुझसे क्या पूछ रहे हो!! जैसे आपको पता हीं नहीं.. इस घर में मेरी कोई कदर हीं नहीं है… जिसे देखो नंदिनी बहू, नंदिनी भाभी….. तुम भी तो आज हलवा खाते हुए कह रहे थे कि नंदिनी भाभी हलवा बहुत अच्छा बनाती है…. ।,,
” ओह!! तो ये बात है!! मैडम को चिढ़ हो रही है..। ,,
” चुप रहिये आप…. मैं भला उनसे क्यों चिढूं?? उनमें ऐसा है क्या?? ना ज्यादा पढ़ी लिखी हैं और ना हीं कोई रूप सुंदरी है…. मुझे तो समझ नहीं आता आप सबको उनमें क्या दिखाई देता है…. आपकी माँ का तो जेठानी जी के बिना मन ही नहीं लगता…… जेठ जी भी आपसे कम हीं कमाते हैं फिर भी पता नहीं क्यों घर में जेठानी जी का ही राज चलता है । ,,
पति की चिढ़ने वाली बात सुनकर अब बबिता और ज्यादा चिढ़ गई थी…… आलोक भी बात ना बढ़ाते हुए चुप चाप सो गया…… पता नहीं क्यों बबिता को अपनी जेठानी नंदिनी से शुरू से ही चिढ होती थी……जबकि नंदिनी ने कभी अपने बड़े होने का कोई फायदा नहीं उठाया था…. नंदिनी बबिता से भी छोटी बहन की तरह व्यवहार करती थी…. लेकिन सबकी जुबान पर जब नंदिनी का नाम होता था तो ये बात उससे बर्दाश्त नहीं होती थी ।
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सुबह का सूरज चढ़ गया था लेकिन बबिता ने अभी तक बिस्तर नहीं छोड़ा था। ससुर जी चाय के लिए बार बार रसोई की ओर देख रहे थे। दमयंती जी ने जैसे तैसे चाय बनाई और पूजा करने बैठ गईं । घंटी की आवाज सुनकर आलोक ने बबिता को झकझोरते हुए उठाया
,” बबिता कितनी देर हो गई है और तुम अभी तक सो रही हो। मां पूजा भी करने लगी हैं ।,,
” हां तो क्या हो गया!! आपकी मां जल्दी उठ जाती हैं तो मैं क्यों अपनी नींद खराब करूं ?? इस घर में चैन से सो भी नहीं सकते ।,, झल्लाते हुए बबिता बोली और पैर पटकते हुए बाथरूम की ओर चल पड़ी ।
नाश्ते में उसने सिर्फ पोहा बनाकर रख दिया । दमयंती जी ने देखा तो प्यार से समझाते हुए बोली, ” छोटी बहू, तुम्हारे ससुर जी को सुबह फुलके खाने की आदत है। नंदिनी बहू तो रोज फुल्के और सब्जी बनाती है । ,,
इतना सुनते ही बबिता बोल पड़ी, ” मां जी , जेठानी जी को बस वही बनाना आता होगा !! समय के साथ इंसान को अपनी आदत भी बदल लेनी चाहिए । जेठानी जी चाहे कुछ भी बना दे सब चुपचाप खा लेते हैं…. सारा भेदभाव बस मुझसे ही होता है इस घर में। ,,
दमयंती जी ने आगे कुछ नहीं कहा लेकिन उन्हें बबिता का ऐसा कहना अच्छा नहीं लगा । उन्होंने खुद ही अपने पति के लिए दो फुलके बना दिए ।
अगले दिन बबिता की ननद आ गई। आते हीं पूछने लगी , ” अरे मां , नंदिनी भाभी अभी तक आई नहीं क्या ? उनसे मिलने का बहुत मन हो रहा था। ,,
” नहीं बेटा, वो बड़ी बहू की मां की तबियत खराब है । कह रही थी जैसे ही थोड़ी ठीक होंगी मैं आ जाऊंगी । वैसे भी उसे दो साल हो गए थे मायके गए । थोड़े दिन रह आएगी । ,,
” हां मां , वैसे भी बड़ी भाभी तो कहीं जाती भी नहीं हैं। इसबार बबिता भाभी आ गई है तो लगता है वो निश्चिंत होकर मायके गई हैं । ,, मुस्कुराते हुए ननद मंगला बोली।
दो दिन बाद मंगला वापस जा रही थी तो दमयंती जी बबिता से बोलीं, ” छोटी बहू, मंगला ससुराल वापस जा रही है। कोई साड़ी भी अभी मेरे पास लाई हुई नहीं है । नंदिनी होती तो अपने आप सब देख लेती । यदि तुम्हारे पास कोई अच्छी साड़ी हो तो अपनी ननद के लिए निकाल दो । ,,
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” मां जी, मेरे पास तो मेरी मां की दि हुई साड़ी हैं। वो साड़ी तो मां ने मेरे लिए दी हैं आप दीदी को पैसे दे दीजिए । ,, बबिता मुंह बनाते हुए बोली।
” रहने दो भाभी मुझे कुछ नहीं चाहिए । मैं तो बस मिलने आई थी। ,, कहकर मंगला ने बात को टालना चाहा लेकिन दमयंती जी को बबिता से ये उम्मीद नहीं थी। वो आज बोल पड़ी, ” छोटी बहू, तुम हमेशा कहती हो ना कि मैं तुममें और नंदिनी में फर्क करती हूं , हर वक्त नंदिनी बहू नंदिनी बहू क्यों करती रहती हूं ….
क्योंकि वो हमारे दिल में बसी है। छोटी बहू घर में तो सब को जगह मिल जाती है लेकिन दिलों में जगह बनाने के लिए प्यार और समर्पण करना पड़ता है। तुम सिर्फ चार दिन में हीं हमें बना कर खिलाने में परेशान हो गई । जबकी बड़ी बहू इतने सालों से सारा घर संभाल रही है ।
पता है कुछ साल पहले जब हमने मंगला की शादी तय की थी तो हमारे पास उसकी शादी में लगाने को कुछ भी नहीं था। कारोबार में बड़ा घाटा लग गया था। तुम्हारे ससुर जी बहुत चिंता करते थे कि कैसे बेटी का ब्याह करेंगे ?? उस वक्त नंदिनी बहू ने अपने सारे गहने लाकर तुम्हारे ससुर जी के हाथों में रख दिए थे और कसम देते हुए कहा कि पिता जी आप चिंता मत करिए ।
इनसे जितना बन पड़े आप मंगला की शादी में लगा दीजिए। छोटी बहू गहने तो थोड़े बहुत दोबारा बन गए लेकिन आज तक उसने कभी अपने गहनों का जिक्र भी नहीं किया ।
आलोक को जब अपना अलग कारोबार जमाना था तो उसके पास पैसे कम पड़ रहे थे। उस समय भी नंदिनी बहू ने चुपचाप अपने कंगन निकाल कर आलोक को पकड़ा दिए। ये बात भी जब आलोक का काम चल पड़ा तो आलोक ने हीं हमें बताई थी।
मैं ये नहीं कह रही की तुम उससे अपनी बराबरी करो .. लेकिन बहू परिवार में सब एक दूसरे के पूरक होते हैं एक दूसरे का सम्मान करते हैं तभी एक परिवार खुशहाल रहता है ….. नहीं तो परिवार को बिखरते देर नहीं लगती। ,,
ये सब सुनकर बबिता की नजरें झुक गई। उसके पास बोलने को शब्द नहीं थे। अगले दिन नंदिनी मायके से वापस आ चुकी थी । उसे देखकर सबके चेहरे पर खुशी छा गई थी। आज बबिता के चेहरे पर भी अपनी जेठानी के लिए प्रतिस्पर्धा नहीं सम्मान नजर आ रहा था ।
लेखिका : सविता गोयल