जिम्मेदार कौन – श्वेता अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

रिद्धि आज स्कूल से आई तो बहुत उदास और गुमसुम सी थी। न तो रोज की तरह आते ही मम्मी भूख लगी है का शोर मचाया और न ही मम्मी के गले मे बाहें डालकर झूमी। चुपचाप स्कूल ड्रेस चेंज कर खाना खाने लगी। न कोई उठापटक, न कोई शोर-शराबा। रोज जिसकी बातें खत्म होने का नाम न लेती थी आज उसे इतना शांत देख महिमा को बड़ा अजीब लग रहा था।

“क्या बात है बेटी, आज मूड क्यों ऑफ है तुम्हारा?”

“नहीं मम्मा सब ठीक है। मैं पढ़ने जा रही हूँ।”

“इस वक्त, लेकिन अभी तो तुम पेंटिंग्स बनाती हो ना।” महिमा ने आश्चर्य से कहा।

“हाँ, लेकिन आज बहुत ज्यादा होमवर्क मिला है, कल टेस्ट भी है, तो आज नो पेंटिंग। ओनली पढ़ाई।” कहते हुए वह अपने रूम में चली गई।

“आज क्या हो गया है इस लड़की को। पेंटिंग करने से मना कर रही है जबकि रोज तो स्कूल से आते ही इसके हाथ कैनवास और कलर्स की ओर ही भागते हैं। शायद ज्यादा ही होमवर्क मिला है।” ऐसा सोचकर वे भी अपने काम में बिजी हो गई। शाम को रिद्धि दोस्तों के साथ बैडमिंटन भी खेलने नहीं गयी। पढ़ाई ही करती रही।

अब तो ये रोज का ही हो गया, रिद्धि सारे दिन बस किताबों में ही घुसी रहती। न पेंटिंग करती, न खेलती, न गप्पें मारती। उसका ऐसा व्यवहार अब महिमा को परेशान करने लगा था। उसकी बेटी जिसकी जान बैडमिंटन रैकेट और कलर्स में बसती थी उसने उनकी ओर देखना भी बंद कर दिया था। वह रिद्धि में आये इस बदलाव का कारण जानने की बहुत कोशिश कर रही थी, पर उसे कुछ भी पता नहीं चल पा रहा था।

मिहिर भी घर पर नहीं थे। बिज़नेस टूर पर गये थे नहीं तो वे तुरंत रिद्धि की परेशानी समझ जाते आखिर बाप-बेटी की बॉन्डिंग है ही इतनी स्ट्रांग। अब तो महिमा को बस मिहिर का इंतजार था।

कुछ दिनों बाद, मिहिर टूर से लौटे। घर में घुसते ही वे रिद्धि को खोजने लगते हैं “कहाँ है मेरी लिटिल चैम्प, खेलने गई है, क्या?”

“नहीं, अपने रूम में पढ़ रही है। इधर कुछ दिनों से उसने खेलना, पेंटिंग करना सब बंद कर दिया है। सारा दिन बस रूम में घुसी रहती है। मैं बुलाती हूँ, आप खुद ही पूछ लो। मुझे तो कुछ बताती नहीं।” महिमा ने चिंतित होते हुए कहा।

“नहीं, तुम रहने दो मैं देखता हूँ।” कहते हुए मिहिर रिद्धि की पसंद के कलर्स लेकर उसके रूम में जाते हैं। वहाँ देखा तो रिद्धि मैथ्स की बुक खोले शून्य में ताक रही थी।

“किन ख्यालों में खोई हो चैम्प?”

“पापा आप कब आये?” कहते हुए रिद्धि मिहिर के गले में झूल गयी।

मिहिर ने कलर्स का बॉक्स उसके हाथों में रखकर पूछा “यही चाहिए था ना तुम्हें,”। रिद्धि ने धीरे से हाँ कहा।

“ग्रेट! तो अब इससे पापा के लिए एक बढ़िया सी पेंटिंग बना दो।” इतना सुनते ही रिद्धि की आँखों में आँसू आ गए। मिहिर बिना कुछ बोले उसके सिर पर हाथ फेरते रहे।

पापा के प्यार की तपिश मिलते ही रिद्धि फूट-फूट कर रो पड़ी। “पापा अब मैं गुड गर्ल बनूँगी, कभी भी आपकी इंसल्ट नहीं होने दूँगी, खूब मन लगाकर पढ़ाई करूँगी। ये पेंटिंग,बैडमिंटन जैसे बेकार कामों में समय नहीं बरबाद करूँगी। ।”

“अच्छा, ठीक है जो तुम्हारा मन करें वो करना, पर पहले यह रोना बंद करो।” मिहिर ने रिद्धि को शांत कराते हुए कहा।

रिद्धि के शांत होने पर मिहिर ने पूछा “किसने कहा कि तुम गुड गर्ल नहीं हो या तुम्हारे कारण हमारी इंसल्ट होती है। क्या मम्मा या मैंने कभी कुछ कहा है?”

“नहीं, आपने कभी कुछ कहा नहीं पर मुझे सब पता है, जिन बच्चों के अच्छे मार्क्स नहीं आते उनके पेरेंट्स की बहुत इंसल्ट होती है दूसरों के सामने।”

“पर बेटा आप तो हमेशा फर्स्ट डिवीजन में पास होती हो, साथ ही इतनी अच्छी पेंटिंग करती हो, इतना अच्छा बैडमिंटन खेलती हो। ‘वी आर प्राउड ऑफ यू’।” मिहिर ने समझाते हुए कहा।

“पापा ये तो आप मेरा मन रखने के लिए कह रहे हो, फर्स्ट डिवीजन अच्छे मार्क्स थोड़े ना होते हैं, अच्छे मार्क्स तो 95% या उससे ज्यादा होते हैं जो हमें अगले साल 10th के एग्जाम में लाने हैं। प्रिंसिपल सर ने हमें सब बता दिया है, जिन बच्चों के बोर्ड में इससे कम मार्क्स आते हैं, उनके पेरेंट्स की बहुत इंसल्ट होती है और वे बच्चे लाइफ में भी फेल हो जाते हैं, कुछ नही कर पाते। आपको पता है जब टीचर्स डे पर में सर के लिए पेंटिंग बना कर ले गयी तो उन्होंने मेरी पेंटिंग फाड़ दी और मुझे डांटा भी कि आगे से मैं ये सब बकवास छोड़ कर पढ़ाई करूँ तकि अच्छे मार्क्स ला सकूँ। इसीलिए तो सर ने हमारी सारी एक्स्ट्रा क्लासेज डांस, म्यूजिक, ड्राइंग, गेम्स सब बंद करा दी है ताकि हम पढ़ाई पर ध्यान दे और मुझ जैसे कमजोर स्टूडेंट्स पर तो वो खास ध्यान दे रहे हैं।” रिद्धि ने उदास होते हुए कहा।

“किसी ने कह दिया और तुमने खुद को कमजोर मान लिया? ये मान लिया कि तुम्हारे कारण हमारी इंसल्ट होती है। पेंटिंग छोड़ दी, खेलना छोड़ दिया क्यों? मार्क्स लाइफ में सबकुछ नहीं हैं बेटी। हमें पढ़ाई सीखने के लिए करनी चाहिए ना कि मार्क्स के लिए। पढ़ने के साथ-साथ खेलना और एक्सट्रा एक्टिविटी भी जरूरी है। तुम पढ़ाई के अलावा अन्य फील्ड में भी अपना कैरियर बना सकती हो। इसलिए पढ़ने के साथ हर वह काम करो जिससे तुम्हें खुशी मिलती है, तुम्हारी खुशी में ही हमारी खुशी है। चलो अब बैडमिंटन का एक मैच हो जाये! बहुत दिनों से तुम्हें हराया नहीं।” मिहिर ने उसे छेड़ते हुए कहा।

“जीतूंगी तो मैं ही” रैकेट हवा में उछालते हुए रिद्धि ने कहा।”जल्दी कीजिए पापा फिर आपके लिए पेंटिंग भी तो बनानी है।”

फिर से रिद्धि को हँसते-खेलते देख महिमा बहुत खुश थी। वहीं मिहिर सोच रहा था कि उसकी बच्ची का कॉन्फिडेंस डाउन करके उसे निराशा, उदासी और हीनभावना के गर्त में धकेलने के लिए उसे किसका ‘गला पकड़ना’ चाहिए? कौन है इसका जिम्मेदार स्कूल या यह शिक्षा व्यवस्था जिसमें बच्चे की प्रतिभा का पैमाना सिर्फ मार्क्स हैं। फिर उसने खुद से वादा किया कि चाहे जो हो जाए वह अपनी बच्ची को मार्क्स की इस अंधी दौड़ में कभी नहीं धकेलेगा और कल स्कूल जाकर स्कूल प्रशासन से उसकी बच्ची के साथ किए गए इस व्यवहार का जवाब माॅंगेगा क्योंकि उसके लिए मार्क्स नहीं उसकी बच्ची की हॅंसी ज्यादा जरूरी है।

आपको क्या लगता है मिहिर की सोच सही है या गलत?

 

धन्यवाद

श्वेता अग्रवाल

मुहावरा-#गला पकड़ना

शीर्षक-जिम्मेदार कौन

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