निर्णय तो लेना पड़ेगा आत्मसम्मान खोकर कब तक जियोगी? – नीलम शर्मा : Moral Stories in Hindi

सपना ओ सपना मालती जी  गुस्से में रसोई से बाहर निकली। ये इतना सारा खाना क्यों बनाया है और ये दो-दो सब्जी बनाने की क्या जरूरत थी। जब देखो बस बेकार में खर्च करने में लगी रहती है कमाई तो मेरे बेटे की है,   कमाकर खर्च करना पड़ता तो पता भी चलता। 

अब सपना को यह समझ नहीं आ रहा था कि उसकी गलती क्या थी ना  कमाना या फिर घर वालों के लिए कुछ खास करने की कोशिश करना। वह  रूआँसि होकर बोली लेकिन  माँ जी  मैंने तो आज आपका जन्मदिन है इसलिए  ये सब बनाया था। हां हां ठीक है चल जा अपना और काम निपटा ले। 

 माँ जी तो बोल कर चुप हो गई लेकिन उसके मन में गांठ सी पड़ गई। समय धीरे-धीरे बीत रहा था। वह अब एक बच्चे की मां भी बन गई थी। सारा दिन उसे घर का सारा काम अकेले करने में बड़ी मुश्किल आ रही थी। उसने अपने पति राजीव से एक मेड लगाने के लिए कहा। मेड का नाम सुनते ही राजीव का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया। वह बोला सारा दिन घर में ही तो रहती हो कौन सा कहीं बाहर जाकर नौकरी करती हो, तुमसे एक घर का काम नहीं किया जाता। 

बेचारी सपना को रोना आ गया जब उसका पति ही उसे समझने के लिए तैयार नहीं था तो किसी और से तो उम्मीद ही क्या की जा सकती थी। उसे लगने लगा था कि केवल  नौकरी करने वाली वाली बहू को ही सम्मान मिलता है। लेकिन वह अभी घर से बाहर जाकर भी कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि उसका बच्चा भी छोटा था।

अब उसका बेटा स्कूल जाने लगा था। उसे अब भी यदा – कदा ना कमाने और फिजूल खर्च होने का ताना मिल ही जाता था। एक दिन ऐसी ही बातों को लेकर वह  बहुत परेशान थी, तभी उसकी सहेली रचना का फोन आया। वह उसकी बहुत अच्छी सहेली थी और वे दोनों ही आपस में अपने मन की बातें शेयर कर लिया करती थी। अब तक तो कभी उसने रचना से इस बारे में बात नहीं की थी लेकिन आज अपनी सहेली के आगे सपना के सब्र का बांध टूट गया और उसने उसे सारी बातें बता दी।

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रचना ने उसे हिम्मत बधाई और कहा#निर्णय तो लेना पड़ेगा इस तरह कब तक आत्मसम्मान खोकर जियोगी। तुम इतनी पढ़ी-लिखी और होशियार हो कि तुम्हें कहीं भी नौकरी मिल जाएगी। लेकिन मैं अपने बेटे को छोड़कर कहीं बाहर नहीं जा सकती। अरे बहन तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है , तुम ऐसी जगह नौकरी ढूंढो जहां घर से काम कर सकती हो। 

सपना को भी बात सही लगी। उसने अपने बीटेक के डॉक्यूमेंट  निकाले जिन्हें वह घर की जिम्मेदारियों के आगे एक तरफ अलमारी में सरका चुकी थी। होशियार तो वह थी ही जल्दी ही उसे एक कंपनी में वर्क फ्रॉम होम मिल गया। 

आज जब उसकी पहली सैलरी आई तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू  छलछला आए। उसने अपनी पहली सैलरी अपनी सास के हाथ पर रख दी। उसकी सास बोली कि तू मुझे यह क्यों दे रही है इसे तू अपने पास रख। नहीं  माँ जी अगर आप मुझे एहसास ना  कराती तो मैं तो अपनी काबिलियत को  दबा ही चुकी थी। कहीं ना कहीं आपके उकसाने  ने ही मेरा आत्मसम्मान  लौटाया है। 

चल तो बेटा आज इसी खुशी में सास बहू पार्टी करते हैं। बिल्कुल सही बात माँ जी और दोनों खिलखिला कर हंस दी

नीलम शर्मा

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