” अरे लड़कियों तुम्हारा तैयार होना कब खत्म होगा ?? घुड़चढ़ी का वक्त होने को आ गया और तुम लोगों का सजना- संवरना ही पूरा नहीं होता …… केतकी बहू तुझे तो रमन को काजल लगानी है ….. जल्दी से आ जा तैयार होकर …. ,,। आज कांता जी के छोटे बेटे की शादी थी। कांता जी अपने घर की बहू- बेटियों को आवाज लगा रही थीं जो खुद भी आज दुल्हन से कम नजर नहीं आना चाहती थीं।
तभी उनकी छोटी ननद सारिका बदहवास सी उनके पास आकर बोली, “अरे भाभी, पहले जाकर अपनी इशा को तो संभाल लो…. बेचारी का रो- रोकर बुरा हाल हो गया है ।,,
” क्यों जीजी, क्या हुआ इशा को ? ,, कांता जी ने घबराते हुए पूछा।
” भाभी, बेचारी का चंद्र हार पता नहीं किसने चुरा लिया … अभी नई नई शादी हुई है बेचारी की … ससुराल वालों से क्या कहेगी ? और ससुराल वाले भी पता नहीं क्या सोचेंगे हमारे बारे में । हाय हाय…. हमारी तो नाक ही कट जाएगी समधियाने में । भाई की शादी में आई है और इतना बड़ा नुक़सान हो गया । ,,
ननद की बातें सुनकर कांता जी हैरान थीं लेकिन उन्हें भी बेटी का सामान खो जाने की चिंता होने लगी …. वो तेज कदमों से चलती हुई उस कमरे की तरफ बढ़ीं जहां उनकी दोनों बेटियां और तीनों ननदें तैयार हो रही थीं । पीछे पीछे उनकी छोटी ननद भी आ रही थी।
सामने उनकी छोटी बेटी इशा आंखें सुजाए बैठी थी । मां को देखते ही फिर से फट पड़ी ,” मां, देखो ना मेरा चंद्र हार नहीं मिल रहा …. मैं तो भाई की शादी में पहनने के लिए बड़ी मुश्किल से सासु मां की तिजोरी से निकलवा कर लाई थी । सासु मां तो बार बार यहां लाने से मना भी कर रही थी …. अब क्या कहुंगी सबसे वहां जाकर ….. ,,
कांता जी बेटी की बात सुनकर हैरान थीं लेकिन फिर भी इशा को ढाढस बंधाते हुए बोलीं ” अरे बेटा, ध्यान से देख यहीं कहीं होंगे …. घर से चीज भला कहां जाएगी!! तेरी अटैची अच्छे से देख ले एक बार फिर से …. ,,
” मां मैंने सब कुछ देख लिया….. कहीं नहीं है। ,, सुबकते हुए इशा बोली।
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” हां भाभी, बेचारी एक घंटे से ढूंढ रही है ….. पता नहीं किसकी नियत डोल गई । मुझे तो पता है यदि मायके में कोई गहना खो जाए तो ससुराल में कितने उलाहने सुनने पड़ते हैं …. तुम्हें तो याद ही होगा जब एक बार मेरी अंगूठी यहां खो गई थी !! ,, कांता जी की मंझली ननद मुंह बनाते हुए बोली ।
ननद की बात सुनकर कांता जी का मन कसैला हो गया। वो कुछ बोलतीं इससे पहले ही बड़ी ननद बोल पड़ी, ” अरे अब बातें ही करती रहोगी या हमारी लाडो का हार भी ढूंढना है?? इशा बिटिया तूं जाकर केतकी बहू से पूछ …. हम सब तो इस घर की बेटियां हैं …. एक वो ही है जो पराए घर की है ।,,
बड़ी ननद की बात सुनकर कांता जी से रहा नहीं गया ,
” नहीं जीजी …. , मेरी बहू से कुछ पूछने की जरूरत नहीं है …. वो बहू है इस घर की कोई चोर नहीं … घर में कुछ भी नुकसान हो या कोई सामान गुम हो जाए तो शक की सुई हमेशा बहू पर आकर क्यों अटक जाती है??? ननदों को अगर भाभी पर इतना ही शक रहता है तो अपना कीमती सामान लेकर मायके आने की कोई जरूरत नहीं है। ,,
” लेकिन भाभी, हार तो गुम हुआ है ना ….. तुम्हें क्या लगता है हमने अपनी भतीजी का हार चुराया है ? ,, बड़ी ननद बिफरते हुए बोली। ,
” जीजी, मैंने नहीं कहा कि हार आपने या किसी और ने चुराया है …. और हां मंझली जीजी, आप जो अभी बता रही थीं ना कि आपकी अंगूठी यहां खो गई थी …. तो आपको ये भी याद होगा कि उसके खोने का सीधा इल्जाम आपने और मांजी ने मुझपर लगाया था । लेकिन बाद में वो अंगूठी आपको बाथरूम में मिली थी जो आपने ही नहाते वक्त निकाल कर रख दी थी । और हां बड़ी जीजी आपको भी याद होगा जब आप अपनी बनारसी साड़ी धोबी को इस्त्री करने के लिए देकर भूल गई थीं और उस साड़ी को ढूंढने के लिए आपने मेरी अलमारी और संदूक सबकुछ खंगाल लिया था। मेरे बार बार मना करने पर भी कि मुझे कुछ नहीं पता, मैंने नहीं लिया …… आप लोगों को मुझपर विश्वास नहीं हुआ।
ऐसी ही पता नहीं कितनी बातें इस घर में हुई थी जिसका सारा इल्जाम मुझपे लगा दिया जाता था और झूठा साबित होने पर भी किसी को कोई शर्म या पछतावा नहीं होता था क्योंकि मैं तो बहू थी ना …. जो पराए घर से आई थी … किसी को शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि मेरे दिल पर क्या बीतती थी। जिस घर को मैं अपना समझकर सब कुछ छोड़कर यहां आई थी उस घर में ही खुद को सबसे पराया समझने लगी थी जिसे बिना किसी गलती के हर बार चोर, लापरवाह और ना जाने क्या क्या साबित कर दिया जाता था ….. । ,,
आज कांता जी के मन में जमा हुआ वर्षों का लावा फट पड़ा था जिसकी गर्मी से बचने के लिए उनकी तीनों ननदों को कोई जगह नजर नहीं आ रही थी ।
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थोड़ी देर सांस लेने के बाद कांता जी फिर बोलीं ,” खैर मेरे साथ जो हुआ सो हुआ लेकिन मैं अपनी बहू को कभी कटघरे में खड़ा होने नहीं दूंगी । ये घर मेरी बहुओं का भी है और अपने ही घर में मैं उन्हें चोर नहीं कह सकती । मैं अपनी बहू को अच्छे से जानती हूं कि वो कैसी है … अरे, उससे तो अपने खुद के गहने भी नहीं संभलते…. वो भी उसने मेरी अलमारी में ही रखे हुए हैं । वो क्या किसी और के गहनों पर नजर डालेगी ….. और हां जीजी, जब बहू से हम यही उम्मीद करते हैं कि वो इस घर को और हमें अपना समझे तो हम बहू को पराया क्यों समझें ? ,,
सारी ननदें और कांता जी की दोनों बेटियां चुपचाप कांता जी का मुंह ताक रही थीं वहीं दरवाजे के बाहर खड़ी उनकी बहू केतकी भरी आंखों से अपनी सास पर गर्व कर रही थी जिन्होंने उसके आत्मसम्मान पर कोई आंच नहीं आने दी ।
ये सब बातें चल ही रही थीं कि तभी इशा का पति विनोद , कमरे में आया और इशा को एक पैकेट पकड़ाते हुए बोला, ” इशा ये लो तुम्हारा चंद्र हार , जब मां ने तुम्हें टोक दिया कि इतना भारी हार शादी वाले घर में ले जाकर क्या करोगी तो तुमने गुस्से में आकर ये हार वहीं टेबल पर पटक दिया था और बाद में रखना भूल गई थी … ,,
दामाद की बात सुनकर सब एक दूसरे का मुंह देखने लगीं । इशा झेंपते हुए बोली, ” ओह!! मैं तो भूल ही गई थी …. मां जी के टोकने पर मुझे अच्छा नहीं लगा था तो मैंने ये हार निकालकर वहीं रख दिया था । ,,
कांता जी का सर आज सबके सामने गर्व से ऊंचा हो गया था। उनका विश्वास आज जीत गया था और उनकी ननदों को अपने किए का शायद कुछ तो अंदाजा आज हो गया था।
उन्होंने चुप चाप खिसकने में ही अपनी भलाई समझी। उन्हें समझ में आ गया था कि अपने समय में उन्हें जो करना था वो कर लिया लेकिन भाभी पर इल्ज़ाम लगाने की ये परंपरा अब आगे इस घर में नहीं चलने वाली ।
इतनी देर होते देख कांता जी के पति भी वहां आ गए और ताना देते हुए बोले ,। ” तुम औरतों को तैयार होने में पता नहीं इतना वक्त क्यों लगता है ?? अरे शादी तो दुल्हा दुल्हन की होने वाली है …. तुम लोगों को कौन देखेगा !! अब चलो जल्दी नहीं तो तुम्हारे बिना ही हम बारात लेकर निकल जाएंगे । ,,
सब फटाफट अपना- अपना सामान समेटकर शादी में शरीक होने के लिए चल दीं …..
लेखिका : सविता गोयल