कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के अंगद सुरैया से बात कर रहा था कि, तभी उसके दरवाजे पर दस्तक पाकर वह दरवाजा खोलता है… जहां विभूति गुस्से में खड़ा होता है…
अब आगे…
अंगद: अरे विभूति..! आओ अंदर आओ..
विभूति: तो मास्टर जी..! इसलिए सुरैया की इतनी पूछताछ कर रहे थे…?
अंगद: मतलब..?
विभूति: मतलब, यहां गांव में अकेले रहते हो.. जवान हो… मन बहलाने के कोई तो चाहिए… जिसके साथ झूठ का रिश्ता बना कर अपना काम निकाल सको… ताकि जब यहां से जाओ तो कोई बंधन ना हो और सुरैया से बेहतर कौन हो सकता है भला..? पागल है, उसके साथ कुछ भी करो, कहां वह किसी को कुछ बता पाएगी…? इसलिए यह शादी का ढोंग रचाया..
अंगद: अरे वाह..! आज तो तुम्हारी जुबान से फूल बरस रहे हैं…? तो फिर यह बरसात आज तक आनंद और उसके जीजा के सामने क्यों नहीं हुई…? कल भी सुरैया के साथ वह दरिंदा दुष्कर्म कर गया… न जाने कितनी बार ही किया होगा..? और तुम जानते हुए भी कुछ ना कर पाए… और जब मैं सुरैया के भले के लिए कुछ सोच रहा हूं… तो यहां मुझसे लड़ने चले आए…? वाह विभूति..!
विभूति: देखिए मास्टर जी..! आप यहां मास्टर बन कर आए हैं… वही बन कर रहिए… दामाद बनने की कोशिश मत करो, क्योंकि वह बनने हम आपको दूंगा नहीं…
अंगद: वह तो मैं बन चुका और अब सुरैया मेरी पत्नी है… उसकी जिम्मेदारी अब मेरी… मैं उसे इंसाफ दिलाऊंगा.. तुम लोगों जो करना सब कर चुके… अब मुझे जो करना है… मैं करूंगा… तुम्हें मेरा साथ देना है तो दो… वरना चले जाओ…
विभूति: पानी में रहकर, मगर से बैर नहीं करना चाहिए मास्टर जी..! आपके इस फैसले की वजह से बहुत पछताओगे… हम तो अभी जा रहा हूं… पर याद रखना बहुत जल्दी ही आपको हमरी जरूरत पड़ेगी…
फिर विभूति वहां से चला जाता है और अंगद खड़ा खड़ा, यही सोचता है… कि सुरैया से मेरी शादी को लेकर यहां क्यों इतना चिढ़ गया हैं..? आखिर बात क्या है..? मुझे पता करना पड़ेगा… मुझे इस पर नज़र रखनी पड़ेगी… फिर अंगद विभूति पर नज़र रखने लगा…
एक रोज़ विभूति अपने दुकान पर किसी को बिठा कर छुपते छुपाते कहीं जाने लगता है… अंगद भी उसके पीछे हो लिया… कुछ दूर जाने के बाद, एक सुनसान रास्ते पर उसे एक आदमी ने कुछ पैसे दिए… जिसे लेकर विभूति अपनी जेब में भर लेता है और वापस अपनी दुकान की और लौटने लगता है…
अंगद इस मंजर को देख, कुछ समझ नहीं पाया… आखिर कौन था वह आदमी..? जिसने विभूति को पैसे दिए..? और क्यों दिए वह पैसे विभूति को…? अंगद यही सोचता सोचता अपने घर पहुंचा…
घर पहुंचते ही सुरैया उसे एक गिलास पानी लाकर देती है…
अंगद: अरे वाह..! तुम्हें कैसे पता चला कि मुझे प्यास लगी है..?
सुरैया: काका ने बताया…
अंगद हैरान होकर: काका ने..?
सुरैया पीछे की ओर इशारा करती है… अंगद पीछे जैसे ही मुड़ता है… विभूति को देखकर वह चौक जाता है…
अंगद: तुम यहां क्या कर रहे हो..? और सुरैया मैंने तुम्हें मना किया था कि, सिर्फ मेरे और अपनी दादी के अलावा दरवाजा किसी के लिए मत खोलना…
विभूति: अरे मास्टर जी..! उस पर क्यों गुस्सा हो रहे हो..? मैं उसका विभूति काका हूं… मुझ में उसको आप पर से भी ज्यादा भरोसा है… तो कैसे नहीं खोलती..?
अंगद: तुम तो गुस्से में चले गए थे ना..? फिर क्यों आए वापस..?
विभूति: उस दिन वह गुस्से में, मैं कुछ ज्यादा ही बोल गया था आपसे… इसलिए माफी मांगने चला आया… पर यहां आकर पता का चला कि आप तो घर पर ही नहीं है… तो सोचा थोड़ा इंतजार ही कर लेता हूं… वैसे आज तो स्कूल की छुट्टी है… फिर आप कहां गए थे..?
अंगद: मैं क्या तुम्हें बताकर कहीं जाऊंगा..?
विभूति: नहीं हमरा मतलब, अगर आप हमरा पीछा करने की जगह सीधे सीधे हमसे पूछ लेते, तो बेकार में इतनी मेहनत नहीं करनी पड़ती आपको…
अंगद हैरानी से विभूति की ओर देखने लगा.. फिर वह कहता है… पता नहीं पहले वाला विभूति असली था या फिर यह वाला…?
विभूति: आपने हमको पहचाना या नहीं, यह तो बता नहीं सकते… पर हम आपको अच्छे से पहचान गए…
अंगद: तुम मुझे गलत समझ रहे हो विभूति..! मैं तो बस..?
विभूति: बस.. बस… मैं यहां आपकी कोई सफाई सुने नहीं आया… मैं तो बस यहां यह कहने आया था, कि अब आपका और हमारा कोई संपर्क नहीं होगा… आप हमरे लिए अनजान हो… इसलिए हमसे और कुछ जानने की उम्मीद मत करना…
यह कहकर विभूति जाने लगता है और जाते-जाते वह अंगद से कहता है… सुरैया से शादी करना आप की सबसे बड़ी भूल साबित होगी… और यह बात आपको बहुत जल्दी पता चलने वाली है…
विभूति तो चला गया, पर वह किस बात की ओर इशारा कर गया..? अंगद कौन सी मुसीबत में फंसने वाला था..?
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दर्द की दास्तान ( भाग-10 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi