कहानी के पिछले भाग के अंत में आपने पढ़ा, के सुरैया को उसकी दादी के पास छोड़ने गया अंगद… दादी से कुछ सवाल पूछता है, पर वह दादी की बात सुनकर, उन लोगों की मजबूरी जान जाता है…. और दादी उसे आगे और भी बहुत कुछ बताने वाली होती है…
अब आगे…
अंगद: दादी..! मैंने यहां तक तो सुना है कि, माखनलाल की हत्या हो गई… और उनका अंतिम संस्कार भी नहीं हुआ… पर उसकी वजह क्या थी…? कैसे हुई उनकी हत्या…? यह मुझे नहीं पता चला…
दादी: मास्टर साहब..! तोका इ सब कौन बताया..?
अंगद: उसने अपना नाम बताने से मना किया है दादी…! इसलिए माफ कीजिए, मैं नहीं बता सकता…
दादी: चलो जो भी बताए रहो, पर इक बात जान लियो मास्टर साहब… इहां इस कस्बे मां कोनू पर भी भरोसा मत करना… हमार बिटवा ने भरोसे की सजा अपनी जान गवा कर पाई…
अंगद: मतलब दादी..?
दादी: मतलब.. हमार माखन का लाश ओकर स्कूल के बाहर ही पड़ो मिलो… पूरा कस्बा देखे रहे… पर कोनू अपन जबान से एक शब्द ना बोला…. उ नेता और ओकर आदमी हमार आँखन का सामने से माखन का लाश ले गयो… हम चिल्ला चिल्ला कर रोत रहो… पर ओकर लाश उ लोगन ले गए रहो… बाद में यहां पुलिस भी आए रहो… उ नेता का घड़ी भी माखन के लाश के पास मिले रहो… पर पुलिस भी चुपचाप यहां से चल गए रहो, इ कहीं के कोनो चश्मदीद गवाह के बिना, उ लोग केहू के खूनी ना करार कर सके… इतने लोगन मां कोई भी उ नेता के खिलाफ गवाही देने का लिए राजी नाही रहो…
जबकि ई कस्बा का हर एक आदमी इ बात जानत रहे, के माखन के उ नेता ही मारे रहो… पर सब अपन जान बचावे के चलते, अपन जुबान पर ताला लगा देल…. और जो सुरैया सब कुछ अपन आंखों से देखे रहे, उ कछू बोलन के हालत मां अब नांही…
अंगद: आप चिंता मत कीजिए दादी..! मैं दिलवाऊंगा आपके बेटे और पोती को इंसाफ…
दादी: पर तुम कौन हो मास्टर साहब..? जो उन लोगन से लड़न का सोच रहो…? हऊ तो एक मामूली से मास्टर ही ना और क्यों हम लोगन का चक्कर मां अपन जान जोखिम में डाल रहो है…. हम तो आपन परिस्थिति से समझौता करना सीख गयो… पर एक बात की चिंता है कि, हमरी तो उम्र चली गई और कितने ही दिन जिबै… तब इ पगली का, का होई…? हमार रहते इ सुरक्षित नांही… हमारा ना रहे से तो भगवान ही इका मालिक है,. ऊपर से पेट से भी है…. हे भगवान..? हम ऐसन कौन पाप किए रहे..? जो एेसन सजा हमका दिए रहो..?
अंगद: दादी..! आप ठीक कह रही हैं… मैं हूं एक मामूली मास्टर ही…. पर मैं कायर नहीं हूं… मुझसे अन्याय बर्दाश्त नहीं होता और इसलिए मैंने इंसाफ की बात कही…
दादी: अगर आप रजामंद हो तो, मैं सुरैया से शादी करना चाहता हूं… इससे उन दरिंदों की नजरों से भी वह बची रहेगी और आपकी चिंता भी खत्म हो जाएगी…
दादी: का…? तुम कइबो इसे ब्याह..? तुम होश मां तो हो…? इ जान कर भी की इ पागल है… ऊपर से पेट से….तू शादी करन की बात कर रहो है..?
अंगद: हां… मैं पूरे होश में हूं और मेरा यह कदम सुरैया को इंसाफ दिलाने में मेरा पहला कदम होगा…
दादी रोते हुए: हम का तो विश्वास ही नाहीं हो रहो, कि तुम इंसान हो… काहे की जब इ कस्बा का कोनो हम लोगन का साथ नाहीं दिया… फिर तुम एक परदेसी, फरिश्ते की तरह हमार जिंदगी में आ गयो…
फिर दादी हाथ जोड़कर अंगद के आगे रोने लगी…
अंगद: दादी..! आप ऐसे मत कहिए… बस मुझे अपना आशीर्वाद दे दीजिए… इसके बाद दोनों मंदिर में शादी कर लेते हैं… दोनों की शादी की बात कस्बे में आग की तरह फैल जाती है… इधर सुरैया अंगद के साथ उसके क्वार्टर में आ जाती है…
अंगद: सुरैया..! अब से हम दोनों एक साथ यहीं रहेंगे…
सुरैया: क्यों… मैं तो दादी के पास ही रहूंगी… आप गंदे हो.. सजा देते हो…
अंगद: नहीं… मैं तुम्हें कभी भी सजा नहीं दूंगा… हम यहां पूरा दिन खेलेंगे… मस्ती करेंगे और ढेर सारी बातें भी करेंगे…
सुरैया: सच में..? आप मुझे सजा नहीं देंगे..?
अंगद: नहीं…
अंगद सुरैया से यही सब बातें कर रहा होता है, इतने में उसके दरवाजे पर दस्तक होती है… अंगद जाकर दरवाजा खोलता है…तो विभूति को वहां गुस्से में खड़ा पाता है… क्यों आया था विभूति इतने गुस्से में…?
अगला भाग
दर्द की दास्तान ( भाग-9 ) – रोनिता कुंडु : Moral Stories in Hindi