चार पैसे हाथ मे होते – रश्मि प्रकाश : Moral Stories in Hindi

“ सुमिता बहू तुने सोच समझ कर फ़ैसला लिया है ना…कहीं ऐसा ना हो बात इतनी बढ़ जाए कि…।” सुलोचना जी ने बहू से कहा

“आप जरा भी फ़िक्र ना करें अम्मा जी … जो आज ना किया तो फिर कभी नहीं कर पाऊँगी…. बहुत हिम्मत कर के ये कदम उठाया है बस अब आप माँ बन कर साथ दीजिएगा।” सुमिता जी ने कहा

“ बहू मैं भी एक औरत हूँ….माना मैंने भी बहुत कष्ट सहे हैं पर मैंने कभी ना चाही मेरी बहू भी मेरी जैसी ज़िन्दगी जिए… अब जा अपनी ख्वाहिशें पूरी कर ले।” सुलोचना जी के कहते सुमिता जी घर से बाहर निकल गई

अपने आसपास की कुछ औरतों की टोली के साथ वो एक हॉलनुमा कमरे की ओर बढ़ गई

“ आ गई आप सब … मुझे तो लग रहा था आप लोग नहीं आएगी ।“ वहाँ पर उपस्थित एक महिला गरिमा जी ने सभी महिलाओं को देख ख़ुश होते हुए कहा

 “ सही कहा मैडम आपने… मुश्किल तो ज़रूर था हमारे लिए पर हम सबने अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने का जब ठान लिया तो फिर अब किसी बात का डर नहीं ।” सुमिता जी के साथ आई एक महिला ने कहा

गरिमा जो एक पढ़ी लिखी महिला ….उन्हें समाज सेवा का बहुत शौक़ ..ख़ासकर महिलाओं के लिए कुछ ऐसा करना जिससे वो अपने पैरों पर भी खड़ी हो सके और उनमें आत्मविश्वास भी आए इसी क्रम में जब वो इस क़स्बे के पास कुछ दिन पहले रहने आई थी तो क़स्बे के हाट में सुमिता जी से मुलाक़ात हो गई… बातों बात में गरिमा जी ने पूछ लिया आप क्या कोई काम करती हैं?

बस सुमिता जी को ऐसा लगा किसी ने दुखती रग पर हाथ रख दिया हो… ,“कुछ नहीं करती मैडम पर सच कहूँ जी बहुत करता है कुछ काम करूँ अपना भी एक नाम हो… अपने नाम से पहचान हो…शहर में रहकर पली बढ़ी पर पिताजी की बीमारी में मेरा ब्याह जैसे तैसे क़स्बे में करवा दिया गया नहीं तो ख़्वाहिश थी अपना भी एक मुक़ाम बनाऊँ ।”

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“ काम करना चाहोगी?“ गरिमा जी ने पूछा

“ कैसा काम मैडम ?” सुमिता जी ने पूछा

“ मैं जहाँ भी जाती हूँ पति का सरकारी काम ऐसा की वो उसमें व्यस्त रहते और मुझे हर वक्त कुछ ना कुछ करते रहना पसंद है मैं अपने हाथों से चीजें बनाना पसंद करती हूँ……मेरा अपना एक ग्रुप है जो उन चीज़ों को ख़रीद लेता है…यहाँ पर और भी औरतें होगी और सबमें कोई ना कोई हुनर ज़रूर होगा बस हम उनके हुनर को ही लेकर कुछ काम करेंगे और फिर वो एक व्यवसाय के तौर पर चल पड़ेगा फिर आप सब अपने पैरों पर खड़ी हो सकती है ।” गरिमा जी ने कहा

 सुमिता जी को बात जँच गई वो जानती थी क़स्बे की बहुत सारी महिलाओं को ये शिकायत रहती थी कि पति की कमाई से घर चलाना मुश्किल है…. हम भी जरा बाहर जाकर कुछ काम कर पाते तो कितना अच्छा होता।

बस सुमिता जी ने गरिमा जी को कह दिया ,“ मैडम मैं सब महिलाओं से बात कर कल तीन बजे आपको मिलकर बताती हूँ.. आप से कहाँ मिलना होगा ये बता दीजिए?”

गरिमा जी ने ही ये जगह बताई थी जो उनके घर के पास ही बना हुआ था ।

सुमिता जी ने घर आकर सास से बात करते हुए कहा,“ अम्मा जी आज एक महिला मिली थी वो हमें स्वरोज़गार योजना के तहत आत्मनिर्भर बनाने के हुनर सिखाएगी … मेरी एक यही तो ख़्वाहिश रही है आजतक चार पैसे अपने भी हिस्से के होते जिसपर गर्व होता… बस आपका साथ और आशीर्वाद चाहिए बस आप अपने बेटे को समझाने का काम कर लीजिएगा जो औरतों को घर से बाहर निकलने देना अपनी शान के खिलाफ समझता है…अब तो जाकर मौका मिला है और मुझे ये करना है ।”

सुलोचना जी जानती थी बहू सबके भले के लिए ही सोच रही है…. दो बच्चे स्कूल जाते हैं आगे पढ़ने के लिए पैसों की ज़रूरत पड़ेगी…उनकी हारी बीमारी में भी जब तब पैसे उठ जाते है ऐसे में अगर बहू हाथ बँटाने का सोच रही है तो ग़लत नहीं है बस बेटा थोड़ा कड़क मिज़ाज का है जो सुमिता जी को घर की चारदीवारी में ही हज़ारों काम गिनवा बाहर जाने से मना करता रहता है ।

 सुमिता जी ये मौक़ा खोना नहीं चाहती थी इसलिए वो भी उस ख़्वाहिश को पूरा करने का मन बना चुकी थी जो वो देखती आ रही थी ।

अहली सुबह जब सबके पति काम पर चले गए वो उन महिलाओं से मिली जो आर्थिक रूप से कमजोर थी और घर के हालात सुधरने के लिए काम करना चाहती थी… कुछ ने मजबूरी वश मना कर दिया कुछ ने हिम्मत कर कदम उठाया और वो सब गरिमा जी के पास पहुँच गई ।

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गरिमा जी ने पहले सबसे सबकी रूचि पूछी फिर उन्हें अपने विचार बताएँ… जो सभी महिलाओं को पसंद आया और सबने अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने के लिए गरिमा जी का पूरा सहयोग किया।

घरेलू उत्पादों की माँग वैसे भी बहुत होती हैं और अच्छी गुणवत्ता हो तो दूर तलक पहचान बन जाती है ।

अब छोटे से क़स्बे की महिलाएँ काम ख़त्म कर जल्दी से अपनी ख़्वाहिश पूरी करने एक दूसरे का हाथ पकड़ निकलने लगी … चार पैसे कमाने लगी तो पतियों ने भी ज़्यादा कुछ कहना उचित ना समझा… क्योंकि जब तक वो महिलाएँ घर के भीतर थी ना दुनियादारी की समझ रख रही थी ना अपने हक की बात… अब उन्हें भी पता चल रहा था वो भी किसी से कम नहीं है ।

सुमिता जी ने अपनी ख्वाहिशों को एक उड़ान दे दिया जो उनकी शुरू से रही थी कि वो भी कुछ करना चाहती है ।

दोस्तों कई बार हमारी ख़्वाहिश ब्याह के बाद घर की चारदीवारी में ही सिमट कर रह जाती हैं अगर कभी भी मौका मिले तो अपनी ख्वाहिशों को पूरा करने का प्रयास करने के लिए थोड़ा साहस तो रखना पड़ता है जो यहाँ सुमिता जी ने दिखाया ।

धन्यवाद

रश्मि प्रकाश

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