निम्मी , यार हद कर दी तुमने भी , कल पूरा हफ़्ता हो जाएगा जब लड़के वालों का जवाब आ गया था कि आगे का कार्यक्रम बनाएँ । आख़िर….अब क्या समस्या है? मैं सच्ची कह रही हूँ कि ऐसा घर और वर कभी नहीं मिलेगा । वे तो मम्मी जी की रिश्तेदारी की शर्म करके तुम्हारे जवाब का इंतज़ार कर रहे हैं वरना कौन यूँ इंतज़ार करता है । वैसे भी लडके वालों को देखने तभी बुलाया जाता है जब लड़की वालों की तरफ़ से हर चीज़ ओके हो जाती है ।
…..अरेरे , सुन तो …. तुम्हारी हर बात सही है बस आज शाम तक पक्का बता दूँगी ।
ठीक है । वैसे आज तो मैं एक शादी में जा रही हूँ पर कल सुबह फ़ोन कर लेना ।
अपनी सहेली बीना का फ़ोन रखते ही नमिता धम से सोफ़े पर जा बैठी —-
तान्या….तान्या, यहाँ तो आ ज़रा….
क्या हुआ मम्मा , इतनी तेज आवाज़ लगाई, मैं तो डर ही गई ।
तेरी बीना मौसी का फ़ोन …..
मम्मा, आप प्लीज़ मना कर दीजिए ना , मैंने आपको बता दिया है कि मैं इतने बड़े परिवार में शादी करने के लिए तैयार नहीं हूँ । बडे पिछडे लोग हैं, पहली बार मिलने के लिए ही दो गाड़ी भर के आ गए । मैंने पहले ही दिन मना कर दिया था पर ना-ना करते-करते आपने उन लोगों को बुला लिया, मैं खुद ही मना कर देती उसी दिन पर , मेरे होंठों पर आपने टेप लगा दी …. अब आप क्यों उनका और मेरा समय ख़राब कर रही है, मैं कॉल कर दूँ क्या बीना मौसी को ?
नहीं… मैं खुद कर दूँगी । पर ऐसा अच्छा रिश्ता मिलेगा नहीं दुबारा ।
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अपने आप तो बड़े मज़े से अकेली रही आप , ना सास थी और ना देवरानी-जेठानी, एक बेचारी मेरी सीधी सी बुआ थी । मुझे पूरे टब्बर के बीच भेजने पर क्यों तुली हो ? मम्मा , मुझे घबराहट होने लगी थी उस दिन भी ….आपने सुना था वो शायद लड़के की बुआ थी , कैसे कह रही थी, “हमारे घर की बहुएँ ठीक चार बजे उठकर रसोई में पहुँच जाती हैं , घर में बेशक सूट-सलवार पहनें पर बाहर आने-जाने में तो साड़ियाँ ही पहनती हैं । “
चल जा अंदर, कुछ मुँह से निकल गया तो चार दिन मुँह बनाए घूमेगी । बताओ…. आदमियों को देखकर इसे घबराहट होती है।
तान्या तो चुपचाप चली गई पर नमिता सोचती रही कि इतनी जल्दी तो हार नहीं मानूँगी…..पर कौन सा रास्ता निकालूँ ?
ये तो कोई बात नहीं हुई कि परिवार बड़ा है, संयुक्त है इसलिए शादी नहीं करेगी….. इस नादान लड़की को कैसे समझाऊँ कि मुझे अकेली होने के क्या- क्या नुक़सान हुए….. वैसे तो संयोग होता है पर मना करने का ये कारण हरगिज़ सही नहीं है ।
तभी उन्हें अपनी बड़ी बहन का ख्याल आया ——
एक बार दीदी को फ़ोन करती हूँ…..ओह मेरे ख़याल में यह बात पहले क्यों नहीं आई…. बीना इतना ज़ोर दे रही है तो कुछ तो बात है, वरना उसे क्या पड़ी है रिश्ता करवाने की….
हाँ दीदी! नमस्कार…. दरअसल बात यह है कि तान्या के लिए बीना ने एक रिश्ता बताया है , बिल्कुल वैसा जैसा हम चाहते हैं… हम ही नहीं, तान्या को भी हर चीज़ पसंद है, केवल संयुक्त परिवार की सुनकर उसने मना कर दिया….. आप एक बार बात कीजिये ना ….. शायद आपकी बात समझ आए । कल सुबह तक बीना ने जवाब देने को कहा है ।प्लीज़ रेखा की ननद वाली घटना ज़रूर बताना ।
इतना कहकर नमिता ने फ़ोन रख दिया और अपने रसोई के काम में लग गई । दोपहर के खाने पर नमिता ने गौर किया कि तान्या कुछ चुप- चुप सी है, पर उन्होंने कुछ नहीं कहा । उसके बाद वे अपने कमरे में आकर लेट गई पर आँखों में नींद कैसे आती , वे तो बेताबी से इंतज़ार कर रही थी कि तान्या आए और कोई बात छेड़े । करने को तो वे दीदी से फ़ोन करके पूछ सकती थीं
पर अब तो केवल , तान्या की प्रतिक्रिया का इंतज़ार था। शाम की चाय के समय भी वे तान्या के बोलने का इंतज़ार करती रह गई । पति दो दिन के लिए शहर से बाहर गए थे । बेटा हॉस्टल में था । केवल घर में दोनों माँ- बेटी थी ।
दिन ढलते ही नमिता ने तान्या से कहा —-
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मेरे सिर में बहुत तेज दर्द है । मैं केवल दूध पीऊँगी तो अपने लिए कुछ बना लो । असल में उनकी आशा निराशा में बदल चुकी थी कि पूरा दिन बीत गया और तान्या ने बड़ी मौसी के फ़ोन का ज़िक्र तक नहीं किया, इसका अर्थ था कि दीदी से बात मनवाने वाला तरीक़ा फेल हो चुका है ।
नमिता अपने कमरे में लेटी- लेटी सोच रही थी कि शायद ईश्वर की यही मर्ज़ी है । सुबह वो बीना को मना कर देंगी ।
इतने में उनका कमरा खुला और तान्या की आवाज़ आई——
मम्मा, अब सिरदर्द कैसा है? लीजिए दूध …..
रख दे और हाँ सारी लाइट्स बंद करके जाना अपने कमरे में, मेरी तो हिम्मत नहीं उठने की ……
मम्मा, क्या थोड़ी देर आपके पास बैठ जाऊँ ….बाम लगा दूँ क्या?
कुछ काम है तो बोलो ।थोड़ा सा बाम मल दो माथे पर ।
मम्मा! बड़ी मौसी का फ़ोन आया था, शायद आपने बीना मौसी के बताए रिश्ते……
हाँ, जिस दिन लड़के वाले आए थे, उसी दिन दीदी से बात हुई थी । पर मैंने कह दिया था कि अभी पक्का कुछ नहीं, तान्या की हाँ के बाद ही फ़ैसला होगा । क्या बात , कुछ कह रही थी क्या ?
नहीं- नहीं…. उन्होंने तो वैसे ही फ़ोन किया था । शायद आपको फ़ोन मिला रही थी और आपका फ़ोन व्यस्त आ रहा होगा…. इसलिए मुझे मिलाया । …. पूछ रही थी कि लड़का कैसा लगा , कौन- कौन आए थे वग़ैरहा ….. फिर मैंने कह दिया कि हर चीज़ मुझे पसंद है सिवाय इसके कि संयुक्त परिवार है …. मैं इतने बड़े कुनबे और रोकटोक में नहीं रह सकती । रेखा …. मौसी की ननद हैं ना , जो अलीगढ़ में रहती हैं ?
हाँ- हाँ…. क्या हुआ उन्हें ?
नहीं, उन्हें कुछ नहीं हुआ । उन्होंने तो रेखा आँटी की ननद का ऐसा क़िस्सा मुझे सुनाया कि …… आपको पता है क्या उनके साथ हुई दुर्घटना?
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हाँ, थोड़ा बहुत ही पता है कि बेचारी की शादी ऐसे परिवार में हो गई जहाँ उसकी कोई कद्र नहीं की ….. थकहार के मायके वालों ने ससुराल वालों पर दबाव बनाया , वो अलग रहने लगी तब जान छूटी , कई साल की बात हो गई… अब तो पता नहीं मुझे । कभी बात नहीं हुई उनके बारे में …… पर दीदी तुझे क्यों बता रही थी उनके बारे में ?
अरे मम्मा….. वो मैंने कह दिया था ना कि मुझे संयुक्त परिवार पसंद नहीं…. तो कहने लगी कि बेटा , फ़ैसला करने से पहले एक घटना सुन ले ।
तान्या को मुद्दे की बात करते देखकर नमिता का सिरदर्द छूमंतर हो गया , बैठते हुए बोली—-
अच्छा…. बता तो ज़रा , क्या हुआ उनके साथ ?
मौसी ने बताया कि——
रेखा की ननद कविता की शादी एक बड़े ही अच्छे परिवार में हुई थी और उन दिनों ज़्यादातर संयुक्त परिवार ही होते थे । शुरू-शुरू में तो कविता को घर की ज़िम्मेदारी देने में थोड़ी छूट दी गई ताकि वह घर के तौर तरीक़े देखें और समझे पर जब विवाह के तीन महीने बाद भी उसने कोई भागीदारी नहीं ली तो घर की दूसरी बहुओं ने आपत्ति जताई । अब दादी सास ने घर के तौर तरीक़ों के अनुसार चलने के लिए ज़ोर दिया
तो रोज़ की लड़ाई……. बस यहीं से बात बिगड़ गई क्योंकि कविता बहू होने का कोई कर्तव्य नहीं निभाती थी और उसकी देखादेखी दूसरी बहुओं ने भी मुँह खोलना शुरू कर दिया था । बात इतनी बढ़ गई कि वह मायके जाकर बैठ गई । हालाँकि रेखा के ससुराल वाले बहुत अच्छे थे पर वे बेटी को समझा ही तो सकते थे ,
ज़बरदस्ती कैसे मनवाते और कविता को भी कब तक घर में बिठाते , उन दिनों तलाक़ का नाम लेना भी शर्म की बात होती थी…. ख़ैर कविता के पति केशव को परिवार वालों ने समझाया और उसकी दूसरे क़स्बे में दुकान खुलवा दी ।
दूसरी जगह पहुँच कर कविता की तो मौज हो गई । अब ना कोई कहने वाला था ना सुनने वाला । ससुराल वालों से उसने सारे संबंध ख़त्म कर दिए थे । माँ- बाबा ने बहुत समझाया कि अब तो दूर रहती हो , रिश्ते ख़राब करने की क्या ज़रूरत है पर वह तो पता नहीं किस गुमान में थी । यहाँ तक कि परिवार के किसी ब्याह- शादी में भी कभी नहीं गई ।
दिन बीते और उसने एक बेटे को जन्म दिया । ससुराल का हर व्यक्ति अस्पताल में बधाई देने आया पर उसने किसी से ढंग से बात तक नहीं की , सब सोचते ही रह गए कि कविता बच्चे को लेकर घर आएगी और वे बच्चे का जन्मोत्सव मनाएँगे।
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जब साल भर का होने के बाद भी बच्चे में कोई विकास तो दूर , उसका सिर तक नहीं सँभला तो , डॉक्टरी जाँच में पता चला कि वह ऑटिज़म नामक बीमारी से ग्रसित है। पति- पत्नी के बीच भी कलह- क्लेश बढ़ गया क्योंकि कविता चौबीस घंटे बच्चे की देखरेख में लगी रहती….. बच्चा ना उठता , ना बोलता , ना कुछ समझता ….. सब कुछ बिस्तर पर । पति की आमदनी इतनी नहीं थी कि कोई नौकरानी रख लेती । और रख भी लेती तो क्या परिवार जैसी देखभाल नौकरानी कर पाती ?
कविता कभी अपनी माँ की मिन्नत करती , कभी बहन की और कभी भाभी की …. कि कुछ दिनों के लिए आ जाएँ पर अपना घर-बार छोड़कर कोई कैसे आए , उल्टा वे कविता को ही कुछ दिन अपने पास रहने के लिए बुलाने की बात करते पर बच्चे के नाम पर एक मांस के लोथड़े को लेकर जाना इतना आसान नहीं होता ।
केशव कई बार कहता कि घर चल पड़ते हैं, परिवार में रहकर पता भी नहीं चलेगा और आराम रहेगा । पर कविता की नाक नीची हो जाती ….. अब उम्र में उसका बेटा पाँच- छह साल का हो गया, वजन भी बढ़ता जा रहा था, माँ- बहन दूसरा बच्चा करने की सलाह देने लगी क्योंकि उसका होना ना होना बराबर था , पर कविता को कोई रास्ता नहीं दिख रहा था ।
एक दिन पति को दुकान का सामान लेने शहर जाना पड़ा और कविता को पीछे से तेज बुख़ार हो गया क्योंकि रात- दिन काम में लगी होने के कारण उसके शरीर को आराम नहीं मिलता था । ऐसे में बेटे को कौन देखता …… उसका रो- रोकर बुरा हाल हो गया, बिस्तर गंदा होने के कारण घर बदबू से भर गया….. एक दिन की बात हो तो पड़ोसी सहायता कर दें पर हमेशा के लिये भला कौन मदद करता , कविता ने उठने की कोशिश की पर उसे चक्कर आ रहे थे ।
आख़िर उसने अपनी चाची सास को फ़ोन मिलाया क्योंकि परिवार के हर सदस्य का नंबर उसने डिलीट कर दिया था । आधा घंटे के भीतर ही सास , देवर-देवरानी आ पहुँचे । घर और कविता की हालत देखकर सास का कलेजा मुँह को आ गया । सास और देवरानी ने बच्चे और कविता को सँभाला …शाम तक केशव भी लौट आया । दो दिन बाद जब कविता की तबीयत में सुधार हो गया तो वह अपनी सास से बोली—-
माँ, न जाने कितने सालों बाद सोई हूँ….. मैं तो जीना ही भूल गई । जिस परिवार की मेरी नज़रों में कोई क़ीमत नहीं थी आज समझ आया कि भरा- पूरा परिवार में रहना बंधन नहीं बल्कि एक-दूसरे का सहारा होता है । अब मैं यहाँ नहीं रहूँगी….. लडूँगी- झगड़ूँगी पर आपके साथ ही रहूँगी । अंजलि , माँ से कहो मुझे माफ़ कर दें ….. मैंने आप सबके साथ बुरा किया शायद भगवान ने …….
चुप रह । अकेली रहकर और भी ज़्यादा बोलना सीख गई । केशव! चल बेटा अपने घर चल ….
नमिता बड़े ध्यान से तान्या की कही एक-एक बात सुन रही थी । उसे लगा कि तान्या कुछ भयभीत हैं मानो अगर उसने यह रिश्ता स्वीकार ना किया तो कुछ बुरा हो जाएगा । वह बेटी के हाथ को अपने हाथ में लेकर बोली ——
बेटा ! मौसी केवल यह समझाना चाहती है कि एकल और संयुक्त दोनों ही परिवारों के अलग-अलग फ़ायदे और नुक़सान हैं । परिवार को बनाने के लिए समर्पण, स्नेह और सम्मान की भावना अनिवार्य है । केवल बड़ा परिवार देखकर अच्छे लड़के को ठुकराना सरासर ग़लत है । चलो ….. रात हो गई, सो जाओ ।
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मम्मा, सुबह बीना मौसी को फ़ोन करके कह देना कि तान्या को यह बात समझ में आ गई कि छोटा या बड़ा तो मात्र शब्द होता है, परिवार के लिए हमारे मन में स्नेह, समर्पण और सम्मान की भावना होनी चाहिए ।
करुणा मलिक
# संयुक्त परिवार में रोकटोक अवश्य है पर एक सुरक्षा और परवाह है ।