पता नही यह सज्जू कितनी देर में आयेगा।प्यास के मारे गला और होंठ सूखे जा रहे हैं।भगवान अपने पास भी तो नही बुला रहा।
पलंग पर पड़े पड़े ओमप्रकाश जी,अपने नौकर सज्जू पर खीझ रहे थे,उसे बाजार भेजा था,आ जाना चाहिये था,पर काफी देर हो गयी थी,आया नही।उन्हें जोर से प्यास लगी थी,पर पानी देने वाला ही नही था।
असल मे 75 वर्षीय ओमप्रकाश जी के घुटने इतने जाम हो गये थे,उनसे अब चलना दूभर हो गया था।घर मे अकेले रह गये थे,पत्नी स्वर्ग सिधार गयी थी,एक मात्र बेटे अनुज ने प्रेम विवाह कर अलग घर बसा लिया था,वो दीगर बात थी कि बेटे को उन्होंने ही एक प्रकार से घर निकाला दिया था।ओमप्रकाश जी ने अपने समस्त कार्यो के लिये 24 घंटो के लिये सज्जू को रख लिया था,वही उनके सब कार्य करता और उनके साथ रहता।पर जब से घुटनों ने जवाब दिया है तबसे वे एक प्रकार से पूरी तरह से सज्जू पर निर्भर हो गये थे।डॉक्टर कह रहे थे घुटने बदलने पडेंगे, बदलवा तो ले पर उनका करेगा
कौन,नौकर तो नौकर ही होता है, अब भी कभी भी ब्लैकमेल करने लगता है, एक मुश्त चार हजार रुपये वेतन के बढ़वा लिये, क्या करते,बढ़ाने पड़े।ऐसे में उन्हें अनुज की याद आती,कितना प्यार और सम्मान देता था,पर अब उसे किस मुँह से बुलाया जाये, पता नही बुलाने से आयेगा भी या नही।आना भी चाहे तो उसकी पत्नी उसे आने भी देगी?
ऐसे ही विचार मन मे खाली पड़े पड़े ओमप्रकाश जी के मन मे घुमड़ते रहते।अपनी सहपाठिनी रही मीनाक्षी से अनुज प्यार करने लगा था,उसी से शादी करना चाहता था, पर पिता से अनुमति के पश्चात।उस दिन अनुज मीनाक्षी को लेकर पिता जी से अनुमति लेने और मीनाक्षी से उन्हें मिलवाने ही तो आया था,पर ओमप्रकाश जी ने इतना ओवर रियेक्ट कर दिया कि
मीनाक्षी के समक्ष अनुज मुँह भी नही उठा पा रहा था।ओमप्रकाश जी ने अनुज को साफ कह दिया था कि अपनी मर्जी से शादी कर रहे हो तो अपने घर मे रह कर कमा कर खाओ,तब दुनियादारी का पता चलेगा, अपने पिता के बल पर शादी करने की हिमाकत मत करना।इतने कडुए बोल बोलकर ओमप्रकाश जी
उन्हें छोड़ अंदर चले गये।अब चैलेंज अनुज को था।सो उसने जॉब ढूंढा और अलग एक छोटा सा फ्लैट लेकर मीनाक्षी से शादी करके रहने लगा।ओमप्रकाश जी ने अपने बेटे से सम्बंध पूरी तरह से विच्छेद कर लिये।
समय चक्र तो गतिमान था ही,उम्र बढ़ने के साथ ओमप्रकाश जी का स्वास्थ्य ढीला पड़ने लगा।फिरभी काम चल रहा था,पर घुटनो की समस्या के कारण जब चलना फिरना ही बंद हो गया तब उन्हें भारी समस्या का सामना करना पड़ा।उनके बिना व्यापार भी बंदी के कगार पर आ गया था,मुनाफा तो आ ही नही रहा था,जमा पूंजी कम होती जा रही थी।ऐसे में उन्हें अनुज की याद आती।
सूखे होठो पर जीभ फिराते हुए वे दूर रखी सुराही को देख रहे थे,पर पानी लेकर पीने की हिम्मत उनमें नही थी।ऐसे दिनों की कल्पना भी उन्होंने नही की थी,कहावत याद आ रही थी कि कोई पानी देने वाला भी नही मिलेगा।सचमुच आज कोई पानी देने वाला है ही नही।प्यास से बेदम होते ओमप्रकाश जी ने हिम्मत करके पैर जमीन पर रख चलने का प्रयास किया ताकि खुद पानी पी सके।चलने को हुए ,दो कदम किसी प्रकार आगे रखे
ही थे कि दर्द के कारण आगे न बढ़ पाये और लड़खड़ा कर गिरने को हुए कि किसी ने उन्हें अपनी बाहों में थाम लिया।ओमप्रकाश जी की आंखे बंद हो गयी थी,उन्हें पलंग पर लिटा दिया गया।ओमप्रकाश जी के होठो पर सुराही के पानी का गिलास लगा तो वे एक सांस में गिलास का पूरा पानी पी गये।सांस में सांस आने पर उन्होंने आंखे खोली तो सामने तो अनुज खड़ा था,उसी ने अपने बाबूजी को संभाला था,उसी ने पानी पिलाया था।ओमप्रकाश जी अनुज को देख कुछ भी न बोल पाये बस उसका हाथ पकड़ अपने माथे से लगाकर बिलख पड़े,बिल्कुल मासूम बच्चे की तरह।अनुज भी अपने बाबूजी को इस हालत में देख अपने आँसू रोक न सका।बाप
बेटे में बोल कोई नही रहा था,दोनो रो रहे थे,पर ये मौन सबकुछ बयान कर रहा था,दीवार टूट चुकी थी।दूर खड़ा सज्जू इस दृश्य को देख अपनी आंखों को वह भी पौंछ रहा था।सज्जू भगवान को धन्यवाद दे रहा था कि बाजार में अनुज भैया मिल गये और उनके बाबूजी के हाल पूछने पर वह रो पड़ा था।सज्जू कह रहा था भैय्या बाबूजी को आपकी बहुत जरूरत है, उन्हें मत छोड़िये।वे बिल्कुल तन्हा है,कहते कुछ नही पर मैं जानता हूं वे आपकी इंतजार में है।सुनकर अनुज बाबूजी के पास दौड़ लिया था।
ओमप्रकाश जी को जैसे होश आया बोले रे अनुज मैं ही अपराधी हूँ, अपने बाबूजी को माफ कर दे रे,मीनाक्षी को ले आ,बेटा।तेरी मां के कंगन उसे देने हैं।जा अभी क्यों खड़ा है, एकदम जा ले आ,मेरी बहू को।
अनुज एक बार फिर बाबूजी से लिपट गया और उसने कदम बढ़ा दिये दरवाजे की ओर।
बालेश्वर गुप्ता,नोयडा
मौलिक एवम अप्रकाशित।
*#गाढ़े दिन* साप्ताहिक मुहावरे पर आधारित लघुकथा: