सामर्थ्य हीन – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

देखते-देखते एक साल बीत गया,अमित को गए।अगली अमावस्या में ही उनकी बरसी की तिथि निश्चित हुई है।बेटे की नौकरी लगी नहीं अभी।कार्यालयों में दौड़-धूप कर रहा है वह।अनुकंपा नियुक्ति के काम जल्दी नहीं होते।

मालिनी ने पंडित जी से पूछकर सामान की लिस्ट बनवा ली।दोनों ननदों को भी फोन कर दिया था,महीने भर पहले ही।अपने मायके से भी भाई-भाभी,बहनों-बहनोइयों को जानकारी दे दी थी पहले ही उसने।रवि(बेटे)ने कहा भी “मम्मी,इतने ज्यादा लोगों को बुलाने से बहुत परेशानी हो जाएगी।रहने की उतनी अच्छी व्यवस्था घर पर हैं नहीं।हम होटलों में रूम लेने की परिस्थिति में भी नहीं‌ हैं।बस पापा का यह काम अच्छे से हो जाए किसी तरह।”

रवि कह तो सच ही रहा था,पर मालिनी का मन कहां मानने वाला था।जिस आदमी ने ज़िंदगी भर सभी जान-पहचान वालों,रिश्तेदारों‌ और घर के सदस्यों को मन से मन‌ भर खिलाया,उनकी बरसी ऐसे ही‌ खाली-खाली करने से कितनी तकलीफ़ होगी उन्हें।मालिनी ने बेटे से कहा”मैंने सब व्यवस्था कर‌ ली है।पड़ोस में तीसरे नंबर का घर अभी खाली पड़ा है।विमला भाभी चाबी देकर गईं हैं।बस तू सामान लेते आना।

फूल,माले ज्यादा लगेंगे।ग्यारह ब्राह्मण आएंगे।कांसे की थाली,गिलास और गमछा ,जनेऊ प्रणामी देना होगा बस।साथ में दक्षिणा।बेटा तू सब पहले से लाकर रख देना।निशि‌(बेटी)सब व्यवस्थित कर लेगी।”

रवि बाजार से सारा सामान ले आया था ।अब मालिनी निश्चिंत होकर विमला भाभी के घर की सफाई करवाने लगी,अपनी काम वाली बाई से बोलकर।शाम होते ही बड़ी ननद-ननदोई पहुंचे,कैब से। ड्राइवर भी साथ था।ननदोई जी के पैर फूल गए थे, बैठे-बैठे।मालिनी ने बेटी से कहकर गर्म पानी बाल्टी में दिलवाया।खाना खाकर सोने के लिए विमला भाभी का घर दिखाने पर बड़ी ननद बोली”क्या भाभी, तुम्हें इनकी आदत बिल्कुल पता नहीं।ये नहीं सो पाएंगे यहां मच्छरों के बीच।हम होटल कर लेंगे।”,

मालिनी सफाई देने ही वाली थी कि बेटी बोली”हां मम्मी,फूफा जी को एसी के बिना नींद नहीं आती।उन्हें होटल में ही रुकने दो।”

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ननद-ननदोई होटल आ गए।मालिनी के पास होटल में रुकवाने के पैसे तो थे नहीं।कुछ देर बाद छोटी ननद-ननदोई का भी आगमन हुआ।छोटे ननदोई ख़ुद भी पंडिताई करतें हैं।आते ही एलान कर दिया”दादा की बरसी के अनुष्ठान की पूजा मैं ही करूंगा।सामान‌ मेरे हिसाब से लाना होगा।”,उनकी घोषणा से बेटे को अप्रत्याशित झटका लगा।कुछ कह नहीं सकते,दामाद हैं इस घर के।उधारी में ही सही फिर से अनुष्ठान के लिए नए सामान‌ से भरे दो‌ बड़े-बड़े थैले लेकर हांफता हुआ रवि मां के पास आकर बैठा और बोला”दस हजार और लग गए मम्मी।बजट गड़बड़ा जाएगा।अभी भी वक्त है,रोको फूफा जी को,नहीं तो उनकी लिस्ट बनती ही जाएगी।”

दादी ने टोका”कुछ ना बोल बाबू,अभी बिदक जाएंगे,तो चल देंगें बुआ और बच्चों को लेकर।तू तो समझदार है।संभाल लियो।”,

दो दिन बाद ही कार्यक्रम था।सुबह से ही कुक,पंडित आ गए थे।मालिनी ने पंडित जी से हांथ जोड़कर क्षमा मांग ली।कहा” ,ननदोई जी इतनी दूर से आएं हैं,पंडिताई भी करतें हैं।दादा को बहुत मानते भी थे।आप उन्हें‌ ही करने दीजिए पूजा।”पंडित वाकई‌ में‌ सभ्य थे।वे मान गए।

तब तक बड़ी ननद-ननदोई,उनका बेटा होटल से फ्रेश होकर पहुंचे।आते ही पोहा खाया उन लोगों ने।शुगर की दवा लेते हैं‌,सुबह नाश्ते के बाद की दवाई भी तो खानी है।

अनुष्ठान आरंभ हुआ। पूजा-अर्चना के बाद दान सामग्री की सजावट लगी आंगन में।मालिनी ने अपनी सामर्थ्य से ज्यादा ही व्यवस्था की थी,पर जब ननदोई जी नई -नई चीजों की लिस्ट बताने लगे,तो घबरा गई।पंडित बने ननदोई बता रहे थे”पलंग दो‌ लोगों‌के लायक हो,तकिया नरम होना चाहिए,नहीं तो दादा को कष्ट होगा सोने में। बर्तन कांसे के ही देने चाहिए,शुभ होतें हैं।कंबल अच्छा देना ही पड़ता है। स्वर्ग से दादा सब देख रहें‌हैं।उन्हें‌

किसी भी प्रकार की कंजूसी बर्दाश्त नहीं होगी।सोना कम से कम दस ग्राम,चांदी”””””””मालती की बेटी रोक ना सकी ख़ुद को,बोली”,फूफा जी,मां की इतना सब करने‌ का सामर्थ्य नहीं। उन्होंने पहले से ही धीरे-धीरे सब जुगाड़ कर रखा है।अब इतनी जल्दी और व्यवस्था कैसे करेंगी मां।भाई के शरीर में भी जान‌ नहीं बची।कितने दिनों‌ से दौड़ रहा‌ है।आप जो भी सामान है,उसी से पूजा करवाइये।”

साले की बेटी से ऐसी बात सुनने की अपेक्षा नहीं थी,फूफा जी की।चिढ़कर बोले”ठीक है,फिर अपने पंडित से ही पूजा करवा लीजिए भाभी।हम तो बेकार में इतनी दूर आए।आप लोगों का यदि मुझसे पूजा करवाने का मन ही नहीं था,तो बुलाना नहीं था।”

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अब मालिनी चुप नहीं रह सकी।बात उसके दिवंगत पति की हो रही थी।उस पति के आज सब हितुआ बन रहे थे,जो‌ सात सालों से अपनी बहन,बहनोई और भानजों को देखने के लिए तरसता रह गया।कभी कोविड,कभी व्यस्तता,आने‌ नहीं दी ,अपने भाई से मिलने।

बड़े ननदोई चुप कैसे रहते,बोल पड़े”अरे,हम जान बूझकर नहीं आना चाहते थे यहां।मालूम था ,आप लोगों के पास पैसों की व्यवस्था है नहीं।अब कटौती कर के बरसी का उतारा कर रहें हैं।इससे अच्छा तो नदी के घाट में छोटी सी पूजा कर लेते।ना किसी को बुलाते,ना खिलाते।”,बड़ा दामाद मालिनी की सास का प्यारा था। बहुत प्यार और सम्मान करती थीं उनका।आज उनकी बात सुनकर,सीना छलनी हो गया।अपनी नारी छवि के विपरीत

वो चिंघाड़ती हुई बोलीं”अब दामाद जी ,मेरी मालिनी को मत सिखलाइये,कि क्या ,कैसे करना चाहिए।ये अकेली औरत अपने बेटे के साथ कोविड के दौर में जा -जाकर पति का इलाज अच्छी से अच्छी जगह करवाई।मेरा आपरेशन इसके बेटे ने ले जाकर करवाया। ख़र्च के ऊपर खर्च आ रहे थे,पर मेरी बहू ने हिम्मत नहीं हारी।सब कुछ नियमपूर्वक करने की कोशिश कर रही है वह।तुम भी तो हमारे परिवार का हिस्सा हो।कमियों को‌ दोष में ना लेकर,जल्दी से दादा की आत्मा की शांति की पूजा शुरु करवाओ।”

मालिनी ,मां का यह रूप देखकर दंग रह गई।

पूजा चार -पांच घंटे तक चली।बाद में ब्राह्मण भोजन में अन्य ब्राह्मणों के साथ दोनों दामाद भी बैठे थे।खाने में नुस्ख निकाल रहे थे।एक बोले”काजू की सब्जी बनवाने की क्या जरूरत थी।पैसा बचा जाता”।सभी के खाना खा चुकने के बाद मालिनी,बेटे और बेटी के साथ खाने बैठी ,तभी बड़ी ननद हांथ में दस हजार की गड्डी लेकर आई और मालिनी की बगल में आकर बैठी।बोलने लगी “दादा के बरसी के खर्च में ये हमारी तरफ से खर्च कर

देना।”ठीक वही छोटी ननद ने किया।मालिनी के दोनों बच्चों ने पहले ही कह रखा था “मम्मी,पापा के काम में किसी और से पैसे नहीं लेंगे हम।अब बच्चों के सामने दोनों को मना तो कर दिया पैसे लेने से,पर दोनों रोने लगीं।भाई के प्रति बहनों का लगाव जानती थी मालिनी।पैसे उठाकर आलमारी में रख दिए।

रात को सबके पास पानी पहुंचाने जा रही थी ,तभी बड़े ननदोई की आवाज सुनी”रख ली ना भाभी!अरे मुझे तो पहले ही पता था।ये मोहल्ले वाले,भाभी के स्कूल वाले,गरीब दोनों भाई,क्या पांच पैसा भी दे पाएंगे?,तब ये तामझाम उधारी से ही कर रहें हैं।”,मालिनी की आंखों से आंसू झरने लगे।छोटी ननद के कमरे से वैसी ही आवाज आई”,बस बस रहने दो।देख लिया मैंनै तुम लोगों के संस्कार।पास में पैसे नहीं,तो नियम कानून सब बदल सकतें हैं।तुम्हारी मां भी ना भाभी का ही पक्ष ले रहीं थीं।तुमसे पैसे लेकर रख लिए होंगे ना उन्होंने?,हमें कोई प्रेम और रिश्तेदारी की हैसियत भर से नहीं बुलाया था,पैसे डायरेक्ट मांग नहीं पाएंगी ,तभी इतना प्रपंच किया उन्होंने।”,मालिनी कमरे के बाहर ही रोती खड़ी रही।सासू मां ने देख लिया था मालिनी को रोते।कारण समझने में देर नहीं लगी।मालिनी को बुलाकर उसके कानों में चुपके से कुछ कहा।

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अगली सुबह एक घंटे के अंतराल से जाना था उनको।पहले बड़ी बेटी विदा हुई।उनका जवान बेटा भी आया था।मालिनी ने छोटी ननद के दिए पैसे बड़ी ननद के बेटे को दिलवा दिए विदाई की रस्म समझाकर।छोटी ननद के बेटे को भी नानी ने बड़ी बेटी के दिए पैसे से विदाई दी।दोनों बहनें‌ एक दूसरे का मुंह देखने लगी।तब मालिनी ने कहा,”,आप लोग आए, कार्यक्रम सफलता पूरवूसंपन्न हुआ।यही ईश्वर की अशेष कृपा है।

तुम्हारे दादा मेरे और बच्चों की जिम्मेदारी थे।हमने आठ दस सालों से भरसक प्रयास किए थे,पर बचा नहीं पाए।जब आदमी जिंदा था, आर्थिक हालत खराब होने की वजह से तुम लोगों से एक भी नहीं आया देखने।माना वो

गुस्सैल थे बहुत।थे तो तुम्हारे वही दादा,जिनकी साइकिल की गद्दी में तुम दोनों बैठकर अपनी शॉपिंग करती थीं,तुम दोनों को देखने के लिए तड़पा है आखिरी के छह महीनों में।अब उनके काम में यदि तुम लोगों से पैसे लूंगी,तो स्वर्ग या नरक कहीं छोड़ेंगे नहीं मुझे।

दोनों ननदें पति के साथ निकल रही थीं ।बहनों के पैसों का दंभ ,भाभी के स्वाभिमान के आगे हार गया था आज।जाते हुए मां को प्रणाम किया दोनों ने ,तो मां बोलीं”,ईश्वर बहुत सद्बुद्धि दे तुम को।रिश्तेदारी में पैसों की अहमियत पालना अब बंद करो।जिस दादा ने पिता की तरह तुम दोनो को पाला,आज उसी के काम में आकर उसकी पत्नी की बेइज्जती मत करना

तेरी भाभी ख़ुद कमाती है।उसने सावित्री की तरह ,पति को जगह-जगह डॉक्टर दिखाया,बच नहीं‌पाया वह।मेरी ही पूजा में कोई कमी होगी।”,

दोनों बेटियों को एक और बात मालिनी की बेटी बोलना चाहती थी।उसने शुरू किया”,बुआ,हमारे पापा के आफिस से ही कुछ पैसे मिल गए थे,जिससे श्मशान के खर्च पूरे हो गए।बाकी सभी रिश्तेदारों से मिले पैसे से पूरा अनुष्ठान संपन्न हुआ।अब और पैसों की जरूरत तो है नहीं‌ हमें।हां पापा जब हास्पिटल में गए थे,दूसरे से उधार लेकर गए थे।”

निशि की दादी  रोती हुई निशि को गले लगाकर आंसू पोंछते हुए बोली।”यही जीवन का सच है।जब हमारे पास सारे सुख के साधन रहें हैं,लोग तभी हमारे पास आना चाहतें हैं।दुख की घड़ी में चार पैसे से मदद कर जीवन भर सुनाने का अवसर खोना नहीं चाहते ऐसे लोग।मेरे साथ तुम सबको भी बड़ा सबक मिल गया,मेरे ही बच्चों से।

शुभ्रा बैनर्जी 

यह जीवन का सच‌ है

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