“आज भी रसोई में कोई सब्जी नहीं बनी है क्या?”
अपने सामने रखी भोजन की थाली में केवल दाल रोटी देखकर राजेश ने अपनी पत्नी रश्मि से पूछ लिया।
रश्मि अभी कुछ कहती उससे पहले ही राजेश की मांँ सुनैना बोल पड़ी..
“बेटा मैंने कितनी बार तुमसे कहा है कि,.चार लोगों का परिवार एक अकेले आदमी की कमाई से नहीं चल पाता है!.लेकिन तुम्हारे कानों पर तो जूं नहीं रेंगता,.अब जो मिला है थाली में उसे खुशी-खुशी खा लो!”
“माँ!.मैं कोशिश तो कर ही रहा हूंँ ना!.कहीं ना कहीं कोई अच्छी नौकरी मिल ही जाएगी!”
“अच्छी नौकरी की तलाश में तुम कब तक यूं ही हाथ पर हाथ धरे घर में बैठे रहोगे!”
“मांँ आप कहना क्या चाहती हो!.मैं भी पिताजी की तरह कहीं मजदूरी करना शुरू कर दूं!”
राजेश का मिजाज अचानक तल्ख हो उठा। लेकिन बेटे की आवाज में नाराजगी महसूस करती सुनैना अपने बेरोजगार बेटे को समझाने लगी..
“बेटा!.तुम्हारे पिताजी ने शुरुआत भले ही मजदूरी से की थी लेकिन आज अपनी मेहनत के बल पर उसी फैक्टरी में सुपरवाइजर है!.कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता है।”
अपनी मांँ के द्वारा दिया जा रहा उदाहरण सुनकर राजेश पल भर के लिए चुप हो गया। लेकिन सुनैना ने अपनी बात पूरी की..
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“बेटा तुम पढ़े लिखे हो!.जब तक कोई नौकरी नहीं मिलती तुम मोहल्ले के बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर भी तो कुछ रुपए कमा ही सकते हो!”
“मांँ!.मैं ट्यूशन पढ़ाकर आखिर कितना कमा लूंगा जो आप मेरे पीछे पड़ी हो।”
“बेटा कुछ नहीं से कुछ सही!.ऐसे घर में पड़े रहने से भी तो काम नहीं चलने वाला है!”.
अपनी मांँ की बात सुनकर राजेश सोच में पड़ गया। तभी अचानक बाहर दरवाजे पर किसी ने दस्तक दे दी। अपने घर के दरवाजे पर दस्तक सुन मांँ बेटे ने अपनी बातचीत को अर्धविराम दे दिया।
घर की बहू रश्मि ने आगे बढ़कर दरवाजा खोला तो सामने पड़ोस में रहने वाली सुधा खड़ी थी। रश्मि ने मुस्कुराते हुए दरवाजे से पीछे हट कर सुधा को भीतर आने के लिए जगह दे दी। अपनी पड़ोसन सुधा को अपने घर आया देख सुनैना मुस्कुरा उठी..
“आओ बहन!.बैठो!”
यह कह हुए सुनैना ने बगल में पड़ी मचिया सुधा की ओर बढ़ा दिया।
“नहीं बहन जी मैं थोड़ी जल्दी में हूंँ!.घर में कुछ मेहमान आए हैं! मैं तो बस अपने कपड़े लेने आई थी,.अगर सिल गए हो तो दे दीजिए!”
सुधा की जल्दबाजी समझ सुनैना ने अपनी बहू रश्मि की ओर देखा..
“इनके कपड़े तो कल ही सिल गए थे ना बहू!”
“जी माँ जी!”
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रश्मि भीतर कमरे में चली गई और झटपट एक झोले में सिले हुए कपड़े समेट लाई..
“चाची जी!.देख लीजिए कपड़े आप की पसंद के सिले हैं या नहीं!”
यह कहते हुए रश्मि ने कपड़ों का झोला सुधा के हवाले कर दिया। एक-एक कर सभी सिले हुए कपड़ों को झोले से निकाल कर देखती सुधा के चेहरे पर मुस्कान तैर गई..
“वाह बहू!. तुमने तो बिल्कुल मेरे बताए अनुसार सारे कपड़े सिल दिए!.और हर एक ब्लाउज की डिजाइन भी तुमने बहुत सुंदर बनाया है।”
अपने कपड़ों की सिलाई से संतुष्ट सुधा सुनैना के हाथ पर कपड़ों की सिलाई के रुपए रख तुरंत वापस चली गई।
अपनी बहू की पहली कमाई अपने हाथ में थामे सुनैना तनिक भावुक हो गईं..
“बहू!.ग्राहक भगवान का रूप होता है और उसकी संतुष्टि सबसे बड़ा आशीर्वाद!.ये रूपए तुम अपने पास रख लो,.अपने अनुसार खर्च करना!”
यह कहते हुए सुनैना ने आगे बढ़कर अपनी बहू रश्मि की पहली कमाई उसके हाथ पर रख दी। अपनी हथेली पर रखे रुपयों को निहारती रश्मि को मानो विश्वास ही नहीं हो रहा था।
इधर अपनी पत्नी के हाथ पर आज तक कमा कर एक धेला भी ना रख पाने वाला राजेश हैरान हुआ..
“माँ यह सब क्या है!”
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“बेटा!.मेरी बहू के हाथ में हुनर है!.उसने घर में पड़ी पुरानी सिलाई मशीन की साफ सफाई कर अपनी कमाई शुरू कर दी है!”
सुनैना जी के साथ-साथ रश्मि भी मुस्कुरा रही थी। लेकिन अभी अभी अपनी आंखों के सामने छोटे और बड़े काम वाले मानसिकता से ऊपर उठकर मेहनत के बल पर अपनी पहली कमाई करती पत्नी के चेहरे पर मौजूद आत्मसंतुष्टि देख राजेश नि:शब्द था।
पुष्पा कुमारी “पुष्प”
पुणे (महाराष्ट्र)