आज पूरे गाँव में कानाफूसी चल रही थी। सूरज बाबू का बड़ा बेटा हिमालय पर कठोर तपस्या करके ढेरों सिद्धियां प्राप्त करके अचानक लौट आया है। हल्की फुल्की खबर ये भी है कि सूरज बाबू उसके इस तरह लौटने से जरा भी खुश नहीं है…चौपाल में मंडली जमी थी। गिरधारी बाबू कह रहे थे,”सुना है…मानस कई तरह की सिद्धियां प्राप्त करके लौट आया है। अब यहीं रहेगा।”
मनोहर बाबू बहुत प्रसन्न होकर बोले,”अरे भाई, बहुत बढ़िया खबर सुनाई। बूढ़े माँ बाप तो निहाल हो गए होंगे । बचपन में जब वो साधु मंडली के साथ गायब हो गया था, दोनों जैसे बौरा ही गए थे।”
इस बार सूरज बाबू के पड़ोसी जगदीश बाबू बोले,”मगर इस बार मामला एकदम उल्टा है। सूरज बाबू तो उसे देख कर भड़क ही गए थे। अंदर आने ही नहीं दे रहे थे पर भौजी और छोटे मनोज ने बीचबचाव करके उसे अंदर आने दिया।”
ये सुनकर वहाँ घोर सन्नाटा छा गया। बिना कुछ बोले सब उठने लगे…उधर सूरज बाबू के घर में धीरे धीरे वातावरण सामान्य हो रहा था। आज मनोज खेत से लौटा…देखा भइया और अम्मा गपशप कर रहे हैं। उसको देख कर खाना परोसा जाने लगा। दोनों भाई खाने बैठे। मानस बाबू अपना प्रवचन देने लगे,”अरे छोटे, तू तो घर गृहस्थी के जंजाल में फँसा रह गया…मुझे देख ..मैंने तो अपना इहलोक और परलोक दोनों ही सुधार लिए”
तब तक अम्मा ने बहू को पानी का लोटा लाने के लिए पुकारा.. वो अपना चमत्कार दिखाने लगा…मन ही मन कुछ पढ़ा…सब हैरान थे…लोटा कुदकता हुआ पास में आ गया… वो गर्व से सबको देखने लगा…”देखा! मेरी सिद्धि के बलबूते पर लोटा खुद ही पास में आ गया” मनोज मुस्कुरा दिया और आँगन में खेलते अपने बेटे को पुकार कर लोटा लाने को कहा… बेटा हँसते हुए पानी का लोटा ले आया। अब मनोज की बारी थी, “मेरे गृहस्थ तप का असर देखा। मेरे पास भी बिना उठे पानी का लोटा आ गया”
मानस को चुप देख कर वहीं बैठे बाबू जी ने व्यंग्य किया,”कुछ समझ में बात आई। पहाड़ों पर बैठ कर तप करना… सिध्दि पा लेना बहुत आसान है परन्तु परिवार में सबके बीच रह कर कर्तव्य निभाना बहुत कठिन है…और यही असली तप है।”
नीरजा कृष्णा
पटना