“सासू मां मैंने मान लिया कि बहू कभी बेटी नहीं बन सकती”- सिन्नी पाण्डेय : Moral Stories in Hindi

मुस्कान अपने माता पिता की सबसे छोटी बेटी थी।देखने मे सुंदर,गोरा रंग,शर्मीला स्वभाव,संस्कारी आचरण-उसके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाते थे।

मुसकान का संयुक्त परिवार था।उसके पिता का बड़ा व्यवसाय था तो उसके लालन पालन में कोई कमी नही रखी गयी थी। घर में सबकी लाडली थी वो। अपने दादी बाबा की चहेती,माँ की जान,चाचा चाची की दुलारी और अपनी भाभी की सहेली। मुस्कान की दीदी की शादी हो चुकी थी वो भी अपनी छोटी बहन पर जान लुटाती थी।

मुस्कान एम बी ए कर रही थी वो नौकरी करना चाहती उधर मुस्कान की माँ कई सालों से बीमार रहती थीं तो वो चाहती थी कि जल्द से जल्द बेटी की शादी कर दे।भगवान ने उनकी प्रार्थना सुन ली ,मुस्कान के लिए एक बहुत अच्छा लड़का मिला और शादी पक्की हो गयी।

अधीश एक संस्कारी लड़का था। जैसा मुस्कान ने सोचा था बिल्कुल वैसा ही…।

मुस्कान के परिवार वाले बहुत चिंतित थे कि इतने लाड़ प्यार में पली बच्ची कैसे ससुराल में ज़िम्मेदारी निभा पाएगी।

डर तो मुस्कान के अंदर भी था कि  नई जगह कैसी होगी,नए लोग कैसे होंगे पर वो थोड़ी आश्वस्त भी थी क्योंकि वह अपने घर में अपनी भाभी का सम्मानित स्थान देखती थी कि उसकी माँ,पिता और घर के अन्य सदस्य उसकी भाभी का बहुत ध्यान रखते थे। यही भाव मुस्कान के मन में अपने भावी ससुराल के लिए था।

मुस्कान की माँ की तबीयत की वजह से शीघ्रता से विवाह का निर्णय लिया गया और मुस्कान पहुंच गई अपने नए सफ़र की मंजिल पर..

अधीश और उसकी बहन तनु मुस्कान का बहुत ख़्याल रखते।ससुर का भी बहू के प्रति बहुत वातसल्य था वो मुस्कान को अपनी बेटी मानते थे।।कुछ दिन बीतने पर तनु हॉस्टल चली गई ।अब मुस्कान को अकेलापन महसूस होता।अधीश और ससुर जी शाम को लौटते। तब तक मुस्कान अपनी सास पदमा जी के साथ रहती।पर वो कुछ असामान्य महसूस करती थी सासूमाँ के बर्ताव को देखकर…

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वो कोई न कोई कमी ढूंढ लेती मुस्कान के हर काम में, चाहें वो जितना मन से काम करे। वक़्त बेवक़्त ताने मारना, मायके को लेकर छीटाकशीं करना पदमा जी की दिनचर्या का हिस्सा था।

मुस्कान कुछ भी करे, पर पदमाजी कभी उसका हौसला नहीं बढ़ातीं।पर गलती से कोई कमी दिख जाती तो वो उसपर निबंध लिखने को तैयार रहती।मुस्कान बहुत दुखी होती।

एक दिन मुस्कान ने अपने गर्भवती होने का समाचार दिया।अधीश मुस्कान का पहले से ज़्यादा ध्यान रखने लगा।मुस्कान कमज़ोरी महसूस करती, उसको चक्कर आते,उठने का जी न करता फिर भी वो हिम्मत करके किचन में जाती तो पदमा जी अपने समय के नियमों का बखान करने लगती।

मुस्कान जब खुद ममता की चौखट पे खड़ी थी,उसकी अपनी माँ चल बसी।टूट सी गयी थी वो। इस समय उसे सबसे ज्यादा प्यार और देखभाल की ज़रूरत थी। उसने कई बार अपनी माँ की परछाई सासूमाँ में ढूंढना चाही पर पदमा जी अपनी घटिया सोच पर अडिग थीं कि-“बहू कभी बेटी नहीं बन सकती…”उन्होंने कभी बहू का मन नही जानना चाहा,अपने फैसले थोपती रही और बेचारी मुस्कान मन मसोसकर रह जाती।

तनु जब भी घर आती तो पदमा जी बेटी का खूब दुलार करती।प्यार से सर सहलाती।सर में दर्द होता तो मालिश करती।मुस्कान को यह देखकर अपनी माँ की बहुत याद आती,वो बस रो के रह जाती।जब मुसकान की तबियत खराब होती तो पदमा जी उसका हाल तक न पूछती।उसके ससुर जब भी बोलते की तू हमारी बेटी है तो पदमा जी तुरंत याद दिला देती की बहू बेटी नही बन सकती..धीरे धीरे मुस्कान को इन बातों की आदत पड़ चुकी थी।

नौ महीने पूरे होने पर मुस्कान ने ऑपरेशन द्वारा बेटे को जन्म दिया।घर के सब लोग बच्चे के आने से बेहद खुश थे।पदमा जी पोते को दुलराती, पर मुस्कान के प्रति उनका व्यवहार नही बदला। अधीश उसे बहुत समझाता की इन बातों को दिल से मत लगाया करो लेकिन वह सास का स्नेह पाने को आतुर थी। वक़्त के साथ मुस्कान पर इन बातों का असर होना कम पड़ गया।अब उसे सास से ममता की अपेक्षा नहीं रह गयी थी।

एक दिन बाज़ार से लौटते हुए पदमा जी सीढ़ियों से गिर गयी और उनकी पैर की हड्डी टूट गयी।मुस्कान ने पूरा घर ज़िम्मेदारी से संभाला। तनु अपनी पढ़ाई के चलते घर नही आ पाई,वो फोन पर अपनी माँ का हालचाल लेती रही। अधीश और ससुर जी अपने कामो में व्यस्त हो गए।मुस्कान ने अकेले घर  का काम ,बच्चे का काम, पदमा जी को समय पर दवा,पानी ,खाना,नहलाना हर बात का ध्यान रखते हुए बहू होने का फ़र्ज़ बखूबी निभाया।

पदमा जी अपने कमरे में आराम कर रही थीं कि तभी मुस्कान उनको दवा देने आयी तभी पदमाजी बोलीं -“बेटी ज़रा मेरा मोबाइल चार्जिंग में लगा दो”,मुस्कान अवाक रह गयी ये सुनकर..वो अचंभित खड़ी अतीत की यादों में खो गई जब वो बेटी बनने के लिए तरसती थी।

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अचानक पदमा जी की दूसरी बार आवाज़ देने पर उसकी तन्द्रा टूटी और वो बड़ी विनम्रता से बोली..”माँ जी आप मुझे मेरे नाम से बुलायें या फिर बहू कहें..मैंने आपकी बात को आत्मसात कर लिया है कि बहू कभी बेटी नही बन सकती…मैं अपना हर कर्तव्य निभाऊंगी, पर बहू बनकर, जिससे मेरा अंतर्मन अब और नही दुखेगा..।

आज मुस्कान एक आत्मविश्वास के साथ खड़ी थी और पदमाजी चुप्पी साध के बहू की बात सुन कर आत्मग्लानि से भर उठी थी….।

 लेखिका : सिन्नी पाण्डे

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