(फोन की घंटी बजती है। राजवी की ताई जी फोन उठाती हैं)
राजवी की ताई जी: हेलो।
हर्षिता: हेलो, ताई जी नमस्ते।
राजवी की ताई जी: नमस्ते हर्षिता बोल रही हो क्या?
हर्षिता: हांजी, ताई जी। राज से बात करनी है। बुला दोगे क्या?
राजवी की ताई जी: हां बुलाती हूं अभी। तुम्हें बधाई हो हर्षिता। राजवी का विवाह तय हो गया है।
हर्षिता: हां जी, मुझे दीदी मिली थी। उन्होंने बताया।
राजवी की ताई जी: अच्छा थोड़ी देर में फोन करना। मैं राजवी को बुलाकर लाती हूं। (इतना कहकर राजवी की ताई जी ने फोन रख दिया और राजवी को बुलाने चली गई।
यह उन दिनों की बात है जब मोबाइल फोन नहीं हुआ करते थे। और लैंडलाइन फोन भी सब घरों में नहीं होते थे। हर्षिता राजवी को प्यार से राज कहती थी और पी.सी.ओ से उसको फोन किया करती थी। राजवी गांव से शहर के स्कूल में पढ़ने आती थी और हर्षिता शहर में ही रहती थी। दोनों की दोस्ती नौवीं कक्षा में हुई थी। एक बार अचानक कर्फ्यू लगने से राजवी घर नहीं जा सकी। हर्षिता उसे अपने घर ले गई। वहां उसे लगभग एक हफ्ता रुकना पड़ा। वहीं से उन दोनों में गहरी दोस्ती हो गई।
इस कहानी को भी पढ़ें:
प्रतिशोध पिता से – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi
दस मिनिट के बाद हर्षिता ने दोबारा फोन किया। राजवी ने फोन उठाया।
राजवी: हेलो, हर्षिता कैसी हो?
हर्षिता: चुड़ैल विवाह तय कर लिया। बताया तक नहीं और पूछ रही हो कि कैसी हूं ?
राजवी: कैसे बताती? मुझे भी पता नहीं था। सब अचानक से हुआ।
हर्षिता: हां, दीदी ने बताया। क्या अब विवाह पर भी ऐसे ही करोगी?
राजवी: अरे नहीं।तू एक बार घर आ। मुझे तुमसे जरुरी बात करनी है
हर्षिता: फोन पर ही बता दे. क्या बात है?
राजवी: नहीं, अभी नहीं ताई जी आसपास ही हैं। तू घर आजा जल्दी।
हर्षिता: ठीक है, कल ही आती हूं।
राजवी: अच्छा फोन रखती हूं। समय से आ जाना ।
(हर्षिता को राजवी की आवाज में डर और चिंता का एहसास हुआ। इसलिए उसे राजवी से मिलने की जल्दी थी।
सुबह उठते ही हर्षिता ने मां से जल्दी तैयार होने को कहा।मां और बेटी दोनों राजवी के घर पहुंचे। राजवीर ने अफसर मिलते ही हर्षिता से अकेले में बात की।
हर्षिता: बधाई हो राज और बताओ क्या बात करनी थी?
राजवी: हर्षिता मुझे लड़के में दिक्कत लग रही है।
हर्षिता: क्यों क्या हुआ?
इस कहानी को भी पढ़ें:
राजवी: उसने मुझसे खुलकर बात नहीं की। उसके हाथ चेहरे के मुकाबले अधिक काले थे। उसका रंग थोड़ा झुलसा हुआ लग रहा था।
हर्षिता:तुम्हें ऐसे ही लगा होगा। तुमने ही तो बताया था कि लड़का किसी गांव से है। गांव में लोग प्रत्येक काम अपने हाथ से करते हैं। खुद का अधिक ध्यान नहीं रख पाते। इसलिए ऐसा होगा। अब तुम चली जाओगी तो रंग अच्छा हो जाएगा।
राजवी: चुड़ैल तुझे मजाक सूझ रहा है। मुझे चिंता हो रही है। प्लीज एक बार अपने भाई से बोलकर उसका पता लगा कि कैसा लड़का है?तुम्हारे भाई का दोस्त उसके गांव के साथ वाले गांव में रहता है। उसी को बोलकर पता लगा।
राजवी अपने मां-बाप की पांच बेटियों में से चौथी बेटी थी। उसका कोई भाई नहीं था। वह हर्षिता के भाइयों को अपने भाई मानती थी।
हर्षिता: ठीक है, मैं पता लगाती हूं
हर्षिता और उसकी मां शाम को घर लौट आईं।हर्षिता ने अपने भाई को सारी बात बताई। भाई ने अपने दोस्त के जरिए पता किया तो पता चला कि लड़के को नशे की आदत थी। हर्षिता की मां ने राजवी की बहन को बताया तो उसकी बहन ने यह कहकर बात को टाल दिया के गांव में शराब पीना आम बात है। अब तो विवाह तय कर दिया है। हर्षिता नहीं मानी उसने अपनी मां को राजवी की मां से बात करने के लिए भेजा
पर राजवी के माता-पिता ने उनकी बात नहीं सुनी। हर्षिता की मां राजवी के माता-पिता से नाराज होकर लौट आई। उसके माता-पिता को लगा था कि हर्षिता की मां इस रिश्ते को तोड़ना चाहती है। उन्होंने कहा क्या खराबी है लड़के में? सिर्फ दो भाई हैं ।जमीन- जायदाद अच्छी है। अपना पक्का मकान है।बस उनके लिए काफी था।हर्षिता की मां ने राजवी के माता-पिता को कह दिया
कि कल को अगर राजवी के साथ कुछ गलत होता है तो वह उन्हें कभी माफ नहीं करेंगे। उधर राजवी की बहन ने भी राजवी को समझा दिया कि उसका डर नाजायज था।
आखिर राजवी के विवाह का दिन आ गया हर्षिता डर के साथ विवाह में शामिल हुई और पूरा समय वर के हाथों को देखने की चेष्टा करती रही पर सिर्फ एक बार झलक देखने को मिली। उसे लगा राजवी का डर जायज था। उसे वर के हाथों में कंपकंपी का एहसास हुआ। उसने परमात्मा से अरदास की कि उसका और उसकी सहेली राजवी का डर गलत सिद्ध हो जाए ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर कैसे होता? सच्चाई तो आखिरकार सामने आनी ही थी। राजवी का पति सिर्फ शराब ही नहीं पीता था बल्कि दुनिया भर के नशों से घिरा हुआ था। राजवीर के लिए सबसे बड़ा दुख तो यह था कि वह किसी दूसरी लड़की से विवाह करना चाहता था पर घर वालों ने लालच में आकर राजवी की जिंदगी खराब कर दी। विवाह की पहली रात में ही आधी रात को राज का पति राज को छोड़कर दूसरी लड़की के पास चला गया।
मुश्किल से उसने राज को पूरे जीवन में 24 घंटे भी दिए हो यह राज को याद नहीं ।नशे की हालत में जो उसने राज को समय दिया था उसका नतीजा राज की गोद में उसका बेटा था। धीरे-धीरे राजवी पर उसके सारे राज खुलने लगे वह दिन रात कोशिश करती कि किसी तरह से उसके नशे छुड़ा दे पर कैसे छुड़ाती? उसकी सास अपने बेटे के नशे और अय्याशी की जड़ थी। उसकी सास ने अपने बेटे को कभी पैसों की कमी नहीं होने दी।
राजवी मां होने के सुख के साथ-साथ अय्याश और नशेड़ी पति के दुख को झेल रही थी। हर्षिता और उसकी मां को जब पता चला तो उन्होंने राजवी के परिवार से दूरी बना ली। हर्षिता अपनी सहेली के इस दुख में बहुत रोई। राज की बहन पर गुस्सा किया। राज से उसके ससुराल में मिलने गई।
हर्षिता:राज तुम इसे छोड़ क्यों नहीं देती?
राजवी: कैसे छोड़ दूं? बता कैसे छोड़ दूं ?
हर्षिता: कैसे छोड़ते होते हैं।तुम्हें नहीं पता ।
राजवी:मुझ में हिम्मत नहीं। मेरा विवाह मेरे लिए दुख और मेरे माता-पिता के लिए सुख का कारण है।एक विवाहित और बच्चे वाली बेटी को घर बिठाना आसान नहीं होता ।अभी मेरी एक बहन कुंवारी है।
गांव में सब जीना मुश्किल कर देंगे।
हर्षिता: तो क्या यहां नौकरानी बनकर रहोगी ?
राजवी: रहना पड़ेगा। बस मेरे लिए दुआ करना कि मेरा बेटा अपने पिता के जैसा ना निकले।कम से कम यहां पढ़ तो लेगा।
हर्षिता: कैसी बातें करती हो?क्या तुम्हारे माता-पिता के पास कमी है? तुम खुद पढ़ी-लिखी हो।अलग रह लो।
राजवी: अकेली नहीं रह पाऊंगी। मैं समाज का सामना नहीं कर सकती। सब मुझे ही गलत कहेंगे ।मायके में मुझसे बड़ी बहन के बेटे को माता-पिता ने गोद ले लिया है घर जाऊंगी तो समझेंगे कि मुझे ।भी जायदाद में से हिस्सा चाहिए ।
इस कहानी को भी पढ़ें:
हर्षिता:सच में राज तुम्हारा किसी ने साथ नहीं दिया।मैं भी कुछ नहीं कर पाई।
राजवी:नहीं हर्षिता तुमसे कोई शिकायत नहीं। तुमने पूरा जोर लगाया पर मेरी किस्मत खराब थी ।
हर्षिता: निराशा लौट आई ।
एक दिन हर्षिता को राज की बहन मिली तो हर्षिता का गम उमड़ पड़ा। उसने राज की दीदी से कहा कि दीदी आपने अपनी सुंदर ,सुशील और पढ़ी-लिखी बहन को नर्क में धकेल दिया। दीदी ने अपनी गलती को स्वीकार किया और कहा कि हर्षिता माता-पिता तुम्हें बहुत याद करते हैं। एक बार मिला आओ तुमसे माफी मांगना चाहते हैं।दीदी के कहने पर हर्षिता राज के माता-पिता से मिलने गई पर माफी मांगने पर बोली मुझे आपकी माफी नहीं चाहिए। इसका कोई मतलब नहीं है।हो सके तो राज को समझाइए कि उस नर्क से निकल आए ।
राज की माता इसी दुख के साथ स्वर्ग सिधार गई। पिता शराब में डूब गए
और राज इस एक आस के साथ कि कभी तो सवेरा होगा! जीवन व्यतीत करती रही। बेटे को कीचड़ जैसे माहौल में कमल जैसा बनाने में जुट गई।जब पति न पूछे तो ससुराल में कोई ऐसा नहीं होता जो आपका खर्च सहन करें । प्राइवेट स्कूल में टीचिंग करके अपना खर्च चलाने लगी पर नरक नहीं छोड़ पाई। मन के सारे चाव,सारी इच्छाएं मर गई ।
एक दिन ऐसा आया कि उसके पति के हाथों से दूसरी लड़की के पति का खून हो गया। लड़की ने राज के पति को फंसा कर जेल भेज दिया। अब राज ने इस दुख में यह सुख पाया कि जिस लड़की की खातिर उसका पति कभी उसका ना हो पाया, उसी ने अपना असली रूप दिखा दिया था। वह सिर्फ और सिर्फ जायदाद के पीछे थी। राज कभी भी अपने पति से जेल में मिलने नहीं गई। अब तो राज के पास खुद का मोबाइल भी था। उसने हर्षिता को फोन किया और बताया कि वह बहुत खुश है ।
हर्षिता: क्या बात है राज ?क्या खुशी है ?
राजवी: हर्षिता आज मेरी तपस्या सफल हो गई। मेरा पति अब किसी का नहीं है। अगर मेरा नहीं तो किसी का भी नहीं। जेल में मैं और मेरा बेटा कभी उससे मिलने नहीं जाएंगे। परमात्मा ने उसे उसके कर्मों की सजा दी है। उसे उम्र कैद की सजा मिलने से मेरे दिल को बहुत सुकून मिला ।
हर्षिता: तुम्हारे सुकून से मुझे भी राहत हुई राज। वक्त की मार जब पड़ती है तो बड़े-बड़े के होश ठिकाने आ जाते हैं। अब जेल में अकेला बैठकर सोचेगा कि उसने सारी उम्र क्या किया? क्या पाया और क्या गंवाया?सुख-दुख इस जीवन का हिस्सा है लेकिन अगर हम थोड़ा समझदारी से चले तो बहुत सारे दुखों से बच सकते हैं।
डॉ हरदीप कौर (दीप)
फरीदाबाद
#सुख-दुख का संगम