हां तो बात जरा पुरानी है। पापा के ऑफिस में उनके एक साथी थे मिश्रा जी। हम बच्चों के साथ उनकी खूब पटती थी। उनके बच्चे भी हमारी ही उम्र के थे।उनकी पत्नी की हमारी मम्मी से अच्छी बनती थी। इस तरह पूरी मिश्रा फैमिली ही हमारी पारिवारिक मित्र थी। आंटी और बच्चे बहुत ही सीधे साधे थे। मिश्रा अंकल जरूर खुद को राजेश खन्ना समझते थे।
रहते भी हमेशा टिप टॉप थे।उन्हीं दिनों राजेश खन्ना की सौतन फिल्म आई थी तो अक्सर बात बेबात अंकल ये डायलॉग ‘ चारों धाम घरवाली है ‘ बोल बोल कर आंटी को छेड़ा करते थे। आंटी भी अंकल की इन हरकतों पे मन ही मन मुदित हुआ करती थीं।
सब कुछ ठीक था लेकिन एक बात थी। अंकल हर दूसरे महीने हफ्ते दस दिन के लिए अचानक गायब हो जाते। फिर लौट कर आते तो फिर सब कुछ नॉर्मल हो जाता। अंकल कहां जाते हैं ये किसी को पता नहीं होता था। आंटी भी नहीं जानती थीं। मम्मी या पापा कुछ पूछते तो वो लोग पता नहीं किस गुरु जी का नाम लेते
और बताते कि अंकल उनके बड़े भक्त हैं और उनके ही बुलाने पर अचानक चले जाते हैं। हम बच्चों को भी अंकल ये हरकत कुछ कुछ संदिग्ध तो लगती थी लेकिन बात आई गई हो जाती थी।
ऐसे ही एक बार गर्मी की छुट्टी में हमलोगों ने नैनीताल जाने का प्रोग्राम बनाया। बहुत दिनों के बाद बाहर जाने का कार्यक्रम बना था सो सभी लोग बहुत उत्साहित थे। खूब मौज मस्ती हो रही थी। एक दिन शाम के समय मॉल रोड पे घूमते घूमते हम लोगों का आइसक्रीम खाने का मन कर गया। बस फिर क्या था हम लोग घुस गए एक बड़ी सी आइस क्रीम की दुकान में और अपनी अपनी पसंद की आइस क्रीम ऑर्डर करने।
तभी क्या देखते हैं? कि मिश्रा अंकल एक अंजान औरत और एक छोटे बच्चे के साथ दुकान में घुस रहे हैं। ये घटना इतनी अचानक घटी कि मिश्रा अंकल और हम लोग एकदम से आमने सामने हो गए। अंकल की हालत तो ऐसी हो गई कि जैसे बीच बाजार किसी ने उनके कपड़े उतार दिए हों। अंकल बिल्कुल पसीने पसीने हो गए। किसी तरह से नमस्ते वगैरह की और बाद में मिलता हूं बोल कर वहां से निकल लिए।
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उसी रात जाने कैसे ढूंढते ढूंढते मिश्रा अंकल हम लोगों के पास पहुंच गए। आते ही पापा के पैरों में पड़ गए। बोले ‘श्रीवास्तव जी,अब मेरी इज्जत आपके हाथों में है।’ पापा ने उन्हें ऊपर उठा कर बैठाया और पूछा ‘ ये सब क्या चक्कर है?’ मिश्रा अंकल बोले ‘ घर वालों ने बचपन में ही गांव में मेरी शादी कर दी थी। अब बड़े होने पर मेरे और मेरी पत्नी के स्तर में बहुत अंतर आ गया। उसके साथ रहना मुश्किल था
लेकिन घर वालों के दबाव में कुछ कर नहीं सका। इसलिए इस शादी को निभा रहा हूं। सारिका मेरे साथ कॉलेज में पढ़ती थी कब इस से इतनी नजदीकी हो गई पता ही न चला। इससे भी मुझे एक लड़का हो गया। ये बरेली में रहती है। मैं भी बीच बीच में समय निकाल कर इन लोगों से मिलने आ जाता हूं। बस आपलोगों से इतनी प्रार्थना है कि इस बात का कहीं जिक्र न करें वरना मेरी इज्जत चली जाएगी।
मैं किसी को मुंह दिखाने के लायक न रहूंगा।’ इसके बाद भी जाने क्या क्या वो कहते रहे। मम्मी- पापा ने उन्हें कई तरह से समझाने की कोशिश भी की।लेकिन व्यर्थ रहा। अंकल ने मम्मी पापा से ये वादा तो ले ही लिया कि इस घटना का कोई भी लौट कर जिक्र न करे।
छु्टियां खत्म हो गईं। हम लोग लौट कर घर आ गए। फिर इसके बाद मिश्रा परिवार कभी हमारे घर नहीं आया। कुछ समय बाद मिश्रा अंकल ने अपना ट्रांसफर भी कहीं और करा लिया। फिर कभी उन लोगों से सम्पर्क नहीं हुआ। आज भी लेकिन कभी वो गाना सुनाई दे जाए तो होंठों पे हंसी अपने आप आ जाती है ‘ चारों धाम घर वाली है।’
राजीव कुमार श्रीवास्तव