ज़ड़ें : मीनाक्षी सिंह Moral Stories in Hindi

क्या काका…

आप भी बुढ़ापा आ गया …

काकी भी छोड़ कर चली गई …

अकेले इस  टूटे-फूटे घर में पड़े रहते हो…

पिछली बार भी तुम्हारा बेटा पिंटू आया….

बोला भी कि…

चलो पापा  हमारे साथ…

चल कर रहो ….

लेकिन तुम तो काका अपनी ज़िद  के पक्के…

कभी जाते ही नहीं …

कितने बीमार रहते हो…

बस यहीं  बाहर चबूतरे में आधा दिन बिता देते हो….

अपने बेटे की बात क्यों नहीं मान लेते….???

अंत समय में उसके साथ रह लोगों  तो कुछ सेवा मिल जाएगी…

और अंतिम सांस भी अच्छे से ले लोगे…

बाहर चबूतरे पर लाठी लिए बैठे दीनानाथ काका से पास के पड़ोसी दिगंबर  बोले….

यहां आ…

यहां आकर बैठ ….

काका ने अपने पास ही दिगंबर को बैठा लिया….

हां तो तू क्या कह रहा था…

कि मेरा लाल आया था …

और मुझे साथ चलने को बोल रहा था…

तू  बिल्कुल सही कह रहा है…

वह हर बार आता है…

झूठ ना बोलूँ मैं  बहू भी खूब ज़िद  करती है …

और बेटा भी…

कि  चलिए पापा हमारे साथ चल कर रहिये….

लेकिन इस घर को छोड़कर कैसे चला जाऊं …

जिससे  मेरी सविता की यादें जुड़ी है…

जब पहली नौकरी लगी…

तो कुछ समय में ही जल्द ही यह मकान ले लिया था…

कितनी खुश हुई थी सविता…

कितना बड़ा कार्यक्रम किया था…

तू तो तब पैदा भी नहीं हुआ था…

अपने बाप से पूछना…

तुझे क्या लगता है…

अगर मैं अपने बेटे के साथ चला जाऊंगा…

मानता हूं…

शायद वह मुझे अच्छे से रखें…

लेकिन तुझे क्या लगता है …

कुछ ही महीनों  में वह बोल देगा…

कि पापा क्या वह गांव का टूटा फूटा घर अभी भी आपने बचा रखा है….

उसे बेच  दीजिए…

शहर में ही कुछ ले लेते हैं…

धीरे-धीरे करके वह मकान बेचेगा…

फिर धीरे-धीरे करके खेत भी बेच  देगा…

फिर बता मेरा इस गांव में क्या अस्तित्व रह जाएगा …

क्या यह गांव वाले मुझे याद भी करेंगे …

कि यहां पर कोई दीनानाथ काका भी रहा करते थे ….

अपनी नींव  को कैसे भूल जाऊं …

यह मेरी जड़े हैं …

तू आजकल के बच्चों को नहीं जानता …

बस स्वार्थ से जुड़े हैं…

मानता हूं मैं बीमार रहता हूं …

ठीक है ..

70 वर्ष का हो चुका…

5 -10 साल और चलेगी ये गाड़ी …

जैसे रह रहा हूं…

वैसे ही गुजर जाएंगे…

और एक बात और सुन…

आजकल के बच्चे बात-बात पर सुना देते हैं…

कि आपने हमें इसीलिए पैदा किया…

कि हम आपकी सेवा कर सके …

कम से कम मेरे बेटे को यह कहने का मौका तो नहीं मिलेगा …

कि मैं उसे इसलिये दुनिया में लाया….

मैं नहीं चाहता कि अंत समय में बिस्तर पकड़ू…

और मेरे बहू बेटा मेरी सेवा करें…

जैसा हूं वैसा ही चला जाऊं…

बस ऊपर वाले से यही कामना है …

वाह काका आपकी बात समझ में आती है…

काका लेकिन एक बात बताओ …

अगर तुम स्वर्ग सिधार  गए तो भी तो पीछे से तुम्हारा बेटा यह मकान बेच ही देगा…

फिर क्या कर लोगे…

तुम ऊपर स्वर्ग में बैठे-बैठे…

दिगंबर बोला…

यह बाल ऐसे ही धूप में सफेद ना किए हैं ….

मैं अपने जाने से पहले ही यह मकान वो  जो सामने झोपड़पट्टी में गरीब लोग रहते हैं….

जो जगह-जगह अपना सामान लेकर घूमते रहते हैं …

उनमें से किसी एक को दे दूंगा…

उनके लिए तो यह स्वर्ग  के समान होगा…

जो हर मौसम बदलते ही अपना सामान लेकर इधर से उधर भटकते रहते हैं….

और मैंने देखा है…

उनमें तो एक बेचारे के 5 से 6 बच्चे हैं…

कैसे उसके बच्चे सोते हैं …

कैसे उनके यहां खाना बनता है…

तो क्या काका …

तुम क्या समझते हो कि वह क्या मकान को बेचेंगे नहीं…

तू क्या मुझे बेवकूफ समझता है …

मैं लिख करके जाऊंगा…

कि यह मकान उनके नाम है…

लेकिन वह इस मकान को बेच नहीं सकते …

अगर यह इसको बेचेंगे तो यह सरकार की संपत्ति माना जाएगा….

बस वह  इसमें रह सकते हैं….

क्या बात है काका…

तुम्हारी बुद्धि की भी तारीफ करनी पड़ेगी….

अब पता नहीं कानूनी दांव  पेंच के हिसाब से तुम्हारी बात कितनी सही है….

चलता हूँ  चाय बना लूं दिगंबर अब…

तलब लग रही….

रहने दो काका….

आज तो अपने घर की ही चाय तुम्हें पिलाता हूं तुम्हे …..

रोज-रोज तो  तुम ही बनाते हो…

तभी दिगंबर अपने घर से दो कप चाय बना लाया…

दोनों चुस्की लेकर पीने लगे …

अभी भी  दीनानाथ काका अपने उस टूटे-फूटे मकान की ओर देख रहे थे …

और मन ही मन सोच रहे थे कि यह मेरी जड़े हैं …..

इन्हें छोड़कर मैं कहीं नहीं जा सकता …

आखिर मेरा वजूद ही तो मेरा यह गांव है …..

जो आजकल के बच्चे भूलते जा रहे हैं….

उनकी आंखें नम हो गई थी…

दिगंबर भी काका की  नम आंखों को  देख मुस्कुरा दिया…. दीनानाथ काका दुनिया से जा चुके थे….

लेकिन उन्होंने दिगंबर से जो कहा था…

कि वह अपना घर झोपड़पट्टी वालों के नाम कर जाएंगे….

शायद उनसे यह नहीं हो सका…

वो घर वह अपने पोते के नाम करके गए …..

आखिर मूल से ब्याज प्यारा होता है ….

पोते ने भी मन ही मन निश्चय किया …

कि मैं अपने बाबा की  इस निशानी को बेचूँगा नहीं…

सभी संताने एक सी नहीं होती…

यह आज दीनानाथ काका के पोते ने उन्हें गलत साबित करके सिद्ध कर दिया था ….

मीनाक्षी सिंह

आगरा

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