80 वर्षीय देवीप्रसाद जी का अंतिम संस्कार हो चुका था । घर के लोग वापस घर आ चुके थे और बाहर बरामदे में बैठे थे। रिश्तेदार अंदर बाहर हो रहे थे । कोई नहाने की तैयारी कर रहा था कोई नहाने गया था, तभी पड़ोस से विमला चाची व उनकी दोनों बहुएं चाय और बिस्किट वगैरा लेकर आ गईं। चाय देखते ही सबकी आंखों में चमक सी आ गई।
सुबह 5:00 बजे से बैठे थे अब डेढ़ बज रहा था । खाने का आर्डर छोटी बहू नीना के भाई ने कर दिया था । 2:30 बजे तक खाना आ जाना था तब तक सबको लग रहा था कि एक कप चाय मिल जाए और चाय हाजिर हो गई थी। सब बरामदे में आ गए और अपने-अपने कप लेकर वहीं बैठ गए इतने में माया जी,
देवी प्रसाद जी की पत्नी को याद आया कुछ और उन्होंने छोटी बहू नीना को कहा कि बड़ी बहू ममता को भी बुला लो चाय पी लेगी कि तभी ममता हाथ में बैग लिए अपने दोनों बच्चों का हाथ पकड़ कर आ गई माया जी ने हाथ में ममता के बैग देखकर पूछा- “यह बैग किसलिए ममता…आओ चाय पी लो”।
ममता ने जवाब दिया – “नहीं मां मैं वापस अपने घर जा रही हूं चौथे पर आ जाऊंगी।” सुनते ही माया जी व ममता के पति विकास तो हैरान हो ही गए बाकी सब रिश्तेदारों के हाथ भी फ्रीज हो गए । सब उसे स्थिति को समझने का प्रयास में लग गए । विकास ने थोड़ा गुस्से में कहा – “यह क्या मजाक है ममता …तुम्हें पता नहीं है कि अभी हमें 15 दिन यही रहना है l पगड़ी रसम 13 दिन के बाद होनी है उसके बाद ही जाएंगे । “नहीं, मुझे याद है पर कहा ना चौथे पर आ जाऊंगी ।
अभी जा रही हूं आप यहां रहिए । आप तो बेटे हो सब कुछ तो आप ही को करना है औरतों का क्या काम?” माया देवी का तो गुस्से के मारे बुरा हाल हो गया । भरी बिरादरी में बहु ऐसा तमाशा कर रही है घर की इज्जत को मिट्टी में मिल रही है। “ममता यह क्या बदतमीजी है तुम्हारे ससुर को गए अभी एक दिन भी नहीं हुआ और तुम ऐसा तमाशा कर रही हो ।
।तुम घर की बड़ी बहू हो सब कुछ तुम्हें करना है और तुम हो की जान छुड़ाकर भाग रही हो इस घर के प्रति तुम्हारी कोई जिम्मेदारी है कि नहीं..?” “नहीं मम्मी जी मुझे सब पता है कि मेरी क्या जिम्मेदारी है पर शायद आप और आपका बेटा भूल गए हो कि आप लोगों ने ही कहा था कि ऐसे समय पर घर की औरतों की कोई जिम्मेदारी नहीं होती इस समय सिर्फ बेटों का ही काम होता है ।
यही शब्द थे ना जो आप दोनों ने मेरे पापा के जाने के बाद शमशान घाट पर बोले थे जब मैं अपने घर, अपने मायके जाने के लिए गाड़ी की तरफ बड़ी थी । यह आप ही ने कहा था ना की बेटियां नहीं रुकती और तुम्हें पता है मैं घर का काम नहीं संभाल सकती, तब मेरी मां, मेरे भाई -भाभी सब ने कितने हाथ जोड़े थे कि अच्छा चौथे तक तो रहने दो तब तक बेटियां रुक सकती हैं लेकिन आप लोगों ने एक न सुनी और उसे दुख की घड़ी में मुझे रोता बिलखता देख कर भी,
मेरी मां, भाई भाभी को हैरान छोड़ते हुए घर ले आए थे 5 साल हो गए पापा को गए और 3 साल बाद मां भी चली गई तब भी विकास आपने मुझे एक दिन के लिए भी नहीं छोड़ा। अपने आंसुओं, अपने दर्द को छुपाती आपके साथ वापिस आ गई। आपकी दोनों बहनें भी यहीं बैठी हैं क्या वो भी अपने ससुराल वापिस जा रही हैं?
नहीं ना … वो पगड़ी रस्म तक यही रहेंगी तो फिर मेरे साथ आप लोगों ने ऐसा क्यों किया? क्या समझ लिया था कि मैं सब कुछ भूल चुकी हूं तो फिर आज तो आप उम्मीद भी मत करो कि मैं 15 दिन तो छोड़ चौथे तक भी रुक पाऊंगी ।” रिश्तेदारों में खुसर फुसर शुरू हो गई।
विकास की ताई एक दबंग महिला थी उन्होंने बात को लपक लिया और एकदम बोल उठी …”माया …. तू तो कह रही थी कि तूने बहू को दोनों बार 20-25 दिनों के लिए उसके मायके भेज दिया था, ये मैं क्या सुन रही हूं कि शमशान घाट से ही तू बहू को वापस ले आई थी उसे उसके मां-बाप के लिए रोने भी ना दिया और आज उसे अपनी जिम्मेदारी का पाठ पढ़ा रही है और तू विकास… तेरी बुद्धि को क्या हो गया था तेरी तो दो दो बहनें हैं ।
माया ने तो बहू बेटी में फर्क किया पर तू तो उसका साथ दे सकता था पर तुझे भी उसका दर्द न समझ आया । तू शायद भूल कि तेरी भी एक बेटी है उसके साथ ऐसा हो तो….?” विकास की दोनों बहनें मुंह झुका कर बैठी रहीं कुछ कहने की हालत में ही न थी । विकास ने नजर उठा कर अपनी पत्नी को देखा।
उसे नहीं पता था कि ममता ने अपने दिल में एक ज्वालामुखी छुपा कर रखा हुआ था जिसका लावा आज सरेआम फूट कर बाहर निकला । माया देवी की तो जुबान पर ताला लग चुका था ममता ने भरी बिरादरी में उनके मुंह पर ऐसा तमाचा मारा था जिसकी गूंज उन्हें अब तेजी से सुनाई दे रही थी
शिप्पी नारंग