जानकी विदा होकर पहली बार ससुराल आई थी। आते वक्त उसकी माँ ने समझाया था कि बेटी अब तुम्हारा घर ससुराल ही है। जो सास, ससुर पति जैसा कहें करना, क्योंकि ससुराल वालों की नाक बहुत ही होती है। मेरा ज्यादातर जीवन शहर मे ही बीता था। मेरे मामा जी शहर में ही रहती थी, इसीलिए मैं भी वहीं रह कर पढ़ी। मैं दकियानूसी विचार धारा की प्रवल विरोधी थी।
जैसे ही मैं दरवाजे पर उतरी तो देखा मुझे देखने के लिए गाँव की महिलाओं की भीड़ थी। हर जगह की अपनी परंपरा होती है। सो जैसा जैसा मेरी सास बोलती गई वैसा वैसा मैं करती गई। किंतु एक जगह मामला अटक गया। मैंने सास की बताई गई परंपरा जो मेरी समझ में नही आ रही थी,को मना कर दिया और मैंने कहा, ” यह मेरे मन के खिलाप है “।
सास बोली, ” अरे! यह तो हमारे घर की परम्परा है “। मैं बोली, “मम्मी जी! जो चीज मेरी पति और परिवार के विरुद्ध हो, वह परंपरा कैसे ठीक हो सकती है? “।
सास गुस्सा होकर अंदर चली गई। उसने मेरे पति से बात बढ़ा चढ़ा कर कही। पति बोले, ” मधु! जो माँ कहे वह कर लो, वरना वेवजह अभी से घर में कलह मचने लगेगा ,जब तक माँ है तब तक ऐसी परंपराओं को मानना पड़ेगा,क्योकिं दादी ने उन्हें दी हैं”।
मैं तिलमिला गई। मैंने कहा, ” जो बाते समझ में न आये उनको आँखे बंद करके कैसे मान लूँ, आप भी वही करने को कह रहे हैं जो मैं करना नही चाहती हूँ”।
वह उस समय कुछ नही बोले और उठ कर चले गए।
रात के समय जब मेरी उनकी मुलाकात हुई तो वह बोले, ” देख मधु! माना कि तुम किसी रीत रिवाज या परंपरा को नही मानती, किंतु माँ जब से आई तब से मान रही है, जो समाज में होता चला जा रहा है वह एक दम बंद नही हो जायेगा, इन्हें धीरे धीरे बन्द करना होगा, न करने से माँ गुस्सायेगी और कहेगी, ‘आज से ही बहू अपनी मनमानी करने लगी, आगे क्या होगा'”
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अच्छा एक चीज बताओ कि यदि तुम्हारी भाभी भी ऐसा करने लगे तो फिर तुम्हारी और तुम्हें कैसा लगेगा?”।इसलिए हम दोनों का भला इसी में है कि माँ की इन बातों को तो मानते चलें, वरना आगे क्या होगा तुम भी सोच नही पाओगी “।
मधु कुछ देर सोचती रही फिर बोली, ” आप सही कहते हैं कि हमें माँ की बातों को मान लेना ही सही है, बाद में हम माँ को इसके बारे में समझायेंगे, शायद वह मान जायेगी, वरना वह हमेशा कलह मचाती रहेगी “
“हाँ! मैं भी यही समझा रहा हूँ “, राजेंद्र बोला।
मधु उठी और सासू माँ के पास पहुँच कर बोली, ” माँ जी मैं गलत थी, आप जो कहेंगी वह करूँगी”
सासू माँ यह सुन प्रसन्न हो गई और बोली, ” बहू! ये परंपराएं मैंने नही बनाई, मेरी सास करती थी, मैं भी करती हूँ, मेरे बाद अगर तुम्हें न समझ में आयें मत मानना “।
सासू माँ और मधु दोनों खुश होकर परंपरा मनाने चली गईं।मधु ने लम्बी सांस लेते हुए कहा, ” इन्हीं परंपराएं , रिवाजों ने इस देश की महिलाओं को बहुत पीछे कर दिया है, पढ़ना लिखना जरूरी नही किंतु परंपराएं मानना जरूरी है, देखो! इनसे छुटकारा कब मिलता है?”।।
©कवि डॉ. जय प्रकाश प्रजापति’ अंकुश कानपुरी’