कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग-1) – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi

दोस्तों आज 1 अगस्त हैं, अगस्त का महीना वैसे भी देशप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत रहता है, इसी माह की 15 तारीख़ सन 1947 को हमें अंग्रेजों से आजादी मिली थी।

आजादी मिलना एक बात है और यह आजादी बनायें रखना उससे भी बड़ी बात है, हम सब अपनी आजादी के बाद से अब तक पाकिस्तान से 3 सीधे युद्ध और एक छद्म युद्ध, चीन से 1 सीधा युद्ध और 2 छद्म युद्ध लड़ चुके हैं।

हम आज भी आजाद हैं क्योंकि हमारी सेना युद्ध में “पीठ दिखाना” नहीं जानती।

इन्हीं सैनिकों के सम्मान में आज से मैं जो यह कहानी लिख रहा हूँ, यह एक कल्पित प्रेम कहानी है जो कि कारगिल युद्ध के समय की परिस्थितियों की कल्पना करके रची गई हैं, जिसमें नायिका किस तरह संयोग से अपनी दीदी की शादी में आये युवक से जाने अनजाने प्रेम कर बैठती है, उसे बाद में पता चलता है कि वह एक भारतीय फौजी है, इसलिए उसको एक भारतीय फ़ौजी से प्रेम होने की वजह से उसे कितनी कठिनाइयों के बाद अपना सच्चा प्रेम मिलता है। यह दर्शाया गया है।

इस कहानी के कुल 20 अंक होंगे जो प्रतिदिन प्रकाशित होंगे…

आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपको मेरी यह कहानी पसन्द आयेगी।

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कारगिल_एक_प्रेमकथा (भाग 1)

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उस विवाह मंडप में ग़ुलाबी लहंगा चोली पहनी शोख़ चंचल “उर्वशी”  सभी के आकर्षण का केंद्र बनी हुई थी…आखिर हो भी क्यों न, अव्वल तो वह दुल्हन की छोटी बहन थी, दूसरा वह दिखने में इतनी सुंदर थी कि जो कोई उसे देखता तो बस देखता ही रह जाता… लगभग साढ़े पांच फीट का कद, गोरा वर्ण, बड़ी बड़ी काली आँखे, कमर तक फैले खुले बाल, सुडौल शरीर….उसकी सुंदरता बरबस ही किसी का भी मन मोह सकती थी।

उर्वशी ने महसूस किया कि एक जोड़ी आँखें बड़ी देर से उसका पीछा कर रही है.. जिससे वह असहज हो रही थी.. गाँव में लड़कियों की परिस्थिति ही कुछ ऐसी होती है कि  वह उस अपलक देखने वाले युवक की तरफ़ आँख उठाकर भी नहीं देख सकती थी, गाँव में इस तरह नज़र भर के देख लेना भी वहां के लोगों के लिए “किस्से कहानियां बुनने” के लिए  एक “मसाला” मिल जाता है।

अपने प्राकृतिक सुंदरता एवम दुर्लभ जड़ी-बूटियों के लिए मशहूर मध्यप्रदेश के हिल स्टेशन “पचमढ़ी”  के नज़दीक ही उस “झिरपा” गाँव में यूँ भी शादी का कोई इंतजाम हो न या हो बाराती और घराती के अलावा पूरा गाँव तो उस विवाह में शिरकत करेगा ही. ऐसा अघोषित सा दस्तूर था उस गाँव का.… परन्तु अगर विवाह ग्राम प्रधान के यहाँ ही हो तब तो सभी का अधिकार ही था उस विवाह के जश्न में शामिल होने का।

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ग्राम प्रधान महेश्वर तिवारी की बड़ी बेटी वंदना का विवाह गुड़गांव के पंकज गौतम से हो रहा था, पंकज गौतम गुड़गांव में ही सॉफ्टवेयर कंपनी में सॉफ्टवेयर इंजीनियर था, उनका परिवार मध्यप्रदेश के भोपाल के पास ही रहता था, उन्होंने किसी सजातीय ब्राम्हण विवाह संस्था के माध्यम से महेश्वर तिवारी से दूरभाष के माध्यम से सम्पर्क करके मिलने का प्रोग्राम बनाया.. वंदना देखने में बहुत ही सुंदर थी , वह पचमढ़ी में ही किसी प्राथमिक विद्यालय में शिक्षिका थी।

उस छोटे से गाँव में लगभग 100 एकड़ से अधिक जमीन के जमींदार महेश्वर तिवारी की हैसियत उस गाँव में किसी राजा से कम न थी, वंदना एवं उर्वशी उनकी दो ही बेटियाँ थी।

बड़ी वंदना और उससे 2 वर्ष छोटी उर्वशी जो कि शिमला में किसी नामी फलों के जूस की कम्पनी “प्रोडक्शन हेड” थी। तिवारी जी की पत्नी का जल्द देहांत हो गया था, इसलिए उन्होंने ही अपनी बेटियों को बेटे की तरह ही पाला पोसा था। दोनों बेटियाँ गाँव में रहने के बावजूद भी उच्च शिक्षित एवम सर्वगुण संपन्न थी, दोनों ही देखने में इतनी सुंदर थी कि दोनों में से कौन ज़्यादा सुंदर है यह बता पाना कठिन था।

उस संकीर्ण मानसिकता वाले गाँव में प्रारंभिक शिक्षा होने के बाद भी दोनों ही कन्याएं आधुनिकता एवम संस्कृति का मिला जुला संगम थी, और अब तो दोनों ही आत्मनिर्भर भी थी।

पिताजी ने उन दोनों को ही अपनी पसन्द का वर चुनने की आजादी दी थी शर्त बस इतनी थी कि लड़का अपने पैरों पर खड़ा हो एवम सजातीय हो। बहुत अभिमान था तिवारी जी को अपनी दोनों बेटियों पर…

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