अनुराधा का तो अब रोज़ का ही “रूटीन” बन चुका था, कि वह रोज़ शाम को ऑफिस से आकर मंत्री कुंदन महतों, रितेश ठाकुर और धीरेन्द्र पाटिल से जुड़े मामले की, अपने पास उपलब्ध जानकारी, कॉल डिटेल्स और ख़ुफ़िया कैमरे की रिकॉर्डिंग आदि की सहायता से सारी कड़ियों को जोड़ कर पता लगाना कि, आखिर धीरेन्द्र पाटिल के पास ऐसी कौन सी सम्पत्ति है, जो वह मंत्री जी को बता रहा था, यदि है तो कितनी है, कहां पर है, और उसने इसे किस तरह से अर्जित किया होगा?
एक दिन अनुराधा ऐसे ही अपने काम से ऊबकर टेलीविजन चैनल देख रही थी, अचानक उसने टेलीविजन में एक इश्तेहार में देखा कि एक कानपुर की कंपनी “जेलकेम” गंगा नदी की सफ़ाई में प्रदेश सरकार के साथ मिलकर कार्य कर रही है, सामान्यतः बड़ी कंपनियां अपने “वेलफेयर फण्ड” का उपयोग इस तरह के समाज सेवा कार्य में करती हैं, जिसके फलस्वरूप उस कंपनी की मार्केट गुडविल बढ़ती है,और सरकार ऐसी कंपनियों परोक्ष रूप से काफ़ी रियायत भी देती है।
अनुराधा के मन में ऐसे ही यह जानने की उत्सुकता जागी कि ऐसी कौन सी ऐसी कानपुर की कंपनी है, जो गंगा नदी की सफ़ाई पर प्रदेश सरकार का इतना सहयोग कर रही है, इसलिए उसने गूगल पर “जेलकेम” नाम डालकर सर्च किया, तो अनुराधा को इस कंपनी का हेड ऑफिस बेल्जियम में दिखा, यह देख कर तो अनुराधा के कान खड़े हो गये।
अनुराधा ने इंटरनेट पर “जेलकेम कम्पनी” की वेबसाइट पर जाकर सर्च किया तो उसने पाया कि यह तो बेल्जियम की ही कंपनी है, क़रीब 14 वर्ष पहले इस कंपनी ने अपनी एक फैक्ट्री कानपुर में डाली थी।
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अनुराधा की “छठी संज्ञा ” उसे आभास दे रही थी कि जरूर इस फ़ैक्टरी का कोई कनेक्शन धीरेन्द्र पाटिल या रितेश ठाकुर से होगा क्योंकि रितेश ठाकुर के पिता तो बेल्जियम में ही रहते हैं।
अनुराधा ने दूसरे दिन से ही आफिस जाकर “जेलकेम” कम्पनी के भारत मे कारोबार पर जानकारी एकत्रित करना शुरू कर दिया।
अनुराधा ने पता लगाया कि जेलकेम कंपनी पशुओं की हड्डियों से उर्वरक बनाकर भारत में ही बेचने का काम करती है।
अनुराधा ने यह भी पता लगा लिया था कि जब “जेलकेम कंपनी” ने अपनी फ़ैक्टरी कानपुर में स्थापित की, उस वक़्त प्रदेश का उद्योग मंत्री धीरेन्द्र पाटिल ही था इसलिए उसे यह शक हुआ कि, हो न हो धीरेन्द्र पाटिल ने इस कंपनी को उद्योग लगाने के एवज में कुछ कमीशन खाई होगी। पर यदि कमीशन खाई भी होगी तो कितनी? कुछ लाख? या कुछ करोड़, या फिर उससे भी ज़्यादा ?
अनुराधा का दिमाग काम नहीं कर रहा था, उसने जेमकेम कंपनी का भारत में टर्नओवर निकाला, तो पता चला कि कंपनी प्रतिवर्ष लगभग 850 करोड़ का उर्वरक बनाकर बेचती है, यानी कमीशन की राशि निश्चित ही करोड़ों की हो सकती है।
अनुराधा ने इस बारे पूरी जानकारी कमिश्नर सर को दी, पर उन्होंने कहा कि अभी भी तुम्हारी कार्यवाही सिर्फ अनुमान पर ही आधारित है, तुम्हारे पास जेमकेम और धीरेन्द्र पाटिल के बीच की “डील ” के कोई भी सबूत नहीं है, इस दशा में वह किसी भी कार्यवाही की अनुमति नहीं देंगें।
अनुराधा हताश होकर बैठ गई, उसे समझ नहीं आ रहा था कि कमिश्नर सर उसे न तो धीरेन्द्र पाटिल पर कार्यवाही करने दे रहें हैं, और न उस “जेमकेम” कम्पनी पर कोई एक्शन लेने को कुछ कह रहे हैं, ऐसी दशा में वह करें तो क्या करें।
इसी गहमागहमी में पूरा सप्ताह निकल गया, इस रविवार को उसकी एक पूर्व सहपाठी “सुनीता ” किसी निज़ी कार्य से गाज़ियाबाद आ रही थी, उसका गाज़ियाबाद में कोई संबधी न होने के कारण वह अनुराधा के यहां पर ही आ रही थी, अनुराधा भी अपने ऑफिस के कार्य से ऊब चुकी थी, उसने भी सोचा कि बहुत दिनों बाद उसकी पुरानी दोस्त आ रही है,तो इस रविवार को वह कोई और कार्य न करके सुनीता के साथ पूरा रविवार एन्जॉय करेगी।
रविवार को अनुराधा ने सुनीता को लाने के लिए रेलवे स्टेशन पर कार भिजवा दी थी, सुनीता आते ही बड़ी गर्मजोशी से अनुराधा से गले मिली, और उसे कलेक्टर बनने की बधाई दी, अनुराधा के पिता वीरेश्वर मिश्रा, और अरविंद के माता पिता का अभिवादन करके सुनीता और अनुराधा अपने कमरे में जाकर गप्पें लड़ाने लग गए।
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सुनीता एक दवा कंपनी में रिसर्च वैज्ञानिक थी, सुनीता ने बताया कि दो महीने पहले ही उसकी सगाई संजय शर्मा से हुई है, संजय शर्मा कानपुर में ‘ड्रग इंस्पेक्टर” है।
सुनीता द्वारा इतना सुनते ही अनुराधा के दिमाग मे जेलकेम कंपनी के बारे में याद आया।
उसने सुनीता से अनुरोध किया कि वह अपने होने वाले पति से बात कराये। पहले तो सुनीता ने मज़ाक मस्ती में अनुराधा को चिढ़ाते हुए कहा, नहीं वह ऐसा करके अपने पैर पर कुल्हाड़ी नहीं मारेगी, पर जब अनुराधा ने उसे संशिप्त में जेलकेम कंपनी की सूचना प्राप्त करने में उसके मंगेतर संजय शर्मा की मदद का आग्रह किया तो सुनीता ने फ़ोन लगा दिया।
सुनीता ने अपनी सहेली अनुराधा का परिचय देते हुए अपने मंगेतर संजय शर्मा से बात कराते हुए कहा कि,अनुराधा उससे बात करना चाहती है, हल्के-फुल्के मज़ाक के बात अनुराधा ने संजय शर्मा से मुद्दे पर आते हुए “जेलकेम” कम्पनी के बारे में जानकारी मांगी तो संजय शर्मा ने कहा कि वह फ़ैक्टरी उसके कार्य क्षेत्र में ही आती है, वह पहले भी उस फ़ैक्टरी का निरीक्षण कर चुका था, जेमकेम बेल्जियम की कंपनी है, जिसके पास भारत मे उर्वरक निर्माण करने का वैध लाइसेंस है। अभी दो- तीन दिनों में ही वह उस फ़ैक्टरी के निरीक्षण के लिए जाने वाला है।
यह सुनते ही अनुराधा की आंखों में चमक आ गई, उसने संजय शर्मा से अनुरोध किया कि वह भी उसकी निरीक्षण करने वाली टीम का सदस्य बनकर उस फ़ैक्टरी में विजिट करना चाहती है, थोड़ा घबराते हुए संजय शर्मा ने उसे इस आश्वासन के बाद कि “वह किसी से भी निरीक्षण के दौरान कोई भी प्रश्न नही करेगी” उसे अपने साथ जाने वाली टीम का हिस्सा बनाने को तैयार हों गया।
अपनी योजनानुसार अनुराधा दो दिन बाद कमिश्नर सर से “व्यक्तिगत कार्य” के नाम पर छुट्टी लेकर ट्रैन से कानपुर आ गई, यहां पर उसकी सहेली सुनीता का मंगेतर संजय शर्मा अपनी टीम के साथ जेलकेम मे निरीक्षण के लिए तैयार था, उसने अपनी टीम के बाकी सदस्यों से अनुराधा का परिचय एक फार्मासिस्ट के तौर पर करा कर कहा कि उसे फ़ैक्टरी निरीक्षण का अनुभव लेने के लिए अपनी टीम में शामिल किया गया है। टीम के बाकी सदस्य भला अपने सीनियर के सामने क्या सवाल करते, वह सब अनुराधा के साथ जेलकेम फ़ैक्टरी के निरीक्षण के लिए चल पड़े।
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“जेलकेम” फ़ैक्टरी कानपुर में गंगा नदी के किनारे लगभग 100 एकड़ के कैम्पस में फैली हुई थी, यह एक अत्याधुनिक फ़ैक्टरी थी, बिना परमिशन के तो यहां परिंदा भी पर नहीं मार सकता था।
चूँकि संजय शर्मा पहले भी उस फ़ैक्टरी में आ चुका था इसलिए उसे देखते ही वहाँ स्थित सेक्युरिटी स्टाफ़ में फ़ैक्टरी “जनरल मैनेजर” प्रवीण खत्री को फ़ोन कर दिया।
संजय शर्मा को अपना परिचय देने के पूर्व ही, उसके मोबाइल पर प्रवीण खत्री का फ़ोन आ गया, उसने घबराकर पूछा कि आप लोग अचानक आ गए हैं, यदि उसे पहले सूचित करते तो, जेलकेम कंपनी उनके स्वागत में स्वयं अपनी गाड़ी भेज देती, इस पर संजय शर्मा ने कहा कि नही इसकी कोई जरूरत नहीं थी, वह आपनी रुटीन विज़िट के लिए ही इस फ़ैक्टरी के निरीक्षण के लिए आया है, इसके अलावा उसे यहां आने का कोई विशेष प्रयोजन नहीं था। संजय शर्मा की बात से आश्वस्त हो कर जनरल मैनेजर प्रवीण खत्री ने संजय शर्मा और उसके साथ आये सभी सदस्यों के लिए फ़ैक्टरी गेट एंट्री पास जारी करने का आदेश दिया।
अंदर आते ही जेलकेम कंपनी की रिसेप्शन टीम ने उन्हें “पुष्प गुच्छ” देकर स्वागत किया और जलपान कराने स्वागत कक्ष ले गए।
अनुराधा ने महसूस किया कि फ़ैक्टरी मैनेजर सहित सारा स्टाफ़ इस कोशिश में लगा हुआ है, कि किस तरह से आवभगत के नाम पर संजय शर्मा के साथ आई हुई टीम का वक़्त ख़राब कराकर उन्हे जल्द से जल्द वापस लौटा दिया जाए। परन्तु संजय शर्मा के पावर को देखते हुए वह लोग हिम्मत नही कर पा रहे थे।
स्थिति की गंभीरता को समझते हुए संजय शर्मा ने प्रवीण खत्री को किनारे में ले जाकर कहा कि वह अपनी साली अनुराधा को फ़ैक्टरी दिखाने के लिए लाया है, उसने अभी-अभी “बी-फार्मा” किया है, और आपकी फ़ैक्टरी का बहुत नाम सुना है इसलिए उसे मैं यहां ले आया।
उसकी बात सुनकर प्रवीण खत्री हँसकर बोला भाई ऐसा कहो न, मैं तो फ़ालतू में टेंशन पालकर बैठा था कि पता नही आप किस चीज़ का निरीक्षण करने आये हो, और हम कोई तैयारी भी नहीं कर सके।
वैसे भी “साली तो आधी घरवाली” होती है, फिर भला अपनी नई नवेली साली कोई कैसे टाल सकता है, कहकर प्रवीण खत्री ज़ोरदार ठहाका लगाते हुए अपने स्टाफ़ को अनुराधा और संजय शर्मा को फ़ैक्टरी दिखाने का निर्देश देकर चला गया।
उसकी बात पर अनुराधा को गुस्सा तो बहुत आ रहा था परन्तु वह कर भी क्या सकती थी, और वैसे भी ऐसी सहज और तनावरहित स्तिथि में उसे ही निरीक्षण करने में उसे ज़्यादा आसानी पड़ेगी।
संजय शर्मा भी प्रवीण खत्री की बात से असहज़ था, उसे भी उम्मीद नहीं थी कि इतनी बड़ी फ़ैक्टरी का जनरल मैनेजर “साली आधी घरवाली” टाइप चालू भाषा मे बात करेगा।
खैर उस फ़ैक्टरी के दो ट्रैंड स्टाफ़ उसे और संजय शर्मा को लेकर फ़ैक्टरी का निरीक्षण कराने लगें। उनमें से एक कर्मचारी रटे रटाये टैप की तरह शुरू हो गया।
“मैडम यह फ़ैक्टरी विश्व के सभी सर्वोच्च क्वालिटी मानकों को पूरा करती है, 15 वर्ष पूर्व तक जब कानपुर में हमारी कंपनी नहीं शुरू हुई थी, यहां के लोग इसी पवित्र गंगा नदी में जानवरों की हड्डियां डाल देते थे। हमनें उनसें यह हड्डियां ख़रीदकर उसका उर्वरक बनाने का काम प्रारंभ किया, इससे उन्हें जानवरों कर उस फ़ालतू कचरे से भी पैसा मिलने लगा, और गंगा मैय्या भी साफ़ रहने लगी।
अनुराधा ने बीच मे ही टोंकते हुए पूछा, पर यहां पर इतनी जानवरों की हड्डियां आती कहां से है?
अनुराधा की बात पर आश्चर्य व्यक्त करते हुए फ़ैक्टरी स्टाफ़ के दोनों कर्मचारी अनुराधा की और देखने लगे, उनमें से एक बोला, अरे आप इतना भी नहीं जानती क्या? कानपुर के चमड़ा उद्योग तो पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है, यहां पर चमड़े जूते, चप्पल, बेल्ट और पर्स बनाने की सैकड़ों फैक्टरियां है।
पहले यहां के लोग मरे हुये गाय, भैस आदि का चमड़ा निकाल कर उनकी हड्डियां नदी में फेंक देते थे, हम उन्हीं हड्डियों को लेकर खाद बनाते हैं।
अनुराधा ने फ़िर पूछा, पर इतनी ज़्यादा चमड़े की फ़ैक्टरी के लिए रोज तो मरे हुए गाय भैंस मिलते नहीं होंगे, फिर ?
अनुराधा के इस सवाल पर वह कर्मचारी बोला, अब क्या बताऊँ मैं इस बारे में, इन लोगों का लालच तो इतना बढ़ गया है, कि ये चमड़े के लालच में बूढ़े, बीमार गाय भैंस को सस्ते में आसपास के प्रदेशों से खरीद लाते है, और उनका मांस बाजार में बेच देते हैं, चमड़ा फ़ैक्टरी को और हड्डियां हमारी कंपनी को बेच देते हैं। गंगा मैया इनके अपराध को कभी माफ़ नही करेगी, कहकर वह कर्मचारी भावुक हो गया।
अनुराधा को याद आया कि हाल ही में अरविंद ने मथुरा में एक अंतरराज्यीय पशु तस्कर गिरोह पकड़ा था, हो सकता है उसके तार यहां तक भी जुड़े हो।
तभी जेलकेम के स्टाफ का दूसरा कर्मचारी बात को घुमाते हुए बोला, ये देखिये मैडम, यहां हमारा कलेक्शन सेन्टर हैं, उस जगह पर बहुत ही दुर्गन्ध आ रही थी, वहाँ पर पशुओं की ताज़ा हड्डियों का अंबार लगा हुआ था, अनुराधा को उस वीभत्स दृश्य को देख कर आगे बढ़ने की हिम्मत नहीँ हो रही थी, परन्तु अभी उसका काम पूरा नही हुआ था, इसलिए वह उन स्टाफ़ मेंबर के पीछे पीछे चल दी।
वह कर्मचारी बोला, देखिये, यह वाशिंग एरिया है, यहां पर एक बेल्ट की मदद से कलेक्शन सेंटर में लाई गई सारी हड्डियों को इस वाशिंग एरिया में पानी के तेज़ प्रेशर में धोकर एक गर्म पानी की बहुत बड़ी हौद में डाल दिया जाता है, दो दिनों तक इसमे हड्डियां पड़ी रहने से इनके ऊपर का जिलेटिन आसानी से निकल जाता है, और फिर हड्डियों के ड्राई होने पर क्रशर में डालकर चुरा कर देते हैं, वहाँ से दूसरी प्रोसेसिंग यूनिट इसमें नाइट्रोजन और पोटेशियम का समुचित मिश्रण बनाकर “NPK खाद बना लेते हैं”। वह कर्मचारी अपनी बात पूरी करके अनुराधा की और देखने लगा कि यदि और कोई सवाल हो तो, पूछ सकती है।
अनुराधा ने पूछा कि “फिर उस जिलेटिन का क्या करते हो?”
इस पर दोनों स्टाफ़ सकते में आ गए, और बोले अरे मैडम हमें उसके बारे में बताने की परमिशन नहीं है, उन दोनों के जवाब से संजय शर्मा भी चौक गया, पर उसने बात घुमाते हुए पूछा अच्छा यह पानी की निकासी कहां होती है, वह दोनों कर्मचारी भयभीत होकर बोले सर बेहतर होगा कि यह सवाल आप हमारे जनरल मैनेजर साहेब से ही पूछे, इसका जवाब दिया तो हमारी नौकरी चली जायेगी।
अनुराधा और संजय शर्मा ने उनको आश्वासन दिया कि वह इस बारे में किसी से भी कुछ नहीं कहेंगें। और जल्द ही निरीक्षण समाप्त करके अपनी टीम के साथ बाहर निकल आये।
बाहर आने के बाद संजय शर्मा ने अपनी टीम के एक सदस्य को भेज कर उस फ़ैक्टरी के जल निकासी नाले से जो भी पानी गंगा नदी में जा कर मिलता है, उसका सेंपल लाने को भेज दिया।
बाद में संजय शर्मा ने अनुराधा को कहा कि आप का शक सही है, इस फ़ैक्टरी में ज़रूर दाल में कुछ काला है, इन लोगों ने सिर्फ उर्वरक के निर्माण व निर्यात का ही लाइसेंस लिया है, परन्तु जिलेटिन के उत्पादन व निर्यात का कभी भी कोई लाइसेंस नही लिया, फिर इतनी ज़्यादा मात्रा में जो जिलेटिन इनके पास इकट्ठा होता है, उसे ये लोग कही तो बेचते होंगे , वह भी बिना अनुमति के और बिना किसी प्रोडक्शन शुल्क, सेल्स टैक्स और इनकम टैक्स दिए। करोड़ों का नहीं अरबों रुपये का घोटाला होगा यह तो।
संजय ने आगे बोलते हुए कहा कि अनुराधा जी शायद आप नहीं जानती , ये जेलेटिन दवा कंपनी द्वारा केप्सूल के लिए उपयोग होताहै इसके अलावा जिलेटिन को फ़ूड प्रोसेसिंग में भी उपयोग होता है, इसके कई प्रकार के ग्रेड हैं जिसके हिसाब से जेलेटिन की क़ीमत तय होती है, फ़िर भी समान्यतः 1000 रुपये प्रति किलो के आसपास इसका मार्केट वैल्यू तो होगा ही।
अनुराधा सोच रही थी कि अब किस तरह से आगे की योजना बनाकर इस जेलकेम फ़ैक्टरी पर कार्यवाही की जाए।
संजय शर्मा ने कहा कि वह जल निकासी द्वार पर लिए गए निष्कासित जल के नमूने की जांच की रिपोर्ट आने के बाद जल प्रदूषण विभाग को भी इस बारे में सूचित कर सकता है। परन्तु फ़ैक्टरी पर सीधी कार्यवाही करने का उसे अधिकार नहीं है, पर यदि अनुराधा गृह मंत्रालय की मदद से कोई आदेश निकलवा सके तो ही कोई अन्य कार्यवाही की जा सकती है।
अनुराधा कानपुर में व्यक्तिगत कार्य के नाम पर छुट्टी लेकर आई थी, इसलिए उसने जेलकेम फ़ैक्टरी की विज़िट से संबंधित कोई भी बात कमिश्नर सर को बताना उचित नहीं समझा।
वापस गाज़ियाबाद लौटते वक़्त ट्रैन की गति से भी ज्यादा तेज़ अनुराधा के विचारों की गति चल रही थी, वह आगे की प्लानिंग के बारे में सोचते हुए जा रही थी। उसे अपने बनाये हुए ब्लू प्रिंट में कुछ कड़ियाँ अब जुड़ती हुई सी लग रही थी।
अगला भाग
कुटील चाल (भाग-18) अंतिम भाग – अविनाश स आठल्ये : Moral stories in hindi
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अविनाश स आठल्ये