आत्मसम्मान… – रश्मि झा मिश्रा : Moral Stories in Hindi

एक लंबे चौड़े घर के अलावा कोई भी जायदाद अपने पीछे छोड़कर नहीं गए थे दीनानाथ जी… भरा पूरा परिवार था… तीन बेटे, तीन बहुएं, पांच पोते पोतियां… सबको हंसता खेलता छोड़ खुशी-खुशी…धर्म पत्नी रमा जी के गुजरने के 6 महीने के भीतर ही दीनानाथ जी भी चल बसे… 

तीन बेटे बहू के संयुक्त परिवार में, पिताजी की उपस्थिति तक तो कोई विवाद नहीं था… अमूमन कहें तो विवाद अब भी नहीं था… केवल परिस्थितियां थोड़ी बदल गई थीं…

 दोनों बड़े बेटे तो बढ़िया कमाई कर रहे थे… मगर छोटा राजनीति में अपने भविष्य को दांव पर लगा चुका था… 

मुखर व्यक्तित्व का धनी रूद्र… शैलजा को पहली ही नजर में भा गया था… प्रेम विवाह किया था दोनों ने… शैलजा कॉलेज की टॉपर थी… रूद्र भी होनहार था… उसमें अपना उज्जवल भविष्य देखा था शैलजा ने… परंतु समय के साथ रूद्र को असफलता ही हाथ लगी… 

शैलजा का अपने ससुराल में पढ़ी लिखी होनहार होने के कारण शुरू से ही बहुत मान था… सास ससुर ने तो उसे पलकों पर बिठा रखा था… कोई भी समझदारी वाला काम… लिखा पढ़ी, हिसाब किताब, जो भी घर की खास जिम्मेदारी हो, सारे काम शैलजा को ही सौंपे जाते थे… उसने भी आज तक किसी को निराश नहीं किया था…

 दोनों बड़े भैया हिसाब से हर महीने घर खर्च देते… छोटा तो बस अपने खर्च भर पैसा ऊपर कर पाता… उससे ज्यादा ना वह कमाता था, ना किसी ने उससे मांगा…

भाइयों में आपस का स्नेह देखने योग्य था… परंतु सास ससुर के जाने के बाद शैलजा को अब अकेलापन लगने लगा था… घर की सारी जिम्मेदारी तो अब पूरी तरह वही उठाती थी… एक नौकरानी थी इतने बड़े परिवार में… उससे जो बनता वह करती… उसके अलावा अब घर का अधिकांश काम भी शैलजा के हिस्से आ गया था… 

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मां जब तक थीं सभी बहुएं मिलकर काम करती थीं… पर मां के गुजर जाने के बाद धीरे-धीरे… पैसे वाली की बीवी का धौंस… बिना बोले दोनों भाभियां शैलजा पर हमेशा जताती रहतीं… बेचारी दिन भर कामों में लगी रहती फिर भी काम थे कि कभी खत्म होने का नाम ही नहीं लेते…

इतना तक तो फिर भी ठीक था… एक दिन अचानक ही बड़ी भाभी के कमरे के पास से गुजरते हुए… उसकी कान में जो शब्द आए उससे उसका आत्मसम्मान आहत हो गया… छोटी भाभी बोल रही थीं कि…” देवर जी से तो जिंदगी में कुछ कभी घर खर्च दिया होगा नहीं… इसी तरह भाइयों की कमाई पर उनकी जिंदगी कटनी है…!”

 इस पर बड़ी भाभी बोली…” हां, क्या फायदा इतनी मोटी-मोटी डिग्रियों का… दोनों मियां बीवी ने तो यूं मोटी-मोटी डिग्रियां ले रखी हैं… ऐसी डिग्रियों से अच्छे तो हम भले… आग ना लगा दें उन डिग्रियों को…!”

 शैलजा जैसे जमीन पर गिरी… ठीक ही तो कह रही थी भाभियां… क्या फायदा ऐसी डिग्रियों का… उसके स्वाभिमान को ठेस लगी…

अभी बेचारी अपने आंसुओं को बहने से रोक ही रही थी कि… इतने में उसकी सहेली अनु का फोन आ गया… अनु ने बताया कि उसके पति ने कोचिंग सेंटर खोला है, और बढ़िया टीचरों की खोज कर रहे हैं… पता नहीं शैलजा को क्या सूझी… उसने तुरंत ही अनु से अपने लिए बात करने को कहा…” अनु क्या मैं वहां पढ़ा सकती हूं…!”

” अरे वाह… नेकी और पूछ पूछ… लेकिन शैल अभी पैसे अधिक नहीं मिलेंगे… एक बार कोचिंग सेंटर सेटल हो जाए… फिर तो कोई दिक्कत नहीं… लेकिन अभी तुम्हें अगर आना है तो थोड़े में ही काम चलाना पड़ेगा…!”

 शैलजा खुश हो गई…” कोई बात नहीं अनु… मैं आऊंगी…!”

” ठीक है… तो कल ही आकर एक बार उनसे मिलकर सारी फॉर्मेलिटी कर ले…!”

 शैलजा अपने लिए काम तलाश चुकी थी… मगर अब दिक्कत यह थी कि घर के इतने सारे काम समेट कर बाहर कैसे जाएगी… उसने बहुत सोचा फिर निर्णय लिया कि… पैसा कमाना अभी अधिक आवश्यक है… अगर अपने और अपने पति के आत्मसम्मान की रक्षा करनी है तो घर में आर्थिक योगदान देना ही होगा…

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 रात को ही शैलजा खाना बनाने के बाद भाभियों से बोली…” बड़ी दीदी मैं कल एक नौकरी के सिलसिले में बाहर जा रही हूं… अगर मिल गई तो परसों से ज्वाइन कर लूंगी…!”

” पर शैलजा इसकी क्या जरूरत है…!” बड़ी भाभी ने मान करते हुए कहा तो छोटी भाभी बोल पड़ीं… “जाने दो ना दीदी… नौकरी क्या पेड़ पर रखी है जो मन किया और तोड़ लिया… मिलेगी तब ना… जा शैल… देख ले… मिलती है या नहीं…!”

शैलजा के लिए अभी और भी इज्जत का प्रश्न बन गया था… अगले दिन भाभियों के सहयोग से काम जल्दी निपटा शैलजा चली गई… उसकी डिग्रियां… उसकी योग्यता… साथ ही साथ अनु की दोस्ती ने उसे तुरंत ही काम दिला दिया…

 अगले दिन से ही काम पर आना तय कर वह वापस आ गई… भाभियों को पता चला तो उनके पैर के नीचे की जमीन सरक गई…” अरे बाप रे शैल रोज बाहर जाने लगेगी तो घर कौन संभालेगा…!”

 पिछले पांच सालों से जब से शैलजा ब्याह कर आई थी… घर की सारी जिम्मेदारियों से बाकी दोनों बहुएं आजाद हो गई थीं… 

छोटी भाभी ने रौब जमाते हुए कहा…” वाह, अच्छा है… तो तुम बाहर काम करोगी शैलजा वह तो ठीक है… मगर घर का सारा काम कौन संभालेगा…!”

 बड़ी भाभी तो और भी जोश में आ गई…” यह तो हद हुई… घर में हिस्सा भी नहीं देते हो तुम लोग, और घर का काम भी नहीं करोगे… तो कैसे चलेगा…!”

 रूद्र ने आगे बढ़कर कहा…” भाभी आप लोग चिंता मत करिए… शैलजा को बाहर काम करना है तो उसे जाने दें… मैं आप लोगों की घर में मदद कर दूंगा… जितना मुझसे बन पड़ेगा…!”

 छोटी भाभी बात चबाते हुए बोलीं…” अच्छा देवर जी तब तो शैल काम करेगी तो घर खर्च भी देगी… है ना…!”

 शैलजा ने शांत मगर निश्चय स्वर में कहा…” जरूर दूंगी भाभी… आप चिंता ना करें…!”

 शैलजा काम पर जाने लगी… पढ़ी-लिखी समझदार तो वह थी ही…बाकी टीचर भी गुणी थे…सबके सहयोग से कोचिंग चल निकली… देखते ही देखते बहुत सारे बच्चों ने कोचिंग ज्वाइन कर लिया…

 शैलजा को भी महीना लगते लगते एक बढ़िया रकम हाथ में मिल गया… घर में भी एक ही महीने में भाभियों को उसका महत्व अच्छे से समझ आ गया था…

 शैलजा ने घर खर्च दिया तो बड़ी भाभी ने उसका हाथ थाम कर कहा…” नहीं शैल बड़े जेठ के रहते तुझे कमाने की क्या जरूरत है… तू जैसे घर संभालती थी अपना घर संभाल ले… हमसे नहीं होगा… छोड़ दे नौकरी… हम पहले की तरह ही रहेंगे…!”

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 मगर शैलजा फिर से अपने आत्मसम्मान को खोना नहीं चाहती थी… उसने बड़े प्यार से भाभी का हाथ थामा और कहा…” दीदी मुझे नौकरी करने से मत रोकिए… यह मेरे और मेरे पति के स्वाभिमान की बात है… अब तो घर खर्च में मैं भी हिस्सा दे रही हूं तो हम एक और काम वाली रख लेते हैं… जो मेरे हिस्से का काम कर देगी… और देखने के लिए आप लोग तो हैं ही… बाकी रही लिखा पढ़ी, हिसाब किताब तो मेरी प्यारी दीदी सुबह शाम तो मैं घर में ही रहूंगी… सब देखने को… अब तो बच्चे भी बड़े हो गए हैं… थोड़ा उनसे भी करवा लेंगे… है ना छोटी दीदी… आप क्या कहती हैं…!”

 छोटी भाभी क्या कहती… दोनों भाभियां एक दूसरे का मुंह देखने लगीं… शैलजा ने एक नौकरानी और रख ली… घर में काम के लिए… और खुद पूरे लगन और आत्मविश्वास से अपने काम पर जाने को तैयार हो गई… अब उसे किसी बात की कोई तकलीफ नहीं थी… रूद्र कमाए या नहीं… उसका प्यार और सहयोग तो उसके साथ था ही… और अब वह घर में हिस्सा देकर, पूरे आत्मसम्मान के साथ, अपने घर में रह रही थी…

स्वलिखित 

रश्मि झा मिश्रा

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