बचपन में कुछ घटनाएं ऐसी घट जाती हैं जो ताउम्र याद रहतीं हैं।
उस समय मेरी उम्र लगभग चार वर्ष थी।पापा की पोस्टिंग उन दिनों छिन्दवाड़ा में थी।
उन दिनों आज जैसा माहौल नहीं था।जीवन बहुत ही सरल था।
एक दिन हम 4-5बच्चे शाम के समय खेल रहे थे।जब घर आये तो सभी को उल्टियाँ शुरू हो गई।
उस समय सभी पुरुष ऑफ़िस में थे,सिर्फ़ महिलाएं ही थीं घर पर।मेरी मम्मी घबरा गईं।बाहर आ कर पड़ोस की आंटी से बोलीं,”मेरा जी बहुत घबरा रहा है,गुड्डी को बहुत उल्टी हो रही हैं,उसके पापा भी अभी ऑफ़िस से नहीं आये हैं।”
आंटी बोली,”मैं भी आपके पास ही आ रही थी,हमारे मनु का भी यही हाल है।”
उनकी आवाज़ सुनकर शर्मा आंटी घबराई आईं और रोने लगीं,”पता नहीं रश्मि को क्या हो गया है,बहुत बुरी हालत हो रही है उसकी।उसके पापा मुझ पर बहुत गुस्सा करेंगे कि तुम ध्यान नहीं रखतीं बच्चों का।”
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धीरे-धीरे मिसेज भट्ट और मिसेज साईमन भी आ गईं,सब की समस्या एक ही थी।
सभी बच्चों को डॉक्टर कुकरेजा के यहाँ ले जाया गया,देखते ही उन्होंने पूछा,”क्या ये सारे बच्चे साथ में ही खेल रहे थे।”
सबने समवेत स्वर में कहा,”हाँ।”
वो बोले,”इन्होंने कोई जहरीला पदार्थ खाया है,आप इन्हें तुरंत सरकारी हॉस्पीटल ले जाएं।”
सुनकर सभी बहुत घबरा गए।
आनन-फानन में हमें हॉस्पिटल ले जाया गया।तब तक सबके पापा भी घर आ चुके थे।
वहाँ जाते ही डॉक्टर बोले,” ज़हर खुरानी का मामला है,पहले थाने में रिपोर्ट दर्ज करायें तब इलाज शुरू करेंगे।”
सभी लोग घबरा गए।बच्चों का मामला था,सभी ऑफिसरों के बच्चे थे और वो भी एक साथ पाँच।
बड़ी संख्या में पुलिस आ गयी।हम सब के बैड लाईन से लगे थे।रात भर दवाई दे-दे कर उल्टियाँ करवाई गईं जिससे जहर निकल जाये।
सुबह जब कुछ ठीक हुए तो पुलिस अधिकारी ने बड़े प्यार से हमसे पूछा,”बेटा,आपने क्या खाया था।”
सभी एक सुर में बोले,”अंकल हमने बहुत सारे काजू खाए थे ।”
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“कहाँ से खाए थे।”
“वो ऐडवोकेट अंकल के गार्डन में जो बाड़ लगी है न,उसमें बहुत सारे काजू लगे हैं,वहीं खाए ।”
एक पुलिस इंस्पेक्टर वहाँ जाकर कुछ फल ले कर आया और हमें दिखा कर पूछा,”ये ही खाये थे तुमने ।”
“हाँ “
तब तक डरे सहमे वकील साहब भी आ गये थे।
दरअसल उनके गार्डन के आसपास रतनजोत के पौधों की बाड़ लगी थी,उसी के फल हमने खाए थे।
दूसरे ही दिन उन्होंने वो पेड़ कटवा दिये।
याद कर के आज भी सिहर जाती हूँ।
कमलेश राणा
ग्वालियर