विनोद जी ने बहुत दौलत कमाई पर एक मलाल रह गया उनके कोई बेटा नहीं थी एक के बाद एक तीन लड़कियां हो गई । तीसरी बेटी के समय पत्नी को गर्भाशय मैं दिक्कत हो गई थी जैसे तैसे मां बेटी की जान बची डॉक्टर ने साफ कह दिया की अब मां बनी तो जान बचाना मुश्किल है ये जानकर विनोद ने ऑपरेशन ही करा दिया ।
सुधा जी को भी अफसोस होता की वो अपने पति को बेटा नहीं दे पाई ऐसा नहीं की वो अपनी बेटियो को प्यार नही करते पर जो शुरू से देखा ,सुना की लड़का ही बुढ़ापे को लाठी है तो उन्हें भी यही लगता की एक बेटा हो जाता।
बेटियां लक्ष्मी का रूप ले कर आई थी विनोद जी का कारोबार चौगुना हो गया आसपास उनकी कीर्ति फैल गई ।विनोद जी का छोटा भाई सुबोध एक दिन उनसे मिलने आया उसके तीन बेटे थे एक दो दिन घर पर रुका विनोद जी उसे देखकर बहुत खुश हुए बातों बातों मैं वो जान गया की भैया को लड़के की चाह अभी भी है ।
वापस जा कर उसने अपनी पत्नी प्रेमा से बात की यदि हम अपना बेटा उन्हें दे दे तो पूरी संपति का वो मालिक हो जायेगा प्रेमा के मन मै भी लालच आ गया और दोनों, छोटे बेटे को ले कर विनोद जी के पास आ गए।
सुबोध बोला भैया आपका दुख मुझसे देखा नहीं जा रहा ।आज से मेरा बेटा आपका हुआ आप इसे सम्हालिए इस फैसले ले विनोद जी चौंक गए
और मन ही मन खुश भी थे फिर भी बोले एक मां से उसके बच्चे को मै दूर नहीं कर सकता।
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प्रेमा बोली किसी अजनबी को थोड़ी दिया है आप भी उसके पिता ही है और भाभी मां बस आप अपना लीजिए ।
बहुत मनुहार के बाद विनोद जी मान गए और मोहित को अपना बेटा मान लिया की बुढ़ापे मैं विपत्ति मैं सहारा बनेगा ।
मोहित को तीनों बहनें जी जान से चाहने लगी विनोद जी और सुधा भी खुश थे अब परिवार उन्हें पूरा लग रहा था समय गुजरता रहा सब बच्चे बड़े हो गए ।
मोहित भी नए घर मैं खुश था उसे सबका प्यार मिल रहा था लेकिन सुबोध और प्रेमा बीच बीच मै उसके कान भरते रहते की तुम्हें सिर्फ दौलत के लिए उस घर मैं भेजा है ।
मोहित को ये बात सही नहीं लगी उसे समझ आया की एक ताऊजी और परिवार है जो मुझे कितना प्यार करता है दूसरी तरफ मेरे माता – पिता जिन्होंने सम्पति के लिए मुझे अपने से दूर कर दिया मैं उनकी चाल कामयाब नही होने दूंगा ।
मोहित ने सारी बात ताऊजी को बता दी और ये भी कहा की आप चाहे तो मुझे निकाल सकते है लेकिन मैं दौलत के लिए नहीं प्यार के लिए यहां हूं।ये सुनकर विनोद जी बहुत खुश हुए साथ ही दुख भी हुआ कि मेरा भाई मुझे धोखा दे रहा था उन्होंने उस से सारे रिश्ते तोड़ लिए और बेटे को भी कागजी कार्यवाही करके अपना नाम दे दिया ।
सुबोध और प्रभा को अब अहसास हुआ की जो रिश्ता खुद की विपत्ति बांटने के लिए बनाया था वो संपत्ति के चक्कर मैं बंट गया ।उनके हाथ से संपति के चक्कर मैं बेटा भी चला गया
स्वरचित
अंजना ठाकुर
#जो रिश्ता विपत्ति बांटने के लिए बनाया जाता है वो संपत्ति बांटने मैं बंट जाता है