अरे अरे.. कहां छुप गया मेरा बच्चा.. देख बेटा.. पापा को ऑफिस के लिए देर हो रही है फटाफट बाहर आजा…! अरे पापा.. मैं तो फ्रिज के बगल में छुपी हूं.. आप ढूंढो ना मुझे…! ओहो.. तो मेरी रानी बिटिया फ्रिज के बगल में छुपी हुई थी और मुझे दिख ही नहीं रही थी! पापा हार गए, पापा हार गए और ताली बजाती हुई
शैली अपने पापा के गले लग कर जोर-जोर से खिलखिलाने लगी, हमेशा ही ऐसा होता था कभी पापा से पंजे में शर्त लगाती, कभी ताश में या कभी अन्य चीजों में, और पापा जानबूझकर हार जाते, पापा को हारने में और बेटी को जीतने में बहुत खुशी होती , एक माता-पिता ही होते हैं जिन्हें अपने बच्चों से हारने में खुशी मिलती है,
शैली के लिए इस दुनिया में उसके पापा से बढ़कर और कोई था ही नहीं और महेश जी को भी अपनी सारी दुनिया शैली के इर्द-गिर्द ही नजर आती, महेश जी के परिवार में और था भी कौन, एक पत्नी और 6 साल की बिटिया शैली, बहुत सुखी परिवार था, महेश जी हमेशा कहते थे.. मेरी शैली बेटा को मैं ऐसा घर देखूंगा
जहां यह राज करेगी! महेश जी अपनी बेटी के विवाह के लिए अभी से ही धीरे-धीरे करके कुछ पैसे जोड़ रहे थे साधारण से क्लर्क ही तो थे महेश जी किंतु अपनी बेटी की फरमाइश पूरी करने में कोई कसर नहीं छोड़ते क्योंकि उन्हें पता था बेटियों की फरमाइश और जिद सिर्फ मायके में ही पूरी हो सकती है और बेटी भी इतनी समझदार मानो
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वह बचपन से ही अपने पापा की स्थिति देखते हुए बड़ी हुई हो, अब धीरे-धीरे शैली बड़ी हो रही थी और देखते ही देखते उसने बी.टेक पूरी कर ली, अब महेश जी को सच में शैली के ब्याह की चिंता होने लगी पर शैली कहती… मैं अपने बाबुल का घर छोड़कर कहीं नहीं जाऊंगी क्योंकि यहां के जैसा प्यार तो मुझे कहीं मिलेगा ही नहीं और
फिर मेरे बिना मेरे मम्मी पापा अकेले नहीं रह जाएंगे और पापा अगर आपको मेरी शादी करनी है तो मेरे पति को इसी घर में ले आना, और ऐसा कहकर शैली अपनी मम्मी पापा के गली में लटक जाती! तब मम्मी कहती… हट पागल ऐसा भी कभी होता है बेटी को तो हमेशा अपने पति के घर जाना ही होता है
और एक दिन शैली अपने बाबुल का घर छोड़कर अपने नए जीवन में प्रवेश कर गई! उसका जीवनसाथी संचित और उसका परिवार दोनों ही बहुत अच्छे मिले पर उसके ससुर जी थोडे गर्म मिजाज के थे, सलोनी उनसे सिर्फ काम की बातें ही करती थी उसे अपने ससुर जी से बहुत डर लगता था,
वैसे ससुर जी दिल के बुरे नहीं थे पर बस उन्हें घर में अनुशासन बहुत प्रिय था, कुछ समय से महेश जी की तबीयत अब खराब रहने लगी थी, एक दिन सुबह-सुबह पार्क में टहलते समय अचानक से तेज पसीना आने लगा साथी लोग उन्हें अस्पताल लेकर पहुंचे लेकिन तब तक दिल का दौरा पड़ने से उनकी मृत्यु हो चुकी थी,
शैली और उसकी मां के ऊपर गमों का पहाड़ टूट गया, शैली को अपने पिता की मृत्यु का बहुत गहरा सदमा लगा कई दिनों तक तो वह इस दुख से ऊबर ही नहीं पाई और अब उसे अपनी मां के अकेलेपन की चिंता होने लगी, पहले पापा मम्मी दोनों एक दूसरे का सहारा थे और मम्मी कैसी रहेगी, कैसे करेगी,
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और दिन रात इसी चिंता में घूले जा रही थी और इस तरह शैली की तबीयत भी खराब रहने लगी, परिवार वाले लाख समझाते की बेटा.. जो हो गया हो गया नियति मान कर उसे स्वीकार करो और शैली कैसे अपने पापा के जाने का और मम्मी के अकेलेपन के दुख को सहन करें? एक दिन ससुर जी शैली की मां को लेकर अपने घर आए और शैली से बोले बेटा ….
जिस प्रकार तुम्हें अपनी मां की चिंता रहती है उसी प्रकार तुम्हारी मां को भी तुम्हारी चिंता लगी रहती है तो हमने सोचा क्यों ना तुम्हारी मां को यहां बुला लिया जाए, तुम्हारी मां ने लाख मना किया पर मैं इन्हें यहां ले आया, बेटा तुम यह मत समझो तुम्हारी मां हमारे साथ रहेगी… नहीं…
यह अपने पड़ोस में दो घर छोड़कर जो नए फ्लैट बने हैं तुम्हारी मां उन्हीं में रहेगी ताकि तुम्हारी मां को कभी यह महसूस नहीं हो की वह अपनी बेटी के घर में रह रही है या तुमसे बहुत दूर है और ना ही कभी किसी भी बात से इनका दिल दुखे, इस प्रकार तुम्हारी मां पास की पास रहेगी
और दूर की दूर और बेटा गलत मत समझना.. पर हर रिश्ते में थोड़ी सी दूरी जरूरी होती है और उन्होंने शैली के सिर पर प्यार से हाथ रखते हुए कहा.,. कोई पिता अपनी बेटी को कैसे दुखी देख सकता है, यह देख सुनकर शैली की आंखों से आंसू बहने लगे और उसने अपने ससुर जी का हाथ पकड़ते हुए कहा पापा जी…..
एक बाबुल ने मुझे विदा कर दिया था पर मैं विदा कहां हुई, मैं तो एक बाबुल के आंगन से दूसरे बाबुल के आंगन ही तो आई हूं, जिन्होंने मेरे हर दुख दर्द को अपना बना लिया, पापा जी.. आप सच में मेरे पापा हैं और शैली को खुश देखकर परिवार वालों की आंखों में खुशी छलकने लगी!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता बाबुल