अवसरवादी बहन – शुभ्रा बैनर्जी : Moral Stories in Hindi

इस बार रीना ने मंझली बहन शिवानी और छोटी बहन रिया को पहले से बोल दिया था भाई के घर राखी में चलने के लिए।मां के जाने के बाद सभी भाई-बहन रीना के घर ही आते थे हर त्योहार में।बड़ा भाई रीना से छोटा,बाकी भाई बहनों में बड़ा था।इस बार राखी के महीने भर पहले ही उलाहना देते हुए कहा था

उसने”दीदी,मां के जाने के बाद तुम लोग कभी एक साथ नहीं आ पाते।कभी तुम आती हो तो शिवानी‌ नहीं आ पाती,कभी शिवानी आती है तो रिया नहीं आ पाती।”सीमा का अंतर्मन भी रोया ,सच ही तो बोल रहा है राजा।कब से एक साथ मायके में इकट्ठे जा ही नहीं पाए। खुशी-खुशी राजा से कहा”ठीक कहा तूने ,हम सब इस बार साथ में आएंगे।देख बिस्तर की व्यवस्था करके रखना,बस।खाना तो हम सभी‌ मिलकर बना लेंगे।राजा तूने शिवानी और रिया को कह दिया है ना?”

“शिवानी शिवानी शिशशिवानी शि को तो बता दिया मैंने।रिया से तू ही बात कर।हर बार की तरह कोई नया बहाना बना देगी ,ना आने का।कहीं ससुर बीमार,तो कभी सास।बुलाने से भी जब नहीं आती है वह,बड़ी बेइज्जती लगती है तेरी भाभी के सामने।पता नहीं क्या दिक्कत है उसे?अरे मुंह खोलकर बोलेगी नहीं ,तो हम कैसे समझेंगे।वैसे भी हर महीने हम से कोई ना कोई उसको पैसे भेजते हैं।ज्यादा तो नहीं‌ भेज पाते,पर अपने खर्च काटकर  थोड़े भेज ही देखें हैं।”

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रीना का यूं छोटी बहन के प्रति राजा का नकारात्मक रवैया देखकर बहुत बुरा लगा।हां लगना ही‌ था।सबसे लाड़ली थी वो हमारी।

रीना ने रिया के पति से बात करके साफ बता दिया सबका प्रोग्राम।उसे भी आने का निमंत्रण देना संस्कार था।वह मान गया था आकर छोड़ने के लिए।वह‌ आया रिया को लेकर।तब तक दोनों बहनें आ चुकी थीं।

राखी के एक दिन पहले रीना और शिवानी अपनी -अपनी कार में पहुंची।सबसे पहले अपने भाई -भाभी के लिए लाए मंहगे उपहार सूटकेस से निकाल कर दिखाने लगी।सामान दिखाना क्या यह तो शक्ति प्रदर्शन था ससुराल का।रिया के आते ही भाई ने गले लगा लिया।रिया अपनी मां के घर आकर सुख अनुभव करने लगी।हर जगह उसे‌अपने बचपन की यादें उभरी हुई दिखाई दे रहीं थीं।तभी शिवानी ने कटाक्ष किया”अरे,रिया,भइया के लिए क्या लाई है दिखा तो पहले।”

रिया ने अनसुनी करके रसोई में भाभी का हांथ बंटाने लगी।अचानक भाभी के कमरे में बहुत सारे पैकेट्स देखें रिया ने।

रिया पति के साथ बाहर खुसफुसा कर बात करने लगी।रीना को कुछ तो संदेह लगा।रिया अपने पति से कह रही थी”,चलिए जी,हम जल्दी चले जाएंगे।यहां भइया सब बहनों के लिए महंगे -मंहगे उपहार लाए हैं देने को।बड़ी और मंझली दीदी बहुत कुछ लाई हैं,तो उनका हक बनता है ,भैया से भेंट लेने का।पर मैं तो सस्ता सा एक शर्ट ही लाई हूं।फिर कैसे कोई मंहगा उपहार ले लूं?”

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रिया के पति ने उदास होकर कहा”तभी तो मना करता था ना मैं।अभी मत जाओ।जब जेब में कुछ पैसे बचा लेता,तब आती।”

रिया ने भी हार नहीं मानी”अरे,तब क्या राखी रहती?”

रीना अपनी छोटी बहन की मजबूरी आज समझ पा रही थी।कभी तो किसी से कहा नहीं उसने।

अंदर जाकर सोचा राजा को सच बता दें,रिया के हालात से अवगत करवा दें।जाकर सुना शिवानी राजा से कहा रही थी”दीदी ने ही हमेशा पैसे दे-देकर आदत बिगाड़ी है रिया की। रिज़र्वेशन छोटा भाई करवा देता है।तो अब उपहार तो खरीदा जा सकता है अपने पैसों से।ऊपर से अब बेटी भी बड़ी हो रही है।उसके भी खर्चे हैं।अरे ,जब हालात अच्छे नहीं हैं तो ना आती,बहाना बना देती।”

राजा जो कि जान छिड़कता था कभी रिया पर,खिसियाकर बोला”इनके ससुराल जाओ तो पूरे लोगों के लिए कपड़े लेकर जाओ।मिठाई मंहगी,कपड़े मंहगे। पांच-छह हजार तो स्वाहा हो ही जाता है।यहां आएगी तो बोलेगी मैहर जाना है, दर्शन करने।अरे तू ही बता इतनी कम तनख्वाह में कैसे संभाले ये बेतुके खर्च।सोचा था इस बार एक जगह राखी का आयोजन होगा तो खर्च भी आने -जाने का कम होता।”

शिवानी ने फिर जहर उगला”वैसे तो अपने सारे शौक करवा लेतीं है जीजू और ससुर जी से मांग कर,तो फिर राखी में ही कंजूसी क्यों?शिवानी की बात से सहमत होकर राजा ने कहा”तेरी भाभी ने जिद की तो मैंने बुला लिया सबको।अब रिया इस उम्र में भी नहीं सीखेगी,तो कब सीखेगी। लल्लू बनकर रह गई है।”

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सीमा आज समझ पा रही थी कि क्यों लिया हर साल नहीं आ पाती।पति की दुकान बंद है। नाममात्र की कमाई है।उसका भी मन करता होगा अपने मायके वालों को कुछ खरीद दे,पर हांथ में पैसे नहीं रहते होंगे ना।सीमा ने आनन-फानन में अपने सूटकेस में जो भी एक्स्ट्रा नया पड़ा था, चुपचाप रिया के थैले में ठूंस दिया।अगले दिन राखी बंधाई शुरू हुई।जिसकी जैसी भेंट उसी के आधार पर रिटर्न गिफ्ट।शिवानी अपना भारी पैकेट सामने रखी।सीमा ने भी पूरा सामान भाभी के हांथ में दिया।अब बारी थी रिया की।शिवानी आदतन उसे पुकारे जा रही थी।

आंख मूंदकर रिया ने अपना थैला राजा के हांथ में रख दिया।तैयार थी तानों की बरसात झेलने के लिए।तभी भाभी लगभग चीखती हुई बोलीं”अरे गज़ब रिया,ऐसी ही साड़ी कब से लेना चाह रही थी।तुमने तो मेरी पसंद का रंग भी सही चुना।और यह जो कुर्ता पायजामा है ना तुम्हारे भैया को बहुत भाएगा।तुम दो-दो सैट क्यों ले आई?जबरन तुम पर भार बढ़ गया।इतना सब लाने की क्या जरूरत थी?”रिया भी अवाक थी।आंखों से आंसू गिरने लगे।समझ चुकी थी कि यह काम सीमा दीदी के अलावा और कोई नहीं कर सकता।

अब भाई से जब सबसे मंहगी साड़ी नेंग में मिली,रिया ने हांथ जोड़कर सीमा को दे दी।शायद पारितोषिक था यह उसका सम्मान बचाने का। भाई-बहन जब छोटे होतें हैं तब तक ही त्योहार वास्तविक लगते हैं।जैसे -जैसे हम बड़े होते जातें हैं,हमारी समझदारी हमें व्यापार करना सिखा देती है।गरीब बहन बड़ी भारी लगती है ,भाई को राखी पहनाते।जिसकी जेब में जितना माल,उसकी उतनी कद्र।

अब भाई के घर बहनें मेहमान होतीं हैं

बहनों के घर भाई मायके का सामान।

शुभ्रा बैनर्जी

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