चाहत- एक बहन की…. – दिक्षा बागदरे : Moral Stories in Hindi

विश्वास की आंखों से आज अनवरत अश्रु बह रहे हैं। आज रक्षाबंधन का त्यौहार है।

हमारे दोनों बच्चे बेटा अनय और बेटी सौम्या आज बहुत खुश हैं। मैं- आरती विश्वास की अर्धांगिनी।

जब मैंने सौम्या से कहा आओ भैया को राखी बांधो।

दोनों भाई बहन बहुत खुशी से इस त्यौहार की रस्मों को निभा रहे थे। अनय के माथे पर तिलक और कलाई पर सुंदर सी राखी सज गई थी। सौम्या अनय की आरती उतार रही थी। दोनों एक दूसरे को मिठाई खिलाकर 

 खिल-खिलाकर हंस रहे थे। अनय ने प्यारा सा उपहार सौम्या को दिया। सौम्या उपहार पाकर बहुत खुश थी ।

इन्हीं आनंद के क्षणों को देखकर विश्वास की आंखों से अश्रुओं की धारा बहने लगी। वैसे तो ये खुशी के आंसू थे। मगर इनमें थोड़ा दुख भी शामिल था। मैं इन आंसुओं में छुपे दुख की वजह जानती हूं।

खुशी इस बात की कि विश्वास अपने बच्चों को इस त्यौहार को मनाते देख रहे हैं। 

दुख इस बात का की विश्वास की अपनी कोई सगी बहन नहीं थी। जीवन में उन्हें यह खुशी इस तरह से कभी नसीब नहीं हुई। 

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शादी से पहले का तो पता नहीं। मगर शादी के बाद के 18 सालों में, कई रक्षाबंधन पर मैंने विश्वास को मन में एक बहन की “चाह‌त” और सूनी कलाई लिए देखा था। 

ऐसा नहीं था कि विश्वास की मामा-बुआ की (बेटियां) बहने नहीं थी। पहले पहल तो उनमें से कुछ राखी बांधने आती भी थी और कुछ की शादी हो गई थी तो वे राखी भेजती भी थी।

साल दर साल आना तो सभी बहनों का लगभग ना के बराबर हो गया था। राखियां अभी भी आती हैं। 

मगर विश्वास की आंखों का सुनापन और बहन की “चाहत” जस की तस रही।

वे मुंह से तो कभी कुछ कहते नहीं थे।

मगर मैंने देखा था। जब भी उनके चचेरे-ममेरे-फुफेरे भाई बहन साथ होते तो वे बहुत खुश होते थे। उन्हें हंसता बोलता देख उनकी आंखों में एक अलग ही चमक दिखाई देती थी। तो दूसरे ही पल एक सूनापन भी साफ झलकता था।

मगर चचेरे-ममेरे भाई बहनों की अपनी एक अलग ही दुनिया थी। उनका जो हक अपने सगे भाई-बहनों पर था, वो हक विश्वास का किसी पर न था।

 यूं तो सभी भाई बहन विश्वास को बहुत प्यार और सम्मान देते थे। मगर फिर भी सच तो नहीं बदल जाता ना। जब भी कोई खास मौका होता सगे भाई बहन आपस में ही सलाहकर निर्णय ले लेते विश्वास को तो सिर्फ खबर मात्र की जाती थी। तब विश्वास अक्सर उदास हो जाया करते थे। खुशी में शामिल सबकी होते थे। अपनी उदासी किसी के सामने उजागर नहीं करते थे। 

मुझे लगता है शायद यही वे पल होते थे, जब विश्वास महसूस करते होंगे कि काश कोई उनकी भी सगी बहन होती। वे भी उसके साथ मिलकर किसी कार्यक्रम की रूपरेखा बनाते, तैयारियां करते, उत्सव मनाते। वार त्यौहार उसे फोन कर घर बुलाते। उसे लेने जाते और भी न जाने क्या-क्या करते…….

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शादी के बाद चचेरी-ममेरी बहनों की प्राथमिकता भी उनके अपने सगे भाई ही होते थे। अगर वे 2 दिन के लिए भी आएंगी तो अपने सगे भाई के पास ही जाएंगी। वैसे देखा जाए तो इसमें कुछ गलत भी नहीं है।

विश्वास और मैंने कभी भी सभी भाई-बहनों को सगे से कम महत्व नहीं दिया। मगर कहते हैं ना कि जो चीज आपके पास ना हो उसकी कदर आप ही कर सकते हो। जिनके पास पहले से ही सब कुछ हो उन्हें आपकी कोई कद्र नहीं होती।

बस ऐसा ही कुछ विश्वास महसूस करते थे। मुझे ऐसा लगता है कि जीवन के कुछ पल ऐसे होते हैं जिसमें भाई को अपनी बहन की ही जरूरत होती है। वहां पत्नी चाहकर भी वह कमी पूरी नहीं कर सकती। 

भाई-बहन का रिश्ता होता ही कुछ खास है। बचपन की कुछ खट्टी-मीठी यादें, छोटी-छोटी बातों पर नोंक-झोंक, साथ बिताए अनगिनत अविस्मरणीय पल, कुछ पुराने राज जिन पर आज भी एक दूसरे की टांग खिंची जा सके और ढेर सारा प्यार। बस इन्हीं सब की तो कमी थी विश्वास के पास।

 आजकल की व्यस्तता भरे जीवन में किसी के पास भी बहुत ज्यादा समय नहीं है। यह तो सभी जानते हैं। 

फिर भी राखी पर कोई ना आए तो अकेलेपन का एहसास  उनकी आंखों में साफ झलकता था। 

शुरू से ही विश्वास चाहते थे कि हमारे दो बच्चे हों। एक बेटा और एक बेटी।

मैं अक्सर पूछा करती थी कि दो ही क्यों? 

चलो दो बच्चे हुए भी तो दोनों बेटे भी हो सकते हैं और दोनों बेटियां भी हो सकती हैं। 

विश्वास का जवाब होता था,- हां हो सकते हैं, मगर एक बेटा और एक बेटी हो तो ज्यादा अच्छा। उनकी इन्हीं बातों से मुझे लगता था कि उन्हें बहन का ना होना कितना खलता है।

कई बार बातों-बातों में उन्होंने अपने अकेले होने का जिक्र किया था। उन्हें लगता था कि उनका भी कोई सगा भाई-बहन होता तो अच्छा होता। 

किस्मत से भगवान ने हमारी झोली दो बच्चों से भरी और वह भी एक बेटा और एक बेटी देकर। 

बेटे के बाद जब बेटी हुई तो विश्वास की खुशी का ठिकाना नहीं था। पूरे अस्पताल में मिठाइयां बांटी गई। विश्वास इतना खुश थे जैसे उन्हें भगवान ने कोई खजाना दे दिया हो।

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सच ही है उनकी जीवनभर की “चाहत” अब बेटी के रूप में पूरी हुई थी। विश्वास घंटों अपलक सौम्या को निहारा करते थे। लगता था जैसे- “अपनी बरसों की चाहत को आंखों के जरिए दिल में उतार रहे हों”। 

शायद वे अपने बेटे और बेटी के रूप में स्वयं को और अपनी बहन को देखते हैं। विश्वास बहुत खुश हो गए हैं बच्चों की ये खुशी देखकर।

मैं बहुत खुश हूं, विश्वास को खुश देखकर।

सच ही है भाई-बहन का रिश्ता केवल सिर्फ इस राखी की डोर तक ही सीमित नहीं है। यह रक्षा सूत्र उन्हें हर सुख-दुख का जीवन भर का साथी बनाता है। भगवान हर किसी को इस भाई-बहन के खूबसूरत रिश्ते के एहसास से नवाजे। भगवान हर भाई की एक बहन की “चाहत” जरूर पूरी करें। 

मेरी ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इस रक्षाबंधन हर भाई की कलाई पर एक प्यारी सी बहन की राखी सजी हो। 

स्वरचित

 दिक्षा बागदरे 

14/08/2024

#बहन

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