जुहार बड़े सरकार।
अरे,गिरधर बड़ा आदमी हो गया है,अब तेरा इधर आना ही नही होता।अब भी बुलाने पर ही आया है।
सरकार, आप तो जाने है,मुन्ना शहर में नौकरी करने लगा है,उसके पास भी जाना लगा रहता है,और यहां भी सरकार आप की मेहरबानी से मिले जमीन के टुकड़े में बुआई,निडाई में लगना पड़ता है, सरकार उस टुकड़े से साल भर का अनाज मिल जावे है।आगे ध्यान रखूंगा सरकार, माफ कर दीजिओ,अब आता रहूंगा।
हूँ-देख गिरधर तू हमारा खास और विश्वासी रहा है,एक काम आ पड़ा है,इसलिये तुझे बुलाया है।
माई बाप हुकम कीजिये, आपका नमक खाया है।
विद्यासागर अपने समय के बड़े जमीदार थे।उस समय विद्यासागर जिधर भी अपनी घोड़ी पर बैठकर निकल जाते हाहाकार मच जाता।उनके पीछे पीछे चार पांच लठैत चलते।लगान वसूलना,खेती से हिस्सा वसूलना उन लठैतो का काम होता था।गिरधर उन लठैतो का मुखिया हुआ करता था। विद्यासागर के इशारे भर से गिरधर कुछ भी कर गुजर जाता था।जमीदार के सामने नजर उठाने वाले पर तो गिरधर का कहर ही टूट पड़ता।उसके लठ की चोट से कई तो भगवान को भी प्यारे हो गये थे।जमीदार साहब के वरद हस्त के कारण गिरधर का कभी भी बाल भी बांका नही हुआ।
समय का परिवर्तन हुआ जमीदारी का उन्मूलन हो गया।जमीदारी के अर्श से विद्यासागर जी भी फर्श पर आ गये।तमाम आन बान शान धरी रह गयी।सब कारिंदों को छुट्टी दे दी गयी।अब तो उनकी हवेली में मात्र एक नौकर ही रह गया था।
जमीदारी के समय मे ही अपने एक दोस्त हरी सिंह को उन्होंने बीस हजार रुपये उधार दिये थे।गिरधर भी हरीसिंह को जानता था,हरीसिंह बहुत ही भले व्यक्तित्व के धनी थे।वे विद्यासागर जी को ब्याज और कभी कभी मूल भी देते रहते थे,यह गिरधर भी जानता था,क्योकि जब तक गिरधर जमीदार साहब के यहां मुलाजिम था तो वह ही हरीसिंह से रुपये पैसे लाकर जमीदार साहब को देता था।
विद्यासागर के यहां से हटने के बाद गिरधर खेतिहर मजदूर बन गया।उसके एक ही बेटा था,सो उसने उसी पर ध्यान केंद्रित कर उसे पढ़ाना लिखाना प्रारम्भ कर दिया।मुन्ना भी पढ़ाई में तेज निकला।धीरे धीरे गिरधर का जमीदार साहब के यहां जाना कम होता गया।मुन्ना भी बड़ा हो गया था,पहले शहर पढ़ने गया और फिर वही नौकरी पा गया।
गिरधर को अहसास था कि अब जमाना बदल गया है अब जमीदारी के समय की लठैती नही चल सकती।वैसे भी उसकी इस प्रकार की बात से मुन्ना के भविष्य पर फर्क पड़ेगा।अब गिरधर अपनी लठैती वाली छवि को बदल कर एक नम्र व्यक्ति बन गया था।
उस दिन जमीदार विद्यासागर जी का बुलावा आया तो वह सब काम काज छोड़ हवेली की ओर दौड़ लिया।विद्यासागरजी का गिला शिकवा सुनने और अपनी सफाई के बाद गिरधर हाथ जोड़कर एक ओर खड़ा हो गया।उसके मन मे विचार चल रहा था,पता नही सरकार ने उस गरीब को क्यो बुला लिया?
तभी विद्यासागर जी बोले अरे गिरधर जरा उस हरीसिंह को तो देख पैसा ही नही भेज रहा।आज जा कर उसे हड़का के आ,चूँ चपड़ करे तो एक आध लठ भी जमा दीजियो।अकल ठिकाने आ जायेगी।
गिरधर चौंक गया,उसके हिसाब से हरीसिंह पूरा पैसा दे चुके थे,फिरभी वह हरिसिंह जी के यहां गया और शालीनता से जमीदार साहब की ओर बकाया की बात कही।तो हरीसिंह बोले भाई गिरधर अपनी परेशानी में मैंने रुपये उधार लिये थे पर मैं सब चुका दिया हूँ, पता नही विद्यासागर की नीयत क्यो खराब हो गयी है?मेरी बेटी की इसी माह शादी है,मेरी समझ नही आ रहा मैं क्या करूँ?भाई तुम तो लठैत हो मारो भाई मारो,ऐसे मारना गिरधर जो उठ ही ना सकूँ, मर जाऊं बस।वैसे भी जिंदा रह गया तो भी तो मरना ही पड़ेगा।
आज गिरधर को जीवन भर किये कृत्यो पर ग्लानि हुई।वह हरीसिंह से माफी मांग वापस आ गया।जमीदार साहब से बोला बड़े सरकार आपके लिये जान आज भी दे सकता हूँ,पर हरीसिंह जैसे की गरीब मार मुझसे ना हो सकेगी।
हक्के बक्के से विद्यासागर गिरधर की बात सुन बौखला गये,अबे जिंदगी भर ये करम करके अब साधु बनने चला है।जा चला जा मेरे सामने से।गिरधर चुपचाप सर झुकाकर गुहार करता हुआ विद्यासागर जी के सामने से हट अपने घर की ओर चल दिया।उसे लग रहा था,जिंदगी भर किये पाप मानो आज धुल गये,मानो वह गंगा नहा लिया।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
*#सौ चूहे खाकर बिल्ली चली हज को* मुहावरे पर आधारित लघुकथा: