सीमा आज तुमने फिर मेरे कपड़े प्रेस नहीं कराए , आज चार दिन हो गए कहते हुए , मुझे आज की मीटिंग में वही नीली शर्ट पहन कर जानी थी , सौरभ ने चिल्लाते हुए कहा
मैं भी तो घर में नहीं थी
सीमा ने उससे ज्यादा जोर से चिल्लाते हुए कहा।
तुम सुबह से सहेलियों के साथ जाकर देर रात वापस आओ तो मैं किससे काम को कहूं।
मैं अपने आफिस में ये तो नहीं कह सकता कि मेरी बीवी सहेलियों की वजह से मेरे कपड़े प्रेस नहीं करा रही।
तुम अपना काम खुद नहीं कर सकते। सीमा ने गुस्से से कहा और सौरभ चला गया।
सावित्री देवी जो बहुत देर से दोनों का लड़ना देख कर चुप थी, सीमा के पास आईं और बोली कि सीमा, ये रोज़ रोज़ का सहेलियों के साथ चले जाना क्या ठीक है, सौरभ आज फिर बिना खाए पिए ही चला गया।
तो मैं क्या करूं, आपके बेटे को बात बात पर बस लड़ना हीआता है , अब आप भी उसका ही साथ दे रही हैं। सीमा सांस से भी गुस्से में बोली। और बैग पैक कर बोली , मैं मम्मी के पास जा रही हूं। और दनदनाती हुई घर से निकल कर चली गई । सावित्री देवी सिर पकड़ कर रह गई।
आज ये पहली बार नहीं था, दो साल की शादी में ये अनगिनत बार हो चुका था। पहले वो सोचती थी कि नया नया ब्याह है संभल जाएंगे, पर पानी सर के ऊपर होने लगा है , कुछ करना पड़ेगा दोनों की शादी बचाने के लिए। ऐसा सोच कर उन्होंने निरूपा देवी को फोन मिलाया।
हाल चाल पूछ कर उन्हें दोनो के झगडे के बारे में बताया व कहा कि सीमा लड़ कर हमेशा मायके चली आती है । इन दोनों की खुशी के लिए आप इस तरकीब करना शुरू करें तो कैसा रहे। निरूपा देवी , जिन्हें थोड़ा बहुत ऐसा ही अंदेसा था, सुन कर बहुत दुखी हुआ।
उन्होंने उमा जो की सीमा की भाभी तथा अनूप जो कि सीमा का भाई था, उस को सारी बात समझाई।दोनो को जान कर हैरानी हुई कि सीमा हर बार इस तरह से करके मायके आती है।
अगले दिन सीमा सोकर उठी तो चाय न पाकर उसने उमा को आवाज लगाई कि भाभी मेरी चाय कहा है , मुझे सोकर उठे आधा घंटा हो गया।
भाभी जो काम कर रही थी काम मे लगे ही बोली , सीमा मैं काम में लगी हूं तुम चाय खुद बना लो, और हां रोज खुद ही बना लिया करो। मुझे परेशान करने की जरूरत नहीं है। भाभी से बात चल ही रही थी कि निरूपा देवी आ गई , मां देखो भाभी मुझे ऐसे कह रही है। सीमा ने शिकायत करते हुए धीरे से मां के कान भरने चाहे।
सीमा ,बहू ठीक ही तो कह रही है वह आफिस वाली है फिर भी सारा काम कर सुबह आफिस के लिए निकलती है। तुझे पता है वह सुबह उठ कर नाश्ता बना कर, अपने व सबके लिए लंच की तैयारी कर मुझे डाक्टर के पास भी दिखा लाई, अब मेरी तबियत तो ज्यादातर खराब ही रहती है।
तू भी जितने दिन है , उसकी मदद किया कर। कहकर निरूपा देवी कमरे में चली गई और सीमा चाय बनाने खिन्न मन से लग गई। तभी उसकी सहेली का फोन आ गया और वह तैयार होकर उसके साथ जाने को तैयार होने लगी कि भाभी ने कहा सीमा, तुम दिन में मां का ध्यान रखना व खाना तैयार कर मां को भी खिला देना व खुद भी खा लेना,
हम दीपू के स्कूल से होते हुए मार्केट का काम करते हुए आएंगे। हमें शाम हो जाएगी। ऐसा कहकर वह कार में ये जा तो वह जा। सीमा को गुस्सा तो बहुत आया पर वह मन मार कर काम में लग गयी।
अगले दिन सैटरडे था भाभी की छुट्टी होती थी, पर वह कोई न कोई काम निकाल कर चली गई । मां को संभालना और सारे दिन काम करने में सीमा थककर चूर हो गयी। पर मां के मुंह से ये नहीं निकला कि तू भी आराम कर ले। ऐसा तकरीबन तकरीबन रोज ही होने लगा। भाभी के भी व्यवहार में , बोलने में फर्क आने लगा। भाई भी ऐसा दिखाने लगा कि जैसे वह होकर भी नहीं है।
उसे याद आया कि वह थोड़ा सा ज्यादा काम होता था तो सास कैसे मदद के लिए खुद आ जाती या आया जो काम के लिए रखी है उसे साथ कर देती व उसे कहती अब तू आराम कर ले। ये काम हो जाएगा। सौरभ भी शाम को आकर उसका दिल बहलाने बाहर ले कर जाते। मान मनुहार से उसे रखते। सास भी कभी ये खाले, कभी ये पहन ले , लगाए रखती।
उसने तो महीने भर में कभी भी सास को फोन कर हाल नहीं पूछा। यहां तो भाई भाभी को परवाह नहीं कि मैं भी इस घर में रह रही हूं। मुझे बीमार मां की सेवा करने छोड़ कर खुद सैर सपाटा करने चले जाते हैं। मैं किसी बात के बीच बोलूं तो भाभी रूठ कर बैठ जाती है और भाई मुझे छोड़ उन्हें मनाने में लग जाते हैं। वह दिल ही दिल में बोली, सीमा अपनी जिंदगी को बदलने के लिए खुद में बदलाव लाना पड़ेगा नहीं तो बसा बसाया घर बर्बाद हो जाएगा।
इतना सोचते ही उसने पहले तो सौरभ को फोन किया। सौरभ की आवाज सुनते ही वह रो पड़ी। सौरभ बोला, सीमा सब ठीक तो है ना, तुम रो क्यों रही हो। सौरभ मुझे आफिस के बाद लेने चले आओ। सौरभ हैरानी से बोला, क्या तुम वाकई आना चाहती हो।
हां सौरभ मैं अपने घर वापस आना चाहती हूं , अब मुझे समझ आ गया है कि कौन सा घर मेरा अपना है।
तो फिर मैं आधे घंटे में पहुंच रहा हूं। तैयार रहना।
सीमा लगभग खुशी से चहकती हुई बोली कि मम्मी, सौरभ मुझे लेने आ रहे हैं मैं जा रही हूं।
क्यों अब, थोड़े दिन और रूक जाती । भाई बोले।
नहीं भाई अब मैं अपना घर छोड़ कर नहीं रह सकती।
घर आकर वह सास सुमित्रा देवी के गले लगकर रो पड़ी और बोली मां मैं अब अपना घर छोड़कर कभी नहीं जाउंगी।
* पूनम भटनागर।