एक बार तो नवल के प्राण जैसे हलक से बाहर ही आ गया हो
नवल को काटो तो खून नहीं
मुझे माफ कर दो…
मुझसे गलती हो गई
मेरी नजरों से ओझल हो जाओ
वर्ना तुम्हारे लिए ठीक नहीं होगा
नवल को जैसे एहसास हो गया हो की ये राधिका हो ही नही सकती
नवल तुरंत मंदिर के प्रांगण से बाहर आ गया और दूसरी ओर जाकर छुप गया
इधर राधिका मंदिर के अंदर ही अभी भी गुस्से से उबल रही थी मानो जैसे नवल के छुअन ने उसे अपवित्रता का बोध कराया हो ।
राधिका अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी
और कुछ ही देर में उसे मंदिर की घटना बिलकुल याद नही रहती
जी हां
बिलकुल…. उसे मंदिर घटना बिलकुल याद नही रहती है
क्योंकि राधिका के शरीर में माता स्वयं विराजमान हो गई थी।
जब राधिका घर पहुंची तो वो थोड़ी थकी थकी लग रही थी इसलिए अपने कमरे में जाकर लेट गई ।
दीदी … क्या हुआ? (उसके भाई नारायण ने उसे उठाया)
दीदी प्रसाद तो खिला दो मंदिर का
आज क्या हुआ तुम्हे जो सबको बिना प्रसाद दिए ही आकर लेट गई?
तबियत तो ठीक है
हां हां मेरे भाई…
मेरा लल्लू लाल
मैं ठीक हूं….
बस वो थकावट महसूस हो रही थी इसलिए आकर लेट गई
पर दीदी ऐसा तो तुम्हारे साथ पहले कभी नहीं हुआ था….
खैर छोड़ो
प्रसाद खिलाओ…
उधर साध्वी राधिका के आने के बाद तैयार होकर मंदिर जाने लगी और उसने राधिका को बता दिया कि मैं मंदिर होकर आती हूं
साध्वी मंदिर पहुंची तो देखा कि मंदिर के आसपास थोड़ी अजीब सी सुगंध आ रही है जबकि मंदिर के अंदर जाने के बाद बहुत ही सुंदर फूलों की महक आ रही है।
( ध्यान दीजिए देवकन्या होते हुए भी ये कुछ जान नही सकती)
खैर साध्वी ने माता की पूजा की और बाहर निकलने को हुई तो नवल से उसकी नजरें मिल गई
नवल तो साध्वी को पहले से ही भा गई थी इसलिए साध्वी उसकी ओर आकर्षित हो गई और नवल की ओर बढ़ गई।
उधर वैष्णो माता की आंखे खुली और वो परेशान हो गई क्योंकि भले ही वो मनुष्य रूप में थी और खुद को माता की सबसे बड़े भक्तों में साबित करने के लिए ही उसने माता से मनुष्य रूप मांगी थी और माता ने उसके सारी शक्तियां को अपने पास रखकर बिना कोई मदद करने के वचन के साथ उसे मृत्युलोक में भेजी थी लेकिन थी तो देवकन्या ही न…
माता तो जानती ही थी कलयुग प्रभाव में वो कलयुगी चादर ओढ़ ली है इसलिए अब जो करना है वो साध्वी स्वयं करे ऐसा सोचकर वो अपने में लीन हो गईं।
इधर नवल के पास जाकर साध्वी ने नवल के आंखों में आंखे डालकर एक प्यार भरी मुस्कान के साथ नवल को बैठे बिठाए अनजाने में एक मौका दे दी राधिका के पास पहुंचने का।
आपका नाम क्या है?
मैं नवल …
पास के गांव में ही मेरा घर है
वो आपको एक बार देखा था तो दोबारा आपको देखने ही इस मंदिर के पास आया हूं
आप केवल मुझे देखने इतनी दूर आए है?
जी हां
खूबसूरत चीजों को पाने के लिए दूरियां तय करनी ही पड़ती है । जैसे चांद का हम दूर से दीदार तो कर सकते है लेकिन पाने के लिए हम चांद तक तो जाना ही पड़ेगा ना..
साध्वी को नवल ने अपने प्रेमजाल में इस तरह से फसाया की साध्वी बस उस जाल के तिलिस्म में उलझकर रह गई और नवल के प्रेम ने साध्वी को गिरफ्तार कर लिया था।
साध्वी जिसके पास शरीर तो मनुष्य का था परंतु थी तो देवकन्या का ही रूप जिस करना उसके मनुष्यिक शरीर में भी एक अलग तेज तो था ही…
काफी वक्त हो जाने पर अगले दिन मिलने का वादा करके साध्वी अपने घर चली गई..
उधर वक्त काफी हो जाने के कारण राधिका और और उसकी मां अंबिका जी साध्वी के लिए परेशान हो गई..
तब तक साध्वी घर में प्रवेश कर चुकी थी
इतनी देर कहा थी साध्वी
अरे चाची…
पूजा थोड़ी लम्बी थी इसलिए देर लग गई
कौन सी पूजा थी तुम्हारी जो इतनी लंबी हो गई….
खैर छोड़ो
जाओ राधिका के साथ खाना खा लो
नही चाची
अभी मुझे भूख नहीं है
राधिका तुम खाना खा लो….
क्या बात है साध्वी तुम्हे भूख क्यों नहीं है
तबियत तो ठीक है ?
अरे हां हां
मेरी तबियत बिलकुल ठीक है तुम खा लो…..
आज साध्वी एक अलग ही दुनिया में प्रवेश कर चुकी थी जिसमे केवल चारो तरफ गुलाबी गुलाबी गुलाब की पंखुड़ियों से गुलाब की खुशबू की महक आती रहती है , है ओर उसे केवल नवल दिखाती देता जो एक राजकुमार की तरह सिर पे मुकुट डाले हुए हाथो में तलवार और घोड़े पर सवार जिसके सुरक्षा में उसके चारों ओर सुरक्षाचक्र बनाए हुए सैनिक रहते है और वो राजकुमार घोड़े से उतरकर साध्वी से उसका हाथ मांगता है और साध्वी उसे अपना है थी देती है..
उधर नवल साध्वी का हाथ अपने हाथों में लेकर उस हाथ को चूम लेता है जिस कारण साध्वी के गाल शर्म से गुलाबी हो जाती है और वो अपना हाथ नवल से छुड़वाकर पीछे हटना चाहती है….
साध्वी…
ए साध्वी….
उठ न
अब उठ जा…
राधिका साध्वी को नींद से जगाती है तभी साध्वी उठकर बैठ जाती है वो अभी भी शर्म से लाल हो रही होती है
क्या बात है साध्वी
आज तुम दिन में सो रही हो
अभी तक तुमने खाना भी नहीं खाया
और तुम ये इतना शर्मा क्यों रही हो?
कही कोई सपनो में राजकुमार तो नही मिल गया?
हा हा हा हा…. राधिका हसीं तो
साध्वी शर्मा कर राधिका से लिपट गई लेकिन ये क्या राधिका को कुछ अलग सा महसूस हुआ साध्वी के छुअन से
लेकिन राधिका ने फिर उस ओर ध्यान न देकर
साध्वी के लिए खाना लेकर आई
साध्वी खाना खाकर अपने सपनो की बात राधिका को सुनाई जिसे सुनकर वो दोनो हंसते जा रहे थे …
लेकिन साध्वी ने नवल का नाम राधिका को नही बताया था
उधर नवल उस दिन राधिका के रूप रंग में इस कदर खो चुका था की उसका अब एक ही लक्ष्य बन गया था
राधिका के शरीर को पाना…
किसी भी तरीके से…
अगले दिन राधिका और साध्वी दोनो एकसाथ मंदिर गई मंदिर के प्रांगण में प्रवेश करते ही साध्वी को एक झटका सा लगा जैसे कोई उसे नींद से जागा रहा हो फिर सबकुछ ठीक हो जाता है
वही राधिका को इसका अंदाजा नहीं लग पाता इसलिए वो माता की पूजा करने लग जाती है
फिर साध्वी भी माता की पूजा कर दोनो लौटने लगते है तो साध्वी की नजर नवल को ढूंढती है …
साध्वी चलो…
चलो साध्वी…
राधिका कुछ देर रुको न
क्या हुआ जो तुम रुकने बोल रही हो
कुछ नही
बस वो
वो क्या ?…
वो..वो.. नव…नवल
नवल ?
कौन नवल साध्वी?
ये तुम क्या बात कर रही हो?
राधिका बस तुम रुको तो …
ठीक है..राधिका बोली
कुछ ही देर में नवल उधर से आता हुआ दिखाई देता है
जब एकदम नजदीक आता है तो
राधिका को देखकर वो सहम जाता है
क्योंकि कल वाली मंदिर के अंदर की घटना उसे अंदर से हिलाकर रख दिया था
लेकिन राधिका को कल वाली घटना का कोई भान ही नही था
राधिका को शांत देखकर नवल साध्वी के पास आया और साध्वी ने राधिका का परिचय नवल से कराया (जबकि दोनो का पहला मिलन कल मंदिर के अंदर हो चुकी होती है)
राधिका ये हैं नवल
नमस्ते…राधिका बोली
नवल ये है राधिका मेरी छोटी बहन और मेरी दोस्त भी…
नवल चाह तो रहा था की राधिका से हाथ मिलाए लेकिन कल की घटना ने उसे ऐसा करने से रोक दिया
नमस्ते ….नवल बोला
राधिका मैं इनसे प्रेम करने लगी हूं …साध्वी बोली
राधिका हतप्रभ होकर बस साध्वी को निहार रही थी लेकिन राधिका साध्वी के निजी जीवन में दखल देना नही चाहती थी इसलिए उसने साध्वी को देखकर मुस्कुराकर एक प्रेम करने खुली स्वीकृति दे दी
राधिका तुम यही रुको मैं बस कुछ देर में आती हूं
साध्वी नवल के साथ मंदिर के पीछे जाकर नवल से अपनी प्रेम भरी बातें करने लगी और कल सपनो में देखी घटनाओं का वर्णन भी नवल से कर दिया…
नवल का पूरा ध्यान राधिका के ऊपर था
लेकिन राधिका को पाना इतना आसान नहीं ऐसा सोचकर वो पहले साध्वी के दिल में अपने लिए जगह बनाया ….
नवल ने साध्वी के हाव भाव को पढ़कर बिना देर किए साध्वी के होटों पर अपने होठ रख दिया
साध्वी एकदम से घबरा गई क्योंकि वो इसके लिए तैयार नहीं थी फिर भी साध्वी ने नवल के नाराज होने के डर से मना नहीं कर सकी और साध्वी ने वो कर लिया जो उसे नही करना था……
अगला भाग
कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–6) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi
कहानी अच्छी लग रही हो तो plz लाइक जरुर करें