मम्मी मुझे भैया के पास ले चलो न वो मेरा इंतजार कर रहे है मुझसे राखी बंधवाने के लिए…
वैष्णवी 5 वर्ष की बिलकुल फुल जैसी छोटी बच्ची आज अपनी मम्मी के सामने सुबह से जिद करे जा रही थी की उसके लिए उसका भाई राखी बंधवाने के लिए इंतजार कर रहा है मुझे उसके पास ले चलो
यशोदा (वैष्णवी की मां) आज सुबह से वैष्णवी के इस अप्रत्याशित व्यवहार से बिल्कुल सहम गई थी और उसे एक अनजाना डर सताने लगा था और यह डर लाजिमी भी था क्योंकि यशोदा की केवल एकमात्र पुत्री हीं थी और वो थी…
“वैष्णवी”
आज रक्षा बंधन का त्योहार है और सुबह से हीं हर कोई अपनी बहन से रखी बंधवाने के लिए उतावला हुए जा रहा है और बहने अपने भाइयों को राखी बांधकर उपहार पाने के लिए उत्सुक हुए जा रही है।यहां तक कि यशोदा भी आज अपने भाई के इंतजार में है की वो आयेंगे तो राखी बांधकर ही खाना खायेगी
जबकि राघव (यशोदा के पति) जिनकी कोई बहन नहीं थी फिर भी आस पड़ोस के उनसे उम्र में छोटी लड़कियां उन्हें प्रत्येक रक्षा बंधन पर राखी जरूर बांधती थी (और ये चीजें कम से कम गांव में आम बात है क्योंकि एक ही गांव की हम उम्र की लड़कियां बहन ही मानी जाती है) बाजार से उन राखी बांधने वाली बहनों के लिए गिफ्ट स्वरूप कुछ देने के लिए बाजार गए हुए थे…
लेकिन ये क्या
आज अचानक ही वैष्णवी अपने पापा के बाजार जाने के बाद न जाने किस तरह की बाते करने लग गई थी और वो सिर्फ अपने भाई के पास जाकर रखी बांधने की जिद पे अड़ गई थी जबकि उसका कोई भाई था ही नही।
राघव और यशोदा की शादी को 15 साल हो गए थे लेकिन 5 वर्ष फल तक इन दोनो की कोई संतान न थी । शादी के 10 वर्षो के बाद तक राघव से जितना बन पड़ा था संतान सुख पाने के लिए सारी उपाय डॉक्टर ओझा फकीर बाबा यज्ञ हवन सब करके वो थक हार कर अंत में भगवान को यही मंजूर है समझ कर बैठ गया था
लेकिन एक दिन उसके घर एक बुढिया भीख मांगने आई थी तब यशोदा ने ही उसे बिठाकर खाना पानी खिला पिलाकर और कुछ देकर विदा करने लगी तो उस बुढ़िया ने उसे आशीर्वाद दिया ..
मेरी बच्ची तू कितनी दयालु है
हमेशा सुहागन रहो
तुम्हारे बच्चे फूले फले मेरी बच्ची…
बच्चे वाला आशीर्वाद सुनकर यशोदा की आंखों से अविरल आंसू बहने लगे और अपने आप को संभालकर us बुढिया को विदा करने के लिए जैसे ही पलकें उठाई वो बुढिया सारा माजरा समझकर
क्या हुआ बेटा तुम्हारी आंखों में आसूं कैसी?
कुछ नही माताजी बस ऐसे ही… यशोदा बोली
मुझे बता सकती हो मेरी बेटी तुमने मुझ भूखी को इतना मन सम्मान देकर खाना खिलाया क्या मैं तेरे लिए कुछ नही कर सकता …
बता तो सही
यशोदा बोली कुछ नहीं माता जी बस आपने मुझ बांझ को बच्चे के फूलने फलने का आशीर्वाद दिया तो आंखे नम हो गई क्योंकि मेरी तो कोई संतान ही नहीं है…
मैं तो बांझ हूं
मैं कोई बच्चा नहीं जन सकती हर जगह डॉक्टर ओझा फकीर को दिखाकर थक हारकर बैठ गई हूं।
इसलिए अब तुम्ही बताओ जिसके कोई संतान ही न हो उसके बच्चे कैसे फले फूलेंगे माता?
नही मेरी बच्ची तुम्हारे जैसी इंसान को भगवान इतनी क्रूर सजा नही दे सकते और मैंने जो आशीर्वाद दिया है वो झूठा नही हो सकता
बस तू मेरा कहा एक बात मान ले और एक बार अपने पति के साथ जाकर माता वैष्णो देवी के दर्शन कर आ .. फिर देखती हूं तू कैसे बांझ रहती है।
और हां सुन मेरी बच्ची ….
माता से कहना बुढिया ने भेजा है आपके पास उसकी जबान की लाज रखना….
इतना कहकर वो बुढिया चली गई
यशोदा उसको अपनी आंखों से ओझल होने तक देखते रही
पता नही क्यों आज यशोदा के मन में खुशियों के ज्वार भाटे उबाल रहे थे और उसे उस बुढ़िया के आशीर्वाद पर यकीन हो चला था इसलिए राघव के घर पर आते ही उसने दिन में घटी सभी घटनाओं का जिक्र जैसे ही राघव के सामने किया राघव तो जैसे तैयार ही बैठा था
यशोदा कल ही चलते है माता के दरबार में
वो जरूर कोई सिद्ध बुढिया होगी जो अपने दरवाजे पर बस हमारी मनोकामना पूरा करने हेतु ही पधारी थी।
माता के दर्शन करने के बिलकुल 9 महीने बाद ही यशोदा को पुत्री रूप में संतान की प्राप्ति हुई जिसका नाम उन लोगो ने वैष्णवी रखा था।
आज अचानक से वैष्णवी का इस तरह से बर्ताव करना यशोदा को अव्यवहारिक लगा और इतनी कोशिश के बाद एक पुत्री की प्राप्ति हुई थी तो डरना तो स्वाभाविक था ही।
यशोदा का मन उदास था और वो वैष्णवी को लेकर कमरे में आ गई थी।
वैष्णवी के जिद खतम होने के नाम ही नही ले रहे थे..
तभी वैष्णवी के पापा यानी राघव का घर आगमन होता है…..
वैष्णवी
वैष्णवी….
कहां है मेरी लाडो
उसे किसी की नजर लग गई है जी… यशोदा कमरे से बाहर आकर राघव को सारी घटनाक्रम विस्तार से बताती है तो राघव भी घबरा जाता है लेकिन फिर राघव अपने आप को संभालते हुए अपनी बेटी से पूछता है
लाडो
क्या हुआ तुम्हे
मेरी लाडो को बुखार है ?
नही पापा
आपकी लाडो को बुखार नही है
बस उसे उसके भाई के पास जाना है जो उसका बहुत दिनो से रखी बंधवाने का इंतजार कर रहा है
चलो ना पापा
आप भी साथ में चलो ना
लेकिन कहां चले वैष्णवी ?
कौन भैया
कैसा भैया
तुम्हे पता है ना वैष्णवी तुम्हारा कोई भाई नहीं है…(चिल्लाकर)
राघव आज पहली बार अपनी बेटी से इतनी तेज आवाज में बात किया था
यशोदा अवाक होकर देख रही थी और आंखों से झरझर आंखों से आंसू बह रही थी
अब इन दोनो को कोई उपाय नहीं सूझ रहा था
तभी…
दरवाजे पर
कोई है ?
मुझ भूखी को कुछ खाने को दे दो
दो दिन हो गए पेट में अनाज का एक भी दाना गए हुए
यशोदा दरवाजे पर आती है
पर ये क्या
ये तो वही बुढिया है जो पांच वर्ष पहले यशोदा को संतान पाने का उपाय बता कर गई थी
यशोदा सीधा बुढिया के पैरों में गिर गई और बिलख बिलख कर रोने लगी ..
माता
माता आप कौन हो
पिछले संकट से आपने ही मुझे उबारा था मां
आज मेरे ऊपर फिर से संकट आया हुआ है मां और आज फिर आप मेरे घर में ये रूप लेकर पधारी हो
आप सच सच बताईए माता
आप कौन हो?
रोने की आवाज सुनकर राघव वैष्णवी को लेकर दौड़ा हुआ आया ..
यशोदा को एक बुढिया के पैरो में गिरा हुआ देखकर राघव असमंजस की स्थिति में था ..
तभी बुढिया की नजर वैष्णवी पर पड़ी..
पर ये क्या
वैष्णवी की उस बुढ़िया से नजर मिलते ही अपनी नजर बुढिया की नजरों से चुराकर दूसरी तरफ कर ली।
तभी
बेटी
क्या मैं पहले भी तुम्हारे घर आई हूं?
यशोदा बोली
हैं माता आज से पांच वर्ष पहले आपने ही मुझे संतान प्राप्ति के लिए वैष्णो देवी जाने की सलाह दी थी और उसके बाद पूरे दस साल के बाद मुझे वैष्णवी के रूप में पुत्री रत्न की प्राप्ति हुई थी माता….
कहकर यशोदा रोने लगी
पर अब क्या दिक्कत है मेरी पुत्री
मुझे बड़े जोरों की भूख लगी है मेरी बच्ची क्या तुम कुछ खिला दोगे?
यशोदा…
हां हां …माता…
यशोदा दौड़कर अंदर गई और एक थाल में खान परोसकर ले आई
राघव बिलकुल शांत अवस्था में सब चीजों को केवल देखे जा रहा था
जबकि वैष्णवी उस बुढ़िया की ओर बिलकुल भी नहीं देख रही थी
परंतु हां
अभी उसकी भाई को राखी बांधने की जिद बिलकुल बंद हो चुकी थी और राघव इसे नोटिस कर चुका था इसलिए राघव उस बुढ़िया के पास ही बैठा रहा।
यशोदा पूरी तन्मयता के साथ उस बुढ़िया की सेवा सत्कार में लगी हुई थी क्योंकि उसे पता था की ये माताजी के पास कुछ न कुछ उपाय जरूर होगा
हुआ भी वही
माता खाना खाकर यशोदा को आशीर्वाद देती है
फूलो फलों
हमेशा खुश रहो
तभी यशोदा उदास हो जाती है जिसे बुढिया भाप जाति है
क्या हुआ मेरी बच्ची
यशोदा के आंखों में आसूं का सैलाब आता है और पूरी बांध की तरह दीवार तोड़कर बाहर निकल आता है…यशोदा सुबह की सारी घटनाओं का जिक्र कर देती है।
बुढिया उसकी आंखो के पानी पोछकर बोलती है……
बेटी यहां से 25 किलोमीटर की दूरी पर एक गांव है जिसका नाम है
“बैकुंठी”………
अगला भाग
कच्चे धागे-एक पवित्र बंधन (भाग–2) – शशिकांत कुमार : Moral Stories in Hindi
दोस्तों
Plz कहानी को रेट जरूर करें
आपके भाई को बूस्टअप मिलेगा आपके रेटिंग से
अगला भाग आपकी रेटिंग के बाद प्रकाशित करूंगा
जिन्हे पूरी कहानी एक बार में पढ़नी है वो दिए गए “प्रतिलिपि” के लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते है
इसके सारे पार्ट्स वहां पर एक बार में मिल जायेंगे
और हां फॉलो जरूर करें
“कच्चे धागे :- एक पवित्र बंधन”, को प्रतिलिपि पर पढ़ें :,
Written by :- shashi kant kumar