आज फिर शांति बुआ आनेवाली थी,मैं तो खुश था,पर मम्मी अशांत थी।शांति बुआ यूँ तो हर वर्ष 15-20दिनों के लिये आती ही थी,मेरी उनसे खूब पटती थी,मैं उनसे भगवान राम,कृष्ण लीला एवं रावण,कंस वध आदि आदि की कहानियां सुना करता,मुझे ये कहानियां सुनने में खूब मजा आता था,बुआ भी खूब चाव से सुनाती थी।
उन्हें सब कहानियां मुजाबानी याद थी।जब भी बुआ जी आती तो मेरी इच्छा अधिकतर उन्ही के साथ रहने को होती,पर मम्मी किसी भी बहाने से मुझे उनके पास से बुला लेती।असल मे मम्मी को ऐसा लगता कि बुआ से ऐसी ऐसी कहानियां सुनकर मेरे मस्तिष्क पर अच्छा प्रभाव नही पड़ेगा और मैं आज के अंग्रेजी वातावरण से कट जाऊंगा।एक बार तो मम्मी ने इशारों इशारों में बुआ जी से अपने मन की बात कह भी दी।पर बुआ बोली अरे भाभी यदि मुन्ना को हम अपने इतिहास,अपने इष्टो ,अपने संस्कारों,अपनी संस्कृति के बारे में नही बताएंगे तो वह कैसे जानेगा?भाभी हमारा जीवन तो हमारे पूर्वजों का इतिहास ही तो है।
माँ को बुआ से ऐसी प्रतिक्रिया की आशा नही थी और मम्मी पर बुआ की बातों का कोई उत्तर भी नही था,सो चुपचाप वे बुआ के पास से चली आयी।लेकिन बुआ की बातों को उन्होंने स्वीकार नही किया।यही कारण था जब तक बुआ रहती,मम्मी तनाव में ही रहती और मुझे बुआ के पास कम ही जाने देती।जब बुआ अपने घर चली जाती तब मम्मी को चैन पड़ता।बुआ के अपनी कोई संतान नही थी,कुछ यह भी कारण रहा होगा कि वे मुझसे बेइंतिहा लगाव रखती थी।
अबकी बार उनका आना कोई सामान्य नही था,फूफा जी का स्वर्गवास हो गया था,बुआ नितांत अकेली रह गयी थी,तब मेरे पापा ने बुआ को अपने यहां लाने का निर्णय किया।मम्मी का दबे स्वर में विरोध था, पर पापा के दृढ़ निर्णय के कारण मम्मी अधिक मुखर नही हो पायी।घर के ऊपरी माले के कमरे को पापा ने सुव्यवस्थित करा दिया था।कमरा सर्वसुविधायुक्त था,इसलिये पापा ने वह कमरा बुआ के लिये चुना था,वैसे भी कमरा ऊपर होने के कारण उनकी प्राइवेसी भी बनी रहेगी।मम्मी के चेहरे से मुझे साफ लग रहा था,उन्हें पापा का निर्णय पसंद नही था।
पापा शांति बुआ को ले आये,पहले आने वाली येही बुआ और आज आने वाली बुआ में जमीन आसमान का फर्क था।हरदम चहकने वाली बुआ आज गुमसुम सी थी,सफेद धोती में लिपटी बुआ को ऐसे गुमसुम देख मुझे धक्का सा लगा।पर बुआ ने मुझे कसकर सीने से लगा लिया।
बुआ का सामान ऊपर के कमरे में पहुंचा दिया गया।अब बुआ ने अपनी दिनचर्या नियत कर ली थी,उन्होंने समझ लिया था कि अब वे मेहमान नही है, उन्हें शेष जीवन यही रहना है।वे समझ गयी थी कि उन्हें अपने को इस घर के हिसाब से ही अपने को ढालना पड़ेगा।वे मम्मी से भी पहले उठकर घर का काफी काम निपटा लेती थी,वैसे तो अब मम्मी को घर के कामो से काफी राहत मिल गयी थी,फिरभी उनका मुँह बुआ की तरफ से चढ़ा ही रहता।मुझे नही पता पापा को या खुद बुआ को मम्मी के इस भाव की जानकारी थी या नही पर मैं मम्मी के मनोभावो को समझ लेता था।
उस दिन मैं स्कूल से वापस आया तो मैंने बुआ और मम्मी की बातचीत सुनी,बुआ की बोली में पहला जैसा अधिकार भाव नहीं था,वे एक तरह से दयनीय स्वर में मम्मी से कह रही थी,भाभी,मैं ठहरी अभागी,अब मेरा इस दुनिया मे आप लोगों के अलावा कौन है,अब तो भाभी जिंदगी यही गुजरेगी।भाभी आप जैसा कहोगी मैं वैसे ही करूँगी,पुरानी कहानियां भी मुन्ना को नही सुनाऊँगी,पर उसे कुछ समय के लिये मेरे पास भेज दिया करो,उसमें मुझे मेरा बच्चा दीखता है,उसके पास आने से मेरा ममत्व जाग उठता है।ईश्वर ने कोई औलाद नही दी पर मुन्ना तो है ना।
मम्मी कुछ कहती इससे पहले ही मुझे देख वो मेरी ओर आ गयी।मम्मी उत्तर देने से बच गयी।शाम के समय पापा बोले चलो आज बाहर ही रेस्टोरेंट में खाना खायेंगे।सब तैयार होने लगे।मैं भी खूब उत्साहित था,मम्मी ने भी अपने सबसे अच्छे कपड़े पहने,पर बुआ ने वही सफेद साड़ी ही पहनी।
मैंने कहा भी बुआ आप वही नीली वाली साड़ी पहनो ना,वह आप पर कितनी जंचती है,पर बुआ ने कोई उत्तर न देकर बस मुझे अपने से चिपटा लिया।पापा ने रेस्टोरेंट के पास कार रोक हमे उतरने को बोल दिया ताकि वे कार पार्क कर सके।पापा पार्किंग में चले गये।हम एक ओर खड़े हो उनका इंतजार करने लगे।
तभी मेरी नजर एक गुब्बारे वाले पर पड़ी,वह सामने वाले फुटपाथ पर खड़ा था।मेरा मन गुब्बारा लेने को था,सो मैं देखने के लिये फुटपाथ की ओर चल पड़ा।मम्मी बुआ वही खड़ी रह गयी।जैसे ही मैंने भाग कर सड़क पार करनी चाही,उधर से एक कार तेजी से आ गयी,कार को मैंने अपने पास तक देखा,मुझे लग गया था कि कार मुझे कुचल देगी,
पर इतने में मुझे एक धक्का लगा और मैं दूर गिरकर बेहोश हो गया।जब होश आया तो देखा मैं बुआ के कमरे में उनके पलंग पर ही लेटा हूँ, बुआ ने ही मुझे बचा लिया था,पर खुद काफी चोट खा बैठी थी।मम्मी रो रो कर बुआ से कह रही थी दीदी मुन्ना को आपने जीवन दिया है,मुझे माफ़ कर देना,अब मुन्ना आपका है,ये आपके पास ही आपके कमरे में ही रहा करेगा।मैं देख रहा था बुआ के चेहरे पर असीम शांति थी,उनका एक हाथ धीरे धीरे मेरी ओर बढ़ रहा था,मुझे अपने करीब लाने को।
मम्मी की अशांति आज शांति बुआ ने पिघला दी थी।मैंने भी अपना चेहरा बुआ के आंचल में छुपा लिया।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित