मौन – साक्षी तिवारी   : Moral Stories in Hindi

महेश बाबू आज अपने घर के बरामदे में शर्मिंदा होकर बैठे हुए थे ।उन्हें तो उम्मीद ही नहीं थी कि उनके कर्म इस तरह लौट कर आयेंगे ।तारा  भी अपने कमरे में  दुखी हो कर बैठी अपने अतीत को याद कर रही थीं।

तारा गांव के एक गरीब किसान की बेटी थी ।बीस साल की तारा रूप और गुणों को खान थी । उसके गुणों से प्रभावित होकर महेश बाबू के माता पिता ने अपने  बेटे के लिए तारा का हाथ मांग लिया । बिन मां की बच्ची के लिए इतना अच्छा रिश्ता, तारा के पिता का खुशी का ठिकाना नहीं था

लेकिन महेश बाबू को ये रिश्ता पसंद नहीं था ।कहां वो शहर में रहने वाले सरकारी अफसर और कहां ये गांव देहात की एक साधारण लड़की तारा। पर मां बाप के आगे उनकी एक न चली और तारा देवी उस घर में बहु बन कर आ गई ।

महेश बाबू अपने लिए कोई शहर की अच्छी पढ़ी लिखी , जो उनके सोसाइटी में उनके साथ उठने बैठने के लायक हो ऐसी लड़की से विवाह करना चाहते थे और इस बात का गुस्सा वो जाने अंजाने तारा पर जरूर निकालते थे।

एक बार  वो अपने दोस्तो को घर लेकर आए ।उन्होंने तारा से अपने दोस्तो के लिए नाश्ते पानी का इंतजाम करने को कहा ।तारा बहुत खुश हो कर अपने पति और उनके दोस्तो के लिए चाय नाश्ता लेकर गई लेकिन उनके दोस्त तारा की वेशभूषा देख कर हंसने लगे ।लाल रंग की खूबसूरत साड़ी सीधी मांग में पीला सिंदूर  सर पर पल्लू लिए प्यारी सी मुस्कान बिखरेती तारा की हसीं गायब हो गई जब उसने महेश बाबू के एक दोस्त को कहते सुना – 

“क्या यार ! ये कौन से जमाने की लड़की से शादी कर ली तूने ।तू तो कहता था तुझे बिल्कुल अपने जैसी ही तेज तर्रार लड़की चाहिए ।” 

इतना सुनने के बाद तारा वहा रुक न सकी ।उन लोगो की बातो से अधिक उसे पति का मौन खल रहा था ।

थोड़ी देर बाद जब सभी लोग चले गए तब महेश बाबू गुस्से में अपने कमरे में पहुंचे ।वहा तारा को देख कर जोर से उसका हाथ पकड़ कर झिंझोड़ते हुए बोले – “करवा दी मेरी बेइज्जती, मिल गई खुशी ऐसे गवार बन कर रहने को किसने कहा है तुम्हे ।ना जाने मां पिता जी को तुम पसंद कैसे आ गई ।मेरी तो जिंदगी खराब हो गई। ” 

ऐसा बोल वो गुस्से में बाहर निकल गए । सास ससुर को जब पता चला तो उन्होंने बेटे को फटकार लगाई और कहा कि देखना एक दिन अपनी इन्हीं हरकतों के लिए पछताओगे।पर महेश बाबू कभी उनकी बात पर ध्यान न देते ।

इसी बीच तारा के पिता बहुत  बीमार हो गए ।महेश बाबू के साफ शब्दों में जाने से इंकार करने के कारण उनके पिता अपनी बहु को लेकर उसके मायके गए ।

पिता की हालत देख तारा रो पड़ी । उसने कह दिया की वो उनको छोड़ के कही नही जायेगी।इस पर उसके पिता ने उसे समझाते हुए की अब ससुराल ही उसका घर है और वो जीवन भर अपने पति और सास ससुर की सेवा करेगी इसका वचन लिया ।कुछ ही दिनों बाद उसके पिता का देहांत हो गया । उनके अंतिम संस्कार के बाद वो ससुराल लौट आई लेकिन पति का व्यवहार बिलकुल न बदला । तारा ने बिल्कुल मौन धारण कर लिया ।वो चुपचाप सब सहती रहती ।

कुछ सालों बाद उनके घर में एक बेटी का जन्म हुआ तारा को उम्मीद थी की शायद अब उनके पति सुधर जाए पर उनके पति में कोई बदलाव न आया । बेटी से तो उन्हें बहुत स्नेह था लेकिन पत्नी को अपमानित करते रहते । धीरे धीरे उनकी बेटी  मान्या बड़ी हो गई लेकिन वो भी अपने पिता के नक्शे कदम पर चलती ।उसके गलत करने पर अगर कभी तारा डांट लगाती तो उसे पति से और अधिक कटु शब्द सुनने को मिलते कभी कभी तो महेश बाबू तारा पर हाथ भी उठा देते । कुछ समय बाद सास ससुर बहु की दुर्दशा का पछतावा लिए चल बसे ।

अब तो कोई तारा का साथ देने वाला भी कोई न था ।

वो भी मौन साधे अपनी जिम्मेदारियां निभाती थी। 

मान्या की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी और वो अब एक मल्टीनेशनल कंपनी में काम करने लगी थी ।वही उसके साथ काम करने वाला एक लड़का मनीष उसे पसंद आ गया । उसने इस बारे में अपने पिता को बताया और मनीष से मिलवाया । महेश बाबू को भी मनीष पसंद था । तारा से पूछना भी जरूरी न समझा गया । कुछ ही दिनों में मान्या और मनीष को शादी हो गई।शादी में तारा  ने अपनी जिम्मेदारियां बखूबी निभाई । लेकिन पति और बेटी की नजर में उसको कोई अहमियत नहीं थी।

मान्या अपने ससुराल आ गई । उसकी हमेशा अपने मन की करने की आदत की कुछ दिनों तक उसकी सास ने बर्दाश्त किया लेकिन लेट नाइट पार्टीज के नाम पर उसका आधी रात बाहर रुकना उनके बर्दाश्त के बाहर था । उन्होंने बेटे से इसकी शिकायत की ।मनीष ने उसे समझाया की अब शादी हो चुकी है और मौज मस्ती के अलावा जिम्मेदारियों पर भी ध्यान देना होगा लेकिन मान्या इस बात पर उससे बहस कर बैठी ।दोनो में लड़ाई इतनी बढ़ गई की जब मान्या ने उसकी मां के बारे में उल्टा सीधा कहा तो मनीष ने उस पर हाथ उठा दिया ।इस बात पर मान्या ने गुस्से में पुलिस  बुला कर मनीष को गिरफ्तार करवा दिया और अब अपने मायके चली आई।

वर्तमान में

“ये तूने बहुत गलत किया बेटा अभी अपने ससुराल जा और सबसे माफी मांग ।”महेश बाबू ने उसे समझाया ।

नहीं पापा उसने मुझ पर हाथ उठाया था वो मुझसे माफी मांगेगा ।मैं क्यों माफी मांगू? मान्या चिढ़ कर बोली।

“मैं क्या कोई गांव की गवार हूं जो सास ससुर और पति की बदतमीजी बर्दाश्त करूंगी। मुझे मां जैसी बिल्कुल मत समझना ।उन्होंने सब बर्दाश्त किया मुझसे मत उम्मीद करना कि ऐसी जिल्लत भारी जिंदगी मैं जिऊंगी।

अब तो मैं तभी उस घर में जाऊंगी जब मनीष और उसका परिवार मुझसे माफी मांगेगा ।”

मान्या की बात सुन कर महेश बाबू दंग थे।

कुछ दिन बीत गए।मनीष की जमानत उसके परिवार ने करवा दिया था । वो माफी मांगने तो नही आया लेकिन उसकी तरफ से तलाक के कागज जरूर आ गए थे।मान्या के उम्मीद से परे था ऐसा होना । पिता के समझाने पर वो माफी मांग कर ससुराल जाने को तैयार हो गई। लेकिन मनीष ने साफ शब्दों में मना कर दिया की वो ऐसी औरत को अपनी जिंदगी में कभी जगह नही देगा बदले में वो जितनी चाहे एलिमोनी ले सकती है पर वो तलाक लेकर रहेगा । कुछ दिन बाद उनका तलाक भी हो गया ।

अब दोनो पिता और बेटी अफसोस कर रहे थे ।आस पड़ोस के लोग अक्सर महेश बाबू से पूछ देते कि तुम्हारी पत्नी तो बड़ी सीधी सादी थी बेटी ऐसी कैसे हो गई और महेश बाबू शर्मिंदा हो जाते । तारा भी बेटी के दुख मे दुखी थी।कभी कभी उसे अपने पति और बेटी के आंखो में शर्मिंदगी और पछतावा नजर आता लेकिन वो अब भी बिना भाव के मौन साधे ही रहती थी।

साक्षी तिवारी

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